प्रश्नावली का अर्थ
प्रश्नावली का अर्थ प्रश्नों की ऐसी क्रमवार तालिका से है जो विषयगत वस्तुओं से सम्बन्धित जानकारी को इकट्ठा करने में सहायता करती है। सामाजिक शोध या अनुसंधान में सामग्रियों को इकट्ठा करने हेतु प्रयोग की जाने वाली प्रणालियों में यह प्रणाली सर्वाधिक सरल मानी जाती है।
प्रश्नावली की परिभाषा
कुछ विद्वानों ने प्रश्नावली की निम्नलिखित प्रमुख परिभाषाएं दी हैं-
1. लुण्डबर्ग (Lundberg)- “मूलरूप से प्रश्नावली प्रेरणाओं का एक समूह है जिसके प्रति शिक्षित लोग इन प्रेरणाओं के अन्तर्गत अपने मौखिक व्यवहार का निरीक्षण प्रकट करने के लिए प्रस्तुत होते हैं।”
2. डा. पी. वी. यंग (Pauline V. Young) – “समाज वैज्ञानिक प्रश्नावली के प्रमुख माप योग्य सामाजिक घटना के अध्ययन के एक सहायक उपकरण के रूप में प्रयोग करते हैं।
3. जे. डी. पोप (J.D. Pope)- “एक प्रश्नावली को प्रश्नों के एक समूह के रूप में, जिनका कि सूचनादाता के बिना एक अनुसंधानकर्ता अथवा प्रगणक की व्यक्तिगत सहायता के उत्तर देता है, परिभाषित किया जा सकता है। साधारणतया प्रश्नावली को डाक द्वारा भेजा जाता है, लेकिन यह लोगों में भी भी वितरित की जाती है, प्रत्येक दशा में यह सूचना प्रदान करने के द्वारा भरी जाती है। “
4. बोगार्ड्स (Bogardus)- “प्रश्नावली एक समूह के व्यक्तियों के उत्तर देने हेतु प्रश्नों की तालिका है।”
5. प्रो. गुडे एवं हाट के अनुसार, “सामान्य रूप से प्रश्नावली से तात्पर्य प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने की उस प्रविधि से है जिसमें कि एक पत्रक का प्रयोग किया जाता है जिसे उत्तरदाता स्वयं भरता है।”
6. सिन पाओ यंग के अनुसार, “अपने सरलतम रूप में प्रश्नावली प्रश्नों की एक सूची है जो अनुसूचित या सर्वेक्षण निदर्शन में निर्वाचित व्यक्तियों के पास डाक द्वारा भेजी जाती है। “
उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि-
“प्रश्नावली सम्बन्धित समस्या के बारे में प्रश्नों का वह प्रपत्र अथवा सूची है जिसे विस्तृत एवं बिखरे क्षेत्र में बिना अनुसंधानकर्ता की सहायता से कम से कम समय में सूचनाएँ एकत्र करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। साधारणतया यह प्रणाली विभिन्न व्यक्तियों को सूचना संकलन हेतु अपनायी जाती है।
प्रश्नावली के प्रकार
अध्ययन की विषय वस्तु के आधार पर प्रश्नावली को विभिन्न रूपों में विभाजित किया जाता है। इस विभाजन के मूल उद्देश्य विषय-वस्तु की प्रकृति के साथ प्रश्नावली के स्वरूप का समन्वय करना है, ताकि उपयोगी सूचनाओं की प्राप्ति हो सके। इस दृष्टि से प्रश्नावली के निम्न प्रकार हैं-
1. प्रतिबंधित प्रश्नावली (Closed Questionaire)- इसे बन्द प्रश्नावली के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रश्नावली में प्रत्येक प्रश्न के आगे जितने भी सम्बिन्धित उत्तर होते हैं, लिख दिये जाते हैं। सूचनादाता अपना उत्तर इन्हीं प्रश्नों के माध्यम से करता है। इनमें प्रश्नों के उत्तर को सीमित कर दिया जाता है। सूचनादाता अपनी इच्छा से प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सकता।
