सामाजिक सर्वेक्षण की अवधारणा और इसकी प्रकृति
सामाजिक सर्वेक्षण की अवधारणा Social Survey in Hindi- सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक समस्याओं का अध्ययन व समाधान का एक वैज्ञानिक साधन है। वैज्ञानिक इस अर्थ में कि इसमें अध्ययन-कार्य किसी मनमाने तरीके से न होकर वैज्ञानिक विधि के आधार पर होता है तथा कोई भी निदान अथवा निष्कर्ष वास्तविक निरीक्षण-परीक्षण पर सुप्रतिष्ठित होता है। सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति का व्यवस्थित प्रयोग सर्वप्रथम 8वीं शताब्दी से आरम्भ हो सका। आज सर्वेक्षण का तात्पर्य एक ऐसी अनुसंधान प्रणाली से है जिसके अन्तर्गत अध्ययनकर्ता अध्ययन से सम्बन्धित स्थान पर स्वयं जाकर सामाजिक घटना या स्थिति का वैज्ञानिक रूप से अध्ययन करता है और विषयों से सम्बन्धित तथ्यों को एकत्रित करके सामान्य निष्कर्ष प्रस्तुत करता है। इस दृष्टिकोण से “सामाजिक सर्वेक्षण निरीक्षण-परीक्षण की वह वैज्ञानिक पद्धति है जो कि किसी सामाजिक समूह अथवा सामाजिक समूह अथवा सामाजिक जीवन के किसी पक्ष या घटना के सम्बन्ध में वैज्ञानिक अध्ययन करने में प्रयुक्त होती है।” डिक्शनरी ऑफ सोसियोलॉजी के अनुसार, “एक समुदाय के सम्पूर्ण जीवन या उसके किसी एक पहलू जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, मनोरंजन के सम्बन्ध में तथ्यों के बहुत कुछ व्यवस्थित व विस्तृत संकलन एवं विश्लेषण को ही मोटे तौर पर सर्वेक्षण कहते है।” वेबस्टर शब्दकोश के अनुसार, “वास्तविक जानकारी प्राप्त करने के लिए किया गया आलोचनात्मक निरीक्षण ही सामाजिक सर्वेक्षण कहलाता है।”
सामाजिक सर्वेक्षण वास्तव में सामाजिक जीवन के किसी पक्ष, विषय एवं समस्या के सम्बन्ध में निर्भर योग्य तथ्यों के संकलन व विश्लेषण करने की एक प्रणाली है जो कि कुछ वैज्ञानिक सिद्धान्तों व मान्यताओं पर आधारित होने के कारण प्रयोगसिद्ध निष्कर्षों को निकालने में सहायक सिद्ध होती हैं। कुछ विचारकों का विचार है कि सामाजिक सर्वेक्षण का सम्बन्ध केवल सामाजिक समस्याओं अथवा व्याधिकीय विषयों से होता है और इसका मुख्य उद्देश्य. वैज्ञानिक रूप से समस्या के समाधान व समाज सुधार की परियोजनाओं को प्रस्तुत करना होता है। हैरिसन के अनुसार, “सामाजिक सर्वेक्षण एक सहकारी प्रयत्न है जिसके अन्तर्गत किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र में पायी जाने वाली सामाजिक दशाओं तथा समस्याओं के अध्ययन और विश्लेषण के लिए वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग किया जाता है।”
सिन पाओ यंग के अनुसार, “सामाजिक सर्वेक्षण प्रायः लोगों के एक समूह की रचना, क्रियाकलापों तथा रहन-सहन की दशाओं के सम्बन्ध में एक जाँच पड़ताल है।” बोगार्डस ने सामाजिक सर्वेक्षण के अध्ययन-क्षेत्र तथा उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि, “विस्तुत अर्थों में सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ किसी विशेष समुदाय के लोगों के जीवन और कार्य की दशाओं से सम्बन्धित तथ्यों का संकलन करना है।”
सामाजिक सर्वेक्षण की प्रकृति
(1) एक वैज्ञानिक पद्धति- सामाजिक सर्वेक्षण की प्रकृति पूर्णतः वैज्ञानिक है। इसके अन्तर्गत तथ्यों को व्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप से एकत्रित करने के लिए उन सभी चरणों का प्रयोग किया जाता है जो कि वैज्ञानिक पद्धति से सम्बद्ध हैं। एक सर्वेक्षणकर्ता जब कभी भी किसी समूह, समुदाय अथवा समस्या से सम्बन्धित तथ्यों का संग्रहण करता है, तो इस कार्य में अनेक व्यक्तिगत विचारों अथवा भावनाओं का कोई महत्व नहीं होता। सर्वेक्षण के आधार पर दिया गया सामान्यीकरण भी वैज्ञानिक नियमों के समान ही महत्वपूर्ण होता है।
