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कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन / अधिगम- अर्थ व परिभाषाएँ, विशेषताएँ, प्रकार, विधियाँ, उपयोग, सीमाएँ

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन
कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन

अनुक्रम (Contents)

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन / अधिगम (COMPUTER ASSISTED INSTRUCTION/ LEARNING)

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन / अधिगम- विज्ञान और तकनीकी के इस युग में कम्प्यूटर का विशेष स्थान है। आज कम्प्यूटर हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। कम्प्यूटर के उपयोग से हमारे जीवन का कोई भी कार्य अछूता नहीं है। शिक्षा के क्षेत्र में भी इसका प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। छात्रों को कम्प्यूटर के द्वारा अधिक से अधिक सूचनाओं व तथ्यों का बोध कराया जा सकता है। सन् 1986 में नई शिक्षा नीति के लागू किए जाने के बाद हमारे देश में शिक्षण अधिगम क्रियाओं के संचालन में कम्प्यूटर के प्रयोग का चलन विधिवत् प्रारम्भ हो चुका है। कम्प्यूटर सह अधिगम के अन्तर्गत कम्प्यूटर का प्रयोग सहायक सामग्री या छात्रों की शिक्षा एवं प्रशिक्षण का समर्थन करने के लिए किया जाता है। कम्प्यूटर सह अधिगम के द्वारा छात्रों का कभी भी कहीं भी परीक्षण लिया जा सकता है, विभिन्न क्षमता वाले बालकों को उनके अनुसार अधिगम प्रदान किया जा सकता है और उनकी प्रगति का रिकार्ड भी रखा जा सकता है।

कम्प्यूटर सह अधिगम, कम्प्यूटर के अनुप्रयोगों का वर्णन करने वाले विभिन्न शब्दों में से एक है। इसके लिए अन्य शब्द कम्प्यूटर एडेड या सह अनुदेशन (Computer Aided or Assisted Instruction), कम्प्यूटर आधारित अधिगम (Computer Based Learning) या कम्प्यूटर प्रबन्धित अनुदेशन (Computer Managed Instruction) का भी प्रयोग किया जाता है। कम्प्यूटर की सहायता से चलने वाले इस शिक्षण अधिगम या अनुदेशन को ही कम्प्यूटर सहायक या कम्प्यूटर निर्देशित अनुदेशन (Computer Assisted or Directed Instruction) का नाम दिया जाता है।

शिक्षा में कम्प्यूटर तीन रूप से प्रयोग व उपयोग में लाया जाता है-

(1) शोध उपकरण के रूप में (In the Form of Research Apparatus)

(2) प्रबन्ध उपकरण के रूप में (In the Form of Administration Tool)

(3) शिक्षण अधिगम मशीन के रूप में (In the Form of Teaching Learning Machine)

शिक्षण या अनुदेशन एवं अधिगम एक सिक्के के दो पहलू होते हैं क्योंकि एक के बिना दूसरे का कोई अर्थ नहीं है। वर्तमान में सभी विद्यालयों द्वारा प्रत्येक स्तर पर कम्प्यूटर सह अनुदेशन एवं अधिगम को बढ़ावा दिया जा रहा है क्योंकि कम्प्यूटर के माध्यम से शिक्षण एवं अधिगम सरल हो जाता है।

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन / अधिगम का अर्थ व परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Computer Assisted Instruction/Learning)

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन जैसा कि इसके नाम से पता चल रहा है कि यह एक ऐसे अनुदेशन की ओर इशारा करता है जिसे कम्प्यूटर की सहायता से पूर्ण किया जाता है। अनुदेशन प्रक्रिया को स्व-अनुदेशित तथा व्यक्तिगत (Self-directed and Individualised) बनाने में इस प्रकार के अनुदेशन को शिक्षण मशीन द्वारा संचालित अनुदेशन से एक कदम आगे तथा अभिक्रमित पाठ्य-पुस्तकों (Programmed Text Books) द्वारा दिए गए अनुदेशन से दो कदम आगे का नवाचार (Innovation) माना जा सकता है। कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन को कम्प्यूटर सह अनुदेशन भी कहा जाता है। इसका विकास सर्वप्रथम सन् 1961 में अमेरिका के (इल्नियोस विश्वविद्यालय) में हुआ था। [(स्टोलूरो, लारेन्स एम.) (Stouloro, Lorence M )] आदि विद्वानों ने स्वचालित शिक्षण प्रविधि के लिए अभिक्रम तर्क (Programmed Logic for Automatic Teaching Operation) का निर्माण किया। कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन में रोचक मोड़ सन् 1966 में आया जब [ (स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय अमेरिका के पैट्रिक स्पेस) (Petric Space)] ने प्राथमिक विद्यालय के बालकों के लिए अंकगणित और ट्यूटोरियल प्रोग्राम कम्प्यूटर पर तैयार किया।

