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पहचान के निर्माण पर वैश्वीकरण के प्रभाव | Influences of Globalization Indentify Formation

पहचान के निर्माण पर वैश्वीकरण के प्रभाव
पहचान के निर्माण पर वैश्वीकरण के प्रभाव

पहचान के निर्माण पर वैश्वीकरण के प्रभाव (Influences of Globalization Indentify Formation)

आज वैश्वीकरण के बदौलत भौगोलिक दूरियाँ मिटाकर विश्व को एक ‘विश्व ग्राम’ में तब्दील करने की अवधारणा बन चुकी है। इस नई दुनिया में व्यापार संस्कृति, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक सम्बन्ध सभी एक होने की बात कही जा रही है। दुनिया का कोई भी देश इससे अछूता नहीं रह सका है। वैश्वीकरण ने आज एक ऐसे विश्व ग्राम रूपी नये संसार की परिकल्पना की है। जिसमें ग्रामीण भाई-चारे का नामोनिशान नहीं हैं। भौतिक सम्पन्नता ही इसका एक मात्र लक्ष्य है। सेवाभाव, त्याग, प्रेम करुणा, पारिवारिक सम्बन्धों का महत्व, दया-करुणा जैसे मानवीय गुणों के लिए किसी के पास समय और स्थान नहीं रह गया।

वैश्वीकरण से तात्पर्य विश्व के सारे संसाधनों, ज्ञान जानकारी, जनशक्ति और बाजारों को एक स्तर पर लाते हुये इन्हें निर्बाध रूप में लोगों को उपलब्ध कराने के लिए सभी विकसित एकरूपता एवं समरूपता की वह प्रक्रिया है जिसमें सम्पूर्ण विश्व सिमट कर छोटा हो जाता है।

वैश्वीकरण का सामान्य रूप से अर्थ विश्व की सम्पूर्ण आर्थिक, सामाजिक तथा शैक्षिक गतिविधियों का ज्ञान सभी को होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, संसार में विकसित एवं विकासशील देशों द्वारा परस्पर मिलकर विकास के पथ पर अग्रसर होते हैं। किसी एक देश की प्रगति में बाधक तत्वों का निराकरण, किसी दूसरे देश के सहयोग के माध्यम से किया जाता है। यह वैश्वीकरण का प्रमुख ज्वलन्त उदाहरण है।

भारत जब स्वयं आतंकवाद से ग्रस्त था, तब तक वह मात्र उसकी अपनी समस्या थी। लेकिन जब शक्तिशाली देश अमेरिका पर 11 सितम्बर सन् 2001 में आतंकवादी हमला हुआ तब यह समस्या पूरे विश्व की बन गयी और इस प्राकृतिक आपदा से सम्पूर्ण विश्व के देशों ने अपनी समस्या मानकर सहायता का कार्य पीड़ित रूपेण सहयोग किया। यही वैश्वीकरण सद्भाव का ज्वलन्त उदाहरण है।

संसार के सभी देशों की धीरे-धीरे सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं मानवीय समस्याओं का समाधान विश्व के एक मंच पर किया जाने लगा। इस कार्य में हमारी सूचना प्रौद्योगिकी का बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान है। सूचना प्रौद्योगिकी ने विश्व की सभी दिशाओं को एक निश्चित क्षेत्र में सीमित कर दिया है। वर्तमान समय में निर्माण कार्य को या विद्युत उत्पादन की तकनीकी, जिस देश के पास उन्नतिशील अवस्था होती है वह दूसरे देशों के विकास के लिए अपना सहयोग करता है, जैसे- भारत के अभियन्ताओं का अमेरिका में प्रशिक्षण प्राप्त करना, तेल उत्पादक देशों का समस्त देशों को पेट्रोलियम पदार्थों का वितरण करना।

ग्लोब जिस प्रकार अपनी धुरी पर घूमता है, ठीक उसी प्रकार समस्त पृथ्वी की सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक क्रियाएँ एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं तथा वर्तमान व्यवस्था में कोई भी देश किसी भी समस्या के लिए अकेला नहीं है बल्कि सम्पूर्ण ग्लोब (पृथ्वी) उसके साथ है। दूसरे शब्दों में संसार के मानचित्र में सभी देश एक-दूसरे के विकास के लिए एवं समस्या के समाधान के लिए कटिबद्ध हैं। सार्क शिखर सम्मेलन, WHO, UNO, I.M.P. आदि संगठन वैश्वीकरण के उदाहरण हैं।

