जेण्डर भूमिका से क्या तात्पर्य है? (What do you mean by gender role?)
साधारण शब्दों में व्यक्ति का पुरुष या महिला के रूप में सार्वजनिक छवि, जो अन्य लोगों के सामने प्रस्तुत होती है, वही उसकी जेण्डर भूमिका कहलाती है। जेण्डर भूमिका व्यवहार का एक समुच्चय (A. set of behaviour) है, जो किसी व्यक्ति के स्त्रियोचित यां पुरुषोषित प्रतिबिम्ब को प्रस्तुत करता है, जो उसके जेण्डर की पहचान होती है।
बालकों का व्यवहार उनकी जेण्डर भिन्नता को व्याख्यायित करता है । कुछ कहते हैं लड़की या लड़का होना वंशानुक्रम से निर्धारित होता है, कुछ कहते हैं माता-पिता के व्यवहार से लड़का या लड़की व्यवहार करना सीखते हैं। संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत के अनुसार बालकों के जेण्डर विकास और संज्ञानात्मक विकास के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध होता है । बालक स्वयं जेण्डर की पहचान करता है और उसी के अनुरूप व्यवहार करता है । जेण्डर और लिंग (सेक्स Sex) दोनों का अर्थ एक ही नहीं होता । जेण्डर पुरुषोषित (Masculinity) और स्त्रियोचित (Feminity) के मध्य अंतर स्थापित करता है, जिसमें निम्न विशेषतायें सम्मिलित होती हैं-
(i) वैयक्तिक गुणधर्म (Personal attributues),
(ii) सामाजिक भूमिका (Social roles),
(iii) सामाजिक रीतियाँ (Social customs),
(iv) क्रियाकलाप (Activities), तथा
(v) व्यवहार (Behaviour)।
काल और संस्कृति के अनुसार किसी विशेष जेण्डर की विशेषताओं में भी अंतर होता है। उदाहरणार्थ, एक समय में लड़कियों के लिए खेल के मैदान का कोई मतलब नहीं होता था, परंतु आज के समय में लड़कियाँ विविध खेलों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक प्रतिभागिता कर रही हैं। ‘लिंग’ शब्द का एक स्थायी जैविक स्वरूप होता है – या तो पुरुष (XY) या महिला (XX)। सामान्य रूप से कहा जा सकता है कि सेक्स जैविक है जबकि जेण्डर सामाजिक।
मध्य किशोरावस्था में जेण्डर पहचान बड़ी दृढ़ और आम धारणा के अनुरूप होती है इसीलिए किशोरावस्था के प्रारम्भ में किशोरों का जेण्डर व्यवहार आम धारणा के अनुरूप होता है, परंतु बाद की अवस्था में ऐसा नहीं होता । इसको आसानी से ऐसे समझा जा सकता है – किशोरावस्था के आरम्भ काल में लड़कियाँ महिलागत कार्यों और व्यवहार को अपनाती हैं, जबकि लड़के पुरुषगत कार्य और व्यवहार प्रदर्शित करते हैं।
कोहलबर्ग (Kohlberg) ने सबसे पहले जेण्डर का प्रत्यय प्रस्तुत किया था । उनका विश्वास था कि जेण्डर के बारे में बालकों की संज्ञानात्मक समझ (Cognitive understanding) बालकों के व्यवहार को निर्धारित करती है। बालक की जेण्डर की समझ को उनके खेलों में देखा जा सकता है। खेलों में लड़कियाँ अपनी माँ की तरह काल्पनिक भूमिका निभाती हैं और लड़के अपने पिता की तरह व्यवहार करते हैं। जेण्डर पहचान का मतलब है-‘स्वयं के लड़की या लड़का होने की समझ’। जेण्डर पहचान बहुआयामी होती है और इस पर बहुत से कारकों का प्रभाव पड़ता है।
जेण्डर स्टीरियोटाइप (Gender stereotype) – किसी भी समूह की विशेषताओं के प्रति आम धारणा या विश्वास स्टीरियोटाइप कलाते हैं। ये धारणायें एक समूह को दूसरे समूह से पृथक् करती हैं। जेण्डर स्टीरियोटाइप का अर्थ है- “पुरुष और स्त्री, लड़के और लड़की के लिए आम विश्वास या आम धारणा।” लगभग सभी बालक जेण्डर स्टीरियोटाइप को जानते हैं। जरूरी नहीं है कि यह जानकारी परिवार की प्रवृत्तियों और मूल्यों से ही नहीं होती, मीडिया, साथियों (विशेषकर स्कूल के साथी) से अन्तर्क्रिया तथा अन्य बहुत से कारक होते हैं जिनसे बालक जेण्डर स्टीरियोटाइप को जान जाता है।
लड़कियों को आम धारणा के अनुरूप उनके कपड़ों, गहनों, बाल, सजने के तरीके आदि से समझा जाता है। लड़कों को इसके विपरीत उनकी सक्रियता और व्यवहार सम्बन्धित बातों से समझा जाता है, जैसे—मारपीट करना, कठिन खेल, सक्रियता वाले कार्य। विभिन्न प्रकरणों में लड़के और लड़कियों के जेण्डर स्टीरियोटाइप की अक्सर तुलना की जाती है।
जेण्डर भूमिका और स्टीरियोटाइप को प्रभावित करने वाले कारक (Influences On Gender role and stereotype)