शर्मा एवं भट्ट के अनुसार, “कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन की शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में विद्यार्थी एवं कम्प्यूटर नियन्त्रित प्रस्तुतिकरण तथा अनुक्रिया रिकॉर्डिंग उपकरण के मध्य चलने वाली अन्तःक्रिया के रूप में समझा जा सकता है।”

According to Bhatt and Sharma, “Computer Assisted Instruction is defined as an interaction between a student, a computer controlled display and a response entry device for the purpose of achieving educational outcomes.”

हिलगार्ड एवं ब्राउर के अनुसार, कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन का क्षेत्र अब इतना व्यापक हो गया है कि अब इसे मात्र शिक्षण मशीन या अभिक्रमित अनुदेशन के अनुप्रयोगों के रूप में नहीं समझा जा सकता।”

According to Hilgard and Brower, “Computer Assisted Instruction has now taken as so many dimension that it can no longer be considered as a simple derivative of the teaching machine or programmed learning.”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन आधुनिकतम नवाचार है जो शिक्षण मशीन द्वारा प्रस्तुत अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री आयाम और अनुदेशन तकनीकों में अधिक व्यापक है। यह भी कहा जा सकता है कि सी. ए. आई. (CAI) एक ऐसा अनुदेशन है जिसे कम्प्यूटर की सहायता से अभिक्रमित अधिगम सामग्री के प्रस्तुतिकरण के लिए प्रयोग में लाया जाता है।

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन / अधिगम की विशेषताएँ (Characteristics of Computer Assisted Instruction/Learning)

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

(1) कम्प्यूटर से विद्यार्थियों के समय की बचत होती है और व्यक्तिगत रूप से भी अनुदेशन सामग्री को प्रस्तुत किया जा सकता है।

(2) कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन में किसी विद्यार्थी व कम्प्यूटर के बीच ठीक वही अन्तःक्रिया होती है जैसी कि एक ट्यूटोरियल प्रणाली (Tutorial System) में शिक्षक और विद्यार्थी के बीच चलती है।

(3) कम्प्यूटर और विद्यार्थी के बीच अन्तःक्रिया निर्धारित अनुदेशन उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करते हैं।

(4) कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन से विद्यार्थी अपनी गति के अनुसार आगे बढ़ता है।

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन / अधिगम की मूल मान्यताएँ (Basic Assumptions of Computer Assisted Instruction/Learning)

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन की निम्नलिखित मान्यताएँ हैं-

(1) एक ही समय में अनेक विद्यार्थियों को एक साथ अनुदेशन प्रदान करना (Instruction Provided to a Number of Learners at a Time)- कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन एक ही समय में अनेक विद्यार्थियों को एक साथ व्यक्तिगत रूप से अनुदेशन प्रदान करने की क्षमता रखता है। विद्यार्थी अपनी रुचि के अनुसार किसी भी विशेष प्रकरण की जानकारी कम्प्यूटर के माध्यम से प्राप्त कर सकता है। विद्यार्थी कम्प्यूटर की सहायता से सर्वोत्तम स्तर की अभिक्रमित अधिगम सामग्री, व्यक्तिगत रूप से प्राप्त कर सकता है।

(2) विधियों एवं तकनीकी के प्रयोग में विविधता (Variety in the Uses of Methods and Techniques) – कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन में विद्यार्थी विभिन्न प्रकार की विधियों व तकनीकियों के माध्यम से सभी विषय तथा प्रकरणों का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरणार्थ- जब शिक्षक अपनी कक्षा में किसी प्रकरण को स्पष्ट करता है, इसके पश्चात् वह कम्प्यूटर अनुदेशन के द्वारा छात्रों को वह प्रकरण अधिक स्पष्ट करा सकता है। शिक्षक छात्रों का मूल्यांकन करने के लिए ऑनलाइन परीक्षा (Test) भी ले सकता है और वह शिक्षक छात्रों को किसी प्रकरण पर पॉवर प्वाइन्ट प्रजेन्टेशन बनवा सकता है।

