शैक्षिक प्रशासन के विभिन्न स्तर | शैक्षिक प्रशासन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए
शैक्षिक प्रशासन का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है। इसके अन्तर्गत वो सभी कुछ आता है जिससे शिक्षण संस्थाएँ ठीक प्रकार से कार्य कर सकें, शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति हो सके तथा उपलब्ध भौतिक एवं मानवीय साधनों का श्रेष्ठतम उपयोग हो सके। शैक्षिक प्रशासन उपलब्ध साधनों के द्वारा सीखने और सिखाने की प्रक्रिया को उच्च-स्तरीय बनाने का प्रयास करता है।
इस प्रकार शैक्षिक प्रशासन के क्षेत्र के अन्तर्गत शिक्षा की नीति निर्धारित करना, के विभिन्न पाठ्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करना, शिक्षा कार्य में लगी विभिन्न संस्थाओं का प्रबन्ध करना, उनका निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण करना, शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना, शिक्षकों की आवश्यकताओं की पूर्ति करना तथा उनकी समस्याओं का समाधान करना, विद्यार्थियों के समुचित विकास की व्यवस्था करना तथा उनके हितों की सुरक्षा करना आदि आते हैं। इसके अतिरिक्त शैक्षिक प्रशासन के क्षेत्र के अन्तर्गत तकनीकी, वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक जीवन की शिक्षा का प्रबन्ध करना भी आता है जिससे देश में बेकारी की समस्या का अन्त हो सके और देश शिक्षा उन्नति के रास्ते पर आगे बढ़ सके। संक्षेप में हम कह सकते है कि शिक्षा से सम्बन्धित प्रत्येक कार्य शिक्षा प्रशासन के क्षेत्र में आता है। इस प्रकार शिक्षा प्रशासन का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है।
शिक्षा प्रशासन के विभिन्न स्तर-
शैक्षिक प्रशासन को पाँच स्तरों पर शिक्षा के प्रशासन से सम्बन्ध रखना पड़ता है और प्रत्येक स्तर पर उसे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये पाँच स्तर हैं
(1) केन्द्रीय स्तर पर
(2) राज्य स्तर पर
(3) स्थानीय संस्थाओं के स्तर पर
हमारे देश में शिक्षा या तो सरकार द्वारा संचालित होती है या निजी संस्थाओं द्वारा। कुछ विद्यालय स्थानीय संस्थाओं के द्वारा भी स्थापित किए जाते हैं। प्रत्येक संस्था चाहे वो किसी के द्वारा भी संचालित हो, उसका प्रशासन दो ढंग से चलता है-
(1) वाह्य प्रशासन, (2) आन्तरिक प्रशासन
(1) वाह्य प्रशासन-
शिक्षा के बाह्य प्रशासन से हमारा तात्पर्य विद्यालय के पार रखे जाने वाले वाह्य नियन्त्रण से है। इसके लिए शिक्षा विभाग का गठन किया जाता है। शिक्षा के लिए नियम बनाना, उसकी नीतियाँ निर्धारित करना, अनिवार्य शिक्षा को लागू करना, पाठ्यक्रम निर्धारित करना, शिक्षकों का वेतन तथा उनके काम करने की दशाओं (Service Conditions) को तय करना आदि कार्य शिक्षा विभाग के अन्तर्गत आते हैं तथा विद्यालयों को शिक्षा विभाग द्वारा निर्धारित नियमों को मानना आवश्यक होता है।
(2) आन्तरिक प्रशासन-
शिक्षा के आन्तरिक प्रशासन के अन्तर्गत विद्यालय का प्रशासनिक स्वरूप, प्रधानाध्यापक, अध्यापकगण, कर्मचारी गण, छात्रावास, कार्यालय भवन, पुस्तकालय, प्रयोगशाला फर्नीचर आदि की व्यवस्था, समय सारिणी, पाठ्य सहगामी क्रियाएँ आदि विषय आते हैं। आन्तरिक प्रशासन का मुख्य अधिकारी प्रधानाध्यापक होता है जो अपने सहयोगी अध्यापकों तथा कर्मचारियों की सहायता से आन्तरिक प्रशासन करता है। आइए देखें कि पाँचो स्तरों पर शैक्षिक प्रशासन के क्षेत्र में कौन-सी क्रियाएँ आती हैं-
1. केन्द्रीय स्तर पर-
केन्द्रीय स्तर पर प्रशासन को निम्न कार्य करने होते हैं-
(i) योजना बनाना तथा शिक्षा की नीतियाँ निर्धारित करना।
(ii) बजट बनाना- शैक्षिक प्रशासन शिक्षा का बजट तैयार करता है तथा वित्तीय अनुदान जो पूरे देश की शिक्षा के लिए उपलब्ध हो सकता है उसका अवलोकन करता है।
(iii) विभिन्न राज्यों के बीच शिक्षा की नीतियों एवं कार्यक्रमों में समन्वय स्थापित करना।
(iv) शिक्षा के लिए केन्द्र राज्य सरकारों को सहायता देता है तथा उनका पथ-प्रदर्शन करता है।
