रंग क्या है?
रंग का अर्थ- विरंजक प्रक्रिया द्वारा वस्त्र पर प्राकृतिक रंग हटाकर उसे सफेद कर फिर आवश्यकता तथा इच्छानुसार विभिन्न रंगों में रंगकर सुन्दर बनाना ही रंजक या रंग कहलाता है। ये रंग बिरंगे रंग हमारे जीवन की नीरसता दूर करते हैं, एक प्रकार की संतुष्टि प्रदान करते हैं। इतना ही नहीं व्यक्ति द्वारा अपने परिधानों में प्रयुक्त रंग द्वारा उसके व्यक्तिव की जानकारी होती है। भारतवर्ष में यह रंगाई कला प्राचीन काल से चली आ रही है। यहाँ से यह विदेशों में गई। प्रत्येक रंग क अपना अलग अर्थ तथा महत्व होता है। लाल रंग शोखी-सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है तो काल रंग दुख का प्रतीक, नीला रंग शक्ति का, इतना ही नहीं रंग का प्रयोग मौसम पर भी निर्भर करता है। गर्मी में हल्के रंगों का प्रयोग, तो ठण्ड में गाढ़े तथा गर्म रंगों का प्रयोग किया जाता है।
रंग कितने प्रकार के होते हैं?
रंग जो रंगने के काम आते हैं दो प्रकार के होते हैं-
(1) वर्णक (Pigments)
यह रंग के अघुलनशील कण होते हैं। वस्त्र पर इनका प्रयोग शीघ्रतापूर्वक, सरलतापूर्वक एवं मितव्ययितापूर्वक किया जा सकता है। इनके कण रंजकों की अपेक्षा ज्यादा कठोर होते हैं। ये अपारदर्शी होते हैं तथा वस्त्र की गहराई तक न जाकर सतह पर ही चिपक जाते हैं। परन्तु इन्हें सतह से चिपकाने के लिए सटाने वाला पदार्थ (Affixing Agent) का उपयोग किया जाता है। विभिन्न प्रकार के वर्णकों की भी सूर्य प्रकाश, हवा, धूप, धुलाई की विधि एवं प्रतिकर्मकों के प्रयोग आदि के प्रति विभिन्न प्रतिक्रयाएँ होती हैं। वर्णक रंजकों की अपेक्षा सस्ते होते हैं। ये सरलतापूर्वक वस्त्रों को रंगने के काम आते हैं।
(2) रंजक (Dyes)
रंजक रेशों में प्रवेश कर सके, इसके लिए यह आवश्यक है। कि उसके जो छोटे-छोटे कण हों, वे पूर्णरूप से पानी में घुल सकें। यदि बिना घुले हुए रंग के कण सतह पर ही रह जायेंगे, तो न रंग ही एक समान होंगे और न गहरापन ही एक सा आयेगा। ताप सुनम्य रेशों को रंगना कठिन होता है, क्योंकि उसमें सोखने की शक्ति का अभाव होता है। वस्त्र के रेशों की सादृश्यता कुछ निश्चित रेशों से ही होती है। ये रेशे केवल उन्हीं रेशों को सोख सकते हैं जिनसे उनकी सादृश्यता होती है। दूसरे रेशों का उन पर कोई प्रभाव नहीं होगा।
रेशों के समूह में जितने भी प्रकार के रेशे होते हैं, उनकी सादृश्यता समान रंजकों से ही होती है, किन्तु उन सबको एक प्रकार से नहीं रंगा जा सकता है, उदाहरणतया रेयॉन, शत-प्रतिशत सेल्युलोज रेशा है।
रंजक और वर्णक रंग में अन्तर
रंजक | वर्णक |
रंजक घुलनशील पदार्थ होता है। | वर्णक अघुलनशील और अपारदर्शी पदार्थ होता है तथा रासायनिक प्रक्रिया से वस्त्र से आत्मसात नहीं होता है। |
रंजक रासायनिक प्रक्रिया ताप आदि की सहायता से रेशों में प्रवेश करता है। | वर्णक यान्त्रिक प्रक्रिया द्वारा रॉल की सहायता से वस्त्र की सतह पर रहता है। |
रंजक की रेशे के प्रति सादृश्यता होना आवश्यक है। समान रासायनिक रेशों से बने हुए वस्त्र सदृश रंग को ही ग्रहण करते हैं। जो रैशे शोधक नहीं होते हैं, उन्हें रंजन से, पूर्व भिगोया जाता है। | विभिन्न वर्णकों पर धूप तथा पसीने आदि की रंग नष्ट करने वाली विभिन्न प्रतिक्रियाएँ होती हैं। |
विभिन्न प्रकार के रंजकों की प्रकाश, धोने आदि के प्रति विभिन्न प्रतिक्रियाएँ होती हैं। | विभिन्न प्रकार के वर्णकों की प्रकाश, धोने आदि के प्रति विभिन्न प्रतिक्रियाएँ नहीं होती। |
रंजक महँगे होते हैं। | वर्णक सस्ते होते हैं। |
रंग को घोलकर वस्त्रों को रंगा जाता है। | वर्णक को कच्ची सामग्री स्पीनिरेट के छिद्रों में से गुजारने से पूर्व ही मिश्रित कर दिया जाता है, इससे रंग पक्के रहते हैं। |
रंग फीके अथवा कच्चे भी हो सकते हैं, अगर वस्त्र को ठीक प्रकार से रंगा गया हो। | रंग पक्के रहते हैं। सरलता से उपयोग किये जा सकते हैं। |
रंगों का राजा कौन सा है?
हालांकि, कई अन्य रंग रॉयल्टी के साथ एक या दूसरे तरीके से जुड़े थे। ब्लू (जैसा कि “रॉयल ब्लू”) विशिष्टता की सूची में उच्च है। बैंगनी रंग की दुर्लभता और तीव्रता के कारण यह रंग हमेश से रॉयल्टी से जुड़ा है, प्राचीन रोमन साम्राज्य में केवल धनी और अमीर सम्राट ही इस रंग के कपडे पहन सकते थे।
रंगों की रानी कौन होती है?
रानी रंग लाल रंग व नीले रंग के मिश्रण से प्राप्त होता है।
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