अतः यह कहा जा सकता है कि कम्प्यूटर अनुदेशन में विद्यार्थी विभिन्न प्रकार की तकनीकी व विधियों का प्रयोग करता है और विद्यार्थी अपने व्यक्तिगत तथा अनुदेशन सामग्री के अनुरूप अपने-अपने मानसिक स्तर व रुचि के अनुसार किसी एक विधि या तकनीक का चयन करके अधिगम कर सकता है। 

(3) विद्यार्थियों की निष्पत्ति की स्वतः ही रिकॉर्डिंग होते रहना (Automatic Recording of the Learners’s Performance)- कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन की अगली मूल मान्यता है कि रिकॉर्डिंग के द्वारा स्वतः ही विद्यार्थियों की निष्पत्ति का मूल्यांकन होता रहता है।

उदाहरण स्वरूप- शिक्षक कोई ब्लॉग बनाकर छात्रों को कोई भी प्रकरण समझा सकता है फिर उसी प्रकरण की प्रश्नोत्तरी (Quiz) बनाकर ब्लॉग से जोड़ दिया जाएगा और छात्र उसी (Quiz) को करके स्वतः अपना मूल्यांकन कर सकते हैं और अधिगम पथ पर आगे बढ़ सकते हैं। इसी प्रकार शिक्षक अभ्यास के दौरान भी सी.ए. आई. (CAI) के द्वारा छात्रों की स्वतः रिकॉर्डिंग की जा सकती है और इस प्रकार की रिकॉर्डिंग से विद्यार्थी को स्व-अनुदेशन हेतु आगे क्या सुधार करना चाहिए इसमें लगातार सहायता मिलती है।

(4) व्यक्तिगत अनुदेशन तकनीक (Individual Instructional Technology)- कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन की मूल मान्यता है कि यह व्यक्तिगत तकनीकी है कम्प्यूटर अनुदेशन से विद्यार्थी अपनी रुचि व मानसिक स्तर के अनुसार आगे बढ़ता है और विद्यार्थी को अपनी क्षमता का भी साथ-साथ ज्ञान होता रहता है। इसको इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि मान लीजिए कि किसी विद्यार्थी को किसी शिक्षक का प्रकरण (Topic ) समझ नहीं आया ऐसी स्थिति में विद्यार्थी उस (Topic) की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग सुनकर व देखकर व्यक्तिगत रूप से इसका लाभ उठा सकता है।

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन / अधिगम के विभिन्न प्रकार या रूप (Types or Modes of Computer Assisted Instruction /Learning) 

विद्यार्थियों के समक्ष जिस प्रकार की परिस्थितियाँ होती हैं या फिर जो उनका उद्देश्य होता है तथा विद्यार्थी को जिस प्रकार के अनुदेशन की आवश्यकता होती है, इन सभी को ध्यान में रखते हुए हमें कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन के विभिन्न रूप या प्रकार देखने को मिलते हैं। इनमें से कुछ प्रकार या रूप इस प्रकार हैं-

(1) सूचनात्मक कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन (Informational Computer Assisted Instruction)- सूचनात्मक कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन जिसे पूछताछ अनुदेशन (Enquiry Instruction) भी कहा जाता है। यह विद्यार्थियों को वांछित सूचनाएँ प्रदान करने में सहायता करता है, विद्यार्थी को आत्मनिर्भर बनाने एवं स्वाअध्ययन के नए-नए रास्ते खोजने में भी सहायता करता है। इस प्रकार के अनुदेशन में जब विद्यार्थी अपने प्रकरण से सम्बन्धित कुछ भी पूछता है तब वह अपनी संग्रहित सामग्री की सहायता से विद्यार्थी को तुरन्त सूचना प्रदान करता है। इस प्रकार विद्यार्थी में खोजपूर्ण दृष्टिकोण का भी विकास होता है और वह स्वयं नए-नए रास्ते खोजना प्रारम्भ करता है।

