पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता
Communal Rapport and Equanimity
पारस्परिक सौहार्द्र का अर्थ – पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता की अवधारणा का विकास भारतीय समाज में प्राचीन समय से वर्तमान समय तक हो रहा है। पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता एक ऐसी व्यवस्था होती है जो कि मानव मूल्य एवं सहयोग पर आधारित होती है, जिसमें सम्पूर्ण समाज का हित निहित होता है। यह व्यवस्था किसी सम्प्रदाय विशेष से सम्बन्धित नहीं होती। पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है-
(1) प्रो. एस. के दुबे के शब्दों में, “पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की ओर संकेत करता है जो कि सार्वजनिक हित, मानव मूल्य, नैतिक मूल्य, समानता, स्वतन्त्रता एवं सर्वांगीण विकास के सिद्धान्त पर आधारित होती है।”
(2) श्रीमती आर. के. शर्मा के शब्दों में, “पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता विश्वबन्धुत्व एवं अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना की ओर बढ़ने वाला यह प्रथम पग है जो राष्ट्रीय स्तर के विकास के साथ-साथ वैश्विक विकास की ओर जाता है तथा मानव कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है।” अतः स्पष्ट है कि पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता में मानवीय मूल्य एवं सामाजिक मूल्य निहित होते हैं तथा इसमें सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण की भावना निहित होती है। सामाजिक एवं पारस्परिक सौहार्द्र सार्वजनिक हित के सिद्धान्त पर कार्य करता है ।
पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता की विशेषताएँ
Characteristics of Communal Rapport and Equanimity
पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता के अन्तर्गत अनलिखित विशेषताएँ निहित होती हैं-
(1) पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता की सार्वजनिक हित के सिद्धान्त पर कार्य करता है।
(2) इस व्यवस्था में व्यक्तिगत हित एवं स्वार्थों को समाज कल्याण के लिये त्यागना पड़ता है ।
(3) इस व्यवस्था में समानता, स्वतन्त्रता एवं मानवता के विकास को आधार माना जाता है।
(4) यह व्यवस्था मानव के सर्वांगीण विकास के सिद्धान्त पर आधारित होती है ।
(5) इस व्यवस्था में अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना निहित होती है तथा विश्वबन्धुत्व की ओर संकेत करती है ।
(6) सामाजिक एवं साम्प्रदायिक सद्भावना में सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण की भावना निहित होती है।
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