मांट्रियल समझौता पर टिप्पणी लिखिए। Montreal Protocol in hindi
मांट्रियल समझौता– यह प्रोटोकॉल, ओजोन परत को क्षीण करने वाले पदार्थों के बारे में अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो ओजोन परत को संरक्षित करने के लिए चरणबद्ध ढंग से उन पदार्थों का उत्सर्जन रोकने के लिए बनाई गई है, जिन्हें ओजोन परत को क्षीण करने के लिए उत्तरदायी माना जाता है। यह संधि 1 जनवरी 1989 में प्रभावी हो गई। जिसके बाद इसकी पहली बैठक मई, 1989 में हेलसिंकी, में हुई। ओजोन परत के क्षय को रोकने वाले, ओजोन अनुकूल उत्पादों और जागरूकता जगाने के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल विषयों के कार्यान्वयन के महत्व का उल्लेख करते हुए ओजोन परत के संरक्षण के लिए 16 सितम्बर को अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित किया गया। सभी सदस्य देशों को इस विशेष दिवस पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों और इसके संशोधन के साथ राष्ट्रीय स्तर पर ठोस गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। सरकारें जब तक प्रोटोकॉल के साथ-साथ संशोधनों की अभिपुष्टि नहीं करती तब तक इससे कानूनी रूप से नहीं बंधती हैं। दुर्भाग्य से अनेक सरकारों ने प्रोटोकॉल की अभिपुष्टि तो को है मगर संशोधन और उनके कड़े नियंत्रण उपाय लक्ष्य से पीछे हैं। 1986 के अंत में दक्षिण ध्रुव (अंटार्कटिक) के ऊपर ओजोन की परत में छेद का पता चलने के बाद सरकारों ने क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी-11,12,113,114 और 115) और अनेक हैलॅन्स (1211, 1301, 2402) के उत्पादन और खपत को कम करने के कड़े उपायों की आवश्यकता को पहचाना। प्रोटोकॉल इस मरह से तैयार किया गया है ताकि समय-समय पर वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी आंकलनों के आधार पर इस प्रकार की गैसों से निजात पाने के लिये इसमें संशोधन किया जा सके। इस प्रकार के आंकलनों के बाद इस प्रकार की गैसों से छुटकारा पाने की प्रक्रिया तेज करने के लिये 1990 में लंदन, 1992 में कोपेनहेगन, 1995 में वियना, 1997 में मॉन्ट्रियल और 1999 में पेचिंग में चरणबद्ध बहिष्करण में तेजी लाने के लिए प्रोटोकॉल को समायोजित किया गया। अन्य प्रकार के नियंत्रण उपायों को शुरू करने और इस सूची में नये नियंत्रण तत्वों को जोड़ने के लिये भी इसमें संशोधन किया गया। 1990 में लंदन संशोधन के तहत अतिरिक्त क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी-13, 111, 112, 211, 212, 213, 214, 215, 216, 217) और दो विलायकों (काबन टेट्राक्लोराइट और मिथाइल क्लोरोफार्म) को शामिल किया गया जबकि 1992 में कोपेनहेगन संशोधन के तहत मिथाइल ब्रोमाइड से निजात पाने की योजना बनायी गयी।
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