पर्यावरण विधि (Environmental Law)

भारत में ध्वनि प्रदूषण रोकथाम हेतु विधिक साधनों का वर्णन कीजिये।

भारत में ध्वनि प्रदूषण रोकथाम हेतु विधिक साधनों का वर्णन कीजिये।
भारत में ध्वनि प्रदूषण रोकथाम हेतु विधिक साधनों का वर्णन कीजिये।

भारत में ध्वनि प्रदूषण रोकथाम हेतु विधिक साधन का वर्णन कीजिये। Discuss Legal measures to control the noise pollution in India.

भारत में ध्वनि प्रदूषण रोकथाम हेतु विधिक साधन – भारत में विधायिका द्वारा ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम हेतु समय-समय पर अनेक विधियों का निर्माण किया गया है। ध्वनि प्रदूषण की समस्या पर दण्ड विधि एवं सिविल विधि दोनों के अधीन विचार किया जा सकता है क्योंकि इससे सम्बन्धित मामले इन दोनों विधियों के अन्तर्गत आते हैं। भारत में ध्वनि प्रदूषण के नियन्त्रण हेतु प्रमुख विधिक साधन निम्नलिखित हैं-

भारतीय दण्ड संहिता-

ध्वनि प्रदूषण की बात भारतीय दण्ड संहिता की धारा 268, 290 और 291 के अधीन पब्लिक न्यूसेंस (लोक उपताप) के रूप में कार्यवाही की जा सकती है। धारा 268 के अधीन यह वर्णित किया गया है कि “वह व्यक्ति लोक न्यूसेंस का दोषी है, जो कोई ऐसा कार्य करता है या किसी ऐसे अवैध लोप का दोषी है, जिससे लोक को या जनसाधारण को जो आस-पास में रहते हों या आस-पास की सम्पत्ति पर अधिभोग रखते हों, कोई सामान्य क्षति, संकट या क्षोभ कारित हो या जिससे उन व्यक्तियों का जिन्हें किसी लोक अधिकार को उपयोग में लाने का मौका पड़े, क्षति, बाधा, संकट या क्षोभ कारित होना अवश्यसम्भावी हो।

कोई सामान्य न्यूसेंस इस आधार पर माफी योग्य नहीं है कि उससे कुछ सुविधा या भलाई होती है।

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 290 और 291 लोक न्यूसेंस के लिये दण्ड के सम्बन्ध में है।

दण्ड प्रक्रिया संहिता-

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 133 के अधीन, मजिस्ट्रेट को न्यूसेंस कारित करने वाले व्यक्ति से ऐसे न्यूसेंस को हटाने की अपेक्षा करते हुये सशर्त आदेश करने की शक्ति प्राप्त है।

ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियन्त्रण) नियम, 2000-

ध्वनि प्रदूषण की समस्या को नियन्त्रित करने के लिये, भारत सरकार ने ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियन्त्रण) नियम, 2000 अधिनियमित (विरचित) किये हैं। इन नियमों के विरचित किये जाने से पूर्व, ध्वनि प्रदूषण के सम्बन्ध में विनिर्दिष्ट रूप से किसी विशेष अधिनियम के अधीन कार्यवाही नहीं की जा रही थी।

“अत: औद्योगिक क्रियाकलाप, सन्निर्माण क्रियाकलाप, जैनरेटर सैंटों, लाउडस्पीकरों, पब्लिक ऐड्रैस सिस्टम, म्यूजिक सिस्टम, गड़ियों के हॉों (भोंपुओं) और अन्य यान्त्रिक युक्तियों के साथ-साथ अन्य विभिन्न स्रोतों से सार्वजनिक स्थानों में बढ़ते हुये परिवेष्टित ध्वनि स्तरों का मानव-स्वास्थ्य और लोगों के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर हानिकर प्रभाव पड़ता है, अत: ध्वनि के सम्बन्ध में परिवेष्टित वायु गुणवत्ता मानक बनाये रखने के उद्देश्य से ध्वनि पैदा करने वाले स्रोतों को विनियमित और नियन्त्रित करना आवश्यक समझा जाता है।”

ध्वनि नियमों के मुख्य उपबन्ध इस प्रकार हैं-

1. राज्य सरकार विभिन्न क्षेत्रों के लिये ध्वनि-मानकों के क्रियान्वयन के प्रयोजन के लिये, क्षेत्रों को औद्योगिक, वाणिज्यिक, आवासीय या शान्ति क्षेत्रों/परिक्षेत्रों के रूप में प्रवर्गीकृत कर सकेगी।

2. विभिन्न क्षेत्रों/परिक्षेत्रों के लिये ध्वनि की बाबत् परिवेष्टित वायु गुणवत्ता के मानकों को नियमों से उपबद्ध अनुसूची में विनिर्दिष्ट किया गया है।

3. राज्य सरकार यान संचालन से होने वाली ध्वनि सहित, ध्वनि के उपशमन के लिये उपाय करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि विद्यमान ध्वनि स्तर इन नियमों के अधीन विनिर्दिष्ट परिवेष्टित वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक न हों।

4. अस्पतालों, शिक्षा-संस्थाओं और न्यायालयों के चारों ओर के कम से कम 100 मीटर क्षेत्र को इन नियमों के प्रयोजनों के लिये शन्ति क्षेत्र/परिक्षेत्र घोषित किया जा सकेगा।

5. प्राधिकारी से लिखित अनुज्ञा प्राप्त करने के पश्चात् ही लाउडस्पीकार या पब्लिक ऐड्रैस सिस्टम का प्रयोग किया जायेगा अन्यथा नहीं और उसका रात्रि में अर्थात् रात्रि के 10 बजे और प्रातः 6 बजे के बीच उपयोग नहीं किया जायेगा।

