मैक्स वेबर के समाजशास्त्र
मैक्स वेबर के समाजशास्त्र | Sociology of Max Weber- मैक्स वेबर के अनुसार, ‘समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो कि सामाजिक क्रिया का निर्वचनात्मक बोध करने का प्रयत्न करता है, जिससे कि इसकी (सामाजिक क्रिया की) गतिविधि तथा परिणामों की कारण-सहित व्याख्या प्रस्तुत की जा सके।’
उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि मैक्स वेबर के समाजशास्त्र की अध्ययन-वस्तु ‘सामाजिक क्रिया’ है। लेकिन इस सम्बन्ध में, मैक्स वेबर के शब्दों में, ‘यह स्मरणीय है कि समाजशास्त्र किसी भी अर्थ में केवल ‘सामाजिक क्रिया’ के अध्ययन तक ही सीमित नहीं है; हाँ, इतना अवश्य है कि सामाजिक क्रिया समाजशास्त्र का (कम-से-कम उस समाजशास्त्र का जिसे कि वेबर ने यहाँ विकसित किया है) केन्द्रीय अध्ययन विषय है, और समाजशास्त्र को एक विज्ञान की स्थिति प्रदान करने में निर्णायक कहा जा सकता है। दूसरे शब्दों में, समाजशास्त्र के अन्तर्गत हम केवल सामाजिक क्रियाओं का ही अध्ययन करते हैं, ऐसा समझना गलत होगा; हाँ, इतना अवश्य है कि सामाजिक क्रियाएँ समाजशास्त्र का केन्द्रीय अध्ययन-विषय हैं, जोकि समाजशास्त्र को एक यथार्थ विज्ञान के स्तर तक पहुँचाने में सहायक सिद्ध होगी।
यदि मैक्स वेबर की परिभाषा को फिर से दोहराया जाए तो हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र सामाजिक क्रिया का निर्वाचनात्मक बोध करने का प्रयत्न करता है, अर्थात मैक्स वेबर के, समाजशास्त्र में सामाजिक क्रिया और अर्थपूर्ण बोध, ये दो पक्ष महत्वपूर्ण है। ऊपर हम सामाजिक क्रिया के विषय में लिख आए हैं; अब हमें निर्वचनात्मक बोध के विषय में भी समझ लेना चाहिए। मैक्स वेबर इस बात पर बल देते हैं कि समाजशास्त्र सामाजिक क्रिया के साधारण बोध से सन्तुष्ट नहीं होता, बल्कि यह अर्थपूर्ण बोध करने का प्रयत्न करता है।
किसी भी घटना या परिस्थिति का अर्थ दो प्रकार का हो सकता है—
(1) औसत वर्ग- यह वह अर्थ होता है जोकि साधारणतः समाज के अधिकांश सदस्य लगाते हैं।
(2) यथार्थ अर्थ- यह वह अर्थ होता है जोकि एक व्यक्ति परिस्थिति के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेने के पश्चात तर्कसंगत आधार पर लगाता है। इन दो प्रकार के अर्थ के भेद को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। मान लीजिए कि कोई विद्यार्थी किसी परीक्षा में बैठने जा रहा है। वह अपनी परीक्षा की तैयारी इस प्रकार करता है कि उसे अधिकतम अंक प्राप्त हो सकें। इस लक्ष्य की प्राप्ति लिए उसकी क्रियाएँ परीक्षा में जाने वाले सम्भावित प्रश्न -पत्र, उनको बनाने वाले परीक्षक, पिछले वर्षों में पूछे गए प्रश्नों आदि से सम्बन्धित उन सामान्य अनुमानों पर आधारित होगी जैसाकि अधिकांश विद्यार्थी लगाते हैं या जैसा कि अधिकांश व्यक्ति करते हैं। यह उक्त परीक्षा से सम्बन्धित परिस्थिति का सामान्य या औसत अर्थ है। इसके विपरीत, उसी परिस्थिति का यथार्थ अर्थ लगाना तब सम्भव होगा जब किसी विद्यार्थी को उस परीक्षा की प्रणाली, वास्तविक परीक्षक, सम्भावित पुस्तकें आदि के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी हो। परीक्षा में सफल अथवा असफल हो जाने पर विद्यार्थी अपने इस यथार्थ अर्थ का वास्तविक मूल्यांकन कर सकता है। इस यथार्थ अर्थ के आधार पर परीक्षार्थी और परीक्षक दोनों की ही क्रियाओं की ठीक-ठीक उचित विवेचना की जा सकती है।
मैक्स वेबर ने अनुसार समाजशास्त्रियों को प्रत्येक सामाजिक घटना या क्रिया का इसी प्रकार यथार्थ अर्थ खोजने का प्रयत्न करना चाहिए।
