ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापन क्या है? इसके प्रमुख स्रोतों एवं उत्सर्जन का वर्णन कीजिए।
ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक तापन (Global Warning)–
सूर्य से आने वाली अनेक तरह की किरणों पृथ्वी के वायुमण्डल से गुजरती हुई धरती तक पहुँचती हैं। इनमें से कुछ को धरती के जीव-जन्तु तथा पेड़-पौधे सोख लेते हैं किन्तु सभी किरणें नहीं सोखी जा सकती हैं। इन्फ्रारेड या गर्म किरण आदि परिवर्तित होकर वायुमंडल में घुमड़ रही गैसों, धूल तथा बादलों में बदल जाती हैं। इन सबके समन्वय से पृथ्वी पर एक निश्चित तापमान बनता है जो जीवन जीने योग्य होता है। यह तापमान वायुमण्डल में व्याप्त गैसों के एक निश्चित तालमेल के बिगड़ने तथा मानवीय गतिविधियों के प्रयोग से घट-बढ़ सकती है। इन गैसों को जैविक गैस या न्यूट्रल गैस कहा जा सकता है। इसी प्रक्रिया को ग्रीन हाउस प्रभाव कहा जा सकता है।
वायुमण्डल से होकर लघु तंरगें सौर ऊर्जा भूपृष्ठ तक पहुँचती हैं और वह गर्म हो जाती हैं जब कभी भी आकाश में बादल आच्छादित रहते हैं तब वायुमण्डल की निचली परतें भूमि से प्राप्त होने वाली दीर्घ तंरग विकिरण को अवरुद्ध कर देता है। इस प्रकार भू-पृष्ठ पर तापमान सामान्य की अपेक्षा अधिक रहता है। ऐसी अवस्था में वायुमण्डल ग्रीन हाउस के शीशे की भाँति कार्य करता है।
वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पृथ्वी की हरियाली के लिए-वनों, कृषि तथा सामान्यतया पूरे जीवन के लिए एक भारी खतरा है। यह एक भारी विसंगति है किन्तु वैज्ञानिक तौर पर इन दोनों के बीच में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध दिखाई देता है। यदि ठीक परिणाम में हों तो कार्बन डाईऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि ग्रीन हाउस गैसों की उपस्थिति जीवन और जलवायु की स्थिरता के लिए आवश्यक है। जब ये ग्रीन हाउस गैसें अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं तो पृथ्वी गरम हो जाती है। इससे जलवायु में बदलाव आ जाता है। इन गैसों का वायुमण्डल में अनुचित मात्रा में एकत्र हो जाना ही समस्या की जड़ है। इसीलिए इस स्थिति की जिम्मेदारी उन देशों पर है जिनकी प्रति व्यक्ति ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की दर बहुत ऊँची है।
प्राकृतिक तौर पर धरती को गरमाने का कार्य जलवाष्प अर्थात् भाप करती है। किन्तु हम गैर प्राकृतिक तरीके से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन छोड़कर ग्रीन हाउस प्रभाव को बढ़ाता दे रहे हैं। इनमें कार्बन डाइऑक्साइड ज्यादा प्रभावशाली नहीं है किन्तु यह सबसे महत्वपूर्ण है।
प्रमुख स्रोत-
Co, का स्थान प्रमुख है जिसका महत्वपूर्ण स्रोत जीवाष्म ईंधन (Fossil fucl) हैं। दूसरी अनेक हरित गृह गैसों के स्रोतों में वातानुकूलन, रेफ्रीजेरेटर, अग्निशामक उपकरण, प्रसाधन सामग्री, प्लास्टिक फोम इत्यादि प्रमुख हैं-
(1) मिलों, कारखानों एवं अन्य अनेक प्रतिष्ठानों में ऊर्जा एवं शक्ति प्राप्त हेतु जीवाश्म ईंधनों (कोयला, खनिज तेल एवं प्राकृतिक गैस) को जलाने से उनकी चिमनियों से अपार CO, गैस निकलती रहती है जो वायुमण्डल में पहुँचकर एकत्रित होती रहती है।
(2) ताप विद्युत गृहों में विद्युत उत्पादन के लिए कोयला एवं खनिज तेल जलाने से अपार CO का उत्पादन होता है।
