प्रसार शिक्षण पद्धतियों का वर्गीकरण क्या है?
प्रसार शिक्षण पद्धतियों का वर्गीकरण- प्रसार शिक्षण के निमित्त प्रसार शिक्षाशास्त्रियों द्वारा अनेक शिक्षण पद्धतियों का विकास किया गया है। प्रसार शिक्षण प्रणाली में लचीलापन (Flexibility) इस बात का द्योतक है कि प्रसार कार्य कठोर नियमबद्धता पर नहीं चल सकता क्योंकि प्रसार कर्ता को विभिन्न परिस्थितियों और लोगों के साथ काम करना पड़ता है। जिस प्रकार दो व्यक्तियों के बौद्धिक, शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक स्तरों में अन्तर पाया जाता है, उसी प्रकार भौगोलिक, पर्यावरणिक स्थितियां, यातायात सुविधाएं संचार माध्यमों की उपलब्धता आदि भी हर जगह एक सी नहीं होती। अतः एक ही शिक्षण पद्धति का व्यवहार हर स्थिति में नहीं किया जा सकता। वातावरण एवं परिस्थितियों के अनुरूप शिक्षण पद्धति या पद्धतियों का चयन ही प्रभावकारी सिद्ध हो सकता है। विविध दृष्टिकोण से, प्रसार शिक्षाशास्त्रियों ने प्रसार शिक्षा पद्धतियों का वर्गीकरण इस प्रकार किया है-
प्रयोग के आधार पर वर्गीकरण
प्रसार कार्य के अंतर्गत प्रसारकर्ता को लोगों से सम्पर्क बनाना पड़ता है जिससे वह नई पद्धतियों एवं सूचनाओं को उन तक पहुंचा सके। यहां प्रसारकर्ता से तात्पर्य व्यक्ति और प्रसार कार्य में रत संस्थाओं से है। लोगों से सम्पर्क स्थापित करने की कई विधियां हैं। व्यक्तिगत सम्पर्क द्वारा परस्पर वार्तालाप को महत्व दिया जाता है तभी वैयक्तिक समस्याओं का निवारण हो पाता है। सामूहिक रूप से, कुछ लोगों को एक साथ जमा कर, सभाओं प्रशिक्षण कार्यक्रम टेलीविजन आदि दिखाकर जानकारियां प्रसारित की जा सकती हैं। सामूहिक सम्पर्क कार्यक्रम के अंत में प्रशिक्षु या दर्शक अपनी समस्याएं प्रस्तुत कर सकते हैं। इसी प्रकार की सभा में प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा प्रणाली- प्रदर्शन की व्यवस्था भी की जाती है। व्यापक जन सम्पर्क प्रसार संस्थाओं, निदेशालयों, मंत्रालयों आदि के द्वारा बनाए जाते हैं। अपनी बात कहने के लिए छपित, दृश्य एवं श्रव्य साधनों का प्रयोग किया जाता है। इन साधनों में समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, लघु-पत्रिकाएं, पोस्टर, चार्ट, रेडियो, दूरदर्शन, डॉक्यूमेंट्री फिल्म, उद्योग मेला आदि प्रमुख हैं।
प्रयोग के आधार पर वर्गीकरण
(क) व्यक्तिगत सम्पर्क- (i) फार्म तथा घर पर भेंट (ii) कार्यालय में मिलना; (iii) टेलीफोन वार्ता; (iv) व्यक्तिगत पत्राचार; (v) परिणाम प्रदर्शन ।
(ख) सामूहिक सम्पर्क- (i) प्रणाली प्रदर्शन; (ii) व्याख्यान, सभा, समूह चर्चा; (iii) प्रशिक्षण कार्यक्रम भ्रमण; (iv) परिणाम प्रदर्शन सभा; (v) सम्मेलन; (vi) दृश्य-श्रव्य-साधन
(ग) व्यापक जन सम्पर्क- (i) छपित (मुद्रित) सामग्रियां समाचार-पत्र, पत्रिका, सूचना-पत्र, परिपत्र, विज्ञप्ति आदि; (ii) पोस्टर चार्ट, (iii) प्रदर्शित सामग्री; (iv) दृश्य-श्रव्य साधन।
स्वरूप तथा प्रकृति के आधार पर वर्गीकरण
प्रसार शिक्षण का स्वरूप लिखित, उच्चरित (मौखिक) या चाक्षुष हो सकता है। इसी आधार पर शिक्षण-पद्धति एवं प्रसार-साधनों का वर्गीकरण किया जाता है। प्रथम श्रेणी में समाचार पत्र, पत्रिकाएं, परिपत्र, व्यक्तिगत पत्र आदि आते हैं जिनके माध्यम से प्रसार संदेशों का प्रसारण होता है। द्वितीय वर्ग में ऐसे माध्यम आते हैं। जिनमें वाणी का प्रयोग होता है। वाणी द्वारा स्थापित सम्पर्क प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष हो सकता है। उदाहरणार्थ, सभा, अधिवेशन, सम्मेलन, फार्म तथा घर पर भेंट सामूहिक चर्चा आदि प्रत्यक्ष सम्पर्क के अंतर्गत आते हैं जबकि रेडियो, टेपरिकार्डर, रिकॉर्ड, श्रव्य कैसेट, टेलीफोन आदि अप्रत्यक्ष या परोक्ष प्रसार साधन हैं। इनके अतिरिक्त तीसरा वर्ग उन माध्यमों का है जो चाक्षुष है, अर्थात् जहां ज्ञान का माध्यम हमारे नेत्र हैं। इनमें प्रणाली प्रदर्शन, प्रदर्शनी, पोस्टर, चार्ट, चलचित्र, छाया चित्र, परिणाम प्रदर्शन, दूरदर्शन कार्यक्रम, वीडियो कैसेट आदि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है।
स्वरूप अथवा प्रकृति के आधार पर वर्गीकरण
(क) लिखित (i) छपित (मुद्रित) सामग्रियां – समाचार पत्र, पत्रिका, परिपत्र, सूचना- पत्र, विज्ञप्ति आदि; (ii) व्यक्तिगत पत्र; (iii) चार्ट
(ख) उच्चरित या मौखिक
प्रत्यक्ष- (i) सभा, अधिवेशन, सम्मेलन; (ii) फार्म तथा घर पर भेंट; (iii) सामूहिक चर्चा; (iv) व्याख्यान; (v) कार्यालय में भेंट। परोक्ष- (i) रेडियो, ट्रांजिस्टर, (ii) रिकॉर्ड, श्रव्य -कैसेट; (iii) टेलीफोन वार्तालाप।
(ग) चाक्षुष- (i) प्रदर्शनी; (ii) पोस्टर, चार्ट, छायाचित्र; (iii) प्रणाली प्रदर्शन; (iv) परिणाम प्रदर्शन; (v) चलचित्र; (vi) टेलीविजन, वीडियो; (vii) स्लाइड; (viii) नाटक; (ix) कठपुतली।
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