प्रधानाचार्य के प्रमुख कर्त्तव्य
प्रधानाचार्य के प्रमुख कर्त्तव्य (Duties of Principal) – प्रत्येक शिक्षण- संस्था का एक अध्यक्ष होता है जिसको उपकुलपति, प्राचार्य या प्रधानाध यापक के नाम से सम्बोधित करते हैं। वह उस संस्था के प्रशासकीय कर्मचारी वर्ग का प्रधान होता है। वह विद्यालय रूपी परिवार का मुखिया होता है जो सब लोगों को कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करता है। शिक्षा-संस्था की सफलता बहुत कुछ उसकी कार्य-कुशलता, दक्षता एवं व्यक्तिगत कप्तान का स्थान होता है।” पत्थर होता है।” गणों पर निर्भर करती है। वह समाज की तथा उन योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए आवश्यक गुणा एवं निर्देश देता है। वह विद्यालय का केन्द्र बिन्दु होता है। साथ ही वह विद्यालय और समाज के बीच सामंजस्य स्थापित करने का भी प्रयास करता है।
पी.सी. रेन के शब्दों में- “जो स्थान घड़ी में प्रधान कमानी का है, जो स्थान किसी मशीन में फलाई ह्वील का है अथवा जो स्थान एक वाष्पयान में इंजन का है वही स्थान किसी भी विद्यालय में प्रधानाध्यापक का है।”
लगभग इसी प्रकार के विचार राइबर्न ने भी प्रकट किए हैं। उनके अनुसार-“प्रधानाध यापक विद्यालय में केन्द्रीय स्थान ठीक उसी प्रकार ग्रहण करता है जिस प्रकार एक जहाज पर कप्तान का स्थान होता हैं।
इसी प्रकार डॉ. एस. एन. मुकर्जी ने भी कहा है- “प्रधानाध्यापक पाठशाला के बाह्य तथा अन्तरिक प्रशासन के मध्य एक कड़ी है। वह विद्यालय प्रशासन के गुम्बद का आधर रूपी पत्थर होता हैं।”
विद्यालय में प्रधानाध्यापक की वही स्थिति होती है जो कि सेना में सेनापति की होती है। वह विद्यालय के कार्यक्रमों की योजना बनाता है तथा उन योजनाओं को क्रियान्वित करता है। वह शिक्षकों और कर्मचारियो के बीच कार्य का विभाजन करता है। विद्यालय की सफलता बहुत कुछ उसकी दक्षता, उसकी कल्पनाशक्ति और उसके गुणों पर निर्भर करती है। उसके व्यक्तित्व एवं आदर्शी की छाप विद्यालय के प्रत्येक कार्य पर पड़ती है। विद्यालय की प्रतिष्ठा बहुत कुछ प्रधानाध्यापक पर ही निर्भर करती है। इसीलिए प्राय: यह कहा जाता है कि जैसा प्रधानाध्यापक वैसा ही विद्यालय।
इस प्रकार हम इसी निष्कर्ष पर आते हैं कि विद्यालय में प्रधानाध्यापक का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण, बहुत ही उत्तरदायित्वपूर्ण है। प्रधानाध्यापक का यह कर्त्तव्य है कि वो अपने सहयोगी वर्ग को पूर्ण योग्य बनाए तथा विद्यालय में अनुशासन, स्नेहपूर्ण एवं सहयोगी वातावरण बनाए रखे।
शैक्षिक प्रशासक के कार्य/उत्तरदायित्व
(1) प्रशासकीय कार्य-
प्रधानाध्यापक के प्रशासकीय कार्य के अन्तर्गत उसके प्रशासन, कार्यालय तथा प्रबन्ध सम्बन्धी कार्य आते हैं जिनका विभाजन हम निम्न प्रकार से कर सकते हैं-
(i) पाठ्यक्रम सम्बन्धी कार्य का संचालन करना- इसके अन्तर्गत कक्षा कार्य की व्यवस्था करना, शिक्षकों के बीच विषय वितरण करना, निर्धारित पाठ्यक्रम में से उपयुक्त, उपयोगी एवं सुविधाजनक पाठ्यक्रम का चुनाव करना, कक्षाओं का निरीक्षण करना आदि कार्य आते हैं।
(ii) पाठ्यसहगामी क्रियाओं की व्यवस्था करना।
(iii) छात्रावास का प्रबन्ध करना।
(iv) विद्यालय के कार्यालय की व्यवस्था तथा देखरेख करना।
(v) भवन तथा फर्नीचर आदि की व्यवस्था करना।
(vi) परीक्षाओं की व्यवस्था एवं संचालन करना।
(2) अध्यापन कार्य-
प्रधानाध्यापक सर्वप्रथम अध्यापक है अत: उसका मुख्य कार्य है- अध्यापन करना। प्रायः प्रधानाध्यापक प्रशासकीय कार्यों में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि वो अध्यापन कार्य बिल्कुल छोड़ देते हैं परन्तु ऐसा करना उचित नहीं है। प्रत्येक प्रधानाध्यापक को किसी न किसी विषय को अवश्य पढ़ाना चाहिए। ऐसा करने पर एक तो वह शिक्षकों का मार्ग-दर्शन कर सकेगा तथा साथ ही विद्यार्थियों के सम्पर्क में भी आ सकेगा और उनके विषय में जानकारी रख सकेगा।
(3) नियोजन कार्य-
