कर्मचारी परिवेदना को स्पष्ट कीजिए।
कर्मचारियों में व्याप्त बेचैनी, असंतोष या परेशानी को व्यक्त करने के लिए कुछ शब्दों का प्रयोग होता है। इसमें तीन शब्द, अर्थात् असंतोष (Dissatisfaction), शिकायत (Complaint) तथा परिवेदना (Grievance) का अर्थ एवं अन्तर पीगर्स तथा मायर्स ने निम्न प्रकार स्पष्ट किया है:
“कर्मचारी असंतोष का आशय उस चीज से है जो उसे विचलित कर देती है, चाहे वह अपनी बेचैनी को शब्दों में व्यक्त करे अथवा न करे। उदाहरणार्थ, एक कर्मचारी को इस बात से परेशानी हो सकती है कि उसे छोटे-मोटे औजारों को खोजने में समय नष्ट करना पड़ता है। शिकायत वह लिखित या मौखिक असंतोष है जो प्रबन्ध या संघ के प्रतिनिधि के ध्यान में लाया गया है। इसमें असंतोष का कोई विशेष कारण दिया जा सकता है अथवा नहीं भी दिया जा सकता, जिससे इसके दायित्व के निर्धारण का भार उस पर नहीं आता। उदाहरणार्थ, श्रमिक अपने निरीक्षक या कारखाना प्रवन्धक से छोटे-मोटे औजारों की कमी की शिकायत करता है। परिवेदना वह शिकायत है जिसको उपेक्षित अथवा कुचल दिया गया है अथवा कर्मचारी की राय में, बिना विचार किए हुए रद्द कर दिया गया है।”
इस प्रकार, असंतोष अनुभूति की अवस्था है, शिकायत उसकी अभिव्यक्ति की अवस्था है और परिवेदना के अन्तर्गत इनके अतिरक्त श्रमिक द्वारा महसूस की जाने वाली अन्याय की भावना भी जुड़ी होती है। मिचैल जुसियस परिवेदना का व्यापक अर्थ लेते हुए लिखते हैं, “परिवेदना कोई भी प्रकट अथवा अप्रकट और उचित अथवा अनुचित असंतुष्टि अथवा असंतोष, जो कि कम्पनी से सम्बन्धित किसी ऐसी चीज से, जिसे कर्मचारी अनुचित, अन्यायपूर्ण या असमान समझता, विश्वास करता या अनुभव करता है, उत्पन्न हुआ है। एक शिकायत परिवेदना तब बन जाती है जब कर्मचारी को यह महसूस होता है कि उसके साथ अन्याय हुआ है। अगर एक निरीक्षक किसी कर्मचारी की शिकायत को उपेक्षित या पददलित कर देता है और वह असंतोष कर्मचारी से पनपता रहता है, तोयह स्थिति प्रायः परिवेदना का रूप धारण कर लेती है। एडविन फिलिप्पों के शब्दों में परिवेदना शिकायत की अपेक्षा अधिक औपचारिक होती है।”
प्रबन्धकों को सभी प्रकार के असंतोषों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए चाहे वे मौन असंतोष हों अथवा शिकायत के रूपम व्यक्त किए गए हों अथवा परिवेदनाएं हों। सच तो यह है कि व्यक्त शिकायतों की अपेक्षा अन्तरंग में व्याप्त अकथित असंतोष संगठन एवं कर्मचारी दोनों के लिए उस भयंकर छिपी हुई आग की भांति है जो समय पाकर बड़ी विध्वंसकारी और घातक सिद्ध हो सकती है। किन्तु अप्रकट असंतोषों कों प्रबन्धक कैसे जानें, यह एक व्यवहारिक कठिनाई है क्योंकि बिना जाने उनका निराकरण ही सम्भव नहीं है। शिकायतों के प्रति प्रबन्धकों का दृष्टिकोण बहुत संतुलित होना चाहिए। शिकायतें कमियों को जानने का एक महत्वपूर्ण स्रोत होती हैं। कुछ शिकायतें ऐसी होती हैं, जो भौतिक व्यवस्था से सम्बन्धित होती हैं और जिनका भौतिक सत्यापन सम्भव होता है, जैसे मशीन खराब पड़ी है या पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। कुछ शिकायतें व्यक्तिगत दृष्टिकोण से अपने हित या अनुभव के आधार पर की जाती हैं, अतः व्यक्तिपरक होती हैं, जैसे निरीक्षक अच्छा है या बुरा है, यह दो कर्मचारियों का व्यक्तिपरक मूल्यांकन होगा, क्योंकि जिनकी उसने पदोन्नति कर दी है वह प्रशंसा करेगा और जिसकी नहीं हो सकी है, वह बुराई करेगा। ऐसी स्थिति में, सत्यापन कठिन कार्य होगा क्योंकि इसके लिए शिकायत करने वाले की पृष्ठभूमि, दृष्टिकोण तथा स्वार्थों को समझना आवश्यक होगा। तथा कुछ शिकायतें वस्तुपरक होती हैं, जिन्हें पूर्व निश्चित मापदण्डों पर नापा जा सकता है और जिसका सत्यापन सम्भव है। जैसे कर्मचारी “अ” को पदोन्नति दी गई है, जो “ब” से सेवा में कम है, जबकि पदोन्नति का आधार “वरिष्ठता” है। सभी प्रकार की शिकायतों पर प्रबन्धकों को ध्यान देना चाहिए और उनसे महत्वपूर्ण असंतोष के कारणों का पता लगाना चाहिए।