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परिवेदना निवारण पद्धति के महत्व | Importance of grievance redressal system in Hindi

परिवेदना निवारण पद्धति के महत्व | Importance of grievance redressal system in Hindi
परिवेदना निवारण पद्धति के महत्व | Importance of grievance redressal system in Hindi

परिवेदना निवारण पद्धति के महत्व को स्पष्ट कीजिए।

परिवेदना-निवारण-पद्धति (Grievance-Procedure)

महत्व – एक सुसंगठित परिवेदना निवारण पद्धति का एक प्रतिष्ठान में विशेष महत्व होता है। बड़ी-बड़ी और सामान्य प्रकृति की समस्याओं के समाधान हेतु प्रबन्धक सामूहिक सौदेकारी, मध्यस्थता अथवा पंच निर्णय जैसी औद्योगिक संघर्षों को निपटाने की विधियों का सहारा ले सकते हैं। और जिनकी पूर्ण विवेचना एक अन्य पाठ में की गई है। किन्तु दैनिक एवं व्यक्तिगत कर्मचारी शिकायतों को सुनने एवं असंतोषों को दूर करने के लिए, प्रबन्धकों को एक सुसंगठित “परिवेदना- निवारण-पद्धति’ की स्थापना कर देनी चाहिए। इस पद्धति की स्थापना के अधोलिखित प्रभाव होते हैं:

(1) मनोवैज्ञानिक- केवल यह तथ्य कि परिवेदना-निवारण पद्धति संगठन में विद्यमान है और कर्मचारी उसके माध्यम से अपनी परिवेदनाओं एवं असंतोषों को प्रबन्धकों तक पहुंचा सकते हैं, ही एक संतोषजनक बात है, चाहे उस पद्धति को प्रयोग करने का अवसर एक कर्मचारी को कभी न पड़े। इसका एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है तथा कर्मचारियों को सुरक्षा का अनुभव होता है।

(2) निवारणात्मक- इसके द्वारा कर्मचारियों में व्याप्त असंतुष्टियों एवं असंतोषों का निवारण किया जा सकता है, जिससे उनके मनोबल, उत्पादकत्ता एवं सहयोग की भावना पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार कर्मचारी असंतोषों के समाधान का यह अच्छा उपाय है।

(3) निरोधात्मक- इससे प्रबन्धकों की मनमानी एवं एवं एकपक्षीय कार्यवाहियों पर रोक लग जाती है। जब निरीक्षकों को यह ज्ञात होता है कि कर्मचारी को उच्च प्रबन्धकों से शिकायत करने या परिवेदना व्यक्त करने का अधिकार है, तो वे अपने अधिकारों का प्रयोग सतर्कता एवं न्याय के साथ करते हैं, अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हैं, तथा उनमें भ्रष्टाचार, आलस्य एवं मनमाने ढंग से कार्य करने की प्रवृत्ति को बल नहीं मिल पाता। किसी अधिकार या शक्ति के प्रयोग करने के पूर्व वे उचित सावधानी एवं बुद्धि का प्रयोग करते हैं, जिससे बाद में उन्हें कोई परेशानी न हो। इससे निरीक्षकों एवं अधीनस्थ अधिकारियों के आचरण एवं मनोवृत्ति में बहुत सुधार होता है और वे कर्मचारी से न्यायोचित ढंग से बात करते हैं। इससे पूर्व कि कर्मचारी का असंतोष उसकी शिकायत में परिवर्तित हो, निरीक्षक उसके असंतोष को दूर करने का भरसक प्रयत्न करते हैं। अतः इस पद्धति का निरोधात्मक प्रभाव भी होता है।

(4) निदानात्मक – इसमें प्रबन्धकों को असंतोष के महत्वपूर्ण कारणों के सुराग मिल मिल जाते हैं। शिकायतों की संख्या एवं प्रकृति, वे कब, कहां से, किसके द्वारा एवं किसके विरुद्ध की गई, उनके कारण एवं मनतव्य, आदि अनेकों तथ्यों का पता उच्च प्रबन्धकों को इस पद्धति के माध्यम से हो जाता है। इससे प्रबन्धक इसकी सही जानकारी करने में सफल हो जाते हैं कि कर्मचारी असंतोषों की प्रकृति, गहनता एवं कारण क्या हैं, कौन से विभाग, अधिकारी या कर्मचारी उससे सम्बद्ध हैं और परेशानी का सही स्वभाव क्या है। यह सूचना प्रबन्धकों के ज्ञान के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होती है तथा इसके आधार पर वे असंतोषों को दूर करने के लिए समुचित सुधारात्मक कार्यवाहियां कर सकते हैं। अतः परिवेदना-निवारण-पद्धति मनोवैज्ञानिक, निदानात्मक, निवारणात्मक एवं निरोधात्मक, सभी दृष्टियों से उपयोगी सिद्ध होती है।

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