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बौद्धिक अक्षम या मानसिक रूप से विकलांग अथवा मन्द बुद्धि बालक

बौद्धिक अक्षम या मानसिक रूप से विकलांग अथवा मन्द बुद्धि बालक
बौद्धिक अक्षम या मानसिक रूप से विकलांग अथवा मन्द बुद्धि बालक

बौद्धिक अक्षम या मानसिक रूप से विकलांग अथवा मन्द बुद्धि बालक

मानसिक मन्दिता (Intellectual Deficiency)- मानसिक मन्दिता का प्रत्यय मानसिक अक्षमता या न्यूनता वाले उन सभी बालकों के लिए प्रयोग किया जाता है जोकि घर, समाज तथा विद्यालय की परिस्थितियों के साथ अपना अनुकूलन करने में असमर्थ होते हैं। इनकी मानसिक योग्यता औसत से कम होती है। मानसिक, मन्दता वाले बालकों की बुद्धि लब्धि, साधारण बालकों की बुद्धि लब्धि से कम होती है व इनमें विभिन्न मानसिक शक्तियों में न्यूनता होती है। स्किनर ने इन्हें मन्दबुद्धि, अल्पबुद्धि, धीमी गति से सीखने वाले, पिछड़े हुए और मूढ़ की संज्ञा दी है। मन्दबुद्धि बालक मूढ़ होता है इसलिए उसमें सोचने, समझने और विचार करने की शक्ति कम होती है।

स्किनर के अनुसार, “प्रत्येक कक्षा में छात्रों को एक वर्ष में शिक्षा का एक निश्चित कार्यक्रम पूरा करना पड़ता है । जो छात्र उसे पूरा कर लेते हैं उनको ‘सामान्य छात्र’ कहा जाता है । जो छात्र उसे पूरा नहीं कर पाते उनको मन्दबुद्धि छात्रों की संज्ञा दी जाती है विद्यालयों में यह धारणा लम्बे समय से चली आ रही है और अब भी है। “

अमेरिकन एसोसियेशन के अनुसार- “मानसिक मन्दिता से तात्पर्य उस असाधारण बौद्धिक कार्यक्षमता से है जो व्यक्ति की विकासात्मक अवस्थाओं में प्रगट होती है तथा इसके अनुकूलित व्यवहार में ह्रास से सम्बन्धित होती है।

क्रो एण्ड क्रो के अनुसार- “जिन बालकों की बुद्धि लब्धि 60 से कम होती है, उन्हें मानसिक मन्दित कहते हैं।”

पोलक व पोलक ने लिखा है कि मन्दित बालकों को अब क्षीण बुद्धि बालकों के समूह में नहीं रखा जाता हैं, इनके लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता है। अब यह स्वीकार करते हैं कि उनके व्यक्तित्व के उतने ही विभिन्न पहलू होते हैं, जितने सामान्य बालकों के व्यक्तित्व होते हैं।”

मन्दित बालकों के दो प्रकार माने गए है- 1. मन्दित बालक, 2. धीमी गति से सीखने वाले बालक।

1. मन्दित बालक – साधारण रूप से जिन बालकों की बुद्धि-लब्धि 60 से कम होती है। उन्हें अल्प मानसिक न्यूनता ग्रंथियों की श्रेणी में रखते हैं। किन्तु इस श्रेणी में हम यहाँ सामान्य से नीचे बुद्धि वाले की भी गणना करते हैं। इसमें जड़, मूढ़ व मूर्ख बुद्धि आती है।

यदि विद्यालय में बालक साधारण ज्ञान को प्राप्त करने में असमर्थ हैं, वह निम्न श्रेणी के परिणाम देता है तो अध्यापक को उन बच्चों के विषय में माता-पिता को बताना चाहिए । जिससे वे अपने बच्चों की उचित शिक्षा की व्यवस्था की जा सके।

यूनेस्कों ने एक प्रकाशन में विभिन्न श्रेणी के मन्दित बालकों के अनुपात की तालिका दी है। विद्यालय में विभिन्न श्रेणी के मन्दित बालकों का अनुमानित स्तर।

मानसिक न्यूनता की श्रेणी शब्द जो उनके लिए प्रयोग होते हैं-

मन्दिता बुद्धि स्तर लगभग बुद्धि-लब्धि प्रतिशत आयु  विद्यालय में लगभग
गम्भीर मन्दिता जड़ बुद्धि 0-19 0.06
साधारण मन्दिता हीन बुद्धि 20-49 0.24
मध्यम मन्दिता दुर्बल बुद्धि 50-69 2.26
मन्द मन्दिता मन्द या पिछड़ा 70-85/90 19.00

