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मानव अधिकार और भारतीय परिदृश्य की विवेचना कीजिए।

मानव अधिकार और भारतीय परिदृश्य
मानव अधिकार और भारतीय परिदृश्य

मानव अधिकार और भारतीय परिदृश्य

मानव अधिकार और भारतीय परिदृश्य- भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन 1993 में हुआ था तथा मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 में परित हुआ था। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि 1993 से पहले भारत में मानवाधिकार नाम की कोई चीज नहीं था और भारत सरकार का मानव अधिकारों की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं था। अपितु यदि हम भारत के प्राचीन इतिहास पर दृष्टि डालें तो हमें ज्ञात होता है कि भारत में मानवाधिकार आरम्भ से ही रहे हैं।

प्राचीन भारत में धर्म के रूप में मानवाधिकारों की संकल्पना की गई थी अर्थात् प्राचीन हिन्दू सभ्यता में मानव अधिकार सम्बन्धित आधुनिक संकल्पना की जड़ें मौजूद थीं। हमारे वेद, वेदान्त, उपनिषद, गीता आदि महत्वपूर्ण ग्रन्थ भी मानव अधिकार की शिक्षा देते हैं। उदाहरणार्थ शुक्र नीति के इस श्लोक को देखें तो पता चलता है कि उस समय भी मानव अधिकार व्यापक रूप में भारत में मौजूद थे।

“अघ्नादाननुझांतात्र गृहीयातु स्वामिताम् ।
स्वशिशु शिक्षयेदन्य शिशु नाप्यं पराधिनम् ॥”

किसी गरीब व्यक्ति की अधिकारिक सम्पत्ति पर प्रभुत्व बिना उसकी अनुमति के नहीं करना चाहिए, अपने बच्चों पर शासन अवश्य करें, किन्तु दूसरे के बच्चों को अपराध करने पर भी दण्ड नहीं देना चाहिए।

‘अपशब्दाश्य नो वाच्या मिता भावाच्य केष्वापि।
गोम्यं न गोपयेन्मित्रे तद्गोम्यं न प्रकाशयेत॥”

किसी व्यक्ति के लिए मित्र भाव में भी अपशब्दों का प्रयोग करना उचित नहीं है। मित्र से गोप्य विषय को न छिपाये और उसके गोप्य विषय को कहीं भी प्रकाशित न करें।

अर्थात उपरोक्त श्लोकों से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय पुरा इतिहास में वर्णित सृष्टि के आदि गुरु शुक्राचार्य और बृहस्पति जी ने भी मानवाधिकारों के विषय में उस समय के राजा-महाराजाओं और सामान्य व्यक्तियों को समय-समय पर भाषणों द्वारा या लेखों द्वारा शिक्षा दी है।

जैन धर्म के 24वें तीर्थकार महावीर जैन ने भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर विशेष बल दिया है।

मध्यकालीन भारत में मानव अधिकार किसी न किसी रूप में विद्यमान थे। प्राचीन भारत के तीन मुख्य बिन्दु मानववाद, वसुधैव कुटुम्बकम एवं धार्मिक सहिष्णुता भारतीय परम्परा में लगातार रही है। आधुनिक भारत में भी मानव अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए, कमजोर वर्गों के हितों के संरक्षण के लिए आयोगों का गठन किया जैसे – अल्पसंख्यक आयोग, पिछड़ा वर्ग आयोग, अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग आदि लेकिन सबसे उत्तम 12 अक्टूबर 1993 को राष्ट्रीय मानवीय आयोग का गठन किया गया है। जिसके पास इस सम्बन्ध में खोज एवं सिफारिशें करने का भी पूर्ण अधिकार सुरक्षित है।

अतः उपरोक्त विवेचन और उदाहरणों से हम कह सकते हैं कि भारतवर्ष में मानव अधिकारों की कल्पना राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के गठन के समय से ही नहीं अपितु भारतीय वेद-वेदान्तों के अनुसार प्राचीन काल से ही भारत में मौजूद रही है।

भारतीय संविधान में मानव अधिकार-

यद्यपि भारतीय संविधान में व्यक्त रूप से मानव अधिकारों का उल्लेख नहीं है। लेकिन संविधान में बड़े पैमाने पर मानव अधिकारों को मौलिक अधिकारों एवं निर्देशन सिद्धान्तों के रूप में अपनाया गया है। मौलिक अधिकारों में सिविल एवं राजनीतिक अधिकारों का समावेश है, निर्देशक सिद्धान्तों में आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार सम्मिलित किये गये हैं। भारतीय संविधान में निहित कुछ मानव अधिकार निम्न हैं।

1. मत रखने तथा उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार – अनुच्छेद 19(1) क
2. शांतिपूर्ण सभा एवं संघ की स्वतंत्रता का अधिकार – अनुच्छेद 19(1) ख
3. आवागमन की स्वतंत्रता का अधिकार – अनुच्छेद 19(1) घ
4. व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता का अधिकार – अनुच्छेद 21
5. मनमानी गिरफ्तारी, निरूद्ध अधिकार-अनुच्छेद 22
6. विचार, अंतःकरण एवं धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार- अनुच्छेद 25(1).
7. सामाजिक सुरक्षा का अधिकार – अनुच्छेद 29(1)
8. प्रभावशाली उपचार का अधिकार – अनुच्छेद 32
9. प्रत्येक का अपने तथा अपने परिवार के लिए उपयुक्त जीवन स्तर का अधिकार-अनुच्छेद 39(क)
10. समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार – अनुच्छेद 39(घ)
11. कार्य करने का अधिकार तथा कार्य की उचित तथा बेहतर दशायें – अनुच्छेद 41
12. उचित सामाजिक व्यवस्था का अधिकार – अनुच्छेद 38
15. उचित एवं बेहतर पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार – अनुच्छेद 43
14. विश्राम एवं खाली समय का अधिकार- अनुच्छेद 43
15. प्रारम्भिक एवं मौलिक चरणों में निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार –अनुच्छेद 45

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