प्रदूषक भुगतान करे का सिद्धांत Polluter Pays Principle in hindi
What is the principle “Polluter Paid”?
प्रदूषक भुगतान करे का सिद्धांत Polluter Pays Principle in hindi (Polluter pays doctrine of PPP)- इस सिद्धान्त का तात्पर्य है कि प्रदूषक पर्यावरण के नुकसान के लिये न केवल प्रदूषण के शिकार व्यक्ति (victims of pollution) को प्रतिकर देगा बल्कि उसे वह लागत भी वहन करनी होगी जो पर्यावरण हास को पुनर्स्थापित (restore) करने में खर्च होगी। इस प्रकार इस सिद्धान्त के अन्तर्गत पर्यावरणीय क्षति को ठीक करने (repair) का दायित्व प्रदूषक का होता है। उसे दो क्षतिपूर्तियाँ करनी होती हैं। पहली क्षतिपूर्ति उन व्यक्तियों को करनी होती है जिन्हें उसके द्वारा फैलाए गए प्रदूषण से नुकसान हुआ है। दूसरी क्षतिपूर्ति को वह अपने द्वारा फैलाए गए प्रदूषण को समाप्त करने में आने वाली लागत के रूप में देता है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा इण्डिया कौंसिल फार इन्वायरो लीगल एक्शन बनाम यूनियन आफ इण्डिया AIR 1996 S.C. के वाद में उपर्युक्त सिद्धान्त को लागू किया गया। वाद के तथ्य निम्नवत् थे-
इस वाद में पर्यावरणवादी संस्था ने अनु० 32 के अधीन एक लोक हित वाद फाइल करके देश के रासायनिक कारखानों के आस-पास रहने वाले लोगों की दयनीय स्थिति की ओर न्यायालय का ध्यान आकृष्ट किया और यह निवेदन किया कि न्यायालय सरकार को यह आदेश दे कि वह इससे सम्बन्धित विधियों के अधीन अपने कर्तव्य का पालन करे, और ऐसे उद्योगों से निकलने वाली खतरनाक गैसों से होने वाले दुष्परिणामों से नागरिकों की संरक्षा करे। इस मामले में तथ्य यह था कि राजस्थान राज्य के उदयपुर जिले के विचारी गाँव के आस-पास एक औद्योगिक क्षेत्र बन गया था और वहाँ प्रत्यर्थियों ने अपने रासायनिक कारखानों को स्थापित किया था। इन कारखानों से निकलने वाला विषाक्त पानी और रसायनयुक्त कचरा चारों ओर भूमि में बहता रहता था जिसके कारण आस-पास के कुओं और स्रोतों का पानी मनुष्य के प्रयोग के लायक नहीं रह गया था। इसके कारण गाँवों में अनेक बीमारियाँ फैल गई थीं। गाँव के लोगों ने आन्दोलन करके इन कारखानों को बन्द करवा दिया। किन्तु इसके पश्चात् भी इन कारखानों से निकलने वाला मलवा आस-पास पड़े रहने से प्रदूषण संकट अभी भी बना हुआ था। ऐसी स्थिति में उक्त पर्यावरणवादी संस्था ने लोकहित वाद फाइल किया और इससे प्रभावित होने वाले नागरिकों को समुचित अनुतोष दिलाने के लिए न्यायालय से आदेश देने की प्रार्थना की। उच्चतम न्यायालय ने नेशनल पर्यावरण शोध संस्थान को इसकी जाँच करके रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। उक्त संस्था की रिपोर्ट से पता चला कि 2424 टन कचरे में से लगभग 720 टन कचरा प्रत्यर्थियों द्वारा बनाए गए गड्ढों में अभी भी एकत्रित था और शेष कचरा कारखानों के परिसर में और बाहर पड़ा हुआ था। जाँच समिति की दृष्टि से बचने के लिए उसे चारों ओर फैला दिया गया था और उस पर मिट्टी डलवा दी गयी थी। बन्द होने के बावजूद उपर्युक्त कारखाने चल रहे थे और न्यायालय के आदेश का उल्लंघन कर रहे थे। उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि ऐसे कारखाने जो सरकार से लाइसेंस प्राप्त किए बिना स्थापित किए जाते हैं और कानून का उल्लंघन करके आस-पास रहने वाले नागरिकों को प्राप्त दैनिक स्वाधीनता को हानि पहुंचाते हैं, उनके विरुद्ध समुचित कार्रवाई करने की शक्ति न्यायालय को प्राप्त है। राष्ट्रीय पर्यावरण शोध संस्थान राजस्थान तथा पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्टों