प्रशासक का एक और महत्वपूर्ण कार्य है योजना बनानज्ञ । नियोजन के बिना विद्यालय में अव्यवस्था का फैलना स्वाभाविक है। अतः प्रधानाध्यापक का यह कर्त्तव्य है कि को सत्र प्रारम्भ होना के पूर्व ही विद्यालय की समय सारिणी (Time Table) का, विभिन्न कक्षाओं एवं विषयों में छात्र प्रवेश नीति का, शिक्षकों में शिक्षण कार्य के आवंटन का एवं शिक्षण सामग्री आदि के वितरण का नियोजन करे जिससे की विद्यालय का कार्य सुचारू रूप से चल सके।
(4) निरीक्षण कार्य-
प्रधानाध्यापक के ऊपर सम्पूर्ण विद्यालय की व्यवस्था एवं निरीक्षण बालकों के खेलकूद, पुस्तकालय, प्रयोगशाला एवं छात्रावास आदि सभी का निरीक्षण करना चाहिए। करने का उत्तरदायित्व होता है। उसे केवल शिक्षक कार्य का ही निरीक्षण नहीं करना चाहिए वरन् विद्यालयका कोई भी अंगऐसा नहीं होना चाहिए जो प्रधानाध्यापक के निरीक्षण में न आए। निरीक्षण का प्रमुख उद्देश्य केवल दोषारोपण न होकर सहायता, प्रोत्साहन एवं निर्देशन देना होना चाहिए।
(5) अनुशासनात्मक कार्य-
विद्यालय के कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए यह आवश्यक है कि विद्यालय में शिक्षक, विद्यार्थी एवं अनय कर्मचारी सभी अनुशासन पूर्ण हो। इस प्रकार विद्यालय में अनुशासन बनाए रखना भी प्रधानाध्यापक का एक महत्वपूर्ण कार्य है। में कार्य सफलतापूर्वक नहीं चल सकता। प्रधानाध्यापक को यह देखना चाहिए कि शिक्षक एवं अनुशासन के अभाव में शिक्षण कार्य तथा पाठ्यसहगामी क्रियाओं का संचालन आदि कोई भी विद्यार्थी सभी अच्छी प्रकार से कार्य करें और अनुशासन में रहें।
(6) सामाजिक उत्तरदायित्व-
प्रधानाध्यापक को विद्यालय के भिन्न-भिन्न कार्यक्रमों द्वारा सामाजिक संस्कृति का संरक्षण तथा उसे आगे आने वाली पीढ़ी को हस्तान्तरित करना चाहिए। हम सभी संस्कृति पर निर्भर हैं। संस्कृति के बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते और संस्कृति के अन्तर्गत आते हैं हमारे जीवन मूल्य, हमारी भाषा, हमारा साहित्य, हमारे नैतिक आदर्श आदि। प्रधानाध यापक का कर्तव्य है कि वो विद्यालय में ऐसी क्रियाओं का आयोजन करें जिनसे हमारे विद्यार्थी अधिक से अधिक मात्रा में सांस्कृतिक मूल्यों को अपना सकें। इस प्रकार विद्यालय और समाज भी एक दूसरे क निकट आ सकेंगे और उनमें समायोजन स्थापित हो सकेगा।
(7) सम्पर्क सम्बन्धी कार्य-
विभिन्न लोगों के साथ सम्पर्क बनाए रखना भी प्रधानाध यापक का कर्तव्य है। सबसे पहले उसे शिक्षकों से सम्पर्क रखना चाहिए क्योंकि उसे अध्यापकों से कार्य लेना होता है तथा उनके सहयोग पर ही उसी सफलता निर्भर करती है। केवली शिक्षकों से ही सम्पर्क रखकर प्रधानाध्यापक का कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता। उसे विद्यार्थियों के साथ भी सम्पर्क। बनाए रखना चाहिए। शैक्षिक प्रशासन की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि वो विद्यार्थियों से परिचित हो और विद्यार्थी उससे। शैक्षिक प्रशासक को अभिभावकों से भी सम्पर्क रखना चाहिए और इसके लिए उसे विद्यालय में अभिभावक-शिक्षक संघ (Parents-teacher Association) की स्थापना करना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रधानाध्यापक को शिक्षा विभाग तथा अन्य प्रशासनिक विभागों से भी सम्पर्क रखना चाहिए।
(8) अन्य कार्य-
इन सबके अतिरिक्त प्रधानाध्यापक पर कई अन्य उत्तरदायित्व भी होते हैं जैसे विद्यालय फर्नीचर, शिक्षण-सामग्री, पुस्तकों आदि का क्रय करना, विद्यालय भवन, खेल के मैदान, पुस्तकालय, प्रयोगशालाओं आदि का उचित उपयोग करना, पाठ्य पुस्तकों का चयन करना, परीक्षा की व्यवस्था करना, कार्यालय के कार्य को प्रभावशाली बनाना आदि।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि प्रधानाध्यापक के ऊपर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व होता है। विद्यालय की प्रतिष्ठा, शिक्षण कार्य की सफलता, विद्यार्थियों की प्रगति आदि प्रधानाः यापक के व्यक्तित्व, उसकी कार्यकुशलता पर निर्भर करते हैं। इसके लिए प्रधानाध्यापक में कुछ गुणों का होना आवश्यक है।
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