
जैव प्रदूषण का अर्थ स्पष्ट कीजिए। इसके स्रोत एवं नियंत्रण के उपाय सुझाइये Explain Bio-pollution. Give source and measure to control it.
जैव प्रदूषण (Bio-Pollution)-
रोगकारक सूक्ष्म जीवों द्वारा संक्रमित मनुष्यों, फसलों, फलदायी वृक्षों व सब्जियों का विनाश जैव प्रदूषण कहलाता है।
सन् 1846 में जीनीय एकरूपकता के कारण (Due to Genetic Uniformity) यूरोप में आलू की समस्त फसल नष्ट हो गयी जिसके फलस्वप 10 लाख लोगों की मृत्यु हो गयी और 15 लाख लोग अन्यत्र पलायन कर गये। चूँकि सम्पूर्ण आलू में एक ही प्रकार का जीन था।
अत: सब एक ही प्रकार के रोगाणुओं द्वारा संक्रमित होकर नष्ट हो गयी।
सन् 1984 ई. में फ्लोरिडा में जीनीय एकरूपता के कारण खट्टे फलों (Citrus Fruit) की सारी फसलें एक ही प्रकार के बैक्टीरिया द्वारा संक्रमित होकर नष्ट हो गयीं, अत: इस जैवी को दूर करने के लिए एक करोड़ अस्सी लाख पेड़ों को मजबूरन काट कर गिरा देना पड़ा।
अब ईस जैव प्रदूषण की जैव हथियार के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।
अक्टूबर, 2001 में संयुक्त राज्य अमेरिका के समाचार पत्र ‘सन्’ के फोटो सम्पादक बॉब स्टीबेंस की एंथ्राक्स (Anthrax) नामक रोग से हुई मृत्यु ने जैव प्रदूषण को जैव आतंक (Bio Terrorism) का दर्जा दिया । बाद में न केवल अमेरिका बल्कि भारत, पाकिस्तान तथा अन्य देशों में भी एंथ्राक्स बैक्टीरिया से प्रदूषित लिफाफे लोगों के पास पहुंचने लगे और कई देशों
के लोग इस जैव-आतंक से भयाक्रांत हो गये।
जैव-प्रदूषण के माध्य से फैलाये जा सकने वाले घातक रोगों में- एंथाक्स, बोटुलिज्य, प्लेग, चेचक, टुयुलरेमिया एवं विषाणुवी रक्त स्रावी ज्वर प्रमुख निम्नलिखित वर्षों में रोगाणुओं का प्रयोग जैव हथियार के रूप में किया गया है-
1. 1518 ई. में स्पेन की सेना ने मैक्सिकों में चेचक के विषाणुओं का प्रदूषण फैला दिया जिसके फलस्वरूप वहाँ की आधी आबादी समाप्त हो गयी।
2. 1530 ई. में स्पेन ने पुन: मैक्सिकों में चेचक, गलसुआ (Mumps), खसरा (Meases) आदि बीमारियों का प्रदूषण फैलाया जिसके कारण लाखों लोग मारे गये।
3. 1754-1767 की अवधि में ब्रिटेन की सेना ने चेचक के मरीजों द्वारा ओढ़े गये कम्बलों को उत्तरी अमेरिका के लोगों में बॅटवा दिये जिसके कारण वहाँ का एक वृहत् जन-समूहकाल कवलित हुआ।
4. 1939-45 में द्विती विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना ने चीन के कुछ क्षेत्रों में प्लेग के पिस्सुओं द्वारा प्लेग फैला दिया।
5. 2001 में एक आतंकवादी संगठन ने अमेरिका, भारत और पाकिस्तान आदि देशों में एन्थ्राक्स के बीजाणुओ को, पत्रों के लिफाफे में भरकर जैव-प्रदूषण फैलाने का प्रयास किया जिसके कारण अमेरिका में कई लोगों की मृत्यु हो गयी।
जैव प्रदूषण से निपटने के उपाय-
* बीमारियाँ फैलाने वाले रोगाणुओं पर अध्ययन, अनुसंधान तथा परीक्षण करने के लिए रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (DRDO) ने 1972 में ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में एक प्रयोगशाला स्थापित किया।
* भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने सन् 2000 में राष्ट्रीय डिजीज सर्विलेंस प्रोग्राम (National Diseases Surveillance Programme : NDSP) आरम्भ किया। ज्ञातव्य है कि इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेबल डिसीजेज (IICD) चौकसी का कार्य कर रहा है और इसमें मिलिटरी इंटेलिजेंस, बार्डर सिक्योरिटी फोर्स, इन्डो-तिब्बत बार्डर पुलिस तथा स्पेशल सर्विस ब्यूरो आदि संगठन मदद कर रहे हैं।
* DRDO ने एक ऐसा फिल्टर बनाया है जो सेना के जवानों को सभी तरह के जैविक एवं रासायनिक हमलों से सुरक्षित रखता है।
* जैव प्रदूषण व जैव आतंक से निपटने के लिए अमेरिका के रक्षा मुख्यालय पेन्टागन ने इस दिशा में व्यापक कदम उठाया है। वे हवा में उड़ते जीवाणुओं व विषाणुओं को पकडने के लिए आयन आन ट्रैप मास स्पेक्ट्रोमीट्री एण्ड लेसर इन्डयुस्ड ब्रेक डाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी (In-Trap Mass Spectrometry and Laser Induced Breakdown Spectroscopy) नामक यन्त्रों की मदद लेते हैं।
* 1925 में रासायनिक और जैविक हथियारों का निषेध करने के लिए ‘जेनेवा प्रोटोकाल’ (Geneva Protoccol) पर हस्ताक्षर किया गया था।
10 अप्रैल, 1972 को सभी प्रकार के हथियारों को निषिद्ध करने के लिए जैव हथियार सभा’ (Biological Weapons Convention : BWC) के प्रस्तावों पर हस्ताक्षर किये गये। यह BWE 1975 से प्रभावी हुई।
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