संश्लिष्ट रंजक से क्या आशय है?
संश्लिष्ट रंजक का अर्थ- रासायनिक स्रोतों द्वारा रंजक प्राप्त करने की खोज सर्वप्रथम विलियम हेनरी पार्कन ने 1856 में किया था। जब वह रंगों से क्विनाइन तैयार करने का प्रयत्न कर रहे थे, तब आकस्मिक रूप से उसे संश्लिष्ट रंजक (Synthetic) को तैयार करने की विधि का ज्ञान हो गया। यह रंजक कोलतार का मुख्य उत्पादन है। प्रारम्भ में कोलतार एक व्यर्थ का पदार्थ समझा जाता था। किन्तु धीरे-धीरे इसका उपयोग कई रासायनिक रंजक तैयार करने में किया जाने लगा।
संश्लिष्ट रंजक का वर्गीकरण
संश्लिष्ट रंजकों को उनकी रासायनिक प्रकृति तथा कपड़े रंजन में जिस प्रकार उनका प्रयोग किया जाता है, उसके अनुसार विभिन्न समूहों में बाँटा जा सकता है।
(1) अम्लीय रंजक (Acid Dyes) – अम्लीय रंजक मुख्यतः रंगीन कार्बनयुक्त (Carbonized) सोडियम तथा कैल्सियम नमक होता है। ये प्रकृति में अम्लीय होते हैं। अतः सूती वस्त्रों के लिए अनुपयोगी होते हैं। इनका प्रयोग साधारणतया रेशम तथा ऊन रंजन के लिए किया जाता है। ऊन पर अम्लीय रंजकों का सबसे अच्छा परिणाम निकलता है।
(2) बुनियादी रंजक (Basic Dyes)- कार्बन (Organic) रंजकों में नमक होते हैं। इनका प्रयोग रेशम और ऊन के लिए अच्छी तरह से किया जा सकता है, किन्तु रुई पर प्रयोग करते समय कुछ अम्लीय क्षार (Acid mordants) का प्रयोग करना ही उचित होगा। साधारणतया इसके सहायक के रूप में टेनिक एसिड (Tanic acid) का प्रयोग किया जाता है। बुनियादी रंजक रेशम की चमक के साथ-साथ उसके रंजक का गहरापन भी बढ़ते हैं। ये रंजक धोने पर अथवा प्रकाश में हल्के पड़ जाते हैं। अतः इनको संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है।
(3) प्रत्यक्ष रंजक (Substanive or Direct of Dyes)- इन रंजकों का प्रयोग जाटव रेशों पर भलीभाँति किया जा सकता है, किन्तु साधारणतया इनका प्रयोग सूती वस्त्रों पर ही किया जाता है। ये रंजक मुख्यतया एमाइन (Amine) और फिनोल (Phenol) से बने हुए होते. हैं, जो कि पानी में घुलनशील होते हैं। ये रंजक धुंधलापन लिये हुए होते है। अतः वस्त्र में चमक लाने के लिए इनकी अपेक्षा बुनियादी रंजकों (Basic dyes) को प्राथमिकता दी जाती है।
(4) गन्धक रंजक (Sulphur Dyes) – गंधक रंजक सोडियम सल्फाइड (So- dium sulphide) व अन्य क्षारीय अपचयन प्रतिकर्मक (Reducing reagent) पदार्थों में घुलनशील होते हैं। इन वस्त्रों को रंगने में पर्याप्त मात्रा में क्षार का प्रयोग करना पड़ता है। इन रंगों के द्वारा गहरा नीला, भूरा तथा काला आदि रंग ही रंगे जा सकते हैं। यह रंग प्रायः भारी वस्त्रों को रंगने के लिए ही उपयुक्त है। इन रंगों पर पानी तथा स्वेद का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन धूप में इनका रंग पक्का सिद्ध नहीं होता है। क्लोरीन से विरंजित करने पर इनसे रंगे वस्त्र कच्चे निकल सकते हैं। इन रंजकों का प्रयोग रुई, लिनन, सेलुलोज, रेयन तथा मर्सराइज्ड सूत पर किया जाता है। सल्फर रंग से वस्त्रों को रंगते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