(2) ड्रिल तथा अभ्यास कार्यक्रमों से सम्बन्धित अनुदेशन (Instruction related with Drill and Practice Programmes) – जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है- अभ्यास कराना। विद्यार्थियों में अभ्यास कार्यक्रमों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के कौशलों का विकास करने के लिए इस अनुदेशन का महत्वपूर्ण योगदान है। विद्यार्थियों के व्यवहार में स्थायित्व (Stability) लाने एवं अनुभवों को स्थायित्व प्रदान करने के लिए ड्रिल तथा अभ्यास कार्यक्रमों सम्बन्धी अवसर प्रदान किए जाते हैं।

उदाहरण के लिए यदि विद्यार्थी में अंग्रेजी भाषा योग्यता (English Language Skill) का अभ्यास कराना है ऐसे में विद्यार्थी को किसी विशेष प्रकरण पर जैसे- दीवाली या राष्ट्रीय पर्व (eg, Diwali or National Festival) पर अपने विचारों को की-बोर्ड (Keyboard) की सहायता से टंकित (Type) करने को कहा जाएगा। ऐसी स्थिति में यदि विद्यार्थी से किसी शब्द की वर्तनी (Spelling) गलत टाइप हो जाती है। तब तुरन्त विद्यार्थी को अनुदेशन प्राप्त होगा कि वर्तनी (Spelling) गलत (Wrong) है और साथ ही साथ सही वर्तनी (Spelling) का भी पता चल जाएगा।

कम्प्यूटर की स्मरण शक्ति काफी तीव्र होती है इसीलिए कभी भी किसी समस्या की पुनरावृत्ति नहीं होती । इसी कारण सी.ए.आई. (C.AI.) को ड्रिल तथा अभ्यास कार्य हेतु अक्सर प्रयोग किया जाता है।

(3) शैक्षिक खेल के रूप में उपलब्ध अनुदेशन (Educational Games Type Instruction) – इस प्रकार के अनुदेशन में विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार के सुनियोजित कम्प्यूटर गेम्स खेलने का अवसर प्रदान किया जाता है।

इस प्रकार के गेम्स में ऐसा आवश्यक नहीं है कि किसी शैक्षिक उद्देश्य की प्राप्ति ही हो, यह सामान्य जानकारी से सम्बन्धित भी हो सकते हैं जिनका उद्देश्य विद्यार्थियों में पर्यावरण तथा अध्ययन क्षेत्रों के प्रति जिज्ञासा के भाव उत्पन्न करना होता है तथा जानने समझने हेतु बौद्धिक चुनौतियों को उनके सामने रखना होता है ताकि विद्यार्थियों में शिक्षण-अधिगम के प्रति स्वाभाविक रुचि विकसित हो सके। इस प्रकार के गेम्स से शिक्षण अधिगम सहज भी हो जाता है तथा यह विधि छोटे बच्चों के लिए अधिक महत्वपूर्ण एवं उपयुक्त है।

(4) ट्यूटोरियल प्रकार का कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन (Tutorial Type Computer Assisted Instruction)- इस प्रकार के अनुदेशन में कम्प्यूटर स्वयं ट्यूटर्स की भूमिका निभाते हैं। ट्यूटर्स की तरह ही वे विद्यार्थियों से व्यक्तिगत रूप से अन्तःक्रिया करते हुए शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति में योगदान देते हैं। आज विभिन्न विषयों से सम्बन्धित इकाइयों तथा प्रकरणों (Units and Topics) पर ट्यूटोरियल प्रणाली पर आधारित पर्याप्त सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं। इन प्रोग्रामों के द्वारा सर्वप्रथम विद्यालय पाठ्यक्रम से सम्बन्धित प्रकरणों जैसे- सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, माँग का नियम, माँग व पूर्ति का नियम, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, दोहरा लेखा प्रणाली को प्रस्तुत किया जाता है फिर पढ़ाए गए पाठ की पुनरावृत्ति व अभ्यास कार्य कराया जाता है। पढ़ाए गए पाठ को विद्यार्थियों ने कितना ग्रहण किया इसका मूल्यांकन कर उनकी कठिनाइयों का निवारण किया जाता है और विद्यार्थियों को उनकी गति के अनुसार शिक्षण पथ पर आगे बढ़ने के लिए भी प्रेरित किया जाता है। जब विद्यार्थी एक इकाई (Unit) पर पूर्ण योग्यता (Mastry) प्राप्त कर लेता है तब उसे दूसरी इकाई पर ले जाया जाता है परन्तु यदि विद्यार्थी पूर्ण योग्यता प्राप्त नहीं कर पाता तब ऐसी स्थिति में उपचारात्मक अनुदेशन (Remedial Instruction) भी प्रदान किया जाता है।