(v) पूरे देश के स्तर पर विभिन्न व्यवसायों में कितनी मानवीय शक्ति की आवश्यक है उसका मूल्यांकन करना तथा उनके प्रशिक्षण की योजना बनाना।
2. राज्य स्तर पर
इस स्तर पर राज्य का शिक्षा विभाग शिक्षा की योजनाएँ, नीतियाँ और कार्यक्रम बनाता है तथा दूसरी ओर शिक्षा निदेशालय इन नीतियों को व्यवहारिक रूप देता है। राज्य स्तर पर शिक्षा विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी शिक्षा मंत्री होता है तथा उसकी सहायता के लिए उप-मंत्री भी होता है। शिक्षा सम्बन्धी सभी नीतियों का निर्धारण और निर्णय सचिवालय में होता है जिसका प्रमुख अधिकारी शिक्षा सचिव होता है।
शिक्षा सचिवालय द्वारा निर्धारित नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों को राज्य में क्रियान्वित करने का कार्य शिक्षा निदेशालय का होता है। ये राज्य और शिक्षण संस्थाओं के बीच एक कड़ी का काम करता है। शिक्षा निदेशालय का प्रमुख अधिकारी शिक्षा निदेशक होता है जो शासन की नीतियों को अमल में लाता है।
3. स्थानीय स्तर पर-
इस स्तर पर अधिकतर प्राइमरी शिक्षा का ही प्रशासन होता है। कहीं-कहीं माध्यमिक एवं कालेज स्तर के विद्यालय भी स्थानीय संस्थाओं के द्वारा चलाए जाते हैं। निजी संस्थाओं द्वारा जिन विद्यालयों का संचालन किया जाता है। वे दो प्रकार के होते हैं-
(i) प्रथम वे विद्यालय जिन्हें शासन अनुदान के रूप में आर्थिक सहायता देता है।
(ii) द्वितीय वे जिन्हें शासन की किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं मिलती।
अशासकीय विद्यालयों को सरकारी सहायता अनुदान तभी प्राप्त होता है जब उन्हों शासन द्वारा मान्यता प्रदान कर दी जाती है। सहायता प्राप्त विद्यालयों पर नियन्त्रण रखने के लिए विद्यालय निरीक्षक होता है। जिसकी निरीक्षण रिपोर्ट पर विद्यालय को अनुदान मिलता है। जो निजी विद्यालय मान्यता प्राप्त होते हैं उन्हें बोर्ड तथा सरकार के नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ऐसे विद्यालय जिनको किसी प्रकार का सरकारी अनुदान प्राप्त नहीं होता उनका नियन्त्रण निजी संस्थाओं, ट्रस्ट या मिशनरियों द्वारा किया जाता है।
विद्यालय स्तर पर शिक्षा को प्रशासन के अन्तर्गत विद्यालय के दैनिक कार्यक्रम, अनुशासन, कार्यालय के कार्य, अध्यापकों के बीच कार्य का विभाजन, बालकों की शिक्षा तथा पाठ्य सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था, फर्नीचर, पुस्तकालय एवं प्रयोगशालाओं की समुचित व्यवस्था तथा विद्यालय का समाज से सम्पर्क बनाए रखना आदि कार्य आते हैं।
Important Links
- मापन एवं मूल्यांकन में अन्तर – difference between measurement and evaluation in hindi
- शैक्षिक प्रशासन व शैक्षिक संगठन में अन्तर
- विद्यालय संगठन एवं शैक्षिक प्रशासन में सम्बन्ध | संगठन तथा प्रशासन में सम्बन्ध
- अवलोकन/निरीक्षण की परिभाषा, विशेषताएँ तथा इसकी उपयोगिता
- साक्षात्कार का अर्थ, विशेषताएँ, उद्देश्य तथा इसके लाभ | Meaning of Interview in Hindi
- उपकल्पनाओं के स्रोत तथा इसके महत्व
- मैलीनॉस्की के प्रकार्यवाद | Malinowski’s functionalism in Hindi
- परम्परा का अर्थ, परिभाषा, तथा महत्व
- प्रमुख शैक्षिक विचारधाराएँ या दर्शन | Main Educational Thoughts or Philosophies
- भूमिका (Role) का अर्थ, परिभाषा एवं प्रमुख विशेषताएँ
- परिस्थितिशास्त्रीय (ecological) पतन का अर्थ, कारण एवं इससे बाचव के कारण
- मातृ शिक्षक संघ के स्वरूप, कार्याविधि व उन्नति के सुझाव
- समुदाय का अर्थ | विद्यालय के विकास में समुदाय की भूमिका
- विद्यालय अनुशासन का अर्थ, अनुशासन की परिभाषा एवं महत्व
- विद्यालय अनुशासन के प्रकार
- विद्यालय समय सारणी का अर्थ और आवश्यकता
- विद्यालय पुस्तकालय के प्रकार एवं आवश्यकता
- प्रधानाचार्य के आवश्यक प्रबन्ध कौशल
- पुस्तकालय का अर्थ | पुस्तकालय का महत्व एवं कार्य
- सामाजिक परिवर्तन (Social Change): अर्थ तथा विशेषताएँ –