पर्यावरण विधि (Environmental Law)

ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है? What is Greenhouse effect in hindi. 

ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है? What is Greenhouse effect in hindi. 
ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है? What is Greenhouse effect in hindi. 

ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है? | ग्रीन हाउस प्रभाव के दुष्परिणाम | ग्रीन हाउस प्रभाव से बचाव के उपाय | What is Greenhouse effect in hindi. 

ग्रीन हाउस प्रभाव (Greenhouse effect in hindi) – शीतप्रधान देशों में फल और सब्जियों के उत्पादन के लिए हरितकांच गृह का प्रयोग होता है। इस हरितगृह में सूर्य किरणें निर्वाध पहुँचती है, लेकिन इन घरों से अवरक्त किरणें बाहर नहीं निकल पाती है परिणामस्वरूप गृह के भीतर ताप वृद्धि होती है जिसका प्रयोग वनस्पति उगाने के लिए किया जाता है इसे हरितगृह प्रभाव कहते हैं। पिछले दशक से यह अनुभव किया जाता है कि पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है, उसके कारण की व्याख्या इसी हरित गृह प्रभाव के आधार पर की गई।

ग्रीनहाउस गैसों के संदर्भ में जानकारी :

ग्रीनहाउस गैस का नाम कार्बनिक नाम पर्यावरण में इस गैस का प्रतिशत
भाप (Water vapor)  H2O  36-70%
कार्बनडाई ऑक्साइड   CO2 9-26%
मेथेन   CH4 4-9%
नाइट्रस ऑक्साइड (Nitrous oxide) N2O 3-7%
ओज़ोन    O3 –     
Chlorofluorocarbons   CFCs  –

ग्रीन हाउस प्रभाव एक प्रक्रिया है जिसके कारण ऊष्मीय विकिरण (Thermal Radia- tions) किसी ग्रह पर उपस्थित कुछ विशिष्ट गैसों द्वारा अवशोषित किये जाते हैं एवं पुनः सभी दिशाओं में विकिरित किये जाते हैं। अब चूँकि इस पुनर्विकिरित विकिरणों का कुछ भाग सतह की ओर एवं निचले वातावरण की ओर भी आता है अत: यह सतह के औसत तापमान को सामान्य से बढ़ा देते हैं और यह अवशोषण और पुनर्विकिरण वातावरण में कुछ विशेष गैसों की उपस्थिति के कारण होता है, इन्हें ही ग्रीन हाउस गैसे एवं ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव से होने वाली ताप वृद्धि को ही ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं।

वातावरणीय ताप वृद्धि की यह प्रक्रिया अन्य ग्रहों एवं खगोलीय पिण्डों में भी होती है परन्तु यहाँ पर केवल पृथ्वी पर इस प्रभाव के बारे में तथ्यों को सीमित रखा जा रहा है। ग्रीन हाउस प्रभाव को दो प्रकारों में विभक्त किया जा सकता है जो अग्र प्रकार से हैं-

(1) प्राकृतिक ग्रीन हाउस प्रभाव-

यह एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया के कारण होने वाली वातावरणीय तापवृद्धि है जो जीवन के लिए अनिवार्य भी है।

(2) मानवीय प्रभावों के कारण ग्रीन हाउस प्रभाव-

मानवीय क्रियाकलापों के परिणामस्वरूप होने वाले पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण होने वाली तापवृद्धि को इस श्रेणी में वर्गीकृत किया जा सकता है। मानवीय क्रियाकलापों के कारण उत्पन्न कुछ गैंसे, जिन्हें ग्रीन हाउस गैसें कहते हैं, उनकी पर्यावरण/वायुमंडल में अधिकता वायुमंडल के ताप को बढ़ा देती है।

यह सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों (UV-rays) से हमारी रक्षा करती है, किन्तु यह गम्भीरता का विषय बन गया है कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस (CFC) के अत्यधिक इस्तमाल से जीवनरक्षक ओजोन पर्त में छिद्र बन गए हैं जिससे पराबैंगनी किरणें हम तक पहुँचने लगी। और उनके परिणाम मानव एवं वनस्पतियों के लिए हानिकारक होते हैं।