(2) सामाजिक घटनाओं का अध्ययन- सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य किसी विशिष्ट अथवा वैयक्तिक घटना का अध्ययन करना नहीं अपितु इसका सम्बन्ध सामान्य सामाजिक घटनाओं के अध्ययन से हैं। इसके बाद भी ऐसा अध्ययन पूर्णतः या वस्तुनिष्ठ होता है क्योंकि अध्ययनकर्ता किसी भी घटना को देखने और समझने में एक तटस्थ निरीक्षण के रूप में कार्य करता है। सामान्य सामाजिक घटनाओं के अध्ययन के कारण ही सामाजिक सर्वेक्षण का महत्व सम्पूर्ण समूह के लिए स्वीकार किया जाता है।
(3) एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र- सामाजिक सर्वेक्षण सदा ही एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र तक ही सीमित होता है। यह सत्य है कि किसी विशिष्ट समस्या का सम्बन्ध एक बहुत बड़े क्षेत्र से हो सकता है किन्तु सर्वेक्षण के लिए एक विशेष गाँव, नगर या क्षेत्र को चुना जाता है जिसके अध्ययन को अधिक वैज्ञानिक बनाया जा सके। हैरिसन के अनुसार, “केवल वे ही घटनायें सामाजिक सर्वेक्षण द्वारा अध्ययन की जा सकती हैं जो भौगोलिक रूप से सीमित हों। सामाजिक सर्वेक्षण की इसी विशेषता के कारण निदर्शन पद्धति का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य अध्ययन-क्षेत्र को नियंत्रित करके वस्तुनिष्ठ निष्कर्ष प्रस्तुत करना है।
(4) तुलनात्मक अध्ययन- वर्तमान समय में तुलनात्मक अध्ययन करना सामाजिक सर्वेक्षण की एक महत्वपूर्ण विशेषता बनती जा रही है। तुलनात्मक अध्ययन का उद्देश्य किसी विशेष मनोवृत्ति, विचार अथवा समस्या की प्रकृति को दूसरे तथ्यों की तुलना में ज्ञात करना होता है। यही कारण है कि कुछ व्यक्ति तुलनात्मक उपागम के द्वारा कियी जाने वाले सामाजिक सर्वेक्षण को एकपक्षीय सर्वेक्षण की अपेक्षा अधिक उपयोगी मानते हैं।
(5) एक सहकारी प्रक्रिया- सामान्य तौर पर सामाजिक सर्वेक्षण का अध्ययन क्षेत्र इतना व्यापक होता है कि कोई व्यक्ति अकेले ही सम्पूर्ण अध्ययन कठिनता से ही कर सकता है। अधिकतर एक सर्वेक्षण के लिए अध्ययनकर्ताओं के एक समूह को आवश्यकता होती है इस दृष्टि से सामाजिक सर्वेक्षण को एक सहकारी प्रयत्न कहा जा सकता है। आज विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षणों के लिए अन्तर- विज्ञानीय उपागम का सहारा लिया जाने लगा है जिसमें एक से अधिक विद्वानों के विशेषज्ञ अपने- अपने क्षेत्र से सम्बद्ध सूचनायें संग्रहित करके सामान्य निष्कर्ष प्रस्तुत करने का प्रयत्न करते हैं।
(6) रचनात्मक आधार- हैरिसन के अनुसार सामाजिक सर्वेक्षण का कार्य-क्षेत्र केवल सामाजिक घटनाओं के संकलन और उसकी विवेचना तक ही सीमित नहीं है अपितु इसका प्रमुख उद्देश्य समाज सुधार और सामाजिक कल्याण के लिए कार्य करना है। वास्तव में सामाजिक सर्वेक्षण के द्वारा जब किसी समस्या से सम्बन्धित तथ्य संग्रहित किये जाते हैं तो उन्हीं के सन्दर्भ में विकास कार्यक्रमों को व्यावहारिक स्वरूप दे सकना सम्भव हो पाता है। इस दृष्टि से सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य सामाजिक समस्याओं का निराकरण करना तथा सामाजिक नियंत्रण को मजबूत बनाना होता है।
(7) सामाजिक चेतना का माध्यम- सामाजिक सर्वेक्षण के अन्तर्गत तथ्यों का केवल संकलन ही नहीं किया जाता अपितु उनके उचित प्रचार के द्वारा सामाजिक जागरूकता में भी वृद्धि की जाती है।
सामाजिक सर्वेक्षण के उद्देश्य एंव महत्व-
इसे विविध प्रकार के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किए जाते हैं। वर्णनात्मक अध्ययनों अन्वेषणात्मक अध्ययनों, प्रशासन से सम्बन्धित तथ्यों, कार्य-कारण सम्बन्धों का पता लगाने या सिद्धान्त के पुनर्परीक्षण के उद्देश्य से सर्वेक्षण किए जा सकते हैं। इनका प्रयोग रचनात्मक कार्यक्रमों को बनाने के उद्देश्य से भी किया जाता है।