(5) अनुरूपित प्रकार का अनुदेशन (Simulation Type Instruction) – इस प्रकार के कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन में विद्यार्थियों को वांछित प्रशिक्षण का अवसर प्रदान करने के लिए अनुरूपण प्रविधि (Simulation Device) की सहायता ली जाती है। सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों की सहायता से विद्यार्थियों को समस्याओं से जूझने के लिए वास्तविक (Real) और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ प्रदान की जाती है। ये परिस्थितियाँ ठीक उसी प्रकार निर्मित की जाती हैं जिस प्रकार शिक्षक प्रशिक्षण के समय छात्राध्यापकों को वास्तविक कक्षा में भेजने से पहले उसके सहपाठियों के समक्ष अनुकरणीय शिक्षण, (Simulation Teaching) का आयोजन किया जाता है। इस शिक्षण में विद्यार्थियों को कक्षा में आने वाली कठिनाइयों का सामना वास्तविक रूप में कराया जाता है। इसी प्रकार इस अनुदेशन में अनुरूपित परिस्थितियों (Simulated Situations) उत्पन्न कर अभ्यास कराया जाता है। इस प्रकार का अनुदेशन विद्यार्थियों के लिए विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण अनुभव प्राप्त कराने का एक अनूठा साधन है जहाँ सीमित साधनों में बिना जोखिम उठाए बहुत कुछ सीखा जा सकता है।

(6) समस्या समाधान प्रकार का अनुदेशन (Problem Solving Type Instruction)- इस प्रकार के अनुदेशन में कम्प्यूटर स्वयं समस्या का समाधान न करके विद्यार्थियों से ही समस्या का समाधान करवाता है। इस कार्य के लिए ऐसे सॉफ्टवेयर प्रोग्राम का उपयोग किया जाता है जिससे विद्यार्थी समस्या समाधान के लिए आवश्यक व्यवस्थित सोपानों (Steps) का अनुसरण करें। जैसे-चिन्तन-मनन, विश्लेषण-व्यवस्थापन, सामान्यीकरण। यह जीन पियाजे (Jean Piaget) के बौद्धिक विकास सिद्धान्तों से अनुप्रेरित अधिगम सिद्धान्तों पर आधारित है। आज के आधुनिक युग में ऐसे विभिन्न सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं जिनके उपयोग से विद्यार्थियों में आवश्यक चिन्तन कौशलों तथा समस्या समाधान योग्यताओं का विकास करने में सहायता मिलती है।

(7) अधिगम से जुड़ी बातों का प्रबन्धन सम्बन्धी मूल्यांकन (Management Related Evaluation of Learning Affairs) – इस प्रकार के अनुदेशन में सॉफ्टवेयर प्रोग्राम विद्यार्थियों द्वारा की जाने वाली विभिन्न अधिगम क्रियाओं के उचित प्रबन्ध में विशेष योगदान प्रदान करते हैं। विद्यार्थी जो भी सीखता है उसका उचित मूल्यांकन करके विद्यार्थी की उपलब्धियों, कठिनाइयों तथा कमजोरियों का सही निदान (Diagnose) करने में सहायता करते हैं। विद्यार्थी की पाठ्यक्रम क्रियाओं के उचित आयोजन में सहायता करते हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि कम्प्यूटर बड़ी से बड़ी गणना कुछ ही सेकेण्ड्स (Seconds) में कर देता है। जब विद्यार्थी को किसी प्रकरण को समझने मे कठिनाई होती है तब कम्प्यूटर की मदद से वह अपनी कठिनाई को दूर करता है। यही बात अपंग विद्यार्थियों की शिक्षा को लेकर भी है जहाँ ऐसे बच्चों को किसी साधन से नहीं पढ़ाया जा सकता वहाँ कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन के माध्यम से (गूंगे, बहरे मानसिक मन्द बालकों को) बहुत आसानी से बहुत कुछ सिखाया- पढ़ाया जाना सम्भव हो जाता है। अतः कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन केवल शिक्षण अधिगम प्रक्रिया से ही नहीं बल्कि शिक्षा जगत के सभी क्षेत्रों के प्रबन्धन में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके द्वारा विद्यालय व कॉलेजों में पुस्तकालय तथा सूचना केन्द्र को व्यवस्थित और आधुनिक बनाने में भी बहुत सहायता करते हैं।

