मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Premchand ka Jivan Parichay)
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय- महान उपन्यासकारों में मुंशी प्रेमचंद का नाम सारे संसार में बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है। इनकी आंतरिक दृष्टि गजब की चामत्कारिक थी। इंसान के मनोभावों को समझकर उन्हें अनुपम दक्षता के साथ कलमबद्ध करके ये हैरान कर देते थे। इनके उपन्यास व कहानियां इतनी सरल भाषा में लिखी गई हैं कि कोई भी व्यक्ति जिसे अक्षर ज्ञान हो, सहजता से पढ़ सकता है। आज इनके उपन्यास व कहानियां देश-विदेश के पाठ्यक्रमों में शामिल की जाती हैं। इन्होंने साबित किया कि कथ्य में सरलता हो तो आपका लेखन सर्वग्राह्यता प्राप्त करता है।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय का संक्षिप्त विवरण
मुंशी प्रेमचंद्र कहानीकार व उपन्यासकार सम्राट |
|
वास्तविक नाम |
धनपत राय श्रीवास्तव |
प्रसिद्ध नाम |
• मुंशी प्रेमचंद • कलम के सिपाही • नवाब राय (उर्दू रचनाओं में नाम) |
जन्म-तिथि |
31 जुलाई 1880 |
जन्म-स्थान |
ग्राम लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
पिता |
मुंशी अजायबराय |
माता |
आनंदी देवी |
व्यवसाय |
• अध्यापक • लेखक • पत्रकार |
पत्नी |
शिवारानी देवी |
बच्चे |
• अमृतराय (पुत्र) • श्रीपद राय (पुत्र) • कमला देवी (पुत्री) |
कर्म-भूमि |
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश |
प्रमुख रचनाएं |
उपन्यास: रंगभूमि(1925) कर्मभूमि(1932) गोदान (1936) निर्मला (1927) कायाकल्प (1926) गबन (1931) सेवा सदन (1918) प्रेमाश्रम (1921) कहानी: सोजे वतन, प्रेमपूर्णिमा, कफन, पंच परमेश्वर, गुल्ली डंडा, दो बैलों की कथा, ईदगाह, पूस की रात, मंत्र नाटक: संग्राम, कर्बला, प्रेम की वेदी |
विधा |
• कहानी • उपन्यास • नाटक • निबंध |
भाषा |
उर्दू हिंदी |
शैली |
व्यंग्यात्मक, भावात्मक, वर्णनात्मक तथा विवेचनात्मक |
मर्मस्पर्शी कहानी |
मंत्र |
साहित्यिक आंदोलन |
आदर्शोंन्मुख यथार्थवाद |
साहित्य में स्थान |
आधुनिक काल के सर्वश्रेष्ठ व सर्वोच्च कहानीकार एवं उपन्यासकार |
मृत्यु तिथि |
8 अक्टूबर 1936 |
मृत्यु स्थान |
वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
प्रेमचंद जी का जन्म बनारस के समीप पांडेपुर के लमही ग्राम में 31 जुलाई, 1880 को हुआ। इनका नाम ‘धनपतराय’ रखा गया। आठ वर्ष की उम्र में माता का निधन हो गया। पिता मुंशी अजायब लाल ने पुत्र को दादी के पास छोड़कर पुनर्विवाह कर लिया। इस कारण बालक माता-पिता के स्नेह व सुरक्षा की छांव को न पा सका व अंतर्मुखी स्वभाव के साथ बाल्यकाल में ही विभिन्न जिम्मेदारियों को संभालने लगा। दादी के न रहने पर ये तन्हा हो गए। देख-रेख करने वाला कोई नहीं रह गया था ।
15 वर्ष की उम्र में इनकी शादी हुई, लेकिन यह नाकाम रही। लिखने-पढ़ने के शौकीन एवं लेखक पति से नवब्याहता का सामंजस्य ही नहीं बैठा। उसने प्रेमचंद जी को वांछित सहयोग नहीं दिया। इस कारण अध्यापक की नौकरी करने लगे, वहीं से ये स्कूल के डिप्टी इंस्पेक्टर के ओहदे तक भी पहुंचे। कहते हैं कि ये बुद्धिलाल नाम के एक पुस्तक विक्रेता के पास भी काम करते थे। इस कारण बाल्यकाल में ही इनका रिश्ता पुस्तकों से जुड़ गया। इन्हें हिंदी, उर्दू, फारसी व अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान हो गया। 