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पौधों एवं जन्तुओं की उपयोगिता तथा उनकी देखभाल | Utility & Care of Plants & Animals in Hindi

पौधों एवं जन्तुओं की उपयोगिता तथा उनकी देखभाल

पौधों एवं जन्तुओं की उपयोगिता तथा उनकी देखभाल

पौधों एवं जन्तुओं की उपयोगिता तथा उनकी देखभाल
(UTILITY AND CARE OF PLANTS AND ANIMALS)

पौधों एवं जन्तुओं की उपयोगिता

(I) पौधों की उपयोगिता-

पौधों के बिना मानव जीवन सम्भव नहीं है। पौधे हमारे जीवन के मूल आधार हैं। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पौधे ऑक्सीजन निकालते हैं और यही ऑक्सीजन हमें वातावरण से प्राप्त होती है, जिससे हम जीवित रहते हैं। पौधे हमें भोज्य पदार्थ एवं शुद्ध वायु प्रदान करते हैं। ये हमें ईंधन व औषधियाँ प्रदान करते हैं।

प्रकृति में अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ मिलती है। ये सभी लाभदायक नहीं होती हैं। अनेक ऐसी वनस्पतियाँ होती हैं जिनसे हमें हानि पहुंचती है। अनेक वनस्पतियों से रोग उत्पन्न होते हैं।

खाद्य पदार्थ प्रदान करने वाले पौधे-

पौधे हमारे लिए खाद्य पदार्थ देने वाले स्रोत है। इनसे हमें अग्र प्रकार के खाद्य पदार्थ मिलते हैं-

1. अनाज- गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा, चावल आदि अनाजों की श्रेणी में आते हैं। ये मानव के लिए अति आवश्यक खाद्य पदार्थ हैं । ये कार्बोहाइड्रेट के मुख्य स्रोत हैं और हमको इनसे अधिक मात्रा में प्रोटीन, वसा, विटामिन तथा खनिज भी मिलते हैं।

2. दालें- चना, मटर, अरहर, उड़द, मूंग, मसूर आदि प्रमुख दालें हैं। ये भी भोजन का प्रमुख अंग हैं। इनमें 17 से 30% तक प्रोटीन होती है। इस प्रकार यह भी हमारे लिए प्रोटीन का मुख्य स्रोत है।

3. सब्जियाँ- गाजर, पालक, टमाटर, आलू, गोभी, प्याज, हरी मिर्च आदि प्रमुख सब्जियाँ हैं। यद्यपि सब्जियाँ ऊर्जा का प्रमुख स्रोत नहीं हैं परन्तु इनसे हमें अनेक पोषण तत्त्व मिलते हैं, जैसे-विटामिन, खनिज लवण आदि । गाजर, पालक, टमाटर आदि से हमें विटामिन ‘A’ मिलता है। आलू, टमाटर, मिर्च, प्याज, पत्ता गोभी से विटामिन ‘C’ मिलता है। अनेक पौधों के विभिन्न माग सब्जियों के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इनके कुछ उदाहरण निम्न हैं-

  1. फलों से हमें टमाटर, बैंगन, लौकी, करेला, भिण्डी आदि सब्जियाँ मिलती है।
  2. पुष्प/पुष्पक्रम से हमें फूलगोभी, कचनार आदि सब्जियाँ मिलती हैं।
  3. पत्ती से हमें बथुआ, चना, पालक, चौलाई, मैथी आदि सब्जियाँ मिलती हैं।
  4. तने से हमें आलू, प्याज, लहसुन, अरबी, बण्डा आदि सब्जियाँ मिलती हैं।
  5. जड़ से हमें मूली, शलजम, गाजर, चुकन्दर आदि सब्जियाँ मिलती हैं।