1. सूत अथवा सूती वस्त्रों को रंग के घोल में डूबा रहने दिया जाये, जिससे रंग एक समान वस्त्रों के रेशों तक पहुँच सके।
2. वस्त्र को ताँबे तथा पीतल के बर्तन में कभी भी नहीं रंगना चाहिए। तामचीनी लकड़ी अथवा लोहे के बर्तनों का प्रयोग किया जाना चाहिए। ऊन तथा रेशम में रंग की प्रतिक्रिया शीघ्र हो जाती है। परन्तु सल्फर रंगों में सोडियम सल्फाइड मिश्रित होने के कारण इन रेशों को खराब करते हैं।
3. सूती वस्त्र को सल्फर रंग में रंगने की विधि- सर्वप्रथम 10 गुना उबलते पानी में रंग तथा सोडियम सल्फराइड को डालकर घोल बनायें और उसको छानकर उसमें 20 गुना ठण्डा पानी मिलायें, इसके बाद उसमें सोडा एश (Soda ash) डालकर गुन-गुना कर लिया जाये। जिस वस्त्र को रंगना है, उसे इस घोल में लगभग पन्द्रह मिनट के लिए रखें, फिर नमक मिलायें, इसके बाद बहुत अधिक गर्म घोल में वस्त्र को 45 मिनट तक डूबा रहने दें। तत्पश्चात् घोल में से वस्त्र को निकालकर 15 मिनट के लिए हवा में सुखायें। इसके बाद पाँच प्रतिशत साबुन के घोल में आधा घंटा तक साबुन में उबालें। अन्ततः स्वच्छ जल से धोकर वस्त्र को सुखाने डाल दिया जाये ।
(4) वाट रंजक (Vat Dyes) – रंजक के समूह में वाट रंजक का प्रमुख स्थान है। इनके रंगों में आशातीत पक्कापन तथा अत्यधिक टिकाऊपन होती है। ये रंजक पानी में घुलनशील होते हैं तथा इनको घाल का रूप देने से पूर्व इनकी रासायनिक प्रक्रिया करना आवश्यक है। इन रंजकों को गरम अल्केलाइन के साथ सोडियम हाइड्रोसल्फाइड पायसोकारक या अपचयन प्रतिकर्मक (Hydrosulphide reducing Reagent ) की सहायता से काम में लाया जाता है। यह प्रक्रिया रंजक को रंजक रहित द्रव पदार्थ में बदल देती है जिससे कि वस्त्र रंगा जाता है। जब वस्त्र को सूखने के लिए हवा डाला जाता है या उस पर रासायनिक प्रक्रिया की जाती है, तो रंजक रहित पदार्थ पुनः रंजकों का प्रयोग ऐसे वस्त्रों पर किया जाता है, जो अधिकतर पहनने के काम में आते हैं, बार-बार धोये जाते हैं तथा धूप में रहते हैं। तौलिया, मेजपोश टेबल की चादर के किनारे आदि साधारणतया वाट रंजकों में ही रंगे जाते हैं। अब इन रंजकों का प्रयोग सब प्रकार के रेशों के वस्त्रों पर करना सम्भव हो गया है।
(5) रंग बन्धक रंजक (Mordant Dyes)- ये वस्त्रों पर धातु रंग बन्धक (Metallic mordant) के साथ उपयोग किये जाते हैं, जिससे रंजक वस्त्र के रेशों में सरलता से समाविष्ट हो जाता है। वस्त्र रंगने से पूर्व रंग बन्धक रंजक प्रक्रिया की जाती है। तदुपरान्त उसे रंगा जाता है। इन रंजकों का प्रयोग ऊन तथा छपे हुए सूती वस्त्रों को पक्का रंग देने के लिए किया जाता है।
(6) विकसित रंजक (Developed Colours) – विकसित रंजक रंजक द्रव्य (Dye stuff) पर रासायनिक प्रक्रिया द्वारा विकसित रंजक प्राप्त किये जाते हैं। पहले वस्त्र को रंजक में रंगा जाता है, फिर उस पर कुछ निश्चित रासायनिक तत्त्वों का प्रयोग किया जाता है। रासायनिक प्रक्रिया से रंजक के प्रारम्भिक गहरेपन तक पक्केपन में परिवर्तन आ जाता है।
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