(8) क्रियात्मक कार्यों के संचालन से सम्बन्धित अनुदेशन (Practical Work Oriented Instruction)- इस प्रकार के अनुदेशन में ऐसे सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों का प्रयोग किया जाता है जिनसे विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार की प्रयोगशाला एवं कार्यशाला सम्बन्धी परीक्षणों, प्रयोगों तथा क्रियात्मक कार्यों के सम्पादन सम्बन्धी वास्तविक अनुभव कम्प्यूटर पर करने को या देखने को मिल जाए। इस प्रकार विद्यार्थी को जो अनुभव प्रयोगशाला कार्यशाला में प्राप्त करने होते हैं उनकी विधिपूर्वक जानकारी इस प्रकार के अनुदेशन से प्राप्त हो जाती है फिर विद्यार्थी को अधिगम – अनुभवों को प्राप्त करने में विद्यालय या कॉलेज में परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। आज के तकनीकी युग में ये और भी अधिक आसान हो गया है। अब विद्यार्थी यू ट्यूब (You Tube) पर जाकर किसी भी प्रयोगशाला व कार्यशाला सम्बन्धी कार्य को आसानी से देखकर आत्मसात् कर सकते हैं।

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन / अधिगम की विधियाँ [Methods of Computer Assisted Instruction/Learning (CAD)]

विभिन्न विधियाँ जिसमें कम्प्यूटर कार्य करता है, मोड कहलाती है। कुछ सामान्य मोड निम्नवत् हैं-

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन / अधिगम की विधियाँ

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन / अधिगम की विधियाँ

(1) पूर्णाभ्यास व अभ्यास- इस विधि के अन्तर्गत कम्प्यूटर पर तब तक अभ्यास किया जाता है जब तक कि शुद्धता से कार्य न करने लग जाए। स्थिति पर नियंत्रण कम्प्यूटर के हाथ में रहता है।

(2) ट्यूटोरियल – इसमें कम्प्यूटर शिक्षार्थी से उसी प्रकार अन्तःक्रिया करता है जैसे कि शिक्षक करता है। उसी प्रकार सम्प्रेषण करता है और वह सम्प्रेषण छात्र द्वारा दिए गए उत्तर पर निर्भर करता है।

(3) अभिरूपता – इसके अन्तर्गत यथार्थ प्रक्रिया से सम्बन्धित सूचनाएँ कम्प्यूटर प्रक्रिया और प्रक्रिया परिणामों को प्रस्तुत कर देता है।

(4) प्रतिमानीकरण- प्रतिमान निर्माण यथार्थ का पूर्व अभ्यास होता है जिससे त्रुटियों को न्यूनतम किया जा सकता है। यहाँ कम्प्यूटर जटिल प्रतिमानों का निर्माण करता है। और उनका मात्रात्मक विश्लेषण करता है। कम्प्यूटर पर्दे पर निर्मित प्रतिमान का विश्लेषण करके व्यवहार विश्लेषणों की विभिन्न आयामों पर तुलना विकल्पों की स्थिति और भविष्यवाणी कर जा सकता है।

(5) समस्या समाधान – इसके द्वारा अनेक प्रकार की समस्याओं के आधार पर समस्या समाधान कौशल विकसित किया जा सकता है।

(6) शैक्षिक खेल- इसमें छात्र या तो अन्य छात्र या कम्प्यूटर के साथ शैक्षिक खेल खेलता है। इसका प्रभावशाली ढंग से प्रयोग नियम और प्रक्रिया सीखने के लिए किया जा सकता है। किसी भी मोड का चयन उद्देश्य एवं शिक्षण प्रक्रिया और पाठ्यसामग्री को दृष्टिगत रखते हुए किया जाना चाहिए ।