16वें वर्ष से ही इन्होंने घरेलू जिम्मेदारियां निभाई थीं। आरंभ में इन्होंने बच्चों को पढ़ाकर भी आजीविका कमाई थी। इंटरमीडिएट के बाद ये सरकारी अध्यापक बने व पढ़ाते हुए ही इन्होंने बी.ए. भी किया। इस दौरान लेखन भी करने लगे थे। पहली लघुकथा ‘जमाना’ नाम की पत्रिका में प्रकाशित हुई। इन्होंने बाल विधवा शिवरानी देवी से 1905 में विवाह किया। इनका प्रथम कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर लिया और उसकी तमाम प्रतियां जला दी गईं। यही कारण है कि 1910 में इन्होंने छद्म नाम ‘प्रेमचंद’ से लिखना आरंभ किया। फिर प्रेमचंद नाम ही लेखन के माध्यम से दुनिया के सामने आया और जन्म का नाम अप्रासंगिक हो गया।
1921 में इन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर नौकरी त्याग दी। इन्होंने देशभक्ति व राष्ट्रप्रेम से जुड़े कार्यों का निर्वहन किया, लेकिन ये राजनीतिज्ञ नहीं थे, मूलतः ये लेखक ही थे। इस कारण मूल स्वभाव व प्रवृत्ति को छोड़ना सहज नहीं था। राष्ट्रप्रेम व देशभक्ति का जज्बा इनके लेखन में उतर आया। इन्हें ‘मर्यादा’ पत्र का संपादन करते हुए जेल भी जाना पड़ा। रिहा होने के पश्चात् प्रेमचंद जी ने काशी विद्यापीठ नामक विद्यालय में प्राचार्य का पदभार भी ग्रहण किया। अपने कार्य के संबंध में इन्हें कई स्थानों पर जाते रहना पड़ता था । यही कारण था कि इन्होंने भारत की आत्मा का न केवल दर्शन ही किया, बल्कि उसे अपने लेखन में भी उतार लिया था। भारतीय कृषक पर इन्होंने, जो सशक्त लेखन किया है, वह अन्य किसी भी लेखक द्वारा नहीं किया जा सका है। मध्यमवर्गीय जीवन की आर्थिक दुश्वारियों के चलते रिश्तों के दरकने की, जो कहानियां इन्होंने लिखी हैं, वे मानवीय मनोविज्ञान के प्रति इनकी गहरी समझ को बयान करती हैं।
ऐसे महान लेखक मुंशी प्रेमचंद से जब एक बार स्वयं के बारे में कुछ लिखने का आग्रह किया गया तो इन्होंने बेहद विनम्र दीनता के साथ कहा था, ‘मुझमें ऐसा क्या बड़ापन है कि मैं उसका बखान दूसरों के सम्मुख कर सकूं। मैं भी इस देश के अन्य करोड़ों भारतवासियों की भांति ही जीवन गुजार रहा हूं, मैं एक सामान्य इंसान हूं। मेरी जिंदगी भी बेहद साधारण ही है। मैं एक गरीब स्कूल अध्यापक हूं, जो अपने परिवार के दुखों से आक्रांत रहता है। अपनी पूरी जिंदगी में मैं इस आशा में पिलता रहा हूं कि कभी तो मुझे पारिवारिक तकलीफों से मुक्ति मिल सकेगी, लेकिन मैं उन जिम्मेदारियों से कभी भी मुक्त नहीं हो सकूंगा। मेरी इस जिंदगी में ऐसा क्या अनोखापन हैं, जो किसी को कहा या बताया जाए।’
जाहिर है कि इनके भीतर की यह पीड़ा ही इनकी अद्भुत लेखनी की धार बनकर सामने आई थी। इनके लेखक की प्रासंगिकता आज भी कायम है। शोषण के क्षेत्र चाहे बदल गए हों, लेकिन शोषण की मानसिकता का नजरिया नहीं बदला है और शोषक को आजाद भारत में सरकारी संरक्षण अंग्रेजी राज की तुलना में ज्यादा ही प्राप्त हो रहा है।
इस महान लेखक की लेखनी के चमत्कार को विश्व की अनेकानेक भाषाओं में सुलभ कराया गया है। इन्होंने अपना जीवन लेखक, समाज सुधारक, संपादक व राष्ट्रभक्त के विभिन्न रूपों में गुजारा। इनकी 300 कहानियों के आरंभ में 17 संग्रह प्रकाशित हुए, जो बाद में मानसरोवर के विभिन्न खंडों में प्रकाशित किए गए। उपन्यासों के रूप में ‘सेवासदन’, ‘गबन’, ‘कायाकल्प’, ‘कर्मभूमि’ व ‘गोदान’ इनकी उत्कृष्टता को बयान करते हैं। इन्होंने अनुवाद कार्य भी बेहद दक्षता से किया था।
