कॉम्ट के विज्ञानों के संस्तरण
विज्ञान के स्संतरण में सर्वप्रथम स्थान गणितशास्त्र का है। इसका कारण कॉम्ट के मतानुसार यह है कि गणितशास्त्र सबसे अधिक पुराना, आधारभूत तथा दोषरहित विज्ञान है। गणित ही वह सबसे अधिक शक्तिशाली औजार है जिसको उपयोग में लाए बिना प्राकृतिक नियमों का अन्वेषण असम्भव है। इस अर्थ में यह मानव-चिन्तन का सबसे मौलिक उपकरण के क्षेत्र में, चाहे वह सामाजिक हो या प्राकृतिक, गणितशास्त्र से अधिक निर्भर योग्य और कोई भी विज्ञान नहीं है क्योंकि तथ्यों का यथार्थ नाम या विभिन्न तथ्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का सुनिश्चित ज्ञान गणितशास्त्र की सहायता से ही सम्भव है। अन्य कोई भी विज्ञान अपने अन्वेषण या शोध- अनुसन्धान कार्य में तब तक कदापि सफल नहीं हो सकता जब तक कि वह गणितशास्त्र की सहायता न ले क्योंकि यही समस्त विज्ञानों का आधार या बुनियाद है। इसी बुनियाद के ऊपर अन्य सभी विज्ञान खड़े हैं और अपने को विज्ञान कहलाने के योग्य हैं। इसीलिए कॉम्ट विज्ञान के संस्तरण में गणितशास्त्र को प्रथम और आधारभूत स्थान प्रदान करते हैं।
विज्ञानों के संस्तरण में अन्य विज्ञानों के स्थान को निश्चित करने के लिए कॉम्ट ने सभी प्राकृतिक घटनाओं को दो बड़े भागों में विभाजित किया है-अजीवन (inorganic) और जीवज (organic)।
अजीवन घटनाओं को हम दो उप-भागों में बाँट सकते हैं-खगोल सम्बन्धी (astro- nomical) और स्थलीय (terrestrial)। खगोल सम्बन्धी घटनाएँ अत्यधिक सामान्य होती हैं। ग्रह, नक्षत्रों आदि में बहुत ही कम परिवर्तन होता है। खगोलशास्त्र का सम्बन्ध इन्हीं खगोल-सम्बन्धी घटनाओं से होता है। ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र, पुच्छल तारे, उल्काएँ, आदि खगोलशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में आते हैं। सूर्य एक नक्षत्र है और बुद्ध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण व कुबेर ग्रह हैं तथा चन्द्रमा हमारी पृथ्वी का एक उपग्रह है। ये विभिन्न नक्षत्र, ग्रह और उपग्रह एक-दूसरे से कितनी दूरी पर स्थित हैं, ये किस प्रकार पारस्परिक आकर्षण शक्ति द्वारा एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं, इनका आधार क्या है, ‘नक्षत्र-परिवार’ क्या है (जैसे सूर्य के परिवार या ‘सौर परिवार’ में पृथ्वी, चन्द्रमा, मंगल, बुद्ध इत्यादि अनेक ग्रह एवं उनके उपग्रह शामिल हैं, इनकी कितनी गति है आदि विषयों का अध्ययन खगोलशास्त्र करता है। यहाँ यह प्रश्न उठ सकता है कि इस प्रकार के अध्ययन का क्या महत्व है, या धरती के मानव के लिए खगोल या आकाश-सम्बन्धी घटनाओं को जानने की क्या सार्थकता हो सकती है? इसका उत्तर अति सरल है। हम अपनी धरती सम्बन्धी घटनाओं के बारे में उस समय तक कुछ नहीं जान सकते जब तक कि हम पृथ्वी की प्रकृति तथा उसके दूसरे ग्रह- नक्षत्रों के साथ सम्बन्ध को न समझ लें। यह ज्ञान हमें खगोलशास्त्र से प्राप्त होता है।
स्थलीय भौतिकशास्त्र के अन्तर्गत दो विज्ञानों का समावेश है— भौतिकशास्त्र मुख्य और रसायनशास्त्र। भौतिक पदार्थों के विषय में जानने के लिए उनका भौतिक या रासायनिक विश्लेषण आवश्यक हो जाता है। इस कार्य के लिए दो पृथक विज्ञान-भौतिकशास्त्र और रसायनशास्त्र हैं। भौतिकशास्त्र का अध्ययन विषय रसायनशास्त्र के अध्ययन-विषय की अपेक्षा अधिक सामान्य है। यह तत्वों के स्थान पर पदार्थों से अधिक सम्बन्धित है। रासायनिक तत्व भौतिकशास्त्र के नियमों पर निर्भर करता है, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि रासायनिक घटनाएँ भौतिकशास्त्र के नियमों से प्रभावित भी होती हैं। कोई भी रासायनिक क्रिया भार, ताप और विद्युत के नियमों से प्रभावित होती है। इस प्रकार अजीवन घटनाओं का अध्ययन तीन विज्ञानों-खगोलशास्त्र, भौतिकशास्त्र और रसायनशास्त्र के द्वारा होता है।