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन में आवश्यक विशेषज्ञ (Necessity of Expert in CAI)

किसी भी संस्था या विद्यालय द्वारा कम्प्यूटर को सहायक अनुदेशन के कार्य में प्रयुक्त करने के लिए अधोलिखित विशेषज्ञों की जरूरत पड़ती है-

(1) अभिक्रम लेखक (Programme Writer) – जिस प्रकार किसी भी कार्य को कुशलतापूर्वक सम्पादित करने के लिए उस विशेष क्षेत्र से जुड़े हुए अनुभवी व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती है, ऐसे ही अभिक्रमों (Programmes) को लिखने के लिए एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होती है जो सीखने के सिद्धान्तों से निपुण हो और उसी के अनुरूप वह विभिन्न आयु वर्ग के बालकों के लिए अभिक्रमों का सृजन करे। इसके अतिरिक्त अभिक्रम लेखक को कम्प्यूटर की भाषा एवं व्याकरण का जानकार भी होना चाहिए।

(2) कम्प्यूटर इंजीनियर (Computer Engineer)- किसी भी संस्था में कम्प्यूटर के सह- अनुदेशन में ठीक प्रकार से कार्य का सम्पादन सुनिश्चित हो इसके लिए एक कम्प्यूटर इंजीनियर की आवश्यकता होती है। यह कम्प्यूटर की तकनीकी भाषा, कार्यविधि, रचना एवं सिद्धान्त से भली-भाँति परिचित होता है। कम्प्यूटर यदि कहीं त्रुटि करता है तो उसका समाधान आसानी से करने के लिए कम्प्यूटर इंजीनियर रखने से सुविधा रहती है।

(3) प्रणाली संचालक ( System Operator) – कम्प्यूटर की कार्य प्रणाली को सीखने वाले व्यक्ति को सरलता व रोचकता से प्रसारित करने के लिए प्रणाली संचालक की आवश्यकता पड़ती है। यह कम्प्यूटर एवं सीखने वाले के मध्यस्थ का कार्य करता है क्योंकि सिस्टम आपरेटर ही विविध गलतियों का पता लगाकर उसमें सुधार करता है और कम्प्यूटर की सारी प्रणाली को नियंत्रित एवं निर्देशित करते हुए विषय सामग्री का व्यावहारिक एवं सजीवतापूर्ण प्रस्तुतिकरण करता है।

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन / अधिगम के उपयोग (Uses of Computer Assisted Instruction/Learning)

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन विद्यार्थी की हर मोड़ पर सहायता करता है, मार्गदर्शन करता है तथा वांछित सूचनाएँ प्रदान करता है, इसी के आधार पर इसके निम्नलिखित उपयोग होते हैं-

(1) इसके माध्यम से विद्यार्थियों को अभ्यास करने के लिए विभिन्न अवसर प्रदान किए जाते हैं और साथ ही साथ एक ही समय में बहुत से विद्यार्थियों को व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से ट्यूटोरियल सेवाएँ भी प्रदान की जा सकती हैं।

(2) यह अनुकरणीय प्रयोगशाला में भी बहुत उपयोगी है। इसमें विद्यार्थियों को वास्तविक कठिनाइयों से जूझने की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ प्रदान की जाती हैं जिससे विद्यार्थी को उन परिस्थितियों का ज्ञान हो जाता है।

(3) यह विद्यार्थियों एवं अध्यापक दोनों के लिए ही सूचनाएँ प्राप्त करने का महत्वपूर्ण साधन है।

(4) इसका प्रयोग छात्रों के मूल्यांकन, रिपोर्ट कार्ड तैयार करने अध्यापकों के वेतन एवं बिल बनाने में भी किया जाता है।

(5) यह मूल्यांकन की प्रक्रिया में भी सहायक है। सी. ए. आई. (CAI) में सभी प्रकार के परीक्षण, मूल्यांकन तथा उसके परिणामों को प्रयोग में लाने की व्यवस्था है। इसके द्वारा विद्यार्थी की उपलब्धि से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के रिकॉर्ड्स एकत्रित किए जा सकते हैं।