2. अप्रतिबन्धित प्रश्नावली (Open Questionnaire)- इस प्रकार की प्रश्नावली को मुक्त प्रश्नावली या खुली प्रश्नावली भी कहते हैं। प्रश्नावली का यह एक प्रकार बन्द प्रश्नावली का ठीक उल्टा होता है। इसमें मात्र प्रश्न लिखे रहते हैं और उत्तर के लिये खाली स्थान रहता है।’ सूचनादाता अपने मन से उत्तर को प्रश्नावली के इस जगह में भरता है। इस प्रश्नावली में सम्भावित उत्तर नहीं दिये जाते हैं। इस प्रकार प्रश्नावली में किसी प्रकार की सीमा या प्रतिबन्ध नहीं होता है।
3. चित्रात्मक प्रश्नावली (Pictorial Questionnaire) – चित्रमय प्रश्नावली प्रतिबन्धित प्रश्नावली का ही एक रूप है जिसमें सम्भावित उत्तरों के स्थान पर उन उत्तरों से सम्बन्धित कुछ चित्र दिये रहते हैं, जिनमें प्रश्नों के वैकल्पिक उत्तर स्पष्ट होते हैं। इस प्रकार की प्रश्नावली विशेषरूप से बच्चों एवं कम पढ़े-लिखे लोगों के लिये उपयोगिता होती है। चित्र ध्यान को शीघ्र आकर्षित कर लेते हैं तथा उत्तर देने के लिये प्रेरित करते हैं। इस माध्यम से कभी-कभी ऐसी सूचनायें भी प्राप्त हो जाती है जो अन्य माध्यमों से प्राप्त नहीं की जा सकती।
4. मिश्रित प्रश्नावली (Mixed Questionnaire)- मिश्रित प्रश्नावली वह है जिसमें कई प्रकार के प्रश्नों का सम्मिश्रण रहता है। बन्द और खुली प्रश्नावली को मिलाकर तीसरे प्रकार की प्रश्नावली बनायी जाती है। व्यवहारिक दृष्टिकोण से न किसी प्रश्नावली को पूर्णरूपेण प्रतिबन्धित कह सकते हैं और न अप्रतिबन्धित अनुसंधान कार्य के लिये प्रायः मिले-जुले प्रश्नों का उपयोग किया जाता है।
उपर्युक्त सभी प्रश्नावली का अनुसंधान में महत्वपूर्ण स्थान है इनमें से किसी की भी अनदेखी करने पर सही निष्कर्ष प्राप्त करने में समस्या हो सकती है।
एक अच्छी प्रश्नावली के निर्माण में ध्यान रखने योग्य बातें
प्रश्नावली की सारी सफलता का श्रेय प्रश्नों को ही जाता है। अस्तु प्रश्नों का निर्माण करते समय अनुसंधानों को निम्न बातों को ध्यान रखना चाहिए-
(1) समस्या के अर्थ एवं उससे सम्बन्धित सुझाव के प्रश्न अप्रतिबन्धित प्रकार के होने चाहिए तथा शेष प्रश्न प्रतिबन्धित एवं मिश्रित प्रकार के हो सकते हैं।
(2) प्रश्न स्पष्ट होने चाहिए तथा उसकी भाषा सरल हो जिससे उत्तरदाता उन्हें आसानी से पढ़कर समझ सके।
(3) प्रश्नों को एक उचित क्रम में लिखा जाना चाहिए।
(4) सामान्य सूचना वाले प्रश्न पहले एवं मुख्य विषय से सम्बन्धित प्रश्न बाद में आने चाहिए।
(5) प्रश्नावली न तो बहुत लम्बी और नहीं बहुत छोटी होनी चाहिए बल्कि उसका आकार मिश्रित प्रकार का होना चाहिए।
(6) बहुअर्थ के अथवा दोहरे अर्थ रखने वाले प्रश्नों को प्रश्नावली में सम्मिलित नहीं किया जाना चाहिए। अन्यथा उत्तरदाता भ्रमित होगा और उसके द्वारा उल्टे-सीधे दिये गये उत्तरी का वर्गीकरण एवं सारणीयन करने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।
(7) प्रश्नों के क्रम का निर्धारण करते समय सामान्य से विशिष्ट एवं सरल प्रश्नों से जटिल की ओर बढ़ना चाहिए।
(8) प्रश्नावली में प्रश्नों की भाषा आडम्बरपूर्ण एवं क्लिष्ट न होकर उत्तरदाताओं की ही भाषा होनी चाहिए।
