अध्यापक के गुण, भूमिका और कर्त्तव्य का विवेचन कीजिए।
शिक्षक में बालकों को समझने की शक्ति, उनके साथ उचित रूप से कार्य करने की क्षमता, शिक्षण योग्यता, कार्य करने की इच्छा शक्ति और सहकारिता आदि गुणों की अपेक्षा की जाती है। अच्छे शिक्षक के व्यक्तित्व के निम्नलिखित गुण होने चाहिए-
अध्यापक के गुण
(1) चरित्र- आज भारत के सम्मुख ‘चारित्रिक संकट’ सबसे बड़ी समस्या के रूप में है। सभी प्रकार से मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है। इस स्थिति में यह उचित है कि अध्यापक स्वयं के भीतर चारित्रिक गुणों को विकसित करें। प्राचीन ऋषियों और गुरूओं के उदाहरण उन्हें उचति दिशा में निर्देश दे सकते हैं। अध्यापक को यह सदैव ध्यान में रखना चाहिए कि उसका सम्पूर्ण कार्य-व्यापार श्वेत वस्त्र के समान है जिस पर कालिख का एक छींटा भी उसे समाज और विद्यार्थियों की दृष्टि में नीचा गिरा सकता है।
(2) व्यवसाय के प्रति निष्ठा- सामान्य रूप से अध्यापक की वृत्ति को वे ही लोग ग्रहण करते हैं जो लोग अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में असफल हो जाते हैं। रूचिपूर्ण अध्यापक बनने की प्रवृत्ति बहुत कम लोगों में देखी जाती है। अध्यापन के प्रतिनिष्ठा के अभाव में अध्यापक सदैव अपने कार्य में असफल होता रहेगा और वह विद्यार्थियों को कुछ भी न दे पायेगा। निष्ठावान शिक्षक से ही विद्यालय और समाज का कल्याग होगा।
(3) आशावादी दृष्टिकोण– प्रत्येक अध्यापक को चाहिए कि वह जीवन के सभी क्षेत्रो में आशान्वित हो। नैराश्य की स्थिति में पहुँचने के अनेक कारण हमारे अध्यापकों के सम्मुख हैं। परन्तु धैर्यपूर्वक संकल्प के द्वारा इन कारणों को दूर किया जा सकता है। जो अध्यापक निराश हो जाता है, वह तेजहीन भी हो जाता है। आशावादी होने की स्थिति में ही वह अपने विद्यार्थियों में आशा का संचार कर सकता है।
(4) विषयाधिकार- अध्यापक का अपने सम्बन्धित विषय पर पूर्ण अधिकार होना आवश्यक है। छात्रों को कभी भी अधकचरा और अपूर्ण ज्ञान न दिया जाय। इसमें अनेक खतरे हैं।
(5) विनोदप्रियता– शिक्षक को हँसमुख अर्थात् विनोदी होना एक सीमा के भीतर उसके शिक्षण एवं व्यवहार में प्राणवत्ता ला देता है। प्रयेक दिन का पाठ सरल वातावरण में समाप्त होना चाहिए। विद्यार्थियों को उसका शिक्षण कहीं उबाऊ न प्रतीत हो।
(6) शिक्षण-विधियों का ज्ञान- समुचित ज्ञान उपयुक्त शिक्षा-विधि के अभाव में प्रभावशाली ढंग से छात्रों को नहीं दिया जा सकता। अध्यापक को प्रयत्नपूर्वक शिक्षण-विधियों के प्रयोग में दक्षता प्राप्त करना चाहिए।
(7) छात्रों के प्रति स्नेह सम्बन्ध- अपने छों को निकट से जानना, उनकी कठिनाइयों को समझना, उनके प्रति मर्यादित व्यवहार करना अथवा उन्हें विद्यालय । पितृषा स्नेह प्रदान करना प्रत्येक अध्यापक के व्यक्तित्व की एक मुख्य विशेषता होनी चाहिए। छात्र पर अध्यापक में परस्पर का सम्बन्ध जितना ही दृढ होगा शिक्षण कार्य उतना ही अवरोधक मुना होगा। छात्रों को अनुशासन में रखने का यह सबसे बड़ा अस है।
(8) अध्यवसायी- अध्यापक को सदैव अपने कार्य में शिथिलता और आलस्य के स्थान पर परिश्रम को महत्व देना चाहिए। परिश्रमी शिक्षक शीघ्र ही प्रधानाध्यापक, अध्यापकों एवं छात्रों के बीच आदर और विश्वास का पात्र बन जाता है।