एन्थोनी मिडिन के अनुसार, “विश्वव्यापी सम्बन्धों को गहन करने तथा पास के देशों को, दूर के देशों को एवं स्थानीय घटनाओं को जोड़ना है।”

डेविडस हेल्ड के अनुसार, “भूमण्डलीकरण को एक प्रक्रिया मानते हैं जिसमें सामाजिक सम्बन्धों को गहन, व्यापक एवं गतिशील बनाना है। महाद्वीपों, क्षेत्रीय तथा विश्व के देशों में नेटवर्क प्रवाह का सृजन करना है।”

वैश्वीकरण में आर्थिक एवं सांस्कृतिक जीवन का विश्व के देशों से सम्बन्ध स्थापित करना है । यह प्रक्रिया प्राचीन काल से चली आ रही है परन्तु आधुनिक समय में सम्प्रेषण की गति तीव्र हो गई जिससे आदान-प्रदान में भी तीव्रता से हो गई है। इसमें कम्प्यूटर की अहम भूमिका है। विश्व के देशों की भौतिक दूरियाँ कम हो गई हैं। विश्व को छोटा कर दिया है।

वैश्वीकरण की पहचान निर्माण में भूमिका वैश्वीकरण ने व्यक्ति की पहचान को बहुत ऊँचा ला दिया है इससे राष्ट्रीय एकता में हम वृद्धि कर सकते हैं। इससे जनतंत्र के लिए जागरूकता तथा क्रियाशीलता के लिए विद्यालयों में अवसर प्रदान किये जाएँ। इससे बच्चों और युवकों को सांस्कृतिक आधार प्रदान किया जा सकता है। समाज के परिवर्तनों के बारे में बताया जा सकता है। वैश्वीकरण शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिन्दुओं का उल्लेख किया गया है जो 21वीं शताब्दी के शिक्षा की आवश्यकता की पूर्ति कर सकेंगी।

(i) शिक्षा में स्थानीय समुदाय से विश्व समुदाय तक की आवश्यकताओं और परिवर्तन को ध्यान में रखना आवश्यक है।

(ii) राष्ट्रीय भावना से लेकर विश्व बन्धुत्व विकास अथवा विश्व नागरिकता का विकास करना।

(iii) राष्ट्रीय समस्याओं से लेकर विश्वव्यापी समस्याओं के समाधान में सहयोग करना।

(iv) सामाजिक जटिलताओं से लेकर प्रजातांत्रिक भागेदारी तक का विस्तार करना।

(v) देश के आर्थिक विकास में मानवीय विकास को सम्मिलित करना।

(vi) राष्ट्रीय भावना से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावनाओं एवं सहयोग का विकास करना।

(vii) संकुचित भावनाओं से उठकर व्यापक दृष्टि तथा भावनाओं का विकास करना।

(viii) आत्म-निर्भरता की जगह सहयोग तथा सद्भावनाओं का विकास होना चाहिए।

(ix) शिक्षा में मानव कल्याण एवं राष्ट्रीय चरित्र के विकास को प्राथमिकता देना।

(x) विश्व शिक्षा के विकास हेतु यूनेस्को के कार्यक्रम में सहयोग देना चाहिए और सक्रिय भागेदारी होना।

अतः स्पष्ट है कि भूमण्डलीकरण से व्यक्ति की एक अलग पहचान बनती हैं उसमें राष्ट्रीय एकीकरण की भावना बढ़ती है। वह राष्ट्र हितों के साथ विश्व कल्याण तथा मानव कल्याण में महत्त्व देता है। आज की अधिकांश समस्याएँ जैसे जनसंख्या वृद्धि, पर्यावरण प्रदूषण, ऊर्जा संकट, आतंकवाद, भूकम्प, भूचालन आदि का हल वैश्वीकरण से ही सम्भव है। विश्व में शांति तथा समृद्धि लाई जा सकती है।

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