(9) प्रश्नों के उत्तर देने के बारे में उन्हें पर्याप्त निर्देश दे देना चाहिए।
(10) अपरिचित धारणाओं एवं काल्पनिक परिस्थितियों के बारे में प्रश्न नहीं करने चाहिए।
(11) प्रश्नावली में यदि किसी शब्द पर विशेष जोर देना है तो श्रेयस्कर यही होता है कि उसे रेखांकित कर दिया जाना चाहिए।
(12) उत्तरदाताओं के विश्वास को जीतने के लिए यह आवश्यक होता है कि प्रश्नावली के साथ-साथ सहगामी पत्रों को भी तैयार कर लिया जाये जिसमें अध्ययन के उद्देश्य आदि के बारे में स्पष्ट जानकारी दी जाये। उन्हें यह भी विश्वास दिला दिया जाये कि उनके द्वारा प्रेषित सूचना गुप्त रखी जायेगी। इससे उत्तरदाताओं के मन में कोई सन्देह पैदा नहीं होगा एवं वह खुलकर प्रश्नों के उत्तर देने की चेष्टा करेगा।
प्रश्नावली के निर्माण में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
प्रश्नावली की रचना- प्रश्नावली की रचना में निम्नलिखित तीन बातों पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए-
(1) अध्ययन की समस्या, (2) प्रश्नों की उपयुक्तता, प्रकृति एवं शब्दावली, (3) प्रश्नावली की बाह्य आकृति अथवा भौतिक पक्ष।
(1) अध्ययन की समस्या- प्रश्नावली विधि द्वारा अध्ययन करने और प्रश्नों की रचना करने से पूर्व यह अत्यन्त आवश्यक है कि-
(क) यह स्पष्ट करने के लिए कि समस्या के किन पक्षों से सम्बन्धित सूचनाएँ प्राप्त करनी हैं और प्रश्न बनाने हैं समस्या के विभिन्न पक्षों का विश्लेषण किया जाये। ऐसा करने से इस बात की सम्भावना कम ही रहती है कि समस्या का कोई आवश्यक पक्ष छूट जाए। इसके साथ ही कम व अधिक महत्वपूर्ण पहलुओं के सम्बन्ध में कम और अधिक प्रश्नों का बंटवारा भी कर लिया जाता है।
(ख) प्रश्नों के निर्माण के विषय से सम्बन्धित उपलब्ध साहित्य का भी निर्माण किया जाना चाहिए।
(ग) प्रश्नों के निर्माण में विषय के सम्बन्ध में अनुसन्धानकर्ता के पूर्व अनुभव का उपयोग किया जाना चाहिए।
(घ) प्रश्नों के निर्माण में स्थानीय परिस्थितियों का ज्ञान रखने वाले लोगों का भी सहयोग लिया जाना चाहिए।
(ङ) प्रश्नों के निर्माण में विषय के विद्वान एवं मित्रों का भी सहयोग लिया जाना चाहिए।
(च) प्रश्नावली के निर्माण के समय अध्ययन की इकाई को भी निश्चित एवं परिभाषित कर लेना चाहिए।
(2) प्रश्नों की उपयुक्तता, प्रकृति एवं शब्दावली- प्रश्नावली के निर्माण में प्रश्नों की आवश्यकता, प्रकृति, भाषा की सरलता, स्पष्टता एवं क्रम को ध्यान में रखना चाहिए। प्रश्नावली में अनावश्यक प्रश्नों को शामिल करने से समय, श्रम एवं धन का दुरुपयोग होता है अत: किसी भी प्रश्न को प्रश्नावली में शामिल करने से पूर्व उसकी उपयुक्तता को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। प्रश्नों के निर्माण के समय निम्न बातों को भी ध्यान में रखना चाहिए-
(क) प्रश्न स्पष्ट एवं सरल होने चाहिए जिससे कि उत्तरदाता उन्हें उसी अर्थ में समझे जिस अर्थ में प्रश्न पूछे गये हों।
(ख) इकाइयों की स्पष्ट परिभाषा देनी चाहिए जिससे कि सही उत्तर प्राप्त किया जा सके।