4. फल- केला, आम, पपीता, अमरूद, सन्तरा, सेब, अनन्नास, नाशपाती, तरबूजा, खरबूजा, अंगूर आदि प्रमुख फल हैं। फल रसीले होते हैं। इनमें जल की मात्रा लगभग 90% तक होती है। सब्जियों की तरह ऊर्जा की दृष्टि से इनकी इतनी अधिक मात्रा नहीं है, परन्तु फलों में ऊर्जा प्रदान करने वाले कार्बोहाइड्रेट्स अधिक मात्रा में होते हैं। फलों से शर्कराएँ, सेलुलोज मिलता है।

5. शर्करा या चीनी- गन्ने के तने एवं चुकन्दर की जड़ों से चीनी मिलती है। खरबूज से भी शर्करा प्राप्त की जाती है।

6. वसा तथा तेल- पौधों से दो प्रकार के तेल मिलते हैं-

  •  सुगन्धित तेल (चमेली, गुलाब, केवड़ा आदि),
  •  वसीय तेल (सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन)।

7. मसाले- पौधों से मसाले प्राप्त होते हैं। ये भोजन को स्वादिष्ट बनाते हैं। तने से अदरक, हल्दी, लहसुन, पत्ती से तेजपात और फलो से सौंफ, जीरा, धनिया, इलाइची, मिर्च आदि छाल से दाल चीनी मिलती है।

रेशे प्रदान करने वाले पौधे-

अनेक पौधों से हमें रेशे प्रदान होते हैं जो कपड़े, बोरे, रस्सी आदि बनाने के काम आते हैं। इनके प्रमुख स्रोत अग्र हैं-

1. कपास- कपास का बीज बहुत छोटा होता है। इन पर लाखों रोम होते हैं। जब कपास के फल पककर खुलने लगते हैं तो इसके बीजों को इकट्ठा कर लेते हैं जिनसे कपास कच्चे माल के रूप में प्राप्त होती है। इसको रुई कहते हैं। रुई को साफ करके धागा बनाया जाता है। फिर इस धागे का उपयोग विभिन्न कामों में किया जाता है। जैसे-कपड़े बनाने, बनियान, चादर, तौलिया आदि में।

2. अलसी- अलसी के तने में उपस्थित परिरम्भ के तन्तुओं से प्राप्त रेशों से कपड़े, रस्सियाँ, कालीन, कैनवास आदि बनाये जाते हैं।

3. जूट, सन, कायर आदि पौधों से रेशे प्राप्त करके विभिन्न उपयोग में लाया जाता है।

4. कागज प्रदान करने वाले पौधे- अनेक पौधे, जैसे-पाइनस, पीसिया, एबीज, बाँस, चीड़ के रेशों, तनों व पत्तियों से कागज बनाया जाता है। लगभग विश्व में 97% कागज लकड़ी की लुग्दी से ही बनाया जाता है।

5. इमारती लकड़ी देने वाले पौधे- अनेक पेड़ों जैसे शीशम, सागवान, देवदारू, साल, चीड़ आदि इमारत बनाने में इनकी लकड़ी का उपयोग किया जाता है। चीड़ तथा शीशम की लकड़ी से रेलगाड़ियों के स्लीपर बनाये जाते हैं। चन्दन की लकड़ी से सुगन्धित वस्तुएँ बनाई जाती हैं।

6. रबड़ प्रदान करने वाले पौधे- ‘हीबिया ब्राजिलिएन्सिस’ नामक पौधे से विश्व में लगभग 98% प्राकृतिक रबड़ प्राप्त होती है। रबड़ के कण क्षीर वाहिनियों के क्षीर में उपस्थित होते हैं। इनसे टायर, ट्यूब, खिलौने आदि वस्तुएँ बनाई जाती हैं।

7. गोंद प्रदान करने वाले पौधे- बबूल, नीम, कुमरा आदि पौधों से गोंद मिलता है। गोंद पौधों के आन्तरिक ऊतकों के विघटन से बनता है।

