विद्यालय प्रबन्धन का अर्थ तथा महत्व
विद्यालय प्रबन्धन का अर्थ
विद्यालय प्रबन्धन का अर्थ- एक संगठन में कार्यरत व्यक्तियों के प्रयासों से निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए नियोजन, निर्देशन एवं समन्वयन करने को प्रबन्धन कहते हैं। अर्थात् विद्यालय प्रबन्धन से आशय है-विद्यालय के विशिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयासों को नियोजित, समन्वित, अभिप्रेरित एवं नियन्त्रित करना तथा मानवीय एवं भौतिक स्रोतों से समन्वय स्थापित करना है।
विद्यालयी प्रबन्धन में प्रबन्धक, प्रधानाचार्य, शिक्षक, कर्मचारी, छात्र, अभिभावक, भौतिक संसाधन, शिक्षण प्रक्रिया आदि की भूमिका होती है। इन सबको गतिशील बनाए रखने में प्रबन्धक की भूमिका महत्वपूर्ण है। एक सफल एवं प्रभावशाली विद्यालय प्रबन्धन में निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए-
(1) विद्यालय प्रबन्धन में लचीलापन हो।
(2) विद्यालय प्रबन्धन में व्यावहारिकता हो।
(3) राष्ट्र की सामाजिक, राजनैतिक तथा दार्शनिक नीतियों एवं मूल्यों के अनुरूप हो।
(4) विद्यालय प्रबन्धन में सक्षमता हो।
(5) शिक्षा के अपेक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु समन्वित प्रयास हों।
विद्यालय प्रबन्धन द्वारा शिक्षा की प्रक्रिया का संचालन करना होता है। जिसका आकलन छात्रों के विकास तथा उपलब्धियों अथवा व्यवहार से किया जाता है, जिसे अधिगम उपलब्धि मानते हैं। विद्यालय प्रबन्धन शिक्षा प्रक्रिया का मूल आधार तथा कार्यक्षेत्र है जहाँ शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का सम्पादन किया जाता है।
विद्यालय प्रबन्धन की आवश्यकता एवं महत्व
सुव्यवस्थित व सुगंठित ज्ञान को वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप प्रत्येक विद्यार्थी तक पहुँचाने का सबसे व्यापक महत्वपूर्ण एवं सशक्त माध्यम विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था ही है। विद्यालय सम्पूर्ण शिक्षा प्रक्रिया की एक आधारभूत संगठनात्मक इकाई है। प्रत्येक संस्था के अपने लक्ष्य और आदर्श होते हैं और उनकी सफलतापूर्वक प्राप्ति के लिए उचित प्रबन्ध भी आवश्यक होता है। विद्यालय प्रबन्धन की आवश्यकता एवं महत्व वर्तमान समय में दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है क्योंकि विद्यालयों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। विद्यालयों से अनेक प्रकार की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक प्रतिभाओं का जन्म हो रहा है। यह सभी विद्यालय प्रबन्धन का ही परिणाम है। शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए विद्यालय में एक कुशल प्रबन्धक की आवश्यकता होती है, जो विद्यालय के वातावरण में सुधार कर शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि करता है। इस प्रकार वर्तमान में विद्यालय में प्रबन्धन की आवश्यकता अपरिहार्य है। विद्यालय में प्रबन्धन की आवश्यकता एवं महत्व को निम्न रूप से समझा जा सकता है-
(1) विद्यालय प्रबन्धन के द्वारा विद्यालय के लिए उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग किया जाना चाहिए तथा अन्य आवश्यक संसाधनों की भी व्यवस्था करने का सफल प्रयास करना चाहिए।
(2) बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए विद्यालय प्रबन्धन के द्वारा विभिन्न प्रकार की नई-नई योजनाओं का निर्माण किया जाता है।
(3) विद्यालय के समस्त कर्मचारियों के उत्तरदायित्वों का बँटवारा बड़ी ही कुशलता व सूझबूझ के साथ किया जाता है जिससे शैक्षिक उद्देश्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सके।
(4) विद्यालय प्रबन्धन का महत्व इस दृष्टि से और भी बढ़ जाता है कि उसे विद्यालय का सफल संचालन करना होता है क्योंकि इसके अभाव में विद्यालय का प्रभावपूर्ण संचालन असम्भव है तथा बच्चों का सर्वांगीण विकास भी नहीं हो सकता और न ही उन्हें उचित वातावरण मिल सकता है।
(5) विद्यालय प्रबन्धन में छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए विभिन्न प्रकार की पाठ्यसहगामी क्रियाओं को संचालित किया जाता है जिससे छात्रों का शारीरिक एवं मानसिक विकास हो सके।
(6) सम्पूर्ण शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए योग्यता के आधार पर ही शिक्षकों व अन्य कर्मचारियों को कार्यभार सौंपा जाता है। निष्कर्षत हम कह सकते हैं कि यदि किसी विद्यालय का प्रबन्ध तंत्र उत्तम है तो उस विद्यालय से निकलने वाले छात्रों की उपलब्धि भी उत्तम एवं प्रभावशाली होगी जो अपने विद्यालय, देश, परिवार व समाज का मस्तक ऊँचा रखते हुए अपने उच्चतम गंतव्य को प्राप्त कर सकेंगे। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि आज विद्यालयों को सर्वप्रथम अपने प्रबन्धन तंत्र को सबल एवं सशक्त बनाने के प्रयास करने चाहिए जो किसी भी संस्था का केन्द्र बिन्दु माना जाता है।
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