(ग) प्रश्नावली में सरल प्रश्नों को शामिल किया जाना चाहिए जिससे कि सामान्य बुद्धिवाला व्यक्ति भी उन्हें समझ सके क्योंकि अनुसन्धानकर्ता प्रश्नों के उत्तर देने में सूचनादाता की सहायता के लिए उपस्थित नहीं होता है।
(घ) प्रश्नावली में शामिल किये गये प्रश्न ऐसे होने चाहिए जो कि व्यक्ति की सही स्थिति को प्रकट कर सकें।
(ङ) प्रश्नावली में प्रश्नों की संख्या अधिक नहीं होनी चाहिए, क्योंकि अधिक प्रश्नों वाली प्रश्नावलियों के लौटकर आने की सम्भावना कम होती है।
(च) प्रश्नावली में प्रश्न इस प्रकार के होने चाहिए जिनका उत्तर संक्षिप्त एवं श्रेणीबद्ध रूप में प्राप्त किया जा सके।
(3) प्रश्नावली का बाह्य अथवा भौतिक पक्ष- प्रश्नावली की सफलता न केवल प्रश्नों की भाषा एवं शब्दों पर निर्भर करती है बल्कि उसकी सफलता भौतिक बनावट पर भी निर्भर करती है। सूचनादाता का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रश्नावली की भौतिक बनावट पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि प्रश्नावली भरते समय अनुसन्धानकर्ता उपस्थित नहीं होता है। प्रश्नावली के भौतिक पक्ष हेतु निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए-
(क) सामान्यतः प्रश्नावली बनाने के लिए कागज का आकार 8 गुणे 12 इन्च अथवा 9 गुणे 11 इन्च का होना चाहिए, जिसे आसानी से मोड़कर लिफाफे में रखा जा सके।
(ख) प्रश्नावली के लिए प्रयोग किया जाने वाला कागज चिकना, मजबूत व टिकाऊ होना चाहिए।
(ग) प्रश्नावली बहुत अधिक लम्बी नहीं होनी चाहिए जिसे भरने में उत्तरदाता नीरसता महसूस करें।
(घ) प्रश्नावली को छपवाया जा सकता है या फिर साइक्लोस्टाइल बनाया जा सकता है।
(ङ) प्रश्नावली का निर्माण करते समय बायीं ओर 3/8 ” एवं दार्यो और 1/5 ” अथवा 1/6″ का हाशिया छोड़ना आवश्यक है।
(च) एक विषय से सम्बन्धित सभी प्रश्नों को एक साथ तथा एक ही क्रम में लिखा जाना चाहिए और संख्या अधिक होने पर उन्हें व्यवस्थित करके विभिन्न समूहों में बाँट दिया जाना चाहिए।
“संक्षेप में पूर्ण जाँच की प्रणाली कार्य-विधि पर त्रुटियों को, इसके पहले कि वे न्यून मात्रा में विश्वसनीय एवं प्रामाणिक जवाबों एवं उत्तरों के क्रय अनुपात में आने के रूप में भारी दण्ड थोपें, निकालने का साधन उपलब्ध कराती है। पूर्व जाँच आवश्यक रूप से एक परीक्षण एवं त्रुटि की प्रणाली है, जिसमें सफल परीक्षणों की पुनरावृत्ति की जाती है तथा जब अन्तिम रूप से प्रश्नावली अन्तिम समूह को भेजी जाती है तो त्रुटियाँ निकल जाती हैं।”
प्रश्नावली की विशेषतायें
1. प्रश्नावली तथ्यों को संकलित करने की एक प्रविधि है।
2. प्रश्नावली प्रश्नों की सूची होती है।
3. इस प्रविधि द्वारा विस्तृत क्षेत्र में फैले लोगों से सूचना संग्रह की जाती है।
4. प्रश्नावली में उत्तरदाता को साक्षर होना अनिवार्य होता है।
5. यह तथ्यों को संग्रह करने की एक अप्रत्यक्ष प्रविधि है।
6. इसको डाक द्वारा उत्तरदाताओं के पास भेजा जाता है।
7. प्रश्नावली में मनोवैज्ञानिक अध्ययन भी संभव हो जाता है।
8. प्रश्नावली को सूचनादाता स्वयं भरता है।
ए. एल. बाउले के अनुसार एक अच्छी प्रश्नवली कौन-कौन सी विशेषताएँ होनी चाहिए?