(9) सांवेगिक सन्तुलन- कक्षा में और कक्षा के बाहर अध्यापक को प्रतिकूल परिस्थितियों में सदैव अपने संवेगों पर नियन्त्रण रखना चाहिए। सांवेगिक अस्थिरता से प्रस्त अध्यापक चिड़चिड़े और हास्यास्पद व्यक्तित्व वाले हो जाते हैं। संवेगों पर नियन्त्रण प्राप्त करने वाले अध्यापक प्रायः गम्भीर प्रकृति के हुआ करते हैं। अध्यापक को बालकों के संवेगों को ठीक से समझना चाहिए।
(10) शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान- वर्तमान शिक्षा में मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास निरन्तर होता जा रहा है। अध्यापक के लिए यह आवश्यक है कि वह छात्रों के व्यक्तित्व विकास के लिए बाल-मनोविज्ञान की समस्त बातों की विस्तृत जानकारी रखे।
(11) अध्ययनशील प्रवृति— सदैव अध्ययनशील बने रहना एक अच्छे अध्यापक की विशेषता है। अध्यापक को तब तक अध्ययन करना चाहिए जब तक वह अध्यापक के रूप में है। उसे ज्ञान-विज्ञान की नूतन जानकारियों के लिए पुस्तकों के अतिरिक्त पत्र-पत्रिकाओं का नियमित पाठक होना चाहिए। अपने विषय की सम्यक् जानकारी के साथ-साथ उसे अन्य विषयों की सामान्य जानकारी भी होनी चाहिए।
(12) भारतीय संस्कृति और परम्परा का ज्ञान— प्रत्येक भारतीय शिक्षक को अपनी सांस्कृतिक धरोहर और उसके मूल तत्वों का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। ‘सा विद्या या विमुक्तये’ का अर्थ उसे भली-भाँति समझना चाहिए। शिक्षा सांस्कृतिक धारा को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाती है और यह कार्य शिक्षक के सहयोग से ही सम्भव है। उसमें हो।
(13) स्वस्थ आदतें एवं सरल स्वभाव- अध्यापक सदैव गन्दी आदतों तथा धूम्रपान आदि से बचें। विद्यालय नियमित समय में आना और नियमपूर्वक अपना कार्य पूरा करना ही उसकी आदत होनी चाहिए। उसका स्वभाव पानी जैसा सरल एवं तरल अवश्य हो परनतु खारापन एवं कलुषिता नहीं होनी चाहिए। अध्यापक का वेश सुरूचिपूर्ण एवं स्वाभावानुकूल वह बाहर से दृढ़ परन्तु भीतर से कोमल स्वभाव वाला हो।
(14) पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं में रूचि– अध्यापक का सम्बन्ध कक्षा-शिक्षण से ही न होकर विद्यालय में सम्पन्न होले वाली पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं से अवश्य होना चाहिए। उसे भारतीय खेलों का अच्छा ज्ञान होना चाहिए, क्योंकि इन खेलों में धन की आवश्यकता नहीं होती या बहुत कम होती है। विदेशी खेलों से भी वह सुपारिचित हो। विद्यालय के रंगमंच से उसे लगाव हो। वह छात्रों के साथ स्वयं क्रियाओं में भाग ले इससे छात्र उत्साहित होंगे।
अध्यापक की विद्यालय में भूमिका
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लिखा है कि “समाज में अध्यापक का स्थान अत्यन महत्त्वपूर्ण है। वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को बौद्धिक परम्पराएँ और तकनीकी कौशल पहुंचाने का केन्द्र है और सभ्यता के प्रकाश को प्रज्जवलित रखने में सहायता देता है।” एक सच्चा अध्यापक जीवन-पर्यन्त विद्यार्थी बना रहता है।
शिक्षक को अज्ञान रूपी अन्धकार को मिटाने वाला एक ज्ञानरूपी प्रकाश दिखाकर मानवता के पथ को आलोकित करने वाला कहा गया है। कोठारी कमीशन ने भी अध्यापकों को राष्ट्र-निर्माता की संज्ञा दी है। आशय यह है कि शिक्षक, औसत सामाजिक व्यक्ति से अधिक चरित्रवान् उदार, सहिष्णु, दयालु तथा मर्यादित होता है।
