वस्त्र रंगाई की अवस्थायें
वस्त्र रंगाई की अवस्थायें- वस्त्रों की रंगाई की निम्न तीन अवस्थाएँ हैं-
(1) रेशों को कताई करने से पूर्व रंगना- वस्त्र बनाने की प्रक्रिया में रेशे लघुतम इकाई हैं जो कि कच्चा माल होते हैं इसलिए इसे Raw Stock Dyeing कहते हैं। सूती, लिनन, रेशम, ऊनी रेशों को कताई के पूर्व भी रंगा जाता है। इस अवस्था में रंग आसानी से इन रेशों में समा जाता है। रेशे रंगने के लिए रेशों को रंजक के घोल में डुबोकर कुछ समय के लिए रखा जाता है। बीच-बीच में इन रेशों को लकड़ी से हिलाया जाता है ताकि रंग सब रेशों पर एक-सा चढ़ जाये फिर रेशों को रंग से निकालकर सुखा लिया जाता है। रेशे 3 प्रकार से रंगे जाते हैं-
(i) स्टॉक रंगाई- रेशों को बड़े-बड़े टैंकों में डालकर उच्च तापक्रम पर रंगों के साथ क्रिया (Stock dyeirs) कर रंगा जाता है। पम्प की सहायता से रेशों में रंग का प्रवेश करवाया जाता है। यदि रेशे का कुछ भाग रह जाता है तो कताई में रंग उस पर मिल जाता है या कताई में वह दोष छिप जाता है। इस विधि द्वारा रंग मन्द नहीं पड़ता तथा यह विधि सस्ती विधि है।
(ii) टॉप रंगाई (Top Dyeirs) – यह रंगाई वस्टेंड ऊन के रेशों पर की जाती है। छोटे रेशे कंघी प्रक्रिया के बाद रस्सी के समान बँटकर चरखी पर लपेट लिये जाते हैं। ये चरखियाँ रंग के घोल में डालकर रंग कर साफ पानी से निकालकर सुखा ली जाती हैं।
(iii) डॉप (Dop Dyeing) – यह कृत्रिम रेशों के लिये है। रेशे स्पिनरेटर्स से छानने के पहले घोलक में रंग मिला देते हैं। इस प्रकार पक्का रंग चढ़ता है यह एक आसान विधि है।
(2) धाके को बुनाई करने से पूर्व रंगना- यदि रेशों को नहीं रंगा जाता है तो कताई प्रक्रिया द्वारा रेशों को धागे में परिवर्तित कर तब रंगाई की जाती है। कताई के बाद तथा बुनाई से पूर्व धागे रंगने के लिए धागों की लच्छियाँ (Skeing) बना ली जाती है। इन लच्छियों को डण्डे के ऊपर लटका दिया जाता है, अब इस डण्डे को रंग वाले बर्तन में इस प्रकार रखते हैं कि लच्छियाँ रंग वाले बर्तन में डूब जायें। इस डण्डे को लगातार घुमाया जाता है जिससे लच्छियाँ भी रंग में घूमती जाती हैं तथा लच्छियों पर सब ओर एक-सा रंग चढ़ जाता है। लच्छियाँ एक-सा रंग सोख लेती हैं। फिर इन्हें रंग से निकालकर सुखा लिया जाता है।
(3) वस्त्र की रंगाई (Cloth Dyeing) – यदि पूर्व दो अवस्थाओं में रंगाई नहीं की जाती तो बुनाई प्रक्रिया के बाद वस्त्र बन जाने पर उसे विरंजित कर फिर उसे रंगा जाता है। रेशे तथा धागे की अपेक्षा वस्त्र रंग से आतमसात करते हैं क्योंकि बुनाई के कारण धागे पास-पास हो जाते हैं तथा धागे में ऐंठन के कारण भी वस्त्र रंग देर से आत्मसात करते हैं। वस्त्र की रंगाई अलग-अलग प्रकार से की जाती है।
वस्त्र रंगाई की विधियाँ
वस्त्र रंगाई की विधियाँ निम्न हैं-
(1) साधारण रंगाई (Simple Dyeing) – इस विधि द्वारा रंगे पूर्ण वस्त्र पर एक सारंग चढ़ता है। जिस वस्त्र को रंगना हो उसे गीला कर, निचोड़कर, झटककर रंग के घोल में डालकर हिलाया जाता है फिर रंग से निकाल लिया जाता है।
(2) क्रॉस रंगाई (Cross Dyeing) – इस विधि का प्रयोग मिश्रित रेशों से बने धागों के वस्त्र के लिये किया जाता है। इन वस्त्रों को दो बार रंगना पड़ता है क्योंकि अलग-अलग रेशों की रंग के प्रति सादृश्यता अलग-अलग होती है। पहली बार एक प्रकार के रेशे से बने धागों के लिए उसके सादृश्य रंग का प्रयोग किया जाता है जो कि एक प्रकार के धागों पर चढ़ जाता है फिर दूसरे प्रकार के धागे के सादृश्य रंग का प्रयोग कर उन धागों को रंग लिया जाता है।
(3) बाँधकर रंगना (Tie and Dye)- रंगने की यह विधि बाँधनी के नाम से प्रसिद्ध है। इसका सबसे अधिक तथा सुन्दर प्रयोग राजस्थान में होता है। वर्तमान समय में यह एक लोकप्रिय रंगाई की कला है जो कि राजस्थान से निकलकर सम्पूर्ण भारत में फैल गई है। इस विधि में कपड़े पर डिजाइन बनाकर जिस हिस्से पर रंग वांछित नहीं होता है उसे धागे से विभिन्न विधियों द्वारा (गाँठ, पिन, पत्थर, दालें, पेन्सिल आदि फँसाकर) बाँध दिया जाता है। यह कसकर बँधा धागा अवरोधक का काम करता है। कपड़े को रंग में डालने पर जहाँ-जहाँ धागा बँधा होता है वहाँ रंग नहीं चढ़ता। कपड़े का रंग से निकालकर सूखने पर धागा खोला जाता है। और इच्छित डिजाइन प्राप्त हो जाती है।
(4) बाटिक रंगाई (Batik Dye) – इस रंगाई में मोम को अवरोधक पदार्थ के रूप में प्रयोग करते हैं। कपड़े के जिस भाग में रंग नहीं चाहिये वहाँ मोम पिघलाकर ब्रुश से लगा देते हैं। अब उसे रंग में डुबो देते हैं। जहाँ मोम लगा होता है वहाँ रग नहीं आता। इस प्रकार वस्त्र एक से अधिक रंगों में भी रंगा जाता है। अन्त में गर्म पानी में डालकर मोम हटा ली जाती है।
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