इस महानात्मा का स्वर्गारोहण 8 अक्टूबर, 1936 को वाराणसी में हुआ। केवल 56 वर्ष की उम्र में इनका महाप्रयाण हुआ, लेकिन लेखन के, जो बीज इन्होंने बोए थे, वे इनकी समृद्धि को सदैव हरीतिमा प्रदान करते रहेंगे।
पुरस्कार और सम्मान (Puraskar aur Samman) –
1. प्रेमचंद के याद में भारतीय डाक तार विभाग द्वारा 30 पैसे मूल्य का डाक टिकट जारी किया गया।
2. गोरखपुर के जिस स्कूल में वे पढ़ाते थे वहीं पर प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई।
3. प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी ने प्रेमचंद घर के नाम से उनकी जीवनी लिखी।
उपन्यास (Upnyas) –
1. सेवासदन
2. प्रेमाश्रम
3. रंगभूमि
4. निर्मला
5.कायाकल्प
6. गबन
7. कर्मभूमि
8. गोदान
9. मंगलसूत्र।
कहानियां (Kahaniyan) –
मुंशी प्रेमचंद द्वारा 118 कहानियों की रचना की गई जिनमें से प्रमुख इस प्रकार है –
1. दो बैलों की कथा
2. आत्माराम
3. आखिरी मंजिल
4. आखरी तोहफा
5. इज्जत का खून
6. ईदगाह
7.इस्तीफा
8. क्रिकेट मैच
9. कर्मों का फल
10. दूसरी शादी
11. दिल की रानी
12. नाग पूजा
13. निर्वाचन
14. पंच परमेश्वर आदि।
Frequently asked questions (सामान्यत: पूछे जाने वाले प्रश्न) –
1. मुंशी प्रेमचंद्र ने जैनेंद्र को भारत को क्या कहकर महिमामंडित किया है?
मुंशी प्रेमचंद ने जैनेंद्र को भारत का गोर्की कहकर महिमामंडित किया है।
2. गोदान उपन्यास के लेखक का नाम क्या है?
गोदान उपन्यास के लेखक का नाम मुंशी प्रेमचंद है।
3. प्रेमचंद की आखिरी कहानी कौन सी है?
प्रेमचंद की अंतिम प्रकाशित कहानी क्रिकेट मैच थी, जो उनकी मृत्यु के बाद 1938 में जमाना में छपी थी।
4. प्रेमचंद जी की जयंती कब मनाई जाती है?
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गांव में हुआ था। आज उनकी 140 वी जयंती मनाई जा रही है।
5. मुंशी प्रेमचंद जी ने कितनी कहानियां लिखी?
मुंशी प्रेमचंद जी ने 300 से ऊपर कहानियां लिखी थी।
6. प्रेमचंद नाम किसने दिया?
ऐसा ही एक काम सोज ए वतन 1960 में प्रकाशित हुआ। जिस पर ब्रिटिश शासकों ने प्रतिबंध लगा दिया। जिसमें उन्हें अपना कलम नाम बदलकर प्रेमचंद करने के लिए प्रेरित किया।
7. मुंशी प्रेमचंद को कलम का सिपाही क्यों कहा जाता है?
कलम का सिपाही हिंदी के प्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेमचंद को कहा जाता है। मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उनकी कलम यानी उनके लेखन का मुकाबला आज के बड़े-बड़े लेखक भी नहीं कर पाते हैं इसलिए मुंशी प्रेमचंद्र को कलम का सिपाही कहा जाता है।
8. प्रेमचंद की पहली कहानी का नाम क्या है?
प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी जमाना पत्रिका के दिसंबर माह में प्रकाशित हुई।
9. हिंदी की प्रथम कहानी कौन सी है?
किशोरी लाल गोस्वामी द्वारा कृत इंदुमती को मुख्यत: हिंदी की प्रथम कहानी का दर्जा प्रदान किया जाता है देवरानी जेठानी की कहानी।
10. मुंशी प्रेमचंद की भाषा शैली कैसी थी?
मुंशी प्रेमचंद की भाषा सहज, स्वाभाविक, व्यवहारिक एवं प्रभावशाली है। उर्दू से हिंदी में आने के कारण उनकी भाषा में तत्सम शब्दों की बहुलता मिलती है। उनकी रचनाओं में लोकोक्तियां, मुहावरे एवं सुक्तियों के प्रयोग की प्रचुरता मिलती है।
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