पृथ्वी पर सूर्य की किरणों का सन्तुलन (Earth’s Radiation Balance)

पृथ्वी पर ऊर्जा का सार्वभौमिक स्रोत सूर्य है। पृथ्वी पर सूर्य से अत्यधिक मात्रा ऊर्जा विकिरण के द्वारा आती है तथा इस ऊर्जा की दर का सन्तुलन अति आवश्यक होता है। पृथ्वी सूर्य की किरणों को 66 प्रतिशत अवशोषित कर लेती है तथा शेष 34 प्रतिशत यह वापन भेज देती है। इस प्रकार ऊर्जा का सन्तुलन बना रहता है। पृथ्वी की सतह का ताप 1°C लगभग होता है।

कार्बन डाइ-ऑक्साइड वायुमण्डल के ट्रोपोस्फीयर संस्तर में पायी जाती है। वायुमण्डल में इसकी 0.033% मात्रा पायी जाती है। CO2 गैस सबसे अधिक मात्रा में वातावरण को प्रदूषित करती है। सूर्य से आने वाली प्रकाश एवं ताप किरणों को CO2, तथा H2O द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है जिसमें पृथ्वी की सतह का ताप कई गुना बढ़ जाता हैं इस क्रिया को ‘हरितगृह प्रभाव’ (Green house effect) कहते हैं।

लकड़ी, कोयले एवं जीवाश्म ईंधन मुख्य रूप से पेट्रोलियम पदार्थों आदि के जलने से भी वातावरण में O2 की मात्रा कम होने लगती है तथा CO2 की मात्रा बढ़ने लगती है जिससे हरितगृह प्रभाव (Green house effect) प्रभावित होता है एवं वातावरण के तापमान में वृद्धि होती है।

इस प्रकार वातावरण को हरितगृह के प्रभाव तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड गैस की मात्रा में कमी लाने के लिए एवं वातावरण को दूषित होने से बचाने के लिए यह आवश्यक है कि अधिक-से-अधिक मात्रा में पेड़-पौधे लगाए जाएं तथा उन्हें कटने से रोका जाए साथ-ही-साथ हरितगृह गैसों का उत्सर्जन कम-से-कम किया जाए।

वायुमण्डल में हैलोजन, कार्बन डाइ-ऑक्साइड, जलवाष्प गैसें इत्यादि होती है। ये गैसें सूर्य से आने वाले दृश्य प्रकाश को पृथ्वी तक आने देती है, परन्तु अवरक्त किरणों के अधिकांश भाग को अवशोषित कर लेती है। पृथ्वी तक पहुँचने वाली ऊष्मा से पृथ्वी का ताप बढ़ जाता है और वह गर्म पिण्डों की भाँति विकिरण उत्सर्जित करने लगती हैं। वायुमण्डल में कार्बन डाइ- ऑक्साइड की अधिकता होने से उत्सर्जित ये विकिरण वायुमण्डल में अवशोषित होने के स्थान पर पृथ्वी पर ही परावर्तित हो जाते हैं। परिणामतः पृथ्वी का ताप बढ़ता जा रहा है। पृथ्वी के समीप निचले बादल भी अवरक्त किरणों को बाहर जाने से रोकते हैं। इस तरह से कार्बन डाइ- ऑक्साइड जैसी गैसों की बढ़ती मात्रा के कारण विकिरणों के द्वारा पृथ्वी के ताप में वृद्धि की घटना को ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं। ग्रीन हाउस वायुमंडल के टोपोस्फियर में एक कल जैसे काम करता है। जल वाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, क्लोरीन, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड इत्यादि गैसें ग्रीन हाउस गैंसों के रूप में जानी जाती है। इनमें से जल वाष्प तथा कार्बन डाइऑक्साइड मुख्य हैं जो सौर मंडल से किरणों को आने तो देती है परन्तु उन्हें वापिस जाने से रोकती है जिसके कारण पृथ्वी का तापमान बना रहता है। अगर ये किरणें वापस चली जायें तो पृथ्वी का तापमान जल के हिमांक से कम हो जायेगा। इसी प्रकर अगर इनमें से कुछ गैसें कम ज्यादा होती हैं तो पृथ्वी के तापमान में परिवर्तन आना शुरू होने लगता है। वायुमण्डल में कार्बन डाइ-आक्साइड, मीथेन और नाइट्रोजन के ऑक्साइडों के साथ सम्मिलित रूप से पृथ्वी से परावर्तित होकर जाने वाली सौर विकिरणों की कुछ मात्रा को अवशोषित कर लेते हैं और पृथ्वी के वायुमण्डल का ताप लगभग 60°F बनाये रखते हैं, जो जीवों की समुचित वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है। विगत वर्षों में रसायनों के बढ़ते हुए उपयोग, जीवाष्म ईंधन के जलने से और वृक्षों के अनियंत्रित कटाव से वायुमण्डल में इन ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा भी बढ़ी है और इसी का परिणाम है कि पृथ्वी के वायुमण्डल का ताप इसकी उत्पत्ति के समय के ताप से 2.5°C तक बढ़ गया है और ऐसा अनुमान है कि यह ताप वृद्धि बढ़ती ही जाएगी और अगली शताब्दी तक तापमान के 3 से 4.5°C तक बढ़ जाने की आशंका है।