1. मीडिया (Media) – मीडिया स्टीरियोटाइप को बहुत अधिक बढ़ावा देता है। विज्ञापनों में यह स्पष्ट दिखाई देता है। अक्सर देखा जाता है कि कम्प्यूटर के विज्ञापनों में दिखाते हैं कि पुरुष और लड़के पूरी दक्षता के साथ कम्प्यूटर का प्रयोग कर रहे हैं, बड़े व्यावसायिक पदों पर बैठकर कम्प्यूटर के साथ कार्य कर रहे हैं, वहीं महिलाओं और लड़कियों को निष्क्रिय अवलोकनकर्त्ता के रूप में दिखाते हैं। अक्सर उनको कम्प्यूटर के बगल में खड़ा कर देते हैं और इस पर भी ध्यान देते हैं, वे खूबसूरत और आकर्षक लगें।
2. फिल्में (Movies) – जेण्डर भूमिका और स्टीरियोटाइपिंग के बारे में प्रचार-प्रसार करने में फिल्में बहुत आगे रहती हैं। फिल्मों में दिखाये जाने वाले महिला चरित्र से लड़कियाँ अपने आपको जोड़ने लगती हैं, उन्हीं के तरह व्यवहार करने का प्रयास करती हैं। उसी तरह लड़के भी हिम्मत, साहस और सक्रियता का प्रदर्शन करना चाहते हैं।
3. अध्यापक (Teachers)- विद्यार्थियों में जेण्डर की समझ का विकास पर अध्यापकों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। अक्सर अध्यापक वस्त्रों, स्वच्छता, सहायता करने वाले व्यवहार के आधार पर लड़कियों की प्रशंसा करते हैं। इसके विपरीत ताकत, शारीरिक कौशल, शैक्षिक उपलब्धि के आधार पर लड़कों की प्रशंसा करते हैं। अध्यापक लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग सम्बोधन का प्रयोग करते हैं, लड़कियों को लड़कों की अपेक्षा अधिक नरम ढंग से सम्बोधित करते हैं। कभी-कभी अध्यापक गैरइरादतन अनुचित स्टीरियोटाइप भेदभाव छात्रों और छात्राओं के मध्य कर देते हैं। कुछ अध्यापक लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को पढ़ाना आसान समझते हैं।
4. मित्र (Friends)- बच्चे अपने मित्रों के साथ अन्तर्क्रिया करके जेण्डर पहचान बनाते हैं। मित्रता और साथियों का दबाव जेण्डर स्टीरियोटाइप को प्रभावित करता है, खासतौर से लड़कों के मध्य, जो लड़के लड़कियों की तरह गुण प्रदर्शित करते हैं, उनकी खिल्ली उड़ाते हैं। जब बालक अपने मित्रों के साथ खेलता है तो उसके खिलौने से जेण्डर पहचान दिखाई पड़ती है।
5. परिवार (Family)- जेण्डर के बारे में जानने में परिवार का महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता हैं। माता-पिता अक्सर कुछ व्यवहार की सराहना करते हैं और कुछ व्यवहारों को हतोत्साहित करते हैं। इन सबका प्रभाव जेण्डर पहचान पर पड़ता है। परिवार की संस्कृति और जातीय विशेषताओं के अनुरूप बालक की जेण्डर के प्रति समझ विकसित होती है। विविध जातियों का सांस्कृतिक पक्षपात (Cultural biases) भी बालकों में स्टीरियोटाइप के विकास को बढ़ावा देते हैं। मुख्य धारा की संस्कृति में ऐसा कम ही होता है। उदाहरणार्थ, कुछ संस्कृतियों में बेटों को बेटियों से अधिक प्यार-दुलार मिलता है, बेटों की आवश्यकतायें पहले पूरी की जाती हैं, बेटों को बेटियों की अपेक्षा अधिक सुविधायें दी जाती हैं।
6. साहित्य (Literature)- किताबों का बालकों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। किताबों में जो मुख्य चरित्र/पात्र होते हैं वे बालकों के लिए आदर्श बन जाते हैं और पुरुषोचित या स्त्रियोचित की परिभाषा बालकों को सिखाते हैं। बालक पुस्तकों से ही सामाजिक मानक सीखते हैं।
जेण्डर स्टीरियोटाइपिंग के परिणाम (Consequences of gender stereotyping)
1. व्यावसायिक आकांक्षा (Career Aspirations)- किसी व्यक्ति का व्यवसाय उसके आत्म-पहचान का संकेत होता है। विद्यार्थी अपने भविष्य के लिए जिस व्यवसाय का चयन करते हैं, उससे पता चलता है कि वे आज अपने को कैसे समझते हैं, अपने बारे में उनकी सोच क्या है?
2. शैक्षिक परिणाम (Academic Outcomes)- अक्सर माना जाता है कि लड़कियाँ विज्ञान, गणित और तकनीकी जैसे विषयों में कम रुचि लेती है, उनका आत्मविश्वास भी इन क्षेत्रों में कम होता है। मीडिया, परिवार और अध्यापकों के द्वारा इस तरह पक्षपातपूर्ण बातें प्रस्तुत की जाती हैं। हो सकता है कि ये लोग लड़कियों से कम अपेक्षायें रखते हों, सोचते हो कि इन क्षेत्रों में लड़कियों की अपेक्षा लड़के ही कुशल होते हैं।
Important Links
- किशोरावस्था की समस्याएं
- किशोरों के विकास में अध्यापक की भूमिका
- एरिक्सन का सिद्धांत
- कोहलबर्ग की नैतिक विकास सिद्धान्त
- भाषा की उपयोगिता
- भाषा में सामाजिक सांस्कृतिक विविधता
- बालक के सामाजिक विकास में विद्यालय की भूमिका