ए. एल. बाउले के अनुसार एक उत्तम प्रश्नावली की विशेषतायें है-
1. एक अच्छी प्रश्नावली में प्रश्नों की संख्या तुलनात्मक दृष्टि से अधिक नहीं होनी चाहिए।
2. प्रश्न सरल एवं शीघ्र बोध गम्य होने चाहिए।
3. केवल हाँ या न में उत्तर दिये जाने वाले प्रश्नों को भी शामिल किया जाना चाहिए।
4. सम्भवता, प्रश्न पारस्परिक पुष्टि करने वाले होने चाहिए।
5. प्रश्नों का निर्माण इस प्रकार से किया जाना चाहिए जिससे कि उनका उत्तर देते समय पक्षपात न किया जा सकें।
6. प्रश्न इस प्रकार के होने चाहिए कि जिनके उत्तर प्राप्त हो जाने पर सभी इच्छित सूचनाएँ प्राप्त हो जाएँ।
7. प्रश्नों के निर्माण में धृष्टता, अशिष्टता एवं परीक्षात्मक नहीं होना चाहिए।
एगल बर्नर के अनुसार एक अच्छी प्रश्नवली कौन-कौन सी विशेषताएँ होनी चाहिए?
एगल बर्नर के अनुसार एक उत्तम प्रश्नावली में विशेषताओं का होना अवश्यक है-
1. विषय की विस्तृत व्याख्या की जानी चाहिए जिससे कि यह निर्धारित किया जा सके कि किस प्रकार की सूचनाओं का संकलन किया जाना हैं।
2. दीर्घ प्रश्नों से बचाव किया जाना चाहिए।
3. प्रत्येक प्रश्न के सामने उपयुक्त रिक्त स्थान होना चाहिए जिससे कि उसमें प्रश्न का उत्तर लिखा जा सके।
4. प्रश्नावली यथासम्भव संक्षिप्त होनी चाहिए।
5. प्रश्नावली में रखे गए प्रश्नों की भाषा सरल व स्पष्ट होनी चाहिए।
6. प्रश्न सीधे, सरल एवं आसानी से समझ में आने वाले होने चाहिए।
7. प्रश्नों को तार्किक दृष्टि से व्यवस्थित किया जाना चाहिए।
एक अच्छी प्रश्नावली के निर्माण में प्रश्नों की प्रकृति तथा भाषा शैली कैसी होनी चाहिये?