वातावरणीय सेवा, आन्टारियों के प्रख्यात पर्यावरणविद् डा0 वाने इवान्स (Dr Wayne Evans) का मानना है कि पिछले दो दशकों में ग्रीन हाउस गैसों द्वारा अवशोषित विकिरण की मात्रा दुगनी हो गई है, और विगत वर्षों में ग्रीन हाउस गैसों में क्लोरोफ्लोरो कार्बन, जिसे सामान्य तौर पर फ्रिआन (Fren or Cic) भी कहा जाता है, भी सम्मिलित हो गई है। CFC के एक अणु में CO2, के एक अणु की तुलना में 20.000 गुना अधिक ताप समाहित करने की क्षमता होती है। ऐसा अनुमान लगाया गया था कि सन 2000 तक ग्रीनहाउस गैसों का कुल प्रभाव CO2, के प्रभाव के बराबर हो जाएगा और सन् 2000 के बाद यह CO2, के प्रभाव से भी बढ़ जाएगा।

ग्रीन हाउस प्रभाव के दुष्परिणाम

  1. मौसम में परिवर्तन-लगातार गर्मी में वृद्धि, अनियमित वर्षा आदि परिणाम है। 0.5 से 0.9°C तक तापमान में वृद्धि एक शताब्दी में हो गयी है। ऋतु में परिवर्तन, गर्मी के मौसम की अवधि बढ़ने लगी है जिससे खेती पर भी विपरीत प्रभाव सूखा पड़ने की संभावना है और अकाल ज्यादा पड़ने लगेंगे। आंधी तूफान और बाढ़ की मात्रा भी बढ़ जाएगी।
  2. हिम द्रवण-गर्मी से बर्फीली चोटियों और ध्रुवों की बर्फ पिघल कर समुद्र के जल स्तर को ऊँचा करेंगी। लगातार तापमान में वृद्धि होने से अंटार्कटिका जैसे बर्फीले स्थानों पर बर्फ पिघलना शुरु हो गई है। परिणामस्वरूप समुद्र तल में वृद्धि हो रही है। समुद्र का जल स्तर बढ़ने से छोटे बड़े द्वीप और खेती योग्य भूमि पानी में डूब जायेगी। इससे लाखों लोग बेघर हो जाएंगे।
  3. मनुष्य पर प्रभाव-मनुष्य, वनस्पति और जीव जन्तुओं का जीवन भी प्रभावित होगा। तरह-तरह के रोग, चर्मरोग, कैंसर, एनीमिया आदि में वृद्धि हो रही है। जन्तुओं तथा वनस्पति पर प्रभाव-पत्ते झड़ना, झुलसना, पोषण में कमी अब दिखने लगे हैं। जानवरों की आनुवंशिक संरचना में परिवर्तन की भी आशंका है।
  4. पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव-पारिस्थितिक तंत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। परितंत्र के विभिन्न घटकों की संख्या में कमी हो रही है।
  5. ओजोन पर्त का अपक्षय-जीवन की सुरक्षा करने वाली ओजोन पर्त पर संकट आ गया है। ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण ओजोन पर्त में छिद्र बढ़ रहा है।