इस तालिका से पता चलता है कि लगभग 2.56 प्रतिशत बालक 70 से कम बुद्धि लब्धि के हैं।

अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ मेण्टल डेफीशियन्सी (AAMD) ने मन्दित शब्द का प्रयोग उन बालकों के लिए किया है जिनकी बुद्धि लब्धि 67 अथवा इससे कम है। इनके अनुसार 67 से कम बुद्धि लब्धि का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जाता है।

बुद्धि-लब्धि

1. कम मन्दित                        67 और 52 के बीच

2. साधारण मन्दित                   51 और 36 के बीच

3. गम्भीर नन्दित                     19 और इससे कम

जिन बालकों की बुद्धि लब्धि 67 से ऊपर होती हैं, वे अपने सहपाठियों की तुलना में धीमी गति से सीखते हैं, उन्हें धीमा सीखने वाला या सीमान्त बालक कहा जाता हैं।

2. मन्द गति से सीखने वाले बालक- वह बालक, जिनकी बुद्धि लब्धि औसत से कम होती है, वह भी उनका विकास प्रतिमानों का अनुसरण करते हैं जिनकी बुद्धि-लब्धि उच्च स्तर की होती है। इनकी एक विशेषता यह होती है-वे अपने समान आयु वाले साथियों की तुलना में अपरिपक्व प्रतीत होते हैं।

मानसिक रूप से पिछड़े बालक की पहचान अध्यापक द्वारा शैक्षिक निष्पत्ति के आधार पर की जा सकती है। ऐसे बालक प्रायः शारीरिक रूप से अयोग्य व संवेगात्मक रूप में अस्थिर होते हैं। इनकी पहचान बुद्धि लब्धि द्वारा भी की जा सकती है जो कि सही होती है। व्यक्तिवृत अध्ययन भी इनकी पहचान के लिए महत्वपूर्ण है।

मानसिक पिछड़ेपन की पहचान के आधार निम्न हैं-

1. ऐसे बालक सूक्ष्म चिन्तन के योग्य नहीं होते।

2. शैक्षिक क्षमता में वह अपने आयु समूह से नीचे होते हैं।

3. सामाजिक व्यवहार में कुशल नहीं होते।

4. अधिगम की क्षमता कम होती हैं।

5. अपने व्यक्तिगत व सामाजिक उत्तरदायित्वों को वहन नहीं कर पाते।

6. आत्मविश्वास की कमी पाई जाती है।

7. समाज में स्वयं को समायोजित नहीं कर पाते।

मानसिक मन्दित बालकों के लिए शिक्षा व्यवस्था (Educational Provision for Mentally Retarded Children)

1. आवासीय विद्यालय (Residential Schools) – पूर्ण रूप से मन्दित बालकों को घर तथा सामान्य विद्यालयों में शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान करना पूर्णतया असम्भव होता है। अतः इन्हें सुसज्जित अस्पताल विद्यालय में ही रखा जाना चाहिए जहां पर इनकी देखभाल करने के लिए योग्य चिकित्सक हो क्योंकि ये बालक अपने स्वयं के दैनिक कार्यों को भी नहीं कर पाते, इन्हें सम्पूर्ण जीवन ऐसी संस्थाओं में ही लाभ मिल सकता है।

2. विशेष विद्यालय (Special Schools) – विशेष विद्यालयों की व्यवस्था अत्यधिक मन्दिता और प्रशिक्षण योग्य मन्दित बालकों के लिए अधिक व्यावहारिक मानी जाती है । इसमें वह एक निश्चित अवधि के लिए ही विद्यालय जाता है शेष समय वह अपने परिवारजनों के बीच में ही व्यतीत करता है। इस प्रकार वह विशेष शिक्षण एवं प्रशिक्षण प्राप्त करने के साथ-साथ सामाजिक प्रगति भी करता है।

3. विशेष कक्षा (Special Classes)- ऐसे विद्यालयों में जहां मन्दित बालकों की संख्या अधिक नहीं होती है वहां बालक को केवल कुछ समयावधि के लिए विशेष कक्षा में अपनी योग्यता के अनुरूप शिक्षण एवं प्रशिक्षण पाते हैं। शेष समय वह औसत बालकों के साथ ही सामान्य कक्षाओं में रहते हैं। मन्दित बालकों की संख्या अधिक होने पर सामान्य विद्यालयों में ही उनके लिए पृथक कक्षा की व्यवस्था की जाती है।

