समाजशास्‍त्र / Sociology

सांख्यिकी का अर्थ, रीतियाँ / विधियाँ, कार्य, तथा इसके महत्व in Hindi

सांख्यिकी का अर्थ

सांख्यिकी का अर्थ

मूलभूत सांख्यिकी विधियों या रीतियों का वर्णन कीजिए।

सांख्यिकी का अर्थ

सांख्यिकी का अर्थ – वर्तमान समय में संख्याओं का उपयोग हर क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है। संख्याओं ने ज्ञान को निश्चयात्मकता तथा स्थिरता दी है। इसका उपयोग बहुत प्राचीन काल से होता चला जा रहा हैं। कौटिल्य के अर्थशास्त्र, आइने अकबरी में संख्याओं का उपयोग प्रचुर मात्रा में मिलता है। धीरे-धीरे सांख्यिकीय विज्ञान का विकास होता रहा और वर्तमान समय में इसका क्षेत्र इतना बढ़ गया है कि इसने व्यावहारिक गणित के रूप में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है। आजकल इसका उपयोग अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, भौतिक विज्ञान, जीव-विज्ञान, कृषिविज्ञान आदि में सफलतापूर्वक किया जा रहा है, अब तो सांख्यिकीय विधि अनुसंधान की महत्वपूर्ण विधि बन गयी है।

व्यावहारिक रूप में किस्म नियन्त्रण बाजारों के पर्यवेक्षण तथा जनसंख्या आदि में सांख्यिकीय विधियों का उपयोग सफलता से हुआ है। देश की आर्थिक उन्नति का आधार तो भिन्न-भिन्न विधियों से इकट्ठे किये हुए आंकड़े हैं। अब तो सभी राजकीय विभागों तथा व्यापारिक संस्थाओं में सांख्यिकीय विभाग खोला गया है। अंग्रेजी भाषा के ‘स्टैटिस्टिक्स’ शब्द का तीन अर्थों में प्रयोग होता है-

  1. समंक या आँकड़ें
  2. सांख्यिकीय माप
  3. सांख्यिकीय विज्ञान।

“सामान्यतः यह प्रथम और तृतीय अर्थों में ही प्रयोग होता है- बहुवचन में समंक या आंकड़ें और एकवचन में सांख्यिकीय विज्ञान, अर्थात् इस शब्द का प्रयोग एकवचन व बहुवचन दोनों के रूप में होता है।

सांख्यिकी की परिभाषा जानने से पहले समंक और सांख्यिकी शब्दों का अन्तर जान लेना चाहिए। समंक तथ्यों के समूह को व्यक्त करने वाले अंक होते हैं तथा सांख्यिकीय क्रियाएँ इन्हीं समंकों को लेकर की जाती है जबकि इन समंकों का संकलन, उनका अध्ययन तथा उनको सरल रूप में प्रस्तुत करना सांख्यिकी है। सांख्यिकी की प्रमुख विशेषताएं निम्न हैं .

  1. “समंक अनुसंधान के किसी विभाग में तथ्यों के संख्यात्मक विवरण हैं, जिन्हें एक-दूसरे से सम्बन्धित रूप में प्रस्तुत किया जाता है।”
  2. “सांख्यिकी गणना का विज्ञान है।”
  3. “सांख्यिकी को उचित रूप से औसतों का विज्ञान कहा जा सकता है।”
  4. “सांख्यिकी वह विज्ञान है जो सामाजिक व्यवस्था को सम्पूर्ण मानकर सभी रूपों में उसका मापन करती है।”

सांख्यिकी विज्ञान, जिसका क्षेत्र प्राचीन काल में बहुत सीमित था, वर्तमान समय में अत्यधिक विस्तृत हो गया है। सांख्यिकी के क्षेत्र को अध्ययन की सुविधा के लिए दो प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है-

(अ) सांख्यिकीय रीतियाँ / विधियाँ – सांख्यिकी विज्ञान की विविध रीतियाँ हैं जिनके प्रयोग से अनुसन्धान के किसी भी क्षेत्र के लिए समंकों का संकलन करके विश्लेषण किया जाता है, तत्पश्चात् उचित परिणाम निकाले जाते हैं। सांख्यिकी रीतियों की सहायता से समंक एकत्र किये जाते हैं तथा उन्हें सरल, समझने योग्य और तुलनात्मक बनाया जाता है। सांख्यिकीय रीतियाँ उचित निष्कर्ष निकालने में भी सहायता प्रदान करती है। प्रारम्भिक अवस्था में आंकड़ें कच्चे पदार्थ की तरह होते हैं। जिस प्रकार निर्मित माल के रूप में बदलने के लिए कच्चे पदार्थ को कई प्रारम्भिक प्रविधियों से होकर निकलना पड़ता है, उसी प्रकार आंकड़ों को प्रयोग में लाने योग्य बनाने के लिए कई विधियों की सहायता लेनी पड़ती है। इन्हीं विधियों को सांख्यिकीय विधियाँ या रीतियाँ कहते हैं।