‘ग्रीन हाउस प्रभाव से भावी आशंकाएँ

  1. वायुमण्डल के ताप में वृद्धि जिसके परिणामस्वरूप औसत वर्षा की मात्रा बढ़ जाएगी परन्तु पृथ्वी की सतह के वाष्पीकरण की दर बढ़ जाने के कारण अधिकांश क्षेत्रों की मृदा सूख जाएगी।
  2. समुद्रों के ऊष्मीय प्रसार के कारण समुद्रों का तल धीरे-धीरे परन्तु स्थित गति से बढ़ जाएगा और शायद इसका कारण ध्रुवीय क्षत्रों से बर्फ का पिघलना होगा। ग्लेशियर के पिघलने से समुद्रों के क्षेत्र विस्तार की सम्भावना भी व्यक्त की जा रही है।
  3. वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से धरती के तापमान होने वाली वृद्धि से विकासशील देशों की पैदावार के भी प्रभावित होने की आशंका है। 25 देशों के वैज्ञानिकों और अर्थशास्त्रियों के एक दल द्वारा संयुक्त राष्ट्रसंघ के लिए तैयार की गई एक अध्ययन रिपार्ट में यह आशंका व्यक्त की गई है कि विकासशील देशों की अनाजों की पैदावार घट सकती है जबकि इसके विपरीत विकसित देशों में उपज में बढ़ोत्तरी की संभावना व्यक्त की गई है। इस
    दल ने 1992 में अपनी रिपार्ट में बताया कि तापमान में होने वाली वृद्धि कुछ इलाकों में सूखा
    अंधड़ और समुद्र तल में वृद्धि का भी कारण बन सकती है।
  4. बढ़ती गर्मी से समुद तल औसतन 35.40 से. मी. कही-कहीं तो 3-4 मी0 ऊँचा होगा।
  5. खारे पानी की मात्रा बढ़ने से धान की खेती पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
  6. तूफानों चक्रवातों की संख्या में वृद्धि होने की आशंका है।
  7. 60 साल बाद लक्ष्यद्वीप का काफी हिस्सा डूब जाएगा।

ग्रीन हाउस प्रभाव से बचाव के उपाय

  1. कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा पर नियंत्रण के लिए सामाजिक वानिकी तथा वृक्षारोपण जैसे कार्यक्रमों का आयोजन आवश्यक है क्योंकि कार्बन डाईऑक्साइड की बढ़ती हुई मात्रा के  लिए वृक्ष अच्छे नियंत्रक हैं।
  2. वनों की कटाई को बंद करके वनों के क्षेत्रफल का विस्तार आवश्यक है।
  3. जीवाष्म ईंधनों के विकल्पों की खोज संबंधी शोध को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए
  4. CFC या फ्रिआन का प्रयोग प्रतिबंधित होना चाहिए।
  5. कारखानों से निकलने वाले धुएं की ग्रीनहाउस गैसों के संबंध में जाँच कर आवश्यक प्रतिबन्ध लगाए जाने चाहिए।
  6. वाहनों की संख्या पर नियंत्रण।
  7. प्रदूषक उपकरणों पर रोक लगाई जानी चाहिए।
  8. ऐसे वैकल्पिक स्रोतो की खोज जो ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न न करे।
  9. संचार माध्यमों द्वारा जागरुकता उत्पन्न करने का प्रयास।

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