आगस्ट कॉम्टे प्रत्यक्षवाद की मान्यताएँ अथवा विशेषताएँ
आगस्ट कॉम्टे प्रत्यक्षवाद की मुख्य विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर जाना जा सकता है।
1. निश्चित सामाजिक नियम –
प्रत्यक्षवाद का अपना फलसफा है जिसके तहत अगस्त काम्टे यह मानते हैं कि जिस प्रकार प्राकृतिक घटनायें अचानक घटित नहीं होती बल्कि वे निश्चित नियमानुसार ही घटित होती है। इसी तरह सामाजिक घटनाओं के साथ भी निश्चित प्रकार के नियम जुड़े है। समाज प्रकृति का अभिन्न अंग है। प्रकृति अपने नियमानुसार शताब्दियों से चलता आ रहा है। विभिन्न ऋतुओं का चक्र। सूर्य के उदय और अस्त होने का नियम आदि। काम्टे का मत है कि सामाजिक घटनाओं को निश्चित वैधानिक नियमों के द्वारा जाना जा सकता है। इन नियमों का आधार वैज्ञानिक होता है। इसीलिए वह अवलोकन और वर्गीकरण को अत्यधिक महत्व देता है। इन्हीं के आधार पर सामाजिक नियमों का भी निर्माण किया जा सकता है।
2. वास्तविक ज्ञान –
काम्टे वह प्रथम समाजशास्त्र का दार्शनिक है जो भाववादी कल्पनाओं और आदर्शात्मक विचारों का विरोध करता है। उसके प्रत्यक्षवाद में इनका कोई स्थान नहीं है। उसका विज्ञान वास्तविक जगत की घटनाओं से सीधा जुड़ा है जिसका वह अवलोकन करता है और वर्गीकरण भी। अनुमान और कल्पना के आधार पर तथ्यों की वह विवेचना नहीं करता है। इसलिए प्रत्यक्षवाद अनुमान और कल्पना पर आधारित न होकर यथार्थ पर आधारित होता है। यह उसके वैज्ञानिक पद्धति का अंग है।
3. वैज्ञानिक आधार अथवा पद्धति –
काम्टे का प्रत्यक्षवाद सामाजिक घटनाओं का वैज्ञानिक पद्धति के आधार पर अध्ययन करता है। घटनाओं का निरीक्षण, परीक्षण और वर्गीकरण करके तथ्यों के वास्तविक रूप को जाना जाता है। प्रत्यक्षवाद अनावश्यक ज्ञान से सम्बन्धित है। वह यथार्थ घटनाओं में विश्वास करता है। वही उसका वास्तविक आधार है।
4. अज्ञात तथ्यों से असंबद्ध –
यह विज्ञान उन चीजों का अध्ययन नहीं करता जो उसे ज्ञात नहीं हैं या ज्ञान से परे हैं। इसीलिए वह आध्यात्मिक और काल्पनिक चीजों से अपने को दूर रखता है क्योंकि इनकी विषयवस्तु यथार्थ न होकर कल्पना और अनुमानों से जुड़ी होती है। इसके साथ ही अदृश्य शक्ति का न तो अवलोकन हो सकता है और न परीक्षण। अस्तु यह प्रत्यक्षवाद के अध्ययन के क्षेत्र में नहीं आते हैं।
5. धर्म और विज्ञान का समन्वय-
प्रत्यक्षवाद केवल विज्ञान ही नहीं है वरन् वह एक मानवतावादी धर्म से भी जुड़ा है। वह वैज्ञानिक अध्ययन के माध्यम से इस प्रकार के समाज की स्थापना करना चाहता है जिसमें व्यक्ति दूसरों की सेवा करे। समाज में नैतिक आचरण और भावना का विकास हो। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि काम्टे के प्रत्यक्षवाद में धर्म और विज्ञान का एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण देखने को मिलता है।
6. सामाजिक पुनर्निर्माण का उद्देश्य-
