परागण
(POLLINATION)
परागकणों के परागकोश से निकलकर उसी पुष्प या उस जाति के दूसरे पुष्पों के वर्तिक पहुँचने की क्रिया को परागण (pollination) कहते हैं। यह निम्नांकित दो प्रकार का होता है-
1. स्व-परागण (Self Pollination)-
जब एक ही पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हों या उसी पौधे के अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हों तो इसे स्व-परागण (self pollination) कहा जाता है।
2. पर-परागण (Cross Pollination)-
जब एक पुष्ष के परागकण दूसरे पौधे पर स्थित पुष्प के वर्तिकान तक पहुँचते हों तो इसे पर-परागण (cross pollination) कहा जाता है। परागकोश से परागकणों का स्त्रीकेसर के वर्तिकान तक पहुँचने में किसी-न-किसी माध्यम की आवश्यकता होती है।
ये माध्यम मुख्यतः चार होते हैं –
- वायु द्वारा- जिन पौधों के फूल अधिक आकर्षक नहीं होते हैं व संख्या में ज्यादा होते हैं उनमें वायु द्वारा परागण की प्रक्रिया होती है एवं मकरंद भी नहीं पाया जाता है और गंधहीन भी होते हैं।
- जल द्वारा- जल में पाये जाने वाले पौधे में अधिकांशत: जल द्वारा ही परागण होता है। जल में तैरकर पुष्प की परागकण स्त्रीकेसर के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हैं। जैसे- कमल, नारियल, वैल्सिनेरिया आदि।
- कीटों द्वारा— जिन पुष्पों का रंग आकर्षक होता है आकार में बड़ा होता है तथा गुच्छे में होते हैं वे अपने अन्दर एक मीठा पदार्थ मकरंद (nectar) बनाते हैं जिन्हें कीट पसन्द करते हैं उनमें कीटों द्वारा परागण होता है। जैसे— बेला, गुलाब, जूही, चमेली, साल्विया आदि।
- कृत्रिम परागण— जब किसानों को या वैज्ञानिकों को नई किस्म की फसलें, जिसमें बीज अच्छे किस्म के हों या कोई वांछित गुण चाहिये होता है तो कृत्रिम परागण द्वारा यह क्रिया अपनाई जाती है। जैसे— यदि किसी फसल में बीज अधिक होते हैं पर कीड़े लग जाते हैं तो अधिक बीज वाला गुण व किसी फसल में बीज कम होते हैं लेकिन कीड़े नहीं लगते हैं। ऐसे गुणों को कृत्रिम परागण द्वारा करते हैं।
इस प्रकार जनक पौधे के बीज अधिक और कीड़े नहीं हों नई किस्म की फसल प्राप्त हो तो उसे संकर बीज कहते हैं और इस प्रक्रिया को संकरण या हाइब्रीडाइजेशन कहते हैं।
कृत्रिम परागण प्रक्रिया
(Process of Artificial Pollination)
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