संस्कृति तथा व्यक्तित्व मे सम्बन्ध
संस्कृति तथा व्यक्तित्व (Culture and Personality)- यूटर और हार्ट के अनुसार, “समाज मानव को पशु जीवन से अलग करता है किन्तु इस बात का निर्धारण संस्कृति ही करती है कि व्यक्ति के व्यक्तिव का स्वरुप किस प्रकार होगा। वास्तविकता तो यह है कि संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है। इसके अन्दर हम सभी प्रकार के विचारों, आदर्श नियमों और भौतिक पदार्थों को सम्मिलित करते हैं। इसका अर्थ है कि संस्कृति ही व्यक्तित्व की वास्तविक अभिव्यक्ति है। किसी समाज के सदस्यों का व्यक्तित्व किस प्रकार बनेगा, यह बहुत कुछ उस समाज की संस्कृति पर निर्भर होता है। व्यक्तित्व का सम्बन्ध व्यक्ति के उन सभी विचारों, मनोवृत्तियों, मूल्यों, आदतों और व्यवहारों से है जो उसकी दैनिक क्रियाओं से स्पष्ट होती है। व्यक्ति अपने साथियों तथा सामाजिक अन्तक्रियाओं के माध्यम से जिन प्रथाओं, परम्पराओं और कार्यविधियों को प्राप्त करता है वे उसके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बन जाते हैं। वास्तव में ये सभी विशेषतायें संस्कृति की ही विभिन्न अभिव्यक्तियां हैं। लिण्टन (Linton) का मत है कि सांस्कृतिक विशेषताओं के आधार पर विभिन्न प्रकार के अनुभव प्राप्त करने के पश्चात् ही व्यक्तित्व का विकास होता है। अपने समुदाय में व्यक्ति को समय-समय पर नये-नये परिवर्तन देखने को मिलते हैं। इससे उनके अनुभवों एवं मनोवृत्तियों में परिवर्तन होता है जिसके परिणामस्वरुप एक विशेष प्रकार के व्यक्तित्व का निर्माण होता है। विभिन्न सांस्कृतिक तथ्य; जैसे – नियम, परम्परायें, लोकाचार, विश्वास, जनरीतियाँ, संस्कार, धर्म तथा अनेक अनुष्ठान व्यक्ति का समाजीकरण करके व्यक्तित्व का विकास करते हैं। एक बालक परिवार तथा समुदाय में जैसी संस्कृति के अन्तर्गत रहता है उसमें उसी प्रकार के व्यवहार, नैतिकता और अन्य गुण उत्पन्न हो जाते हैं।
संस्कृति और व्यक्तित्व के पारस्परिक सम्बन्ध के विषय में जान गिलिन (John Gillin) ने तीन मुख्य बातों का उल्लेख किया है-
(1) जन्म के बाद मानव-शिशु एक मानव निर्मित पर्यावरण में प्रवेश करता है और उससे घिर जाता है। इस पर्यावरण के अन्तर्गत मकान, फर्नीचर, औजार आदि मानव निर्मित भौतिक वस्तुयें ही नहीं वरन् धर्म, प्रथा, भाषा, ज्ञान आदि अभौतिक वस्तुयें भी आती हैं। इनकी संख्या, प्रयोग और प्रकृति उसी समाज की संस्कृति द्वारा निर्धारित होती है तथा इनका प्रभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व पर आवश्यक रुप में पड़ता है क्योंकि व्यक्ति उन्हीं में घिरा होता है।
(2) व्यक्ति संस्कृति को एक निश्चित ढंग से प्रक्रिया करने को प्रेरित करती है। वास्तव में समाज में व्यवहार करने के अधिकतर तरीके संस्कृति द्वारा निश्चित होते हैं।
(3) संस्कृति पुरस्कार के द्वारा, समाज या संस्कृति द्वारा निर्धारित उचित व्यवहारों या क्रियाओं को सीखने की प्रक्रिया में, तथा दण्ड या भर्त्सना द्वारा, बुरी आदतों या अनुचित व्यवहारों को छोड़ने में तेजी आती है।
सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना (Feeling of Social Responsibility) – सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना संस्कृति द्वारा सबसे अधिक प्रभावित होती है। जैसे मैडागास्कर की टनाला जनजाति में बच्चे को प्रारम्भ से ही इस तरह का प्रशिक्षण दिया जाता है कि युवा होने पर वह अधिक से अधिक उत्तरदायित्व को पूरा कर सके। इसलिए कठोर अनुशासन में उसे प्रारम्भ से ही रखा जाता है। इस तरह भारतीय संस्कृति के प्रभाव से यहाँ संयुक्त परिवारों में बच्चों को प्रारम्भ से ही कठोर अनुशासन में रखा जाता है। साथ ही सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए उन्हें संस्कारित किया जाता है। इसके फलस्वरुप भारत के निवासियों में अपने माता-पिता, भाई-बहनों, परिवारों के सदस्यों, मित्रों तथा अन्य व्यक्तियों के प्रति उत्तरदायित्व की भावना का निर्धारण करके संस्कृति व्यक्ति को एक विशेष रुप प्रदान करती हैं।
पालन-पोषण तथा प्रशिक्षण (Up bring and Training)- बच्चे का प्रारम्भ से जिस प्रकार पालन-पोषण तथा प्रशिक्षण होता है उसका व्यक्तित्व भी वैसा ही बन जाता है। पालन- पोषण एवं प्रशिक्षण के तरीके पूर्णतया समूह की संस्कृति से सम्बन्धित होते हैं। मीड ने अपने अध्ययन के आधार पर स्पष्ट किया है कि आरापेश जनजाति में बच्चे का पालन-पोषण प्रारम्भ से ही बहुत नम्रता और सहानुभूति के साथ किया जाता है जिसके फलस्वरुप इस जनजाति के लोगों के व्यक्तित्व में प्रेम, दया, सहानुभूति, आदर और सहयोग के गुण कूट-कूट कर भरे हुए हैं। दूसरे ओर मुण्डागुमार जनजाति में बच्चे को प्रारम्भ से ही मारने-पीटने, माँ से अलग रखने तथा छीन-झपटकर वस्तुयें प्राप्त करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके फलस्वरुप इस जनजाति के लोगों के व्यक्तित्व में निर्दयता, क्रूरता, आक्रमकता और पारस्परिक उदासीनता जैसी विशेषताओं की प्राधनता है।
सम्मान प्रदर्शन (Displaying of Respect)- व्यक्तित्व का प्रमुख गुण किसी के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना है। यह विशेषता संस्कृति द्वारा निर्धारित होती है। भारतीय संस्कृति हमें सम्मानित व्यक्तियों के पैर छूकर, हाथ जोड़कर, खड़े होकर सम्मान करना सिखाती है जबकि फीजी एवं टोंगा के लोग किसी का सम्मान करने के लिए उसके सम्मुख तुरन्त बैठ जाते हैं। इससे स्पष्ट है कि विभिन्न संस्कृतियों के अनुसार ही व्यक्ति दूसरों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने का तरीका सीखता है जो उसके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बन जाता है।
मनोवृत्तियों का निर्माण (Formation of Attitudes)- व्यक्ति की मनोवृत्तियाँ उसके व्यवहारों की निर्धारक होती है। संसार के सभी समूहों की मनोवृत्तियाँ उनकी सांस्कृतिक विशेषताओं से निर्धारित होती है। वास्तव में संस्कृति अनेक लोक गाथाओं तथा पौराणिक गाथाओं द्वारा आरम्भ से ही बच्चों को ऐसी शिक्षा देती है जिसके द्वारा संसार, देश, परिवार, अन्य समूहों तथा उपसमूहों के बारे में बच्चों में तरह-तरह की मनोवृत्तियों का विकास होता है।
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