पर्यावरण विधि (Environmental Law)

पर्यावरण का क्षेत्र एवं महत्व Area and Importance of Environment in hindi

पर्यावरण का क्षेत्र एवं महत्व
पर्यावरण का क्षेत्र एवं महत्व

पर्यावरण का क्षेत्र एवं महत्व Area and Importance of Environment in hindi

पर्यावरण का क्षेत्र-

पर्यावरण अध्ययन में भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, भू-भौतिकी, भूगर्भ शास्त्र, भूगोल शास्त्र, जीवाश्म विज्ञान, समुद्र विज्ञान एवं मौसम विज्ञान की जानकारियां आवश्यक हैं। इसके साथ ही सांख्यिकी, अर्थशास्र, गणित, समाजविज्ञान, मानवविज्ञान, जैवप्रौद्योगिकी, जैवरसायन, चिकित्साविज्ञान, कृषिविज्ञान, वाणिज्य, प्रबन्धन एवं प्राच्य विद्या का ज्ञान आवश्यक है। यही नहीं मानव मनोविज्ञान, विधिशास्त्र, राजनीति एवं धर्मशास्र की जानकारियां भी बहुत सहायक हैं।

पर्यावरण विज्ञान मानवीय सोच, समझ, उपस्थिति, आचरण, क्रिया-प्रतिक्रिया एवं परिवेशों में बदलाव का अध्यन करता है। यह पर्यावरणीय नियमों व सिद्धान्तों के साथ ही मानवता, सामाजिक विज्ञान एवं विज्ञान के विभिन्न आयामों की तरफ ध्यान आकर्षित करता व इसे जोड़ता है। पर्यावरण अध्ययन का स्वभाव बहुविषयी है और इसका अध्ययन समस्त शाखाओं के विद्वान करते है। हमें पर्यावरण को समझने के लिए पहले वर्तमान पर्यावरणीय समस्याओं एवं उनके समाधान के बारे में जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है।

यद्यपि ज्ञान-विज्ञान की इन पूर्वोक्त वर्णित शाखाओं का ज्ञान किसी एक व्यक्ति की क्षमता से परे है, अतः पर्यावरण अध्ययन में इन विषयों के विद्वानों का पारस्परिक सहयोग अपरिहार्य है क्योंकि इन विषयों के विशेषज्ञों का ज्ञान एवं विषयों का सिद्धान्त पर्यावरण अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इनका सहयोग लेने का कारण हमें समझ लेना चाहिए कि प्रत्येक विषय के विशेषज्ञों की पर्यावरणीय सोच उनके विषय से प्रभावित रहती और वह विद्वान पर्यावरण के बारे में अपने विषय ज्ञान के अनुसार चिन्तन करता है। इस प्रकार का चिन्तन पर्यावरण की समझ व उत्थान में में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि पर्यावरण अध्ययन एक अन्तर्विषयी संश्लेषित विज्ञान है।

पर्यावरण का महत्व (Important of Environment)-

पर्यावरण के बारे में जानकारी रखना केवल कुछ शिक्षित लोगों का ही अधिकार नहीं है, बल्कि संसार के प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्क है। इससे हमें पर्यावरण एवं उनके विविध अवयवों एवं विभिन्न प्रकार के परिस्थितिक तंत्रों को समझने में सहायता मिलती है। हम जानते है कि प्रत्येक जीव अपने आस-पास के जीवों एवं भौतिक परिस्थितियों के मध्य निरन्तर अन्तक्रिया करते रहते हैं, अत: पर्यावरण अध्ययन का ज्ञान हमें इन अन्तर्कियाओं को समझने में सहयोग प्रदान करता है। यदि हमें पर्यावरण विज्ञान का उचित ज्ञान नहीं होगा तो हो सकता है कि हम अज्ञानतावश अपने पर्यावरण को संरक्षित करने के स्थान पर नष्ट करते चल जाएँ। हमारे क्रियाकलाप ऐसे होने लगे जो किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में उस सीमा तक गिरावट ला दें, जहाँ उनकी पुनाप्ति या पुनर्स्थापना कठिन हो जाए। अत: मानवहित में पर्यावरण एवं इसकी संरचना एवं इसके अन्तर्गत चलने वाली कायिकी का ज्ञान प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक है। जो लोग देश के नीति निर्माता एवं नीति नियामक हैं उन्हें तो पर्यावरण का ज्ञान होना अत्यन्त ही आवश्यक है , अन्यथा उनके द्वारा प्रतिपादित यदि कोई एक भी नीति पर्यावरण की प्राकृतिक अवधारण के विरुद्ध हुई तो पर्यावरण को क्षतिग्रस्त होने में अधिक समय नहीं लगेगा। प्रशासकों को इस विषय का समुचित ज्ञान देश में स्थलीय प्रबन्धन, जलीय प्रबन्धन एवं वातावरणीय प्रबन्धन में बहुत ही सहायक सिद्ध होगा। इसके अतिरिक्त जैविक सर्वेक्षणों, मौसम सर्वेक्षणों, कृषि सर्वेक्षणों, वन विज्ञान, आखेट प्रबन्धन, मत्स्य पालन, पशु पालन, मृदा संरक्षण वन्यजीवन प्रबन्धन, जलप्रदाय प्रबन्धन, नगरीकरण, औद्योगिकीकरण एवं सम्पूर्ण पर्यावरण के सम्बन्ध में क्रान्तिकारी भूमिका निभाएगा।

यह समझना आवश्यक है कि भारत का पर्यावरणीय परिदृश्य बहुत ही व्यापकता लिए हुए है। भारत में 75 प्रतिशत से अधिक आबादी गाँवों में निवास करती है तथा लगभग 40 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन निर्वाह करते हैं। अण्डमान व निकोबार द्वीपसमूह के उष्ण-कटिबंधीय व उपोष्ण क्षेत्रों की जातियों का रहन-सहन एक तरफ है जहाँ मानव आज भी प्रकृति का अंग बना हुआ है एवं पर्यावरण से उनके दैनिक आपूर्ति की माँग जीवन की आवश्यकता के अनुसार है और वहीं दूसरी तरफ हमारे नगरों व महानगरों में जहाँ नगरवासियों द्वारा निर्मित एक विशेष प्रकार का प्रदूषित पर्यावरण है। इसके साथ ही इन दोनों परिस्थितियों के मध्य जोड़ती हुई अनेक प्रकार की अन्य परिस्थितियाँ भी देखने को मिलती हैं। परिस्थिति, ज्ञान एवं शिक्षा के अनुसार व्यक्ति की सोच प्रभावित होती है। जंगली जातियाँ, ग्रामीण जातियाँ, नगरवासी, योजनाकार, शिक्षक, प्रशासक आदि का पर्यावरणीय सोच वैचारिक स्तर पर भिन्न-भिन्न होती है। अत: आवश्यक है क पर्यावरण शिक्षण कार्यक्रम को निर्धारित करते समय इन सभी की सोच को भी संज्ञान में लिया जाय।

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