श्री ए. एल. बाउले ने एक उत्तम प्रश्नावली की विशेषता है-
(1) तुलनात्मक दृष्टि से प्रश्नों की संख्या कम होनी चाहिये।
(2) ऐसे प्रश्नों का होना श्रेष्ठ है जिनका कि उत्तर संख्या में अथवा ‘हाँ’ या ‘नहीं’ में दिया जा सकता हैं
(3) प्रश्न इतने सरल, सीधे तथा एकअर्थक हों कि शीघ्र समझ में आ सकें।
(4) प्रश्नों की रचना इस प्रकार की जाए कि उनका उत्तर देते समय मिथ्याझुकाव के प्रवेश की सम्भावना न्यूनतम हो।
(5) प्रश्न अशिष्टतापूर्ण अथवा घृष्टतापूर्ण एवं परीक्षात्मक नहीं होने चाहिये।
प्रश्नावली के गुण
1. प्रश्नावली डाक द्वारा सूचनादाताओं को प्रेषित की जाती है अत: ऐसे सूचनादाताओं के एक विशाल समूह को एक साथ भेजकर उनसे सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती हैं। इस प्रकार प्रश्नावली एक बड़े निदर्श के अध्ययन में उपयोगी होती है।
2. प्रश्नावली के द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से सूचनाएँ प्राप्त करना संभव होता है।
3. प्रश्नावली का प्रयोग एक बड़े एवं विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में किया जा सकता है। अनुसूची या अन्य विधियों के प्रयोग में यह लाभ नहीं मिलता।
4. प्रश्नावली के प्रयोग से कम समय में अधिक लोगों से सूचनाएँ प्राप्त करना संभव
5. प्रश्नावली के प्रयोग में व्यय भी कम होता है। इसमें अध्ययनकर्ता के आवागमन पर होता है। होने वाले व्यय की बचत हो जाती है।
6. स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं प्रामाणिक सूचनाओं का संकलन- प्रश्नावली में उत्तरदाता को स्वयं ही उत्तर भरना पड़ता है। अध्ययनकर्ता उसके समक्ष उपस्थित नहीं रहता। अतः वह निःसंकोच होकर प्रश्नों के उत्तर भर सकता है। उसे उसकी पहचान प्रकट होने का भय नहीं रहता अत: वह बिना अनुसंधानकर्ता की उपस्थिति से प्रभावित हुए सूचनाएँ देता है। इस प्रकार इससे स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं प्रमाणित सूचनाएँ मिलने की संभावना अधिक रहती है।
7. चयनकर्ता और उत्तरदाता के लिए सुविधाजनक- प्रश्नावली पद्धति अनुसंधानकर्ता के लिए तथा उत्तरदाता दोनों के लिए एक सुगम पद्धति है। अनुसंधानकर्ता इस विधि में उत्तरदाता से “सम्पर्क की समस्या” से बच जाता है। उसे उत्तरदाता से स्थान व समय का निर्धारण करने की आवश्यकता नहीं रहती। उसके उपलब्ध न होने पर बार-बार चक्कर काटने की आवश्यकता भी नहीं रहती। अतः अनुसंधानकर्ता की दृष्टि से यह एक सुगम पद्धति है। इसी प्रकार यह सूचनादाता के लिए भी सुगम होती है। सूचनादाता अनुसंधानकर्ता की उपस्थिति में होने वाले संकोच की असुविधा से बच जाता है। वह अपनी सुविधानुसार समय निकालकर स्वतंत्रता से प्रश्नों के उत्तर भर सकता है।
8. सूचनाओं को बार-बार प्राप्त करने की सुविधा- जिन अध्ययनों में परीक्षण की दृष्टि से या विषय की परिवर्तित होने वाली प्रकृति के दृष्टिकोण से उत्तरदाताओं से बार-बार सूचनाएँ प्राप्त करनी होती हैं ऐसे अध्ययनों में प्रश्नावली पद्धति सर्वाधिक उपयोगी होती है। बार-बार उत्तरदाता के पास जाने की अपेक्षा उत्तरदाता के पास कुछ अंतराल से प्रश्नावली भेजकर उत्तर प्राप्त किये जा सकते हैं। एक साथ प्रश्नावलियाँ छपवाकर छपाई पर बार-बार होने वाले व्यय से भी बचा जा सकता है। इस प्रकार कम समय, कम व्यय एवं कम श्रम में सूचनाओं को बार-बार प्राप्त करने की सुविधा रहती है।
