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भाषा की उपयोगिता | Uses of Language in Hindi

भाषा की उपयोगिता
भाषा की उपयोगिता

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भाषा की उपयोगिता (Uses of Language in Hindi)

भाषा की उपयोगिता- व्यक्ति की श्रेष्ठता के कारण कहा गया है कि मानव एक बुद्धिमान प्राणी है क्योंकि वह मानव ही बोलने की शक्ति है जिसके द्वारा वह अपनी बुद्धि की अभिव्यक्ति कर दूसरे लोगों से सम्पर्क स्थापित करने का अच्छा अवसर प्राप्त करता है। मनुष्य ने आज संस्कृति और सभ्यता को विकसित किया है। वह बहुत कुछ भाषा की सुदृढ़ भित्ति पर आधारित है। डमविल ने भाषा विकास के महत्व को प्रस्तुत करते हुए लिखा है-“किसी जाति के भाषा विकास का इतिहास उसकी बुद्धि विकास का इतिहास है। अन्य प्राणियों की अपेक्षा मनुष्य भाषा के कारण ही अधिक श्रेष्ठ है। भाषा और सभ्यता का विकास साथ-साथ होता है। प्रारम्भ में शिशु स्थूल वस्तुओं का ही प्रयोग करता है। बाद में वह भाषा का व्यवहार करने लगता है। शिक्षा का एक प्रधान उद्देश्य बालक को भाषा का समुचित ज्ञान कराना है । किसी भी व्यक्ति की बौद्धिक योग्यताओं का सर्वश्रेष्ठ माप उसका शब्द भंडार है।” इस प्रकार मानव जीवन में भाषा का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है।

ब्राउनफील्ड के अनुसार–‘“अन्य लोगों के साथ सम्पर्क स्थापित करने की शक्ति का नाम भाषा है।”

मानव जीवन में भाषा एक ऐसी शक्ति या माध्यम है जिसके द्वारा अन्य लोगों से सम्पर्क स्थापित किया जाता है। विचारों तथा भावनाओं के सभी प्रतीक और अर्थ देने वाले सभी तत्त्व जिनका प्रयोग सामाजिक सम्पर्क के रूप में किया जाता है, भाषा के ही अंग हैं, जैसे- चेहरे के भाव, अंग विक्षेप, संकेत, कला, मूक अभिनय, बोलचाल का स्वरूप, लिखित स्वरूप आदि। इन्हीं प्रतीकों एवं रूपों के आधार पर मानव को अन्य प्राणियों से पृथक् समझा जाता है।

1. सामाजिक सम्पर्क – (अ) बालक का भाषा विकास उनके लिए अन्य लोगों के साथ सम्पर्क स्थापित करने का सबसे बड़ा साधन है- भाषा विकास के साथ बालक में दूसरों से सम्पर्क स्थापित करने की योग्यता का विकास होता जाता है। भाषा के उपर्युक्त गुण को सामने रखते हुए भाषा के कार्यों को निम्नलिखित वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-

(i) सामाजिक सम्पर्क एवं अभिव्यक्ति का माध्यम

(ii) आत्मकेन्द्रित क्रिया के रूप में, और

(iii) शान्त भाषा अथवा चिन्तन।

(1) संवेदनात्मक प्रक्रियाएँ, जैसे-सुनना, देखना आदि।

(2) संवेदन, क्रिया सम्बन्धी प्रतिक्रियायें, जैसे-बोलना, लिखना आदि।

वास्तव में भाषा द्वारा बालक अन्य बालकों तथा व्यक्तियों की बातों को समझता है और भाषा द्वारा ही अपने विचारों को दूसरे के सामने अभिव्यक्त करता है। मैकार्थी का यहाँ तक कहना है कि शिक्षालय से पूर्व के वर्षों में बालक द्वारा अभिव्यक्त भाषा में 96% प्रतिक्रियाएँ सामाजिक होती हैं। इस प्रकार भाषा सामाजिक सम्पर्क से विकसित होती है। भाषा के विकास के लिए समूह के सदस्य एक-दूसरे के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं। क्रिया-प्रतिक्रिया द्वारा ही समाज में प्रगति होती है। मैकार्थी, ब्राउनफील्ड ने भाषा के अन्य कुछ कार्य व उद्देश्य बताये हैं, जो निम्न प्रकार हैं-

(i) सूचना प्राप्त करना।

(ii) अपने भावों की अभिव्यक्ति करना।

(iii) दूसरों को प्रेरणा प्रदान करना।

(iv) समाजीकरण की प्रक्रिया में सहायता देना।

(ब) भाषा विकास द्वारा बालक दूसरे लोगों से सम्पर्क स्थापित कर अपने व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं के विकास का अवसर प्राप्त करता है- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति अन्य लोगों के सम्पर्क में ही आकर कर सकता है। बालक का जीवन तो और भी पराश्रित होता है वह अपनी आवश्यकताओं की अभिव्यक्ति दूसरों के समक्ष भाषा के माध्यम से करता है और भाषा द्वारा ही कई सामाजिक मूल्यों, आदेशों और विचारों को प्राप्त करता है और भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति से और अनेक सामाजिक मूल्यों, आदर्शों और विचारों को अर्जित करने से उसके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं, यथा-शारीरिक, गत्यात्मक, संवेगात्मक, मानसिक, सामाजिक तथा नैतिक का समुचित विकास होता है। इस प्रकार बालक का विकास उसके अन्य पहलुओं के विकास में सहायक होता है।