पौधों की देखभाल-

पौधों की देखभाल निम्न प्रकार से की जाती है-

1. भूमि को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए ।
2. सिंचाई का उचित तथा समय से प्रबन्ध होना चाहिए।
3. समय-समय पर खाद या उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।
4. घास-पात या खरपतवार, जैसे–चौलाई. बथुआ, घास आदि को उखाड़कर फेंक देना चाहिए।
5. खेतों से अनावश्यक जल के निकास का उचित प्रबन्ध होना चाहिए।
6. सघन खेती करनी चाहिए।
7. पहाड़ों या ढलान वाले स्थानों पर सीढ़ीदार खेत बनाने चाहिए।
8. खेतों को पास-पास होना चाहिए।
9. हर दो वर्ष बाद मूंग, सेम, मूंगफली आदि के पौधे लगाने चाहिए।
10. नदियों पर बाँध बनाना चाहिए।
11. एक ही फसल को बार-बार नहीं बोना चाहिए।
12. समय-समय पर खाद या उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।
13. अधिक तेजी से बढ़ने वाले वृक्ष, जैसे-पॉपलर, केजुएराइना आदि लगाने चाहिए।
14. अनाधिकार वनों का काटना रोकना चाहिए।
15. औद्योगिक अपशिष्ट को जल में प्रवाहित नहीं करना चाहिए।

(II) जन्तुओं की उपयोगिता-

जन्तुओं को दैनिक जीवन में निम्न प्रकार से उपयोग में लाते हैं-

1. कृषि में पशुओं का उपयोग-

भारत देश के 80% निवासी कृषि पर निर्भर रहते हैं। अधिकतर किसानों के पास खेती करने के लिए थोड़ी-सी भूमि होती है। अतः ट्रैक्टर द्वारा उनको खेती करना लाभदायक नहीं है। हमारे देश में खेत की जुताई, सिंचाई व खेती के उत्पादन के वाहन में पशुओं का उपयोग किया जाता है। जब तक देश में कृषि कार्यों के लिए अच्छे और बलिष्ठ बैलों का उत्पादन न होगा तब तक कृषि में महत्त्वपूर्ण उन्नति नहीं हो सकती है। अतः हमारे देश में अच्छे बैलों का अधिक महत्त्व है। बैल हमें गाय से मिलते हैं। अतः हमारे देश में समस्त कृषि का भार गाय पर है। अतः कृषि और पशु पालन में घनिष्ठ सम्बन्ध है।

2. भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने के लिए जीवाश्म खादों की प्राप्ति-

हमारे देश में अधिकतर पशुओं के गोबर व मलमूत्र का प्रयोग भूमि की उर्वराशक्ति बनाये रखने के लिए किया जाता है। पशुओं के मरने के बाद उनकी हड्डी, सींग, खुर, बाल, खून आदि का प्रयोग भी जीवाश्म खाद के रूप में किया जाता है। यह खाद अपने आप में पूर्ण होती है। उसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, गन्धक, कैल्शियम, ताँबा एवं लोहा होता है।

3. स्वास्थ्य के लिए दूध द्वारा प्रोटीन की प्राप्ति-

हमारे देश की जनता प्रायः शाकाहारी है तथा हमारे देश में दूध ही प्रोटीन का स्रोत है। हमारे शरीर का पोषण एवं वृद्धि के लिए प्रोटीन, वसा. कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवण व विटामिनों की आवश्यकता होती है। ये पदार्थ दूध में पर्याप्त मात्रा में विद्यमान होते हैं। गाय का दूध बहुत कुछ अन्य पशुओं, जैसे-भैंस, बकरी का दूध माँ के दूध मिलता-जुलता है। इसलिए पोषक तत्त्वों की दृष्टि से गाय का दूध सर्वोत्तम होता है।

दूध मनुष्य का सन्तुलित आहार है। मनुष्य केवल दूध पीकर स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकता है। इसमें वसा और शर्करा हमारे शरीर को शक्ति तथा ऊर्जा प्रदान करती है। प्रोटीन हमारे शरीर में माँसपेशियों एवं कोशाओं के निर्माण में और उनकी मरम्मत के काम आती है। खनिज लवण अस्थियों आदि के निर्माण में काम आते है।

