निबंध / Essay

पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध |Essay on Autobiography of a Book in Hindi

पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध
पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध

अनुक्रम (Contents)

पुस्तक की आत्मकथा

प्रस्तावना- मैं पुस्तक, छोटे-बडो, बच्चों-बूढ़ों सभी की सच्ची साथिन हूँ। मैं ज्ञान तथा मनोरंजन दोनों का स्रोत हूँ। विद्यार्थियों के लिए मैं विद्या अध्ययन करने का साधन हूँ, छात्रों के लिए परीक्षा में सफलता प्रदान करने वाली कुंजी हूँ, हिन्दुओं की गीता तथा रामायण भी मैं ही हूँ, मुस्लिमों की कुरान, सिखों का ‘गुरुग्रन्थ साहिब’ तथा ईसाइयों की ‘बाइबिल’ भी मैं ही हूँ।

जीवन परिचय एवं नामकरण संस्कार- मेरी माँ देवी सरस्वती’ है। मेरा सृष्टा लेखन, कहानीकार, कवि, उपन्यासकार, निबन्धकार आदि हैं। मेरे इन सृष्टाओं ने मुझे अलग-अलग सा में प्रस्तुत किया है। पुस्तकालयों में मुझे सजा-सँवारकर रखा जाता है तथा मेरी साफ-सफाई पर भी पूरा ध्यान दिया जाता है। मानव की अनेक जातियों की भाँति मेरी भी कई जातियाँ है। इन जातियों में उपन्यास, कविता, निबन्ध, एकॉकी, नाटक, आलोचना आदि कुछ प्रमुख नाम हैं। समाज शास्त्र, विज्ञान, अर्थशास्त्र, साहित्य शास्त्र आदि विषयों के रूप में भी मेरी पहचान है इसीलिए मेरे नाम भी अनगिनत हैं।

मेरा आदिकालीन स्वरूप- आदिकाल में मेरा सृष्टा विशाल पत्थरों के ऊपर चित्रों एवं तस्वीरों के रूप में मेरा निर्माण करता था, आज भी मेरे इस रूप को शिलाओं अथवा कन्दराओं में देखा जा सकता है। लेखनकाल के विकास के साथ-साथ मेरा स्वरूप भी बदला तथा मुझे भोजपत्रों पर लिखा जाने लगा। यदि कोई मेरा वह रूप देखना चाहे तो अजायबघर में देख सकता है। किन्तु कागज के आविष्कार के साथ मेरे स्वरूप में बहुत परिवर्तन आया। छपे हुए रूप में मेरा निर्माण सर्वप्रथम चीन देश में हुआ था।

मेरा आधुनिक रूप- कागज के निर्माण एवं मुद्रण कला की प्रगति ने तो जैसे मेरी कायाकल्प ही कर डाली। आज तो मैं नए-नए रंग-बिरंगे रूपों में आपके समक्ष प्रस्तुत होती हूँ। मेरी सुरक्षा के लिए मेरे ऊपर मजबूत कवर चढ़ाया जाता है। इस वर्तमान स्वरूप को पाने के लिए मुझे अनेक दुखों एवं काँटों की चुभन सहन करनी पड़ी है। मेरा सृष्टा पहले अपने विचारों तथा भावों को कलम द्वारा कागज पर लिपिबद्ध करता है, जिसे ‘पाण्डुलिपि’ कहते हैं। फिर मेरे इस रूप को टाइप कर कागज पर बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा छाप दिया जाता है। छपने के पश्चात् मैं दफ्तरी के हाथों में जाती हूँ वहाँ वह क्रमबद्ध कर मुझे सिल देता है तथा मैं पुस्तक रूप में प्रस्तुत हो जाती हूँ। फिर मैं पुस्तक विक्रेताओं की दुकानों की शोभा बढ़ाती हूँ तथा वही से अपने चाहने वाले पाठक के हाथों में पहुँचकर उसकी ज्ञान पिपासा शान्त करती हूँ।

मेरी उपयोगिता- मानव जीवन में मेरी बहुत उपयोगिता है। मुझे पढ़कर लोग ज्ञान तथा मनोरंजन दोनों प्राप्त कर सकते हैं। मेरा उपयोग प्रत्येक क्षेत्र में किया जाता है। मैं थके हारे, चिन्तातुर व्यक्ति को शान्ति प्रदान करने की क्षमता रखती हूँ, तो बच्चों का ज्ञानवर्धन भी करती हूँ। मैं मानव की सारी थकान व चिन्ता को दूर कर उसे सुख व शान्ति प्रदान करती हूँ। मेरे द्वारा समय का भी सही सदुपयोग हो जाता है। एक विद्वान ने मेरे बारे में ठीक ही कहा है, “पुस्तकें अवकाश के समय मनोविनोद का सर्वोत्तम साधन है। रोचक पुस्तको के माध्यम से मानव जीवन की सम्पूर्ण चिन्ताओं का समाधान सम्भव है।।

मैं मानव की सच्ची तथा सर्वोत्तम मित्र हूँ। चाहे मानव मेरा साथ छोड़ दे परन्तु मैं उसका साथ कभी नहीं छोड़ती। मेरे अध्ययन में जिसका मन लग जाता है, उसका कल्याण तो सुनिश्चित ही है। मेरे द्वारा ही मानव समस्त विषयों, नए-नए शोधों आदि की जानकारी प्राप्त कर पाता है। जो मुझे पढ़ता है वह ज्ञानवान, दयावान, निष्ठावान तथा मृदुभाषी बन जाता है। सभी लोग ऐसे व्यक्ति का सम्मान करते हैं। मैं मनुष्य का ज्ञानवर्धन करने के साथ-साथ उसे प्रेरणा एवं प्रोत्साहन भी प्रदान करती हूँ। मेरी उपयोगिता को किसी ने ठीक ही वर्णित किया है- “पुस्तक भी क्या दुर्लभ वस्तु है। यह न टूटती है, न सूखती है, न पुरानी होती है, न कभी साथ छोड़ती है।’ यह परी वाली कहानियों की उस मिठाई जैसी है जिसे जितना खाओगे, उतनी ही मीठी लगेगी।”

उपसंहार- आज के भौतिकवादी युग में मैं ज्ञान तथा मनोरंजन की सच्ची स्रोत हूँ। मुझे पढ़े बिना किसी का भी भला नहीं हो सकता। जो मुझे सम्मान देते हैं तथा मेरी अच्छी तरह देखभाल करते हैं, मैं उनके पास ज्यादा समय तक रहती हूँ। मेरा दुरुपयोग करने वाले व्यक्ति निरक्षर रहकर दर-दर की ठोकरे खाते हैं तथा समाज में कोई भी उनका सम्मान नहीं करता। अतः मुझ सरस्वती देवी की पुत्री का सम्मान करने में ही सब का हित निहित है। एक विचारक ने तो यहाँ तक कहा है, “पूरा दिन मित्रों की गोष्ठी में समय बरबाद करने के स्थान पर केवल एक घण्टा प्रतिदिन मेरा अध्ययन कर लेना अधिक लाभदायक है।” तिलक, गाँधी जी, नेहरू जी, गोखले आदि महापुरुषों का साथ मैंने कारावात में भी दिया था। उनका कारावास का अधिकतर समय मेरे अध्ययन तथा ले उन कार्य में ही व्यतीत होता था। उन्होंने मेरा बहुत सम्मान किया इसीलिए उन्हें पूरे विश्व ने बहुत सम्मान दिया। आप सब भी मेरा सम्मान एवं अध्ययन अवश्य किया करो।

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