(6) इसके आधार पर अनुसन्धान कार्य भी किया जा सकता है।

(7) सी. ए. आई. (CAI) भाषात्मक कौशलों के विकास में भी बहुत सहायक है। मौखिक व लिखित दोनों प्रकार के भाषागत सम्प्रेषण कौशलों का विकास सॉफ्टवेयर की सहायता से सम्भव है।

(8) यह पुस्तकों के बढ़ते हुए बोझ को कम करने में भी बहुत सहायक है। माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के पॉवर प्वाइन्ट सॉफ्टवेयर प्रोग्राम, संग्रहित चित्र तथा ग्राफिक्स आदि की सहायता से वांछित अनुदेशन के लिए आवश्यक शिक्षण सामग्री का निर्माण व प्रस्तुतिकरण किया जा सकता है।

(9) शिक्षण अधिगम तथा विद्यालय प्रबन्धन से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के सम्पादन में सहायक है। विद्यालय संगठन तथा प्रबन्धन से जुड़ी बातें जैसे- समय-सारिणी बनाना, पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन, आवश्यक रजिस्टर, आय-व्यय का हिसाब, विद्यालय का वार्षिक बजट आदि विभिन्न कार्य को प्रभावपूर्ण ढंग से करने में सहायता मिलती है।

(10) सी. ए. आई. (CAI) पूछताछ अधिकारी अथवा एक पथ-प्रदर्शक की भूमिका अदा करता है। यह विद्यार्थियों को बहुत सारी सूचनाएँ एवं ज्ञान प्रदान करता है क्योंकि सी. ए. आई. (CAI) में विभिन्न प्रकार की सूचनाओं को संग्रह करने की अपार क्षमता है।

अतः आज के आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में यह एक शक्तिशाली उपकरण है और आज यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। यह औपचारिक शिक्षा (Formal Education) व अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education) के सभी स्तरों में प्रयोग किया जाता है।

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन / अधिगम की सीमाएँ (Limitations of Computer Assisted Instruction/Learning)

कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन की विशेषताएँ एवं उपयोगिता होने के साथ-साथ इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं, जो निम्नलिखित हैं-

(1) कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन में परम्परागत शिक्षण (Traditional Teaching) की तरह अध्यापक-विद्यार्थी अन्तःक्रिया एवं विद्यार्थी-विद्यार्थी अन्तःक्रिया का कोई स्थान नहीं है। जबकि ऐसी अन्तः क्रियाओं से विद्यार्थियों में भावात्मक क्षमता का विकास होता है और ऐसे अनुदेशन में विद्यार्थी इससे वंचित रह जाते हैं।

(2) विद्यार्थियों के कम्प्यूटर पर अधिक निर्भर होने के कारण वे पुस्तकों एवं अन्य मुद्रित सामग्रियों से दूर हो जाते हैं। जिसका परिणाम यह होता है कि विद्यार्थियों में लिखने-पढ़ने बोलने की आदत का विकास नहीं हो पाता अर्थात् विद्यार्थियों में भाषा कौशलों का उचित विकास नहीं हो पाता।

(3) यदि कम्प्यूटर या सॉफ्टवेयर प्रोग्राम खराब हो जाता है तब उसे ठीक करने की सुविधा विद्यालयों में नहीं होती जिससे असुविधा का सामना करना पड़ता है और इन्हें ठीक करवाने के लिए विशेषज्ञों की सहायता लेनी होती है जो कि महँगा पड़ता है।

(4) अधिक देर तक कम्प्यूटर पर कार्य करने से विद्यार्थियों के शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

(5) कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन में विद्यार्थी नियन्त्रित स्थिति में अधिगम करता है तथा विद्यार्थी अपनी इच्छा से आगे अधिगम-पथ पर बढ़ता है। अतः इससे विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता की भावना को बल मिलता है।

(6) शैक्षिक लाभों की तुलना में कक्षा शिक्षण में इनका उपयोग महँगा एवं खर्चीला होता है।

(7) उचित शैक्षिक सॉफ्टवेयर आसानी से उपलब्ध नहीं होते।

(8) कम्प्यूटरों के द्वारा परम्परागत शिक्षण की तरह भावात्मक स्तर पर शिक्षण-अधिगम नहीं हो पाता। अतः विद्यार्थी में मानवीय सम्बन्धों की मधुरता देखने को नहीं मिलती।

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