4. देश की अर्थव्यवस्था में पशुओं का योगदान-

पशु पालन व खेती देश के सबसे बड़े उद्योग हैं। पशुओं से प्राप्त चमड़े से करोड़ों रुपयों की विदेशी मुद्रा प्रतिवर्ष हमारे देश को प्राप्त होती है। पशुओं से प्राप्त हड्डियों से फॉस्फोरिक उर्वरक कारखानों में तैयार किये जाते हैं। पशुओं से प्राप्त उत्तम चमड़े से उत्तम गुणता के जूते बनाकर, ऊपर से अच्छी गुणता की कालीन, शॉल, कम्बल व अन्य ऊनी वस्त्र बनाकर विदेशों में निर्यात कर विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है। इस प्रकार राष्ट्र की आय में पशुओं का अत्यधिक योगदान है। इनके दूध से लाभदायक पदार्थ बनाकर निर्यात किया जाता है।

जन्तुओं की देखभाल-

पालतू जन्तुओं या पशुओं से अधिक उत्पादन लेने के लिए उनकी उचित देखभाल अति आवश्यक है। इसके लिये निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-

(1) पशु आवास-
  1. पशुओं के रहने की जगह को पशु आवास कहते हैं। पशुओं के रहने तथा चारा खाने के लिए दो पृथक्-पृथक् आवास होने चाहिए। यदि किसी कारणवश दो पृथक्-पृथक् स्थान न हों तो एक ही आवास इतना बड़ा होना चाहिए कि वे आसानी से उठ व बैठ सकें।
  2. पशुओं का आवास पक्का व साफ-सुथरा होना चाहिए।
  3. इसमें पर्याप्त वायु के लिए वातायन होना चाहिए।
  4. बीमार पशुओं का आवास, स्वस्थ पशुओं के आवास से अलग होना चाहिए ।
  5. आवास को धोकर साफ रखना चाहिए।
  6. धुलाई के पश्चात् कृमिनाशक दवा का छिड़काव करना चाहिए।
(2) नाद-

प्रत्येक पशु की दो नादें होनी चाहिए । एक पानी पीने के लिए तथा दूसरी चारे के लिए। नादों को प्रतिदिन धोकर स्वच्छ रखना चाहिए। नादों में बचे हुए चारे को साफ करके आवास से दूर फेंकना चाहिए। ऐसा न करने से चारे में सड़न हो जायेगी जिससे दुर्गन्ध आयेगी और जानवर अस्वस्थ हो जायेंगे।

(3) रोगों से सुरक्षा-

सफाई की उचित व्यवस्था न होने के कारण अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। पशुओं में खुरपका-मुंहपका आदि रोग खूब देखने को मिलते हैं। इन रोगों की रोकथाम के लिए पशुओं के पहले से ही टीके लगवाने चाहिए । बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए। समय पर पशु चिकित्सक को अवश्य दिखाना चाहिए।

(4) पशु आहार-

पशुओं को हरा तथा सूखा देना चाहिए । इनका अनुपात 1: 3 का होना चाहिए। चारा ताजा तथा स्वच्छ होना चाहिए। दूध देने वाले तथा अतिरिक्त काम करने वाले पशुओं को अतिरिक्त भोज्य भी देना चाहिए जिससे वे स्वस्थ रह सके । खली तथा खनिज लवण इनको भरपूर देना चाहिए । हरे चारे के रूप में बरसीम, चरी, बाजरा, मक्का तथा सूखे चारे में भूसा तथा पुआल देना चाहिए । खलियों में बिनौला तथा सरसों की खली पशुओं को देनी चाहिए।

(5) दूध देने वाले पशुओं की देखभाल-

दूध दुहने से पहले पशु की सफाई अवश्य करनी चाहिए विशेषकर उनके थनों की । अनेक रोग पशु की गन्दगी से मानव में पहुँच जाते हैं, जैसे तपेदिक के रोगाणु दूध द्वारा मानव में पहुँच जाते हैं। अतः नियमित रूप से पशु की सफाई जरूरी है।

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