पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता स्थापना के उपाय
Measures of Communal Rapport and Equanimity Establishment
वर्तमान समय में सामाजिक एवं पारस्परिक अस्थिरता के कारण पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता स्थापना के उपाय करना प्रत्येक राष्ट्र एवं समाज के लिये आवश्यक है। प्रत्येक राष्ट्र का यह कर्त्तव्य है कि वह सौहार्द्र स्थापना के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करते हुए पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता स्थापना के उपाय करे । पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसतास्थापना के प्रमुख उपाय अनलिखित हैं-
(1) छात्रों में विद्यालयी जीवन से ही सामाजिक गुणों का विकास किया जाय, जिससे वे सामाजिक व्यवस्था को पहचानकर उसके विकास में योगदान प्रदान करें।
(2) सामाजिक कुरीतियों, अन्ध विश्वासों को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिये, जिससे मानव व्यवस्था को पहचानकर उसके विकास में योगदान प्रदान करें।
(3) पाठ्यक्रम में नैतिक एवं मानवीय मूल्यों के विकास हेतु विषयवस्तु का चयन किया जाय, जिससे छात्रों के मन में सार्वजनिक हित को महत्त्वपूर्ण स्थान मिले ।
(4) अलगाववाद के स्थान पर एकता एवं अखण्डता का दृष्टिकोण विकसित करने का प्रयास किया जाये ।
(5) धर्म की उचित व्याख्या की जाये जिससे धर्म का वास्तविक उद्देश्य ‘मानव कल्याण’ सभी समाज के सदस्यों के समक्ष प्रदर्शित हो ।
(6) धार्मिक संकीर्णता एवं कट्टरता के स्थान पर धर्म निरपेक्षता एवं सर्वधर्म समभाव का आदर्श उपस्थित किया जाय जिससे समाज में सौहार्द्र स्थापित हो ।
(7) भाषा की विविधता पर विचार न करते हुए प्रमुख लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिये क्योंकि भाषा तो विचारों का आदान-प्रदान करने का माध्यम है। हमारा प्रमुख लक्ष्य सामाजिक सौहार्द्र स्थापित हो ।
(8) विदेशी शक्तियों को देश के आन्तरिक प्रकरणों में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं मिलना चाहिये । देश की समस्या का समाधान सामाजिक सौहार्द्र द्वारा ही सम्भव किया जाना चाहिये ।
(9) समाज के सदस्यों में नैतिकता एवं मानवता का विकास किया जाय, जिससे वह सम्पूर्ण समाज के कल्याण हेतु चिन्तन कर सकें।
(10) समाज भौतिकता के स्थान पर आदर्शवादी एवं सार्वभौमिक मूल्यों को विकसित किया जाय जिससे वे व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठ सकें।
(11) आध्यात्मिक विकास सामाजिक एवं साम्प्रदायिक सौहार्द्र के लिये महत्त्वपूर्ण उपाय है। इसके द्वारा मानव मस्तिष्क को विस्तृत एवं उदार बनाया जा सकता है ।
(12) सर्वांगीण विकास के महत्त्व का ज्ञान समाज के प्रत्येक सदस्य को कराया जाय, जिससे कि वे सामाजिक समरसता एवं सौहार्द्र में सहयोग प्रदान कर सकें ।
(13) सामाजिक सौहार्द्र में परिवार की भूमिका प्रथम स्तर पर होती है । परिवार में शैशवावस्था से ही सामाजिक गुणों का विकास किया जा सकता है ।
(14) विद्यालय स्तर पर शिक्षक एवं विद्यालय प्रशासन द्वारा सामाजिक समरसता का आदर्श स्वरूप प्रस्तुत करना चाहिये ।
(15) शिक्षक के अध्ययन से पाठ्यक्रम में उन विषयों को समावेश करना चाहिये, जो कि सामाजिक सौहार्द्र उत्पन्न करते हैं। उपरोक्त उपायों से सामाजिक समरसता एवं पारस्परिक सौहार्द्र की स्थापना की जा सकती है। सामाजिक सौहार्द्र के प्रमुख मूलभूत गुणों का विकास बाल्यावस्था से ही किया जाये तो सामाजिक सद्भाव की स्थापना के लिये विशेष प्रयास नहीं करने पड़ेंगे।
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