सामुदायिक विकास में प्रसार शिक्षा की भूमिका
सामुदायिक विकास में प्रसार शिक्षा- मानव संसाधन विकास के लिये केवल तकनीकी एवं भौतिकी संसाधन ही पर्याप्त नहीं बल्कि इसके साथ वह करता क्या है, यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मनुष्य अपने उपलब्ध संसाधनों से जो कुछ करता है, वह विशेष रूप से उसके शैक्षिक स्तर के अनुरूप ही होता है तथा उसके शैक्षिक स्तर के अनुरूप ही होता है तथा उसके शैक्षिक स्तर का विकास ज्यादातर सामाजिक योगदान की सीमा तथा उसकी प्रकृति पर आधारित होता है। वास्तव में, अनुसंधानिक तरीकों से ज्ञान अर्जित करने की तुलना में शैक्षिक प्रक्रिया द्वारा ज्ञान के विस्तार के महत्व का कम अनुभव किया गया। अब जबकि राष्ट्रीय उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु प्रजातान्त्रिक संस्थाओं के विकास पर महत्व दिया जा रहा है वहीं उपरोक्त तथ्यों को शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों एवं राजनेताओं द्वारा मान्यता दी जा रही है। एशिया के अधिकांश विकासशील देश अपनी ग्रामीण जनता की प्रगति में रुचि ले रहे हैं। अतः ग्रामीणों की इस प्रकार मदद की जाये कि वे शिक्षा द्वारा अपने जीवन स्तर में सुधार हेतु सहयोग प्राप्त कर अपनी सहायता स्वयं करना सीख सकें, ऐसी सामान्य सहमति के आधार पर बनी अवधारणा ही प्रसार शिक्षा है।
प्रजातान्त्रिक समाज में ग्रामीण विकास हेतु केवल योजना, संसाधन सहायता, व्यावसायिक कर्मी या अभिकरणों और संगठनों द्वारा प्रबन्ध करने का मामला ही नहीं है बल्कि इन्हें प्रभावकारी शैक्षिक साधन के रूप में उपयोग कर लोगों के विचार व क्रिया-कलाप में इस प्रकार परिवर्तन लाने का उपक्रम भी सम्मिलित है ताकि वे अपनी सहायता स्वयं करते हुए आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान कर सकें। अतः यह शैक्षणिक प्रक्रिया है जिसमे लोगों के लिये कार्य करने के बजाय, उनके साथ कार्य करना है तथा उन्हें आत्म-निर्भर बनाने में उनकी सहायता करनी है। संक्षेप में, शिक्षा द्वारा उपयोगी ज्ञान के जरिये लोगों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाते करना ही प्रसार शिक्षण प्रक्रिया है। हुए उनकी मदद
साधन एवं लक्ष्य – सामुदायिक विकास भारत में या अन्य देशों में कार्यक्रम, प्रक्रिया, विधि तथा आन्दोलन के रूप में प्रभावित किया जाता है। यद्यपि सामुदायिक विकास की अवधारणा को स्पष्ट करने में भिन्न-भिन्न शब्दों का प्रयोग होता है जिसमें प्रसार शिक्षा एक तीव्र प्रेरणादायी शक्ति के रूप मे स्वीकार की गयी है। बहुधा यही कहा जाता है कि सामुदायिक विकास एक उद्देश्य है और प्रसार शिक्षा उसकी प्राप्ति का साधन। भारत में प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण के पाठयक्रमानुसार कार्यक्रम के छह वर्षों के अनुभव ने प्रमाणित किया है कि सामुदायिक विकास की विधियाँ ‘प्रसार की ही होनी चाहिए।’