9. स्व-प्रशासित- प्रश्नावली का सबसे बड़ा गुण यह होता है कि यह स्व-प्रशासित होती है। इसमें न तो किसी अध्ययन दल के संगठन की आवश्यकता होती है न ही क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं की। इस विधि में अनुसंधानकर्ता को भी अध्ययन क्षेत्र में उपस्थित रहने की आवश्यकता नहीं रहती । इस प्रकार सूचना एकत्रित करने के लिए संगठनात्मक प्रक्रिया से अनुसंधानकर्ता बच जाता है।
10. सांख्यिकीय विश्लेषण संभव- प्रश्नावली में प्रश्न इस प्रकार क्रमबद्ध व वर्गीकृत रूप से संगठित किये जाते हैं कि उनसे प्राप्त उत्तरों का सांख्यिकीय ढंग से विश्लेषण करना संभव हो जाता है।
प्रश्नावली की सीमाएँ एवं दोष
1. केवल शिक्षित उत्तरदाताओं के लिए ही उपयोगी- प्रश्नावली की सबसे महत्वपूर्ण कमी या सीमा यह है कि इससे केवल शिक्षित व्यक्तियों से ही सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती हैं। अशिक्षित या अनपढ़ व्यक्तियों में प्रश्नावली का विवरण नहीं किया जा सकता।
2. अपूर्ण या अस्पष्ट जानकारी- दूसरा महत्वपूर्ण दोष यह भी है कि प्रश्नावली से प्राप्त सूचनाएँ अपूर्ण एवं अस्पष्ट होती हैं। उत्तरदाता समयाभाव, आलस्य या अन्य किसी कारण से जैसे-तैसे प्रश्नावली को भरकर भेज देता है। कई बार उत्तरदाता कई प्रश्नों के उत्तर जान-बूझकर भी नहीं देते। कई बार सूचनादाता को प्रश्न समझ में नहीं आते। उसे समझने का प्रयत्न कर उसका उत्तर भरने की अपेक्षा उसका उत्तर नहीं देना अच्छा समझते हैं। कई बार सूचनादाता कुछ बातों को छुपाना चाहते हैं अतः ऐसे प्रश्नों का उत्तर भी नहीं देते। इस प्रकार उत्तरदाता की लापरवाही, अनिच्छा, आलस्य, समयाभाव व कुछ बातों को छुपाने की इच्छा आदि के कारण अपूर्ण व अस्पष्ट सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।
3. प्रश्नावलियों की वापसी की समस्या- प्रश्नावली में न केवल अधूरे व अस्पष्ट उत्तर प्राप्त होने की संभावना रहती है वरन पुनः प्राप्त होने की भी समस्या रहती है। प्राय: यह होता है कि उत्तरदाता प्रश्नावली को भरकर नहीं लौटाते। कई उत्तरदाता तो उसे प्राप्त होते ही रद्दी की टोकरी में डाल देते हैं। अनुसंधानकर्ता के लिए प्रश्नावली उसके अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण होती है परन्तु कई लोग उसे रद्दी के कागज के अतिरिक्त कुछ नहीं समझते। कई लोग उसके उत्तर भरकर भेजने में समय की बरबादी समझते हैं। इन्हीं सब कारणों से प्रश्नावली विधि की सबसे बड़ी समस्या उसे पुनः प्राप्त करने की होती है। अनुसंधानकर्ता के पास बार-बार अनुरोध पत्र भेजने के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं होता जिससे कि वह प्रश्नावली को पुन: मंगवा सके। कई उत्तरदाता अनुसंधानकर्ता के अनुरोध से चिढ़कर प्रश्नावली को बिना भरे ही वापस लौटा देते हैं।