अतः स्पष्ट है कि मैक्स वेबर का समाजशास्त्र अर्थपूर्ण इसलिए है कि-
(1) इसका सम्बन्ध अर्थपूर्ण सामाजिक क्रियाओं से है।
(2) इसकी पद्धति का उद्देश्य सामाजिक क्रिया की व्याख्या पूर्णतया तार्किक आधार पर करना है। इन दो आधारभूत विशेषताओं के कारण ही समाजशास्त्रीय नियम वैज्ञानिक कहे जाते हैं ।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि प्रत्येक सामाजिक क्रिया का एक उद्देश्य और एक अर्थ होता है। यह दूसरे व्यक्तियों की क्रिया तथा उद्देश्यों द्वारा प्रभावित होता है। समाजशास्त्र सामाजिक क्रियाओं को उनके अर्थ के आधार पर उस रूप में अध्यन करता है जिस रूप में वे सामाजिक क्रियाएँ दूसरों की क्रियाओं द्वारा प्रभावित हों। इस दृष्टिकोण से समाजशास्त्र को अन्य प्राकृतिक विज्ञानों से पृथक किया जा सकता है। प्राकृतिक विज्ञानों में घटनाओं के उद्देश्य अथवा अर्थ पर विचार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि प्राकृतिक घटनाएँ तो प्राकृतिक नियम के अनुसार आप-से-आप घटित होती हैं। परन्तु सामाजिक घटनाएँ तो व्यक्तियों की अन्तःक्रियाओं का परिणाम होती हैं। इसलिए समाजशास्त्र घटनाओं के उद्देश्य और अर्थ दोनों पर अपना अखंड ध्यान केन्द्रित करता है।
मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्रीय पद्धति कारण-सहित व्याख्या तथा अर्थपूर्ण बोध के बीच एक सन्तुलन स्थापित करने में सफल हुई है। इसके बिना सम्पूर्ण समाजशास्त्र का विज्ञान अवास्तविक हो जाएगा क्योंकि तथ्यों के कारण सहित सम्बन्ध का ज्ञान क्रियाओं के अर्थों को ठीक-ठीक जाने बिना सम्भव नहीं हो सकता। इसके कुछ भी विपरीत होने पर समाजशास्त्र केवल तथ्यों का अर्थहीन वर्णन मात्र रह जाएगा। दूसरे शब्दों में, ‘समाजशास्त्रीय पद्धति का प्रमुख उद्देश्य सामाजिक घटनाओं के कारण को ढूँढ़ निकालना है। परन्तु इन कारणों का पता हम तब तक नहीं लगा सकते जब तक हमें व्यक्ति की सामाजिक क्रियाओं का अर्थपूर्ण बोध न हो जाएगा। यह भी सच है कि सामाजिक क्रिया कोई आप-से-आप घटित होने वाली या प्राकृतिक घटना नहीं है, सामाजिक क्रिया तो व्यक्तियों की क्रियाओं या व्यवहारों द्वारा प्रभावित तथा निर्धारित होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मैक्स वेबर के अनुसार व्यक्ति के द्वारा की गई उस क्रिया का, जोकि अन्य व्यक्तियों की क्रियाओं द्वारा प्रभावित व निर्धारित होती है, अर्थपूर्ण बोध करना और उस बोध के आधार पर सामाजिक कारणों को खोज निकालना समाजशास्त्रीय पद्धति का मुख्य लक्ष्य है।
उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि मैक्स वेबर का समाजशास्त्र दूसरे सामाजिक विज्ञानों से इस अर्थ में भिन्न है कि आपके समाजशास्त्र में व्यक्ति का (जोकि सामाजिक क्रिया को उत्पन्न करनेवाला होता है) स्थान सर्वप्रमुख है। मैक्स वेबर के ही शब्दों में, ‘अर्थ-निरूपण करने वाला समाजशास्त्र व्यक्ति और उसकी क्रिया को आधारभूत इकाई या ‘अणु’ के रूप में विचार करता है। इस विज्ञान के क्षेत्र में व्यक्ति सबसे महत्वपूर्ण और अर्थपूर्ण आचरण का एकमात्र वाहक है।’ मैक्स वेबर का कथन है कि वैसे तो सामान्य रूप से समाजशास्त्र के लिए ‘राज्य’, ‘समिति’, ‘सामन्तवाद’ और इसी प्रकार की अन्य अवधारणाएँ कुछ विशेष प्रकार की मानवीय अन्तःक्रिया को व्यक्त करती हैं, फिर भी समाजशास्त्र का यह कार्य है कि वह इन अवधारणाओं को समझी जा सकने वाली क्रियाओं में बदल दें।
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