मन्दितमना बालकों की शिक्षा (Education of Mentally Retarded Children)- सभी स्तर एवं प्रकृति के बालक ग्रहण करने योग्य नहीं होते हैं। केवल न्यून मन्दिता वाले (बुद्धि लब्धि 50 से 75 ) कुछ प्राथमिक कक्षाओं को पास करने की योग्यता रखते हैं। सीमित मन्दिता वाले (बुद्धि लब्धि 25 से 50 ) कठिन परिश्रम के पश्चात् केवल पढ़ना व लिखना सीख पाते हैं। उन्हें कुछ बिना कौशल वाले कार्यों का प्रशिक्षण देना ही सम्भव होता है। जड़ बुद्धि पूरी तरह दूसरों पर निर्भर रहते हैं और स्वयं के कार्य भी नहीं कर पाते हैं।

मन्दित बालकों की शिक्षा के लिए विशिष्ट पाठ्यक्रम, विशिष्ट अध्ययन सामग्री, विशिष्ट अनुदेशन विधि आवश्यक है। किर्क तथा जानॅसन ने इस तरह के बालकों को ध्यान में रखते हुए विशिष्ट कक्षाओं के आयोजन के लिए निम्नलिखित सिद्धान्तों का वर्णन किया है।

1. मानसिक मन्दित बालक जितनी कम आयु के हों, कक्षा का आकार उतना ही छोटा होना चाहिए।

2. मानसिक मन्दित बालकों को विशिष्ट कक्षाओं का आयोजन सामान्य कोटि के प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में ही होना चाहिए।

3. मानसिक मन्दित बालकों के प्रशिक्षण की जिम्मेदारी विशिष्ट रूप से प्रशिक्षित शिक्षकों को देनी चाहिए।

4. विशिष्ट कक्षाओं में मन्दित बालकों को रखने से पूर्व उनकी निदानात्मक जाँच-पड़ताल सावधानी से करनी चाहिए।

5. मन्दित बालकों के अभिभावकों का सहयोग बड़ी सूझ-बूझ के साथ करना चाहिए

स्किनर के अनुसार अमेरिका में निम्न पाठ्यक्रम की व्यवस्था की गई-

1. पौष्टिक भोजन, सफाई के साथ वास्तविक आत्म मूल्यांकन की शिक्षा दी जाए।

2. सुनने, निरीक्षण करने, बोलने और लिखने की शिक्षा दी जाए।

3. सुरक्षा, प्राथमिक चिकित्सा और आचरण सम्बन्धी नियमों की शिक्षा दी जाए।

4. विवेकपूर्ण नियमों की शिक्षा दी जाए।

5. विभिन्न वस्तुओं की मूल्य आंकने की शिक्षा दी जाए।

6. धन, समय और वस्तुओं का उचित प्रबन्ध करना सीखाया जाए।

मानसिक रूप से मन्दित बालकों की शिक्षा के लिए निम्न व्यवस्था होनी चाहिए-

1. विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना की जाए।

2. विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना की जाए।

3. विशेष पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाए।

4. विशेष शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाए।

5. सांस्कृतिक विषयों की शिक्षा दी जाए।

6. छोटे समूहों में शिक्षा दी जाए।

शिक्षा पाने योग्य मन्दितमना बालक :

1. उद्देश्य एवं लक्ष्य – शिक्षा के लक्ष्य एवं उद्देश्य की दृष्टि से मन्दितमना एवं सामान्य बालकों में कोई अन्तर नहीं होता है। दोनों की शिक्षा का उद्देश्य बालक में सामाजिक कौशलों व व्यक्तिगत योग्यता का विकास करना है। सामाजिक कौशल से अभिप्राय बालक का अपने साथियों, परिवार, विद्यालय व समाज के साथ समायोजन करना है। व्यावसायिक कौशल से तात्पर्य बालक की उस योग्यता से है, जिसके द्वारा वह अपने पूर्ण या आंशिक रूप से उत्पादक क्रिया द्वारा सहारा दे सके।

2. पाठ्यक्रम- शिक्षा पाने योग्य मन्दबुद्धि बालक सामान्य बालकों के लिए बने निर्धारित पाठ्यक्रम से लाभ नहीं उठा सकते। अतः इनका पाठ्यक्रम अत्यधिक सरल एवं इनकी योग्यता स्तर के अनुसार व्यवस्थित किया जाना चाहिए।

(i) प्राथमिक स्तर पाठ्यक्रम – 3 से 8 वर्ष आयु तक इस स्तर के पाठ्यक्रम के उद्देश्य बालकों को अपनी देखभाल करना, दूसरों का सम्मान करना, सहयोग देना, वाक शक्ति का विकास करना आदि हैं। इन बालकों को वस्त्र पहनना, स्वच्छता, सामूहिक गान तथा स्पष्ट उच्चारण आदि अच्छी आदतों का अभ्यास कराया जाता है।