जीवन घटनाओं के भी दो प्रकार हैं– व्यक्तिगत और सामूहिक। प्रथम के अन्तर्गत वनस्पति और पशु-जगत की समस्त व्यक्तिगत या शारीरिक स्वरूपों की क्रियाएँ तथा संरचनाएँ आ जाती हैं। यह प्राणिशास्त्र का अध्ययन-विषय है। इसमें समस्त जीवन और उससे सम्बन्धित नियमों का अध्ययन सम्मिलित है। स्पष्ट है कि प्राणिशास्त्र रसायनशास्त्र पर निर्भर होता है क्योंकि पोषण तथा ग्रन्थि से रस के निकलने (Secretion) के समस्त विश्वसनीय नियम हमें रसायनशास्त्र से ही प्राप्त होते हैं। इतना ही नहीं, प्राणिशास्त्र का सम्बन्ध भौतिकशास्त्र से है क्योंकि भौतिकशास्त्र प्राणिशास्त्र को जीवित प्राणियों के भार, ताप और अन्य सम्बन्धित तथ्यों का ज्ञान करवाता है। प्राणिशास्त्र के नियमों पर खगोलशास्त्र के नियमों का भी प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए यदि पृथ्वी की गति उसकी वर्तमान गति से अधिक हो जाए तो उसका परिणाम यह होता है कि शरीर सम्बन्धी घटनाओं की गति भी निश्चित रूप से बढ़ जाएगी और जीवन की अवधि कम हो जाएगी। खलोगशास्त्र हमें यह भी बताता है कि पृथ्वी अपनी धुरी या अक्ष (axis) पर पश्चिम से पूर्व की ओर लट्टू की भांति घूमती है और लगभग 24 घंटे में एक चक्कर पूरा करती है; इस दैनिक गति के कारण ही पृथ्वी का आधा भाग बारी-बारी से सूर्य के सामने आता-जाता रहता है और दिन-रात होते हैं।
इसी प्रकार पृथ्वी एक अण्डाकार पथ पर गतिशील होकर सूर्य का चक्कर लगाती है जिसे वार्षिक गति या परिक्रमा कहते हैं। ऋतु परिवर्तन में इस वार्षिक गति का योग रहता है। यदि पृथ्वी में वार्षिक गति न होती तो वर्ष-भर एक-सी ऋतु रहती। पृथ्वी अपनी धुरी या अक्ष पर घूमती है, पृथ्वी का यह अक्ष कक्ष-तल पर लम्ब नहीं बल्कि झुका हुआ अर्थात् 66/2 अंश का कोण बनाता है। यदि पृथ्वी का यह अक्ष कक्ष-तल पर लम्ब हो जाए तो उसका नतीजा यह होगा कि सब जगह दिन-रात बराबर होने लगेंगे; साथ ही ऋतु परिवर्तन भी नहीं होगा अर्थात सब जगह साल-भर एक-सा ही मौसम रहेगा। अक्ष के तिरछा होने के कारण ही दोपहर के समय सूर्य की ऊँचाई भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होती है, दिन-रात छोटे-बड़े होते रहते हैं, ऋतु में परिवर्तन होता है, उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध में ऋतुएँ एक-दूसरे से भिन्न होती है तथा उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर दिन और रात छह-छह महीने के होते हैं। इन सभी का प्रभाव शरीर- सम्बन्धी घटनाओं पर पड़ता है। अतः स्पष्ट है कि प्राणिशास्त्र खलोगशास्त्र का भी ऋणी है। इसके अतिरिक्त प्राणिशास्त्रीय अध्ययनों में जो यथार्थता पाई जाती है। वह गणितशास्त्र के कारण ही है। यदि प्राणिशास्त्र को अपने अध्ययन-कार्य में गणितशास्त्र का सहारा न मिलता लो वह वास्तव में दोषपूर्ण, अनिश्चित और अविश्वसनीय होता। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्राणिशास्त्र विज्ञानों के संस्तरण में आने से पहले सभी विज्ञानों पर आश्रित है।
जीवन घटनाओं का दूसरा प्रकार या भाग सामूहिक है। इस भाग का अध्ययन समाजशास्त्र के द्वारा होता है जोकि कॉम्ट द्वारा प्रस्तुत विज्ञानों के संस्तरण में सबसे अन्तिम विज्ञान है। इसलिए कॉम्ट ने इस विज्ञान को सबसे अधिक पराश्रित विज्ञान माना है जिसे कि अपने अध्ययन-कार्य में गणितशास्त्र, खलोगशास्त्र, भौतिकशास्त्र रसायनशासन्त्र एवं प्राणिशास्र सभी पर निर्भर रहना पड़ता है। ये सभी विज्ञान उसी क्रम से एक-दूसरे पर या अपने से पहले वाले विज्ञान या विज्ञानों पर निर्भर हैं जिस क्रम से इनका विकास हुआ है।