सामुदायिक विकास का प्रयास सरकारी प्रशासनिक मशीनरी की कार्य-पद्धति में परिवर्तन लाने का है। यह परिवर्तन सरकारी मशीनरी की भूमिका जिसे वे निभाते हैं तथा उनकी मनोवृत्ति में करने से है अर्थात् अधिकारियों के अधिकार प्रयोग को प्रसार या प्रजातान्त्रिक प्रयोग में बदलने से है और यह आवश्यक रूप से प्रसार शिक्षा है। सामुदायिक विकास संगठन अब आपूर्ति व कार्य निदेशालय की जगह प्रसार शिक्षा निदेशालय के रूप में कार्य करेगा। यदि सामुदायिक विकास को एक उद्देश्य और प्रसार शिक्षा को एक साधन के रूप में लिया जाये तो उद्देश्य की प्राप्ति ज्यादातर साधन के प्रभावी उपयोग पर निर्भर करेगी। इस सन्दर्भ में सामुदायिक विकास में प्रसार शिक्षा की भूमिका स्पष्ट और अर्थपूर्ण होती है।
अनेक लोकतान्त्रिक देशों में ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि विकास कार्यक्रमों में ग्रामीण जनों को सम्मिलित करने तथा न्यूनतम सरकारी सहायता से अपनी सहायता स्वयं करना सिखाने हेतु प्रसार शैक्षिक प्रक्रिया में विश्वास रखना अपरिहार्य है। कृषि, गृह-प्रबन्ध तथा सामुदायिक सेवाओं की समृद्धि के उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्रसार शिक्षा साधन द्वारा इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाये जिससे कोई नई तकनीक का इस्तेमाल करना सीख सकें, साथ ही मानसिक रूप से तथा तकनीकी ज्ञान के प्रति अनुरूप दृष्टिकोण भी रख सकें।
भारतीय ग्रामीण परिवेश में लोगों के जीवन स्तर को उठाने में प्रसार शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है। यदि शिक्षा के सही पहलू को देखें तो यह कथन सही जान पड़ता है, किन्तु यदि शिक्षा को परम्परागत रूप में लेते हैं तो इस कथन के खण्डन होने की सम्भावना होती. है। क्योंकि परम्परा से चली आ रही शिक्षा द्वारा आदतें, मनोवृत्ति, सामाजिक मान्यताएँ, मूल्यों तथा रीति-रिवाज कुछ परिवर्तन के साथ या यथावत् एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी को मिल जाते हैं। प्रसार शिक्षा द्वारा तो नई तकनीक की जानकारी तथा आलोचनात्मक समझदारी को स्थापित करना है। इस प्रकार प्रसार वह शिक्षा है जो स्कूल से बाहर प्रौढ़ों व युवकों को उन्हीं के इच्छानुसार उन्हें आवश्यक विषयों की जानकारी कराता है तथा साथ ही उनकी रुचि के अनुसार कार्य करने की स्वतन्त्रता दिलाता है जिसके आधार पर लोकतान्त्रिक समाज का संगठन मजबूत होता है।
प्रसार शिक्षा द्वारा अधिकाधिक जानकारी और ज्ञान प्राप्ति की प्रेरणा मिलती है। इसकी सहायता से ग्रामीणजन अपनी समस्याओं को सुलझा लेते हैं तथा वे नवीन ज्ञान को प्राप्त करने की ओर प्रवृत्त भी होते हैं। प्रसार शिक्षा इस बात पर बल देती है कि यह प्रत्येक व्यक्ति को इतना समर्थ बनाती है कि वे अपनी समस्याओं पर निजी तौर पर विचार कर सके तथा स्वतन्त्र रूप से निर्णय ले सकें। प्रसारकर्त्ता ग्रामीणजन पर अपनी राय थोपता नहीं बल्कि इस प्रकार से मदद करता है कि जिससे वे अपनी व्यावहारिक जानकारी और अनुभव की सहायता से अपना जीवन सुखमय बना सकें। इस प्रकार शिक्षण व्यवस्था में शिक्षक और शिक्षार्थी में पूरा-पूरा सहयोग हो यह अपेक्षा और सम्भावना रहती है। दोनों ही एक-दूसरे को शिक्षा देते तथा शिक्षा लेते हैं। इस प्रकार प्रसार, ग्रामीण विकास हेतु एक सशक्त साधन है।
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