4. गहन एवं विस्तृत जानकारी का अभाव- साक्षात्कार या अनुसूची विधि से प्रत्यक्ष व आमने-सामने के सम्पर्क के कारण विषय से सम्बन्धित गहन जानकारी प्राप्त हो सकती है। प्रश्नावली में सब कुछ उत्तरदाता की मर्जी पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार के उत्तर दे। उत्तरदाता को विस्तृत जानकारी देने हेतु प्रेरणा देने के लिए अनुसंधानकर्ता उपस्थित नहीं रहता। अतः उत्तरदाता आधे-अधूरे अस्पष्ट उत्तर भरकर प्रश्नावली वापस लौटा देता है। इस प्रकार प्रश्नावली से गहन एवं विस्तृत सूचनाएँ नहीं मिल पाती हैं।
5. गलत सूचनाओं की संभावना- प्रश्नावली विधि में चूँकि अनुसंधानकर्ता अनुपस्थित रहता है अतः उत्तरदाता को प्रश्न समझने में कठिनाई आने पर प्रश्न का अर्थ एवं मंशा समझाने वाला वहाँ कोई नहीं रहता। अतः ऐसी परिस्थिति में या तो उत्तरदाता उस प्रश्न का उत्तर ही नहीं भरेगा या जैसा अर्थ वह प्रश्न का निकालेगा उसी प्रकार का उत्तर भर देगा। इस प्रकार गलत सूचनाएँ प्राप्त होने का डर भी रहता है।
6. उत्तरों की भिन्नता की समस्या- इसके अतिरिक्त अलग-अलग उत्तरदाता प्रश्नों का अलग-अलग अर्थ समझकर भिन्न-भिन्न उत्तर अपने-अपने दृष्टिकोण से देंगे। फलस्वरूप प्राप्त उत्तरों में इतनी भिन्नता एवं विविधता आ जाती है कि उसके आधार पर एक यथार्थ तथा वैज्ञानिक निष्कर्ष निकालना कठिन हो जाता है।
7. उत्तरदाताओं के खराब अक्षरों (लिखावट) की समस्या- प्रश्नावली विधि का एक महत्वपूर्ण दोष खराब लेखन का भी है। उत्तरदाताओं द्वारा भरे जाने के कारण कई बार उनके द्वारा लिखे गए उत्तरों को अस्पष्ट एवं खराब लिखावट के कारण समझ पाना कठिन हो जाता है।
प्रश्नावली एवं अनुसूची में अंतर
उत्तर – प्रश्नावली तथा अनुसूची दोनों में निम्न भिन्नता पायी जाती हैं-
(1) अनुसूची में उत्तरदाता उत्तर स्वयं लिखता है या कार्यकर्ता से लिखवाता है परन्तु प्रश्नावली में शोधकर्ता तथा उत्तरदाता के दूर- दूर होने पर, उत्तरदाता निश्चित रूप से उत्तर स्वयं लिखता है।
(2) अनुसूची में शोधकर्ता स्वयं या प्रशिक्षित कार्यकर्ता अनुसूची के साथ उत्तरदाताओं से प्रत्यक्ष रूप से सम्पर्क करते हैं जबकि प्रश्नावली को मेल द्वारा उत्तरदाताओं के पास भेजा जाता हैं।
(3) अनुसूची का अनुप्रयोग सीमित क्षेत्र में तथा प्रश्नावली का प्रयोग बड़े व बिफरे क्षेत्र में किया जा सकता हैं।
(4) प्रश्नावली की तुलना में अनुसूची में ज्यादा धन तथा समय की आवश्यकता होती हैं। प्रश्नावली में डाक द्वारा अनेकों व्यक्तियों के पास प्रश्नों को भेज दिया जाता हैं जबकि अनुसूची में व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क स्थापित करना पड़ता हैं।
(5) अनुसूची की कृति सार्वभौमिक होने के कारण इसमें निदर्शन के चयन में कोई परेशानी नहीं होती हैं जबकि प्रश्नावली के निदर्शन में केवल शिक्षितों का ही निदर्शन होना चाहिए।
(6) प्राप्त सूचनाओं की विश्वसनीयता के आधार पर अनुसूची के सूचना को प्रश्नावली द्वारा प्राप्त सूचना की तुलना में ज्यादा विश्वसनीय माना जाता हैं।
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