तना (STEM)
तना का अर्थ तथा रूपान्तरण- पौधों का वह भाग जो भूमि के ऊपर भ्रूण के प्रांकुर से विकसित होकर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के विपरीत प्रकाश की ओर बढ़ता है, तना कहलाता है। इससे शाखाएँ, पत्ते, फूल और फल उत्पन्न होते हैं। नया तना हंरा व मुलायम होता है। शाक में तना मुलायम व झुका हुआ होता है। लेकिन वृक्ष में यह कठोर व लकड़ी युक्त होता है, जिसे स्तम्भ कहते हैं। वह ज्यादा हरा नहीं होता । इसका रंग भूरा होता है। यह छाल से ढका रहता है। यह छाल तने के भीतरी भागों की रक्षा करती है। लताओं में तना बहुत कमजोर होता है तथा चढ़ने के लिये इसे सहारे की जरूरत होती है।
तने का रूपान्तरण
(MODIFICATIONS OF STEM)
(1) अर्द्धवायवीय रूपान्तरण (Sub-aerial Modification)
(क) भूस्तारी (Stolon)- इसमें शाखाएँ छोटी एवं तने संघनित होकर सभी दिशाओं में निकलते कुछ समय वृद्धि करने के पश्चात् उनके आगे के सिरे ऊपर की ओर निकलते हैं; जैसे- फ्रेगेरिया (Fragaria)
(ख) भूस्तारिका (Offset)- यह सामान्यतः जलीय पौधे होते हैं। इनका तना छोटा व भंजनशील (fragile) उपरिभूस्तारी है; जैसे– पिस्टिया (Pistia)
(ग) अन्त भूस्तारी (Sucker)- इसमें मुख्य तना जमीन के भीतर रहता है परन्तु शाखाएँ, भूमि के ऊपर पर्व सन्धियों से निकल आती हैं, जैसे- पुदीना (Mint)
(घ) उपरिभूस्तारी (Runner)- जब तने लम्बे होकर भूमि की सतह पर फैल जाते हैं और पर्व सन्धियों पर से जड़ें निकलती हैं तथा ऊपर की तरफ पत्ती निकलती है, उपरिभूस्तारी कहलाते हैं. जैसे- दूब घास (Cynodon dactylon)
(2) भूमिगत रूपान्तरण (Underground Modifications)
इस प्रकार का रूपान्तरण प्रायः भोजन संचयन (storage of food) अथवा वर्षी प्रजनन (vegetative propagation) के लिए उपयोगी होता है।
(क) प्रकन्द (Rhizome) – यह शयान, मांसल (fleshy) और भूमि के अन्दर क्षैतिज (horizonal) अवस्था में प्राप्त होती है। इसमें छोटे-छोटे पर्व होते हैं जो शल्क पत्र (scale leaves) से ढकी रहती हैं, जैसे- अदरक (Zinger)|
(ख) शल्ककन्द (Bulb) – इसमें तना लेन्स के समान होता है जिसके चारों तरफ माँसल शल्क पत्र (fleshy scaly leaves) होते हैं। तना अति संघनित होकर नीचे की ओर बढ़ता है, जिस पर बहुत सी जड़ें निकल आती हैं; जैसे- प्याज (Onion)।
(ग) कन्द (Tuber) – यह अधिकतर भूमि के अन्दर पाया जाता है। इनमें आँख (eye) मिलती है जो वास्तव में कक्षस्थ कलिका होती है। प्रत्येक आँख शल्क पत्र से ढकी रहती है; जैसे- आलू (Solanum tuberosun)|
(घ) घनकन्द (Corm) – यह संघनित भूमिगत तना है। यह भूमि में उर्ध्वाधर (vertical) वृद्धि करता है; जैसे- अरबी, क्रोकस (Crocus) आदि।
(3) वायवीय रूपान्तरण (Aerial Modifications)
(क) पर्णाभ स्तम्भ (Phylloclade)- इसमें तना माँसल पत्ती के रूप में बदलकर चपटा व हरा हो जाता है और पत्ती के कार्य अपना लेता है, जैसे- नागफनी (Opunita)
(ख) स्तम्भीय तन्तु (Stem tendril)- इसमें कक्षस्थ कलिका शाखा की जगह पर तन्तु बनाती है, जैसे- अंगूर।
(ग) पत्र प्रकलिका (Bulbil)- यह एक वर्षी कालिका है। इसमें ऊतक माँसल तथा संचित भोजन से परिपूर्ण होता है। ये कक्षस्थ होते हैं, जैसे- डेन्टेरिया बल्बीफेरा (Dentaria bulbifera) तथा डायस्कोरिया (Dioscorea) आदि ।
(घ) पर्णाभ पर्व ( Cladode) – जब कक्षस्थ कलिका की जगह निशि्चत वृध्दि वाली हरी पत्ती जैसी रचना पायी जाती है शाखा केवल एक पर्व की रह जाती है तथा पत्ती शल्क पत्र के समान हो जाती हैं। जैसे- एस्पेरागस (Asperagus)
(च) स्तम्भ कंटक (Stem thorn)- इसमें कक्षस्थ कलिका के स्थान से शाखित या अशाखित काँटे निकलते हैं; जैसे- करौंदा। काँटे तीन प्रकार के होते हैं-
(i) प्रिकल (Prickle)- ये केवल बाह्य त्वचा तथा कार्टेक्स से बने हुए होते हैं तथा पर्व या पर्वसन्धियों पर जाकर मिल जाते हैं, जैसे– गुलाब (Rose)
(ii) स्पाइन (Spine)- अधिकांशतः पत्ती के अनुपत्र का रूपान्तरण होते हैं जो पर्व सन्धियों पर पाए जाते हैं, जैसे- केक्टस (Cactus)
(iii) थॉर्न (Thorn)- ये शाखा का रूपान्तरण हैं और पत्ती के कक्ष में मिलते हैं, जैसे- करौंदा (Carissa), बबूल (Acacia) आदि
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