काम्टे का प्रत्यक्षवाद मात्र विज्ञान की सीमाओं तक ही बंधा नहीं है वरन वह इसे एक साधन के रूप में भी देखता है जिसके द्वारा सामाजिक पुनर्निर्माण सम्भव है। उसका मत है कि विज्ञानवादी अवस्था में व्यक्ति, राजनैतिक समस्याओं की अपेक्षा, सामाजिक समस्याओं की ओर आकर्षित होता है। इन समस्याओं का निराकरण विज्ञान द्वारा ही हो सकता है। इस तरह का कहा जा सकता है कि काम्टे का प्रत्यक्षवाद जहाँ एक ओर सामाजिक घटनाओं का अध्ययन वैज्ञानिक पद्धति से करने पर जोर देता है वहीं दूसरी तरफ वह इसके माध्यम से सामाजिक पुनर्निर्माण भी करने की प्रेरणा देता है।
आगस्त काम्ट का कम प्रत्यक्षवादी होना- कॉम्टे प्रत्यक्षवाद का जन्मदाता है। इसके बावजूद वह स्वयं कम प्रत्यक्षवादी है। कॉम्टे ने जिस प्रत्यक्षवाद को हमारे सम्मुख रखा वह आलोचनाओं से मुक्त नहीं थी। प्रत्यक्षवाद की अनेक त्रुटियाँ व असंगतियाँ इसकी आलोचनाओं का प्रमुख आधार बनीं। कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद की तीव्र आलोचना इस प्रकार पर की गयी कि प्रत्यक्षवाद का जन्मदाता कॉम्टे स्वयं ही कम प्रत्यक्षवादी था। उसका झुकाव विज्ञान के बजाय धर्म की ओर अधिक था। सच तो यह है कि कॉम्टे अपने आपको केवल एक वैज्ञानिक के रूप में ही प्रस्तुत नहीं करना चाहता था। उसका अन्तिम उद्देश्य प्रत्यक्षवादी सिद्धान्तों पर समाज का निर्माण करना था। अतः कॉम्टे की दृष्टि में धर्म और विज्ञान में विरोध नहीं है। कॉम्टे की यह वैचारिक विभिन्नता एक हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न करती है।
कॉम्टे एक ओर तो विशुद्ध वैज्ञानिकता को अपनाना चाहते हैं तथा दूसरी ओर धर्म का दामन भी नहीं छोड़ना चाहते हैं। धर्म का मार्ग अध्यात्म की ओर जाता है, जबकि विज्ञान अध्यात्म से परे है। कॉम्टे ने दो विपरीत दिशाओं में एक साथ यात्रा करनी चाही जो कि कदापि सम्भव नहीं थी। उनकी इस मूढ़मति ने उनके अनेक प्रशंसकों और समर्थकों को नाराज कर दिया क्योंकि इनके विचार से सामाजिक अध्ययन में वैज्ञानिकता का विकास करना कॉम्टे का मौलिक उद्देश्य था, जिस पर वह स्थिर नहीं रह पाया। धर्म और नीति की ओर कॉम्टे का निरन्तर झुकाव उसके पतन के रूप में समझा गया। जॉन स्टुअर्ट मिल जैसे प्रभावशाली व्यक्ति जो प्रारम्भ में कॉम्टे के भक्त थे, उसके इस पतन पर रो दिये।
आलोचकों का कथन है कि यदि अगस्त कॉम्टे अपने द्वारा प्रतिपादित प्रत्यक्षवाद के प्रारम्भिक स्वरूप को स्थिर रखने में सफल हुए होते तो आधुनिक युग में उनकी गणना विश्व के सर्वोच्चतम वैज्ञानिकों में की जाती और उसे जॉन स्टुअर्ट मिल जैसे दृढ़ प्रशंसक व समर्थक के समर्थन से वंचित नहीं होना पड़ता। किन्तु इसके विपरीत उनके पर्यावरण, जीवन की परिस्थितियाँ तथा सबसे अन्त में उनकी सामाजिक पुनर्निर्माण की दिवास्वप्निल योजना ने उन्हें प्रत्यक्षवाद के वैज्ञानिक आधार से शनैः शनैः काफी दूर कर दिया। सम्भवता यही कारण है कि आज प्रत्यक्षवाद के जन्मजाता को निम्नलिखित शब्दों में याद किया जाता है।
‘प्रत्यक्षवाद का जन्मदाता मनुष्यों में सबसे कम प्रत्यक्षवादी था।’ एक अन्य समाजशास्त्री रौलिन चेम्वलिन ने भी प्रत्यक्षवाद के दोहरे मुखौटे की आलोचना करते हुए लिखा है कि, ‘यह विश्वास करना अत्यधिक सरल है कि वहाँ दो कॉम्टे थे, यदि एक तीक्ष्ण बुद्धि वाला वैज्ञानिक था, तो द्वितीय एक सामान्य प्रतिभा वाला धार्मिक व्यक्ति था।’
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