6. यदि किसी व्यक्ति को किसी विशेष क्षेत्र में अनुज्ञेय अधिकतम ध्वनि से सम्बन्धित उपबन्धों का अतिक्रमण करते हुये पाया जाता है तो वह इन नियमों के उपबन्धों और तत्समय प्रवृत्त विधि के उपबन्धों के अनुसार दण्डित किये जाने के लिये दायी होगा।

कारखाना अधिनियम, 1948-

कारखाना अधिनियम में ध्वनि नियन्त्रण के लिये कोई विनिर्दिष्ट उपबन्ध नहीं है। तथापि, अधिनियम की तृतीय अनुसूची, धारा 89 और 90 के अधीन, ध्वनि’-उत्प्रेरित श्रवण-हानि’ को अधिसूचनीय रोग के रूप में वर्णित किया गया है। अधिनियम की धारा 89 के अधीन, किसी भी चिकित्सा व्यवसायी को, जिसे किसी कर्मकार में, ध्वनि-उत्प्ररित श्रवण-हानि सहित, किसी अधिसूचनीय रोग का पता चलता है अन्य सभी सुसंगत जानकारी सहित, मुख्य कारखाना निरीक्षक को मामला रिपोर्ट करना होता है। ऐसा करने में असफल रहना एक दण्डनीय अपराध है।

इसी प्रकार, आदर्श नियमों के अधीन कार्य परिक्षेत्र वाले क्षेत्र के लिये ध्वनि-उच्छन्नता हेतु परिसीमायें विहित की गयी हैं।

मोटर यान अधिनियम, 1988 और उसके अधीन विरचित नियम-

केन्द्रीय मोटर यान नियम 1989 के नियम 119 और 120 ध्वनि के कम किये जाने के सम्बन्ध में है।

नियम 119. हॉर्न

(1) केन्द्रीय मोटर यान (संशोधन) नियम, 1999 के प्रारम्भ होने की तारीख से एक वर्ष की अवधि का अवसान होने पर और उसके पश्चात् प्रत्येक मोटर यान में, जिसके अन्तर्गत सन्निर्माण उपस्कर यान तथा विनिर्मित कृषि ट्रैक्टर भी है, आई०एस० : 1884-1992 की अपेक्षाओं के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक हॉर्न या अन्य युक्तियां फिट की जायेंगी जो यान के ड्राइवर द्वारा प्रयोग किये जाने के लिये भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा विनिर्दिष्ट हों और यान के अभिगम या स्थिति की श्रव्य और पर्याप्त चेतावनी देने योग्य हो-

परन्तु यह कि 1 जनवरी, 2003 को आरे से हॉर्न को ए० आई० एस० 014 विनिर्देशों ,जो समय-समय पर संशोधित किये जायें, के अनुसार लगाया जायेगा; तब तक भारतीय मानक ब्यूरो के जो तत्स्थानी विनिर्देश हैं, उन्हें अधिसूचित किया जाता है।

(2) किसी भी मोटर यान के साथ कोई बहु-ध्वनिकारक हार्न फिट नहीं किया जायेगा जिससे भिन्न-भिन्न प्रकार की ध्वनि निकलती हो या जिससे कर्कश, कंपित, तेज या शोर पैदा करने वाली कोई दूसरी युक्ति लगी हो।

अपकृत्य विधि-

किसी आवास गृह के पूर्ण और मुक्त उपभोग के लिये सौम्यता और ध्वनि से मुक्त अपरिहार्य है। किसी भी स्वत्वधारी को अपनी स्वयं की भूमि पर ध्वनि (शोर) कारित करने का आत्यन्तिक अधिकार प्राप्त नहीं है, क्योंकि कोई भी अधिकार जो विधि द्वारा दिया गया है, इस शर्त से विशेषित( सीमित) है कि उसका उसके पड़ोसियों या लोक को न्यूसेंस कारित करते हुये प्रयोग नहीं किया जाना चाहिये। ध्वनि से अनुयोज्य न्यूसेंस केवल तभी कारित होगा यदि उससे सामान्य, सादा और साधारण दृष्टिकोण से देखने पर और सम्बन्धित परिक्षेत्र को ध्यान में रखते हुये, जीवन की सामान्य सुख-सुविधाओं में बाधा पड़ती है; प्रत्येक मामले में, प्रश्न मात्रा का है।

वायु (प्रदूषण निवारण और नियन्त्रण) अधिनियम, 1981-

वर्ष 1987 में वायु (प्रदूषण निवारण और नियन्त्रण) अधिनियम, 1987 में ध्वनि को वायु प्रदूषक की परिभाषा में सम्मिलित किया गया। इस प्रकार वायु अधिनियम के उपबन्ध ध्वनि प्रदूषण की बाबत् भी लागू हो गये।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986-

यद्यपि ध्वनि प्रदूषण के विषय में कोई विनिर्दिष्ट उपबन्ध नहीं है, तथापि, अधिनियम द्वारा भारत सरकार को ध्वनि प्रदूषण सहित विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों के विषय में कार्यवाही करने हेतु उपाय करने के लिये शक्तियां प्रदत्त की गयी हैं।

पटाखे (आतिशबाजी)-

1984 के विस्फोटक अधिनियम द्वारा विस्फोटकों के निर्माण, उपयोग कब्जा, बिक्री, आयात-निर्यात को विनियमित किया गया है। 1983 के विस्फोटक नियम के नियम 87 के तहत किसी भी प्रकार के विस्फोटक का निर्माण (जब तक कि वह नियमानुकूल न हो) कारखानों अथवा परिसर में निषिद्ध किया गया है।

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