  1. आंकड़ों का संग्रह- प्रत्येक सांख्यिकीय अनुसंधान के लिए यह सबसे पहला व आवश्यक कार्य है। समस्या के अनुसार ही यह निश्चित किया जाता है कि कब, कहाँ से, किस ढंग से और कितने आंकड़ें एकत्रित किए जायें जो समस्या पर समुचित प्रकाश डाल सकें।
  2.  वर्गीकरण – इकट्ठे किए हुए आंकड़ों को अधिक सरल व तुलना योग्य बनाने के लिए किसी गुण विशेष के आधार पर विभिन्न वर्गों में बाँटते हैं। वर्गीकरण विशेषता वजन, रंग, स्थान आदि किसी भी गुण पर आधारित हो सकता है। यह संक्षिप्तीकरण की दिशा में एक कदम है।
  3. सारणीयन- आँखों को अधिक अच्छा लगने, मस्तिष्क में आसानी से बैठ जाने तथा तुलना योग्य बनाने के लिए वर्गीकृत आंकड़ों को और अधिक सरल व स्पष्ट बनाया जाता है और सारणी बनाकर उसमें शीर्षक लिखकर संख्याओं को विभिन्न खानो में भरा जाता है।
  4. प्रस्तुतीकरण – इस रीति के द्वारा इकट्ठा किए हुए आंकड़ों को केवल आँखों को अच्छा लगने वाला ही नहीं बनाया जाता बल्कि ऐसा भी प्रयत्न किया जाता है कि बिन्दु रेखाओं या चित्रों द्वारा उन्हें प्रदर्शित किया जाय ताकि उनकी एक अमिट छाप मस्तिष्क पर पड़ जाय। 
  5. विश्लेषण- विभिन्न विधियों के द्वारा आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है और उनकी विशेषताएं ज्ञात की जाती हैं। ये विधियाँ हैं – माध्य या औसत, अपकिरण, विषमता तथा सहसम्बन्ध का मापन। इन विधियों के द्वारा आंकड़ों की परस्पर तुलना भी की जाती है।
  6. निर्वचन- विश्लेषणात्मक अध्ययन के पश्चात् निर्वचन की विधि के द्वारा प्राप्त परिणामों से निष्कर्ष निकालते है।
  7. पुर्वानुमान- प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर भविष्य के बारे में अनुमान लगाया है।

(ब) व्यावहारिक सांख्यिकी – सांख्यिकीय रीतियों से हमें सिद्धान्त का ज्ञान होता है। परन्तु उन रीतियों को व्यवहार में किस प्रकार प्रयोग किया जाय, इसका अध्ययन इस विभाग में किया जाता है। किसी समस्या से सम्बन्धित अंकों का किस प्रकार संग्रहण, विश्लेषण, प्रदर्शन व निर्वचन किया जाय, यह व्यावहारिक सांख्यिकी का क्षेत्र है। किसी समस्या के समाधान में हम इसको मूर्तरूप देते हैं। जनसंख्या, उत्पादन, व्यापार या जन्म-मरण से सम्बन्धित समंकों को कैसे क्रियात्मक रूप दिया जाय वह इस विभाग का काम है।

एक महत्वपूर्ण व उपयोगी विज्ञान होते हुए भी सांख्यिकी की कुछ सीमाएं इस प्रकार हैं-
  1. सांख्यिकी व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन नहीं करती है।
  2. सांख्यिकी के परिणाम असत्य सिद्ध हो सकते हैं यदि उनका अध्ययन बिना सन्दर्भ के किया जाए।
  3. सांख्यिकी किसी समस्या के केवल संख्यात्मक स्वरूप का अध्ययन कर सकती है।
  4. सांख्यिकीय समंकों में एकरूपता और सजातीयता होना आवश्यक है।
  5. सांख्यिकीय के नियम दीर्घकाल में तथा औसत रूप से सत्य सिद्ध होते हैं।
  6. सांख्यिकीय रीति किसी समस्या के अध्ययन कि एक मात्र रीति नहीं है।
  7. सांख्यिकी का उचित प्रयोग उसकी प्रणालियों को ठीक तरह जानने वाला व्यक्ति ही कर सकता है।
  8. सांख्यिकी केवल साधन प्रस्तुत करती है, समाधान नहीं।

सांख्यिकी के कार्य –

एक महत्वपूर्ण समाज विज्ञान के रूप में सांख्यिकी मानव- विज्ञान के विकास में सराहनीय योग दे रही है। इसकी बढ़ती हुई उपयोगिता का मुख्य कारण है इसके द्वारा अनेक कार्यों का किया जाना। इसके महत्वपूर्ण कार्य निम्न है-