(3) जीवाश्म ईंधनों से चलने वाले उपकरण, परिवहन के साधन एवं कृषि यन्त्र भारी मात्रा में CO, निकलकर वायुमण्डल में पहुँचती रहती है।
(4) ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में भोजन बनाने के लिए लकड़ी, कोयला एवं खनिज तेलों का प्रयोग करने से काफी मात्रा में CO, निष्कासित होती है।
(5) CO, के अतिरिक्त अन्य अनेक हरित गृह गैसों का उत्पादन, वातानुकूलक, प्रशीतक, अग्निशामक,धातुकर्मक स्प्रेपेन्टर इत्यादि से होता रहता है।
(6) प्राकृतिक एवं कृत्रिम रूप वन विनाश के लिए लगने वाली आगे से भी अत्यधिक मात्रा में Co, निस्सृत होती है।
उत्तरदायी गैसें-
(1) कार्बन डाइ-ऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि-
वातावरण में कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा में निरन्तर वृद्धि हो रही है। लगभग 18,000 वर्ष पूर्व हिमनद काल से अन्तर्हिमनद काल तक के संक्रमण के दौर में कार्बन डाइऑक्साइड के एकत्रीकरण में लगभग 40% की वृद्धि हुई है। इस काल में पृथ्वी के तापमान में लगभग 4° सेल्सियस की वृद्धि हुई। औद्योगिक क्रान्ति के बाद उपजे ग्रीन हाउस प्रभाव में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 280 पी. पी. एम. थी जो कि 1990 में बढ़कर 353 पी. पी. एम. हो गई। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक विज्ञप्ति के अनुसार लगभग 5.7 अखटन कार्बन डाइऑक्साइड वायुमण्डल में घुलकर उसे जहरीला बना रही है। यदि वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड के घुलने की यह दर जारी रही तो इस सदी के अंत तक पृथ्वी के तापमान में असाधरण वृद्धि हो जाएगी। इससे हिमालय जैसे उच्च शिखरों की बर्फ के पिघलने का खतरा है जो कि अंतत: जलप्रलय का कारण बन सकता है।
वातावण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस में वृद्धि के अनेक कारण हैं। तेल, कोयला, आदि को उपयोग तथा वनों की अति कटाई आदि प्रमुख कारण हैं। आई. पी. सी. सी. की रिपोर्ट में बताया गया है कि हमारी करतूतों के कारण प्रत्येक वर्ष वातावरण में 380 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड गैस सोख लेते हैं। इस तरह वातावरण में आज भी लगभग आधा प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड गैस बढ़ रही है।
(2) नाइट्रस ऑक्साइड गैस में वृद्धि-
ग्रीन हाऊस गैसों में एक अन्य प्रमुख गैस नाइट्रस ऑक्साइड है। नाइट्रस ऑक्साइड गैस वातावरण में प्रतिवर्ष लगभग 0.25% की दर से बढ़ रही है। नाइट्रस ऑक्साइड गैस में वृद्धि हेतु वैज्ञानिकों में मतभेद हैं किन्तु वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कृषि क्रियाओं में बदलाव और नायलोन के ओद्योगिक उत्पादन के कारण हो रहा है।
(3) मिथेन गैस मे वृद्धि-
मिथेन गैस कार्बन और हाइड्रोजन के मेल से बनी है। पिछले दशक में ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए मिथेन गैस 15% दोषी थी। धान उगाने, खनन कार्य करने तथा लकड़ी जलाने से मिथेन गैस पैदा होती है। प्राकृतिक अवस्था में दलदली वन, दीपक और सागर भी वातावरण में मिथेन गैस छोड़ते है। इस तरह प्रतिवर्ष लगभग साढ़े बावन करोड़ टन मिथेन गैस हवा में पहुँचती है। मिथेन गैस वृद्धि दर प्रतिशत लगभग 0.9% आंका गया है।
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