को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि प्रत्यर्थीगण विचारी गाँव की भूमि, भूमिगत जल तथा सम्पूर्ण गाँव को सामान्य रूप से हानि पहुँचाने के लिए दायी थे। यह प्रश्न कि उक्त हानि के निवारण के लिए अपनाए गए उपायों के लिए कितनी धनराशि प्रतिकर के रूप में प्रत्यर्थियों को देना होगा इसका निर्धारण करना केन्द्रीय सरकार का कार्य है। प्रतिकर देने के लिए “दूषित करने वाला भुगतान करता है” (Polluter pays) के सिद्धान्त को लागू किया जायेगा अर्थात् प्रदूषण निवारण के लिए किए गए खों का प्रत्यर्थीगण भुगतान करेंगे। इसके साथ-साथ न्यायालय ने पर्यावरण के संरक्षण के लिए और उससे सम्बन्धित अधिनियमों को अधिक प्रभावी रूप से क्रियान्वयन के लिए सम्बन्धित सरकारों को कई निर्देश भी दिया।
उच्चतम न्यायालय ने विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के आधार पर कुल्लू मनाली रोहतांग दर्रे के रास्ते में रंगपुते इस्तहारों से पर्यावरण को हुए नुकसान के लिये जहाँ हिमांचल प्रदेश सरकार के ऊपर एक करोड़ रूपये का जुर्माना लगाया है वहीं कोकाकोला और पेप्सी सहित पंद्रह कम्पनियों से 4 करोड़ रुपये वसूलने का आदेश दिया है। न्यायालय ने महा न्याया वादी हरीश साल्वे पर यह दायित्व अधिरोपित किया है कि वह यह तय करें कि किस कम्पनी ने पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचाया है जिससे कि नुकसान के आधार पर कम्पनियों से हर्जाना वसूला जा सके।
‘प्रदूषक भुगतान करे’ सिद्धान्त के अनुसार पर्यावरण को हुई क्षति को पूरा करने को दायित्व ऐसे उद्योग या कारखाने का होता है जिसके द्वारा पर्यावरण को नुकसान हुआ है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 3 और धारा 5 के अधीन केन्द्रीय सरकार इस सिद्धान्त को लागू करने के लिए निर्देश दे सकती है और आवश्यक कदम उठा सकती है।
रियो घोषणा, 1992 का सिद्धान्त 16 भी ‘प्रदूषक भुगतान करे’ सिद्धान्त के बारे में अग्रलिखित उपबन्ध करता है;
“राष्ट्रीय प्राधिकारियों द्वारा पर्यावरणीय लागत और आर्थिक लिखतों के प्रयोग के अन्तर्राष्ट्रीयकरण की प्रोन्नति इस बात को ध्यान में रखकर की जानी चाहिये कि प्रदूषण की लागत वहन करनी पड़े।”
1972 में आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन के सदस्य देशों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की थी कि उनकी पर्यावरणीय नीतियाँ ‘प्रदूषक भुगतान करे सिद्धान्त पर आधारित होनी चाहिये। उनके अनुसार वे इस सिद्धान्त को वहाँ लागू करेंगे जहाँ पर्यावरणीय मसलों में जनहित शामिल है।
यूरोपीय समुदाय की पर्यावरणीय नीति के कुछ आधारभूत सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
(i) उपचारात्मक (remedial) उपायों की तुलना में निवारणात्मक (Preventive) कार्य (action) को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
(ii) पर्यावरणीय क्षति को स्रोत के स्तर पर सुधारा (rectify)जाना चाहिये।
(iii) पर्यावरण संरक्षण के लिये किये गये उपायों की लागत का भुगतान प्रदूषक द्वारा किया जाना चाहिये।
(iv) पर्यावरणीय नीतियाँ यूरोपीय समुदाय की अन्य नीतियों के अनुपूरक (component) रूप में होनी चाहिये।
सर्वोच्च न्यायालय ने दूषित करने वाला भुगतान करता है’ के सिद्धान्त को वेपालाग्रुप की खनन कम्पनी के वाद में भी लागू किया । न्यायालय ने ‘स्टर लाइट’ जिस पर तूतीकोरन (तमिलनाडु) में पर्यावरण को प्रदूषित करने का आरोप था 100 करोड़ रूपये का जुर्माना लगाया और आदेश दिया कि यह जुर्माना प्रदूषक (कम्पनी) अदा करे।
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