2. प्रगति की शक्ति- भाषा मानव जाति का इतिहास है कि यह वह संजीवनी है जिसके माध्यम से व्यक्ति ने आज ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति की है। उसने भाषा की शक्ति के कारण स्वयं को समाज का सर्वोत्तम प्राणी सिद्ध किया है।

3. मानव विकास की आधारशिला- भाषा ने जहाँ समाज और राष्ट्र को शक्ति प्रदान की है वहाँ भाषा ने व्यक्ति को विकास का आधार प्रदान किया है। जो व्यक्ति भाषा का संयत, सन्तुलित एवं प्रभावशाली उपयोग करना जानते हैं वे अपने जीवन में विकास करते हैं। वे भाषा के माध्यम से अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति करना भली-भाँति जानते हैं

4. सामाजिक वंशक्रम की वाहक- भाषा परम्परा से चली आ रही है और इसके कारण समाज की संस्कृति तथा अन्य प्रकार की विरासत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित होती रहती है। आज हमारा प्राचीन साहित्य भाषा के माध्यम से ही सुरक्षित है। ‘वाचामेव प्रसादेन लोकयात्रा प्रवर्तते’ कहकर हमारे मनीषियों ने लोकयात्रा को वाणी का प्रसाद माना है।

5. संस्कृति का प्रतिबिम्ब- भाषा के माध्यम से किसी समुदाय, समाज, राष्ट्र और व्यक्ति की सभ्यता और संस्कृति प्रतिबिम्बित होती है। भाषा के विकास के साथ-साथ सभ्यता तथा संस्कृति भी विकसित हुई है जिन समूहों की भाषा अविकसित है उनकी सभ्यता और संस्कृति भी अविकसित है। जनजातीय भाषा और संस्कृति इसके उदाहरण हैं।

6. सामाजिक और राष्ट्रीय एकता- भाषा सामाजिक सम्पर्क से विकसित होती है। भाषा के विकास के लिए समूह के सदस्य एक-दूसरे के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं। क्रिया-प्रतिक्रिया के द्वारा ही समाज में प्रगति होती है। भाषा सामाजिक और राष्ट्रीय एकता को बनाये रखने में भी एक कड़ी है। इससे सामाजिक और राष्ट्रीय भावना का विकास होता है। इसी से समाज और राष्ट्र के रूप में व्यक्ति जुड़े रहते हैं।

7. भाषा और विचार- भाषा और विचार का आपस में गहरा सम्बन्ध है। यदि हम इन दोनों को अलग कर दें तो दोनों निष्प्राण हो जायेंगे। विचार तभी विचार होता है जब उसकी मौखिक अथवा लिखित अभिव्यक्ति होती है।

8. साहित्य- भाषा और साहित्य का आपसी सम्बन्ध प्रगाढ़ है। किसी भी साहित्य को उसकी भाषा से आँका जाता है। भाषा ने ही वेद, वेदांत, उपनिषद्, आरण्यक, काव्य, नाटक, कथा आदि विधाओं में महान ग्रन्थों को मानव समाज को दिया है।

भाषा को सीखना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि-

(i) इसके बगैर व्यक्ति पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता है।

(ii) व्यक्ति को अपना सामाजिक स्तर ऊँचा उठाने के लिए भी भाषा का अध्ययन आवश्यक हो जाता है।

(iii) भाषा द्वारा बालक स्वयं का मूल्यांकन कर सकता है और लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं यह भाषा ज्ञान द्वारा ही वह जान पाता है।

(iv) ज्ञान-विज्ञान को समझने के लिए भाषा का ज्ञान आवश्यक है।

(v) समाज में मातृभाषा के साथ-साथ अनेक विभाषायें भी होती हैं, उनका ज्ञान प्राप्त करना भी आवश्यक होता है।

(vi) जितना बच्चे को भाषा का ज्ञान होगा वह उतना ही लेखन कार्य सरलतापूर्वक कर सकेगा जो कि उसकी शिक्षा प्राप्ति में सहायक होगा।

(vii) भाषा के ज्ञान द्वारा बच्चा अपनी बात दूसरों को समझा सकता है और दूसरों की बात समझ सकता है।

भाषा ज्ञान होने पर बच्चा समाज के नियम प्रतिमानों आदशों को समझ सकता है जो अपनी विचार, इच्छायें जितनी अच्छी तरह प्रकट सकेगा वह उतनी ही जल्दी समाज में स्वयं को समायोजित कर पायेगा। जितनी अच्छी तरह बच्चा भाषा प्रयुक्त कर सकता है इसी आधार पर समाज उसका मूल्यांकन करता है।

इसलिए कहा गया है- “मानव व्यक्तित्व की शक्तिशालीनता भाषा के प्रभावोत्पादक प्रयोग पर ही निर्भर करती है।”

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