समूह चर्चा क्या है अर्थ परिभाषा (Group Discussion in hindi)
समूह चर्चा – समूह, दो या अधिक व्यक्तियों की ऐसी इकाई है, जिनके बीच पारस्परिक सम्बन्ध रहता है तथा जो एक-दूसरे को प्रभावित करते समूह का अपना उद्देश्य (Aim of goal) होता है, जिसकी प्राप्ति के लिए वह चेष्टा करता है और यही इसके सदस्यों को आपस में बांधे रहता है। समूह के सभी सदस्यों के बीच, इस आधार पर एक मनोवैज्ञानिक सम्बन्ध रहता है। समूह के निजी आदर्श एवं मान्यताएं होती है जिनके द्वारा इसके सदस्यों के व्यवहार और आपसी सम्बन्ध नियन्त्रित होते हैं। सदस्यों का पारस्परिक व्यवहार और सम्बन्ध, समूह के सदस्यों के लिए उपयोगी होते हैं। समूह का संगठन प्रायः अनुभूत आवश्यकताओं पर आधारित होता है जिनकी पूर्ति सामूहिक प्रयासों द्वारा होती है। ग्रामीण समूहों का आधार अधिकतर उनका व्यवसाय होता है, जैसे कृषि कार्य से जुड़े लोगों का समूह, सब्जी-फल उगाने वालों का समूह, दुग्ध उत्पादकों का समूह इत्यादि।
ग्रामीणों की अधिकांश समस्याएं सामूहिक प्रयासों द्वारा ही हल की जा सकती है। एतदर्थ सभी सदस्यों को असहयोगात्मक रवैया अपनाना होता है। सामूहिक चर्चाओं के माध्यम से लोग अपनी समस्याओं तथा आवश्यकताओं का विश्लेषण, सोच-विचार, कार्यक्रम नियोजन तथा सम्बन्धित प्रयास कर सकते हैं। सामूहिक रूप से प्रयास करते रहना लोगों की ‘सह’ भावना को दृढ़ता प्रदान करता है। क्योंकि साथ-साथ काम करना वास्तव में एक अभ्यास है जो मिले-जुले प्रयासों द्वारा ही प्रबलित होता है। सामूहिक प्रयासों तथा कार्यों का प्रथम चरण समूह चर्चा है। एक सुनियोजित समूह चर्चा लोगों में पारस्परिक विश्वास को जन्म देती है। अच्छे एवं प्रभावकारी ढंग से सम्पन्न चर्चा सहकारिता की भावना के प्रति लोगों को आस्थावान बनाती है तथा लोग अपनी ही नहीं, दूसरों की समस्याओं के भी हल ढूँढने का प्रयास करते हैं। लोग केवल अपना भला नहीं, वरन् पूरे समूह का भला सोचने लगते हैं। जब समूह की प्रकृति प्रजातान्त्रिक होती हैं, हर व्यक्ति को अपनी बात प्रस्तुत करने का पूरा अधिकार होता है, उसकी बात को महत्त्व दिया जाता है तथा नतृत्व भार भी सब लोगों को दिया जाता है।
प्रसार कार्यक्रम के अन्तर्गत सामूहिक गठबन्धन व्यावसायिक आधारों पर करके ही समूह चर्चा आयोजित की जाती हो, यह सत्य नहीं। कभी-कभी सांस्कृतिक आयोजनों (रामलीला, प्रदर्शनी, मेला आदि) के निमित्त भी सामूहिक चर्चा का आयोजन किया जाता है। दूसरे शब्दों में, किसी उद्देश्य की पूर्ति के निमित्त सामूहिक चर्चा का आयोजन किया जा सकता है। सामूहिक चर्चा का सफल आयोजन प्रसारकर्ता के निजी प्रयासों का प्रतिफल होता है। प्रसारकर्त्ता को सर्वप्रथम लोगों की समस्याओं का अभिज्ञान होना चाहिए। समस्या विश्लेषण के पश्चात् उसे ऐसे लोगों की पहचान स्थापित करनी चाहिए, जिनका सम्बन्ध उस समस्या से हो। जब प्रसारकर्ता को इस बात का विश्वास हो कि सामूहिक प्रयासों द्वारा समस्या (अथवा समस्याओं) का निदान हो सकता है तो उसे समूह चर्चा आयोजित करनी चाहिए। प्रसारकर्ता को लोगों से मिलकर, उनकी समस्याओं की चर्चा करनी चाहिए तथा उन्हें निदान के उपाय ढूँढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। उन्हें सामूहिक चर्चा में भाग लेने का निमन्त्रण देना चाहिए। सामूहिक चर्चा के लिए बीस से पच्चीस व्यक्तियों का समूह ठीक रहता है।
समूह चर्चा का आयोजन
चर्चा विषयक समस्या का आद्योपान्त विश्लेषण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है । समस्या के निदान से लोगों को क्या-क्या लाभ हो सकते हैं? इसकी परिकल्पना प्रसारकर्त्ता को सुस्पष्ट होनी चाहिए। चर्चा के क्रम में छायाचित्र, पोस्टर, चार्ट या किसी अन्य प्रसार साधन की सहायक साधन के रूप में आवश्यकता पड़ सकती है। ऐसी सम्भावित सहायक सामग्रियों को पहले से जुटा कर रखना चाहिए। लोगों के बैठने की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए जिससे लोग सुखद अनुभव कर सकें। विचार-विमर्श करने के निमित्त, आराम से बैठना आवश्यक शर्त है। इस बात के लिए प्रसारकर्ता को चर्चा-स्थल का चयन भी सावधानी के साथ करना चाहिए। स्थल के साथ- साथ चर्चा के समय का भी महत्व होता है। चर्चा का समय सभी आमन्त्रित लोगों के लिए सुविधाजनक होना चाहिए। समूह चर्चा हेतु लोगों का एक-दूसरे के समक्ष, आमने-सामने बैठना आवश्यक है, जिससे वे वार्तालाप में भाग ले सकें तथा एक-दूसरे को सम्बोधित कर सकें।
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