(1) सामाजिक घटना का वर्णन करना- सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य किसी घटना का वर्णन करना हो सकता है। मोजर एवं कैल्टन ने इसी उद्देश्य को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा है कि, “एक सामाजिक वैज्ञानिक के लिए सर्वेक्षण का उद्देश्य विशुद्ध रूप से वर्णनात्मक हो सकता है, जैसे कि सामाजिक दशाओं, अन्तर्सम्बन्धों तथा व्यवहार का वर्णन करना।” अनेक सरकारी एवं गैर-सरकारी सर्वेक्षणों का उद्देश्य केवल आँकड़ों का संकलन करके उस पहलू का वर्णन करना होता है जिसमें सम्बन्धित सर्वेक्षण किया गया है।
(2) अन्वेषणात्मक अध्ययन को प्रोत्साहन- सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य किसी घटना या पहलू का अन्वेषण करना या विवेचन करना हो सकता है। यदि सामाजिक अनुसन्धान करने से पहले समस्या का निर्माण करने एवं उपकल्पनाओं का निर्माण करने तथा विषय क्षेत्र के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए सर्वेक्षण किया जाता है तो इसका उद्देश्य अन्वेषण करना हुआ।
(3) कार्य-क्षमता सम्बन्धों का निर्धारण करना- सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य विभिन्न सामाजिक घटनाओं में पाए जाने वाले कार्य-कारण सम्बन्धों का पता लगाना भी हो सकता है। अमुक घटना समाज में क्यों घटित हुई या किसी अमुक घटना ने वहाँ के लोगों की सामाजिक दशाओं पर क्या प्रभाव डाला – इसका पता हम सामाजिक सर्वेक्षण द्वारा कर सकते हैं।
(4) उपकल्पना का निर्माण तथा परीक्षण- सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य उपकल्पनाओं का निर्माण करना या निर्मित उपकल्पनाओं के बारे में तथ्यों का संकलन करके उनकी प्रमाणिकता की जाँच करना भी हो सकता है। अधिकतर सर्वेक्षण उपकल्पनाओं के निर्माण या परीक्षण के लिए ही किए जाते हैं।
(5) विभिन्न जीवन परिस्थितियों का अध्ययन- सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य किसी समुदाय के व्यक्तियों के जीवन की दशाओं, उन्हें उपलब्ध सुविधाओं या समुदाय में चल रहे विकास एवं सुधार कार्यों का मूल्यांकन करना भी हो सकता है। वेल्स ने सामाजिक सर्वेक्षण के इस उद्देश्य को अधिक महत्वपूर्ण माना है।
(6) सिद्धान्तों का परीक्षण- सामाजिक व्यवहार से सम्बन्धित जिन नियमों का प्रचलन काफी समय से है, सामाजिक सर्वेक्षण उनकी परीक्षा तथा पुनर्परीक्षा करने के उद्देश्य से भी किए जाते हैं। समयानुसार समूह की दशाओं में जो परिवर्तन होते हैं और इनके परिणामस्वरूप सामान्य नियमों पर जो प्रभाव पड़ता है उसका पता लगाने के उद्देश्य से भी सामाजिक सर्वेक्षण किए जाते हैं।
(7) सामाजिक समस्याओं का अध्ययन- सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य सामाजिक समस्याओं के बारे में जानकारी प्राप्त करना तथा उनके कारणों का पता लगाकर उनका समाधान करना भी हो सकता है।
(8) रचनात्मक कार्यक्रम – सामाजिक सर्वेक्षण का उद्देश्य विविध प्रकार के रचनात्मक कार्यक्रम या योजनाएँ बनाना भी हो सकता है। बर्गेस ने सामाजिक सर्वेक्षण में रचनात्मक कार्यक्रम को अधिक महत्वपूर्ण माना है। आज सामाजिक सर्वेक्षण विविध प्रकार के पहलुओं के बारे में सामग्री संकलन करने का प्रमुख स्रोत माने जाते हैं। इसके विविध रूपः जैसे वैयक्तिक अध्ययन के रूप में सर्वेक्षण, निदर्शन सर्वेक्षण या पूर्ण परिगणना सर्वेक्षण हो सकते हैं। अतः सामाजिक सर्वेक्षण किसी एक सामाजिक विज्ञान की विशेषता न होकर सभी सामाजिक विज्ञानों की विशेषता हैं क्योंकि इसमें किसी एक पहलू या किसी एक दृष्टिकोण पर ही महत्व नहीं दिया जाता।
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