शिक्षक विद्यालय संगठन का हृदय माना जाता है, विद्यालय में पर्याप्त संख्या में विभिन्न विषयों एवं प्रवृत्तियों के दक्ष एवं सुयोग्य शिक्षकों का होना एक अनिवार्य आवश्यकता है। शौक्षिक कार्यक्रमों की सफलता अध्यापक के व्यवहार, योग्यता एवं कार्य-प्रणाली पर ही निर्भर करती है। वर्तमान समय में अध्यापक का शाला में प्रमुख स्थान माना जाता है। शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक शोध ने यह सिद्ध कर दिया है कि शिक्षक-छात्र अनुक्रिया में शिक्षक की भूमिका अत्यन्त महत्तवपूर्ण है।
अध्यापक के कर्त्तव्य
विद्यालय में अध्यापक की कुछ निश्चित जिम्मेदारियाँ होती हैं, जिन्हें उसे पूरा करना पड़ता है। विद्यालय के प्रशासन या अन्य बाह्म अधिकारी उसी अध्यापक की प्रशंसा करते हैं। जो अध्यापकोचित गुणों से मण्डित है साथ ही प्रदत्त कर्त्तव्यों का निर्वाह भी सफलतापूर्वक करता है। एक अध्यापक को निम्नलिखित कर्त्तव्यों का पालन अवश्य करना चाहिए-
(1) शिक्षण सम्बन्धी- विद्यालय में अध्यापक का मुख्य कार्य अध्यापन है। उसे शिक्षण सम्बन्धी जो भी दायित्व दिये जायें उसका पालन पूर्ण मनोयोग से करना चाहिए। एक अध्यापक का प्रभावशाली शिक्षण छात्रों के अधिगम को बहुत दूर तक प्रभावित करता है।
(2) पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएँ सम्बन्धी- अध्यापकों को उनकी रूचि के अनुसार जो भी पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के सम्पादन का दायित्व दिया जाये उनका निर्वाह उन्हें कौशल के साथ करना चाहिए। कभी भी इन क्रियाओं को भारस्वरूप न ग्रहण किया जाये। अध्यापक को स्वयं रूचिपूर्वक क्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए।
(3) अभिलेख सम्बन्धी- माध्यमिक विद्यालयों के अध्यापकों को छात्रों की उपस्थिति- पंजी, संचित-अभिलेख,शुल्क आदि का विवरण स्वयं तैयार करना पड़ता है। पंजियों में पूर्ति पर्याप्त सावधानी के साथ की जानी चाहिए। जिससे सभी सूचनाएँ व्यवस्थित हों।
(4) परीक्षा सम्बन्धी- प्रायः सभी अध्यापकों को उत्तर-पुस्तिकाओं का मूल्यांकन और परीक्षा-फल तैयार करना पड़ता है। इस कार्य में पर्याप्त सतर्कता अपेक्षित है। परीक्षा सम्बन्धी मूल्यांकन में अध्यापक को सदैव निष्पक्ष होनी चाहिए।
(5) छात्रों के निरीक्षण सम्बन्धी– छात्रों के कार्यों का निरीक्षण और उन्हें निर्देश देना प्रत्येक अध्यापक का दायित्व है। छात्रों के प्रायोगिक और लिखित कार्य, उनकी परिस्थिति और आचरण तथा पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं में उनकी प्रगति आदि का नियमित निरीक्षण किया जाना चाहिए।
(6) सम्बन्ध निर्माण सम्बन्धी- अध्यापक का अपने विद्यार्थियों, मित्रों, प्रधानाचार्य आदि से स्वस्थ सम्बन्ध बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। परस्पर के सम्बन्ध से छात्रों का काफी हित किया जा सकता है।
(7) समाज-सेवा सम्बन्धी- सामाजिक सेवा सम्बन्धी दायित्व का निर्वाह अभिभावक के सहयोग से करना चाहिए। उसे विद्यालय द्वारा आयोजित सामाजिक क्रियाओं में भाग लेन चाहिए। सामाजिक दायित्व का निर्माण अध्यापक के समुन्नत व्यक्तित्व का परिचायक होता है।
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