  1. सांख्यिकीय तथ्यों को निश्चयात्मकता प्रदान करना
  2. सांख्यिकीय जटिलता को सरल बनाती है
  3. सांख्यिकीय व्यक्तिगत अनुभव व ज्ञान में वृद्धि करती है।
  4. सांख्यिकीय सरलीकृत आंकड़ों की तुलना करती है और सम्बन्ध मापन करती है
  5. सांख्यिकीय दूसरे विज्ञानों के नियमों की जाँच करती है।
  6. सांख्यिकीय नीति निर्माण में पथ-प्रदर्शन करती है ।
  7. सांख्यिकीय विस्तान का आभास करने की योग्यता प्रदान करती है
  8. सांख्यिकीय वर्तमान तथ्यों का अनुमान करती है और भविष्य के लिए पूर्वानुमान करती है।

सांख्यिकी का महत्व –

मानव सभ्यता के विकास के साथ ही सांख्यिकी की उपयोगिता बढ़ने लगी है। आज तो मानव-ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में यह प्रयुक्त होती है। इसके निम्न प्रमुख महत्व हैं-

(1) सांख्यिकी मानव-समृद्धि का गणित है- व्यवसायों की उन्नति व अवनति, लाभ व हानि, मुद्रा-स्फीति व संकुचन, मूल्यों में उतार-चढ़ाव, बेकारी, उत्पादन आदि मानव- सम्बन्धी इन बातों का पता सांख्यिकी की सहायता से लगता है। अर्थशास्त्र के किसी भी नियम को ठीक तरह से समझने के लिए आंकड़ों का देना आवश्यक होता है। भविष्य की आर्थिक दशा का अनुमान भी इसी की सहायता से होता है।

(2) नियोजन के लिए अनिवार्य- संसार का प्रत्येक राष्ट्र चाहे वह शक्तिशाली हो या बहुत कमजोर, योजनाबद्ध विकास में लगा हुआ है। समुचित आंकड़ों के अभाव में कोई भी सुव्यस्थित योजना बनाना असम्भव है। पर्याप्त व अविश्वसनीय समंकों के आधार पर ही उपलब्ध प्राकृतिक व मानवीय साधनों, पूंजी तथा अन्य आवश्यकताओं की ठीक-ठीक जानकारी सम्भव है। इन्हीं समंकों से पता चलता है कि प्राथमिकता का क्रम क्या हो? संख्यात्मक तथ्यों के आधार पर ही अर्थ-व्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में लक्ष्य निर्धारित होते हैं। लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उपयुक्त व यथासमय वित्तीय साधनों के सांख्यिकीय अनुमान लगाए जाते हैं।

(3) साधन-प्रबन्ध में सहायक- समंक सरकारी प्रशासन के नेत्र हैं। राज्य को ठीक तरह से चलाने के लिए सरकार को अनेक प्रकार की सूचनाएं रखनी पड़ती है। सरकार को यह जानकारी रखना आवश्यक है कि व्यापार की दिशा क्या है? औद्योगिक उत्पादन बढ़ रही है या घट रहा है? आयात व निर्यात की गति कैसी है? कर-नीति कैसी है तथा उसका देश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? इन सब सूचनाओं के आधार पर ही सरकार अपनी विभिन्न नीतियाँ निश्चित करती है और शासन-व्यवस्था ठीक रखती है।

(4) व्यवसाय तथा वाणिज्य में सहायक – व्यवसाय या वाणिज्य को सफलता पर्वक चलाने के लिए सांख्यिकी नितांत आवश्यक है। अच्छे व्यापारियों के लिए यह जान लेना आवश्यक है कि जिन चीजों का वे व्यापार करते हैं उनकी मांग कहां और कैसी है? भविष्य में मूल्य बढ़ने की आशा है या घटने की? पूर्ति की क्या दशा है? उस वस्तु के बारे में सरकार की नीति कैसी है? व्यापार की सफलता पर्याप्त समंको पर निर्भर हैं। समंकों के द्वारा ही व्यापारी माँग का पूर्वानुमान लगता है और विज्ञापन व क्रय-विक्रय की नीतियों को निर्धारित करता है। माँग के पूर्वानुमान में उसे मुद्रा की मात्रा व उसकी क्रय-शक्ति , उपभोक्ताओं की रुचि एवं रीति- रिवाज, जीवन-स्तर, व्यापार-चक्र एवं मौसमी परिवर्तनों से सम्बन्धित समंकों का सहारा लेना पड़ता है। ये सभी बातें बहुत कुछ सांख्यिकीय समंकों के आधार पर ही जानी जा सकती है।

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