(ii) माध्यमिक स्तर पाठ्यक्रम – 6 से 18 वर्ष की आयु तक : इस स्तर के पाठ्यक्रम के अन्तर्गत लेखन, पठन, गणित सामान्य ज्ञान आदि विषयों को सम्मिलित किया जा सकता है। खाली समय का सदुपयोग करना सिखाने के उद्देश्य से विभिन्न खेलकूद, नाटक, कला, हस्तकला आदि कार्यकलापों का प्रशिक्षण दिया जाता है।

(iii) व्यस्क स्तर पाठ्यक्रम – 15 वर्ष की आयु से अधिक के बच्चों को व्यावसायिक कुशलता तथा नागरिकता से सम्बन्धित विषय सिखाए जाते हैं।

3. शिक्षण पद्धति एवं शिक्षक- प्रशिक्षण योग्य मन्दबुद्धि बालकों को शिक्षा देने के लिए प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता होती है क्योंकि इन बालकों की कुछ विशेष आवश्यकताएं होती हैं तथा सीखने की गति धीमी होती है। अतः शिक्षक को बाल मनोविज्ञान तथा विभिन्न शिक्षण विधियों तथा तकनीकियों का ज्ञान होना चाहिए। इसके साथ ही उसके व्यक्तित्व में सहनशीलता एवं धैर्य जैसे गुणों का होना आवश्यक है। जिससे वह कक्षा में होने वाली समस्याओं का समाधान कर सकें।

विषय के उदाहरणों, रंगीन चित्रों, कहानियों, कविताओं आदि के माध्यम से रूचिकर ढंग से पढ़ाना चाहिए । शिक्षण बाल केन्द्रित होना चाहिए।

शैक्षिक मानसिक मन्दितों की शिक्षा के लिए सुविधाएं- शैक्षिक मन्दित बालकों को सामान्य विद्यालयों में शिक्षा देने में कठिनाई होती है। उनके लिए शिक्षा की सम्पूर्ण व्यवस्था अलग से होनी चाहिए। जिससे उन्हें सीखने या अधिगम करने में कठिनाई न हो। इनके लिए मुख्य सुविधाओं का वर्णन किया जा रहा है जो कि निम्नलिखित हैं-

1. व्यक्तिगत शिक्षा- शैक्षिक मन्दित बालकों के लिए आवश्यक है कि उन्हें अपने ढंग से सीखने का अवसर दिया जाना चाहिए। क्योंकि इनकी आवश्यकताएँ तथा सीखने की गति अलग-अलग होती है, जिससे वो सीखने में रूचि ले सकें और अपना विकास कर सकें। उसके बाद उन्हें समूह में सीखने का अवसर दिया जाए। जिससे उनमें सामाजिक गुणों का विकास हो सके।

2. कार्य करके सीखना- कार्य करके सीखने से अधिगम स्थाई तथा अधिक प्रभावशाली होता है। कार्य करने में बच्चे रूचि लेते हैं जिससे उनमें कार्य के प्रति एकाग्रता होती है। ये कठिनाई का अनुभव नहीं करते तथा सरलता से सीखते हैं।

3. पुनरावृत्ति तथा अभ्यास- मानसिक रूप से मन्दित बालकों का स्मृति स्तर कमजोर होता है इसलिए शिक्षण की विधियां ऐसी होनी चाहिए जिसमें उन्हें अभ्यास करने का अवसर मिले। उन्हें अभिप्रेरणा देनी चाहिए ताकि वे अभ्यास करने के लिए प्रेरित हो।

4. कालांश की अवधि- मानसिक रूप से मन्दित बालक जल्दी ही थकान का अनुभव करने लगते हैं। इसलिए इनकी कालांश अवधि अपेक्षाकृत कम होनी चाहिए। पाठ्यवस्तु को भी छोटी-छोटी इकाई तथा अवधि में प्रस्तुत करना चाहिए।

5. योजना विधि- मानसिक रूप से मन्दबुद्धि बालकों के लिए योजना विधि का भी प्रयोग किया जाना चाहिए। उनके जीवन से सम्बन्धित कुछ कार्यों को योजना के रूप में देना चाहिए जिससे वह समूह में रह कर उसे पूरा करने का प्रयास करें। इसके बालक का समाजीकरण होगा। मानसिक रूप से मन्दित बालकों की विशिष्ट शिक्षा के लिए अध्यापक को कक्षा में सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। उन्हें उनके अनुरूप सीखने की स्वतंत्रता भी देनी चाहिए। शारीरिक, सामाजिक तथा मानसिक परिपक्वता को प्रोत्साहित करने के लिए समुचित सहायता का प्रयोग करना चाहिए। विद्यालय में परामर्श एवं निर्देशन की सेवाओं की सुविधा होनी चाहिए जिससे उनकी समस्याओं का मनोवैज्ञानिक ढंग से समाधान किया जा सके।

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