प्रसार कार्यकर्त्ता से आप क्या समझते हैं?
शिक्षा की प्रसार प्रक्रिया – प्रसार प्रक्रिया स्कूल के बाहर की शिक्षण व्यवस्था के अन्तर्गत विशेषकर ग्रामीणों के साथ उनकी तात्कालीक आवश्यकताओं एवं अभिरुचियों को दृष्टिगत रखते हुए कार्य करना है जिसमें ग्रामीण परिवारों के रहन-सहन का स्तर ऊँचा उठाया जा सके तथा ग्रामीण परिवार गतिमान हो सके।
ग्रामीण प्रक्रिया इस प्रकार की शिक्षा है कि कोई क्रियाकलाप चाहे वह कितना ही महत्वपूर्ण है अथवा प्रसार सेवा के अन्तर्गत हो यदि वह शैक्षिणिक नहीं है तो किसी भी प्रकार से प्रसार प्रक्रिया अथवा प्रसार शिक्षा का अंग नहीं बन सकती। इस प्रकार प्रसार प्रक्रिया स्कूल से बाहर की शैक्षणिक व्यस्था के अन्तर्गत ग्रामीणों के साथ कार्य करना है।
शिक्षा की प्रसार प्रक्रिया के घटक- शिक्षा की प्रसार प्रक्रिया के दो प्रमुख घटक हैं जो एक दूसरे के पूरक हैं। प्रथम घटक शिक्षण विधियाँ, जिन्हें प्रसार शिक्षण विधि भी कहा जाता है जो स्कूल से बाहर की शिक्षण व्यवस्था का प्रारूप देती है जैसे प्रक्षेत्र तथा घर पर भेंट, प्रदर्शनी, सभाएँ, मेला आदि। दूसरा घटक कार्यपालन सारणी के अन्तर्गत शिक्षण विधियों को कैसे प्रतिपादित किया, जाये, का विवेचन होता है जैसे-
(i) कोई योजना तैयार करना जिसमें विधियों को कब और कैसे प्रयोग किया जाये।
(ii) वर्ष भर के लिए क्रिया-कलापों के कार्य विभाजन का कैलेण्डर तैयार करना।
(iii) प्रसार शिक्षा हेतु प्रशिक्षण योजना तैयार करना।
(iv) कार्यक्रम का मूल्यांकन जिसमें अन्य की अपेक्षा तुलना की जा सके।
(v) कार्यक्रम क्रियान्वयन, कार्यक्रम का नियोजन तथा नियोजन अनुरूप कार्य करने का ही नारा होना चाहिये।
प्रसार शिक्षा के अंग
प्रसार शिक्षा के तीन अंग हैं-
1. शोध (Research) – इसके द्वारा नये ज्ञान का पता लगाया उन्हें सत्यापित कर अवधारणाओं का विकास किया जाता है जिससे विषय वस्तु और दृढ़ होती रहती है।
2. शिक्षण (Teaching) – जब प्रसार शिक्षा के विषय वस्तु का ज्ञान, पढ़ाई कार्यक्रम में सम्मिलित कर कराया जाता है जिससे लोग प्रसार कार्य हेतु उपयुक्त बन सकें तब इसे प्रसार शिक्षा का शिक्षण कहा जाता है।
3. प्रसार कार्य / प्रसार सेवा – जब प्रसार के सिद्धान्तों तथा कार्यक्रमों के सिद्धान्तों का प्रयोग संगठन करने, प्रशासन चलाने एवं निरीक्षण करने तथा उपयोगी ज्ञान के विसरण में किया जाता है तब उसे प्रसार कार्य / प्रसार सेवा कहते हैं। बहुधा लोग प्रसार सेवा को ही प्रसार शिक्षा की पूरी अवधारणा मान लेते हैं। वस्तुतः ग्रामीण विकास एवं कल्याण हेतु कार्यक्रम ही प्रसार सेवा है। संक्षेप में प्रसार शिक्षा एक व्यवहारिक सामाजिक विज्ञान है जो विकास की नीति का अध्ययन कर उपयोगी नई तकनीकियों के विसरण पर प्रकाश डालती है।
एक अच्छे प्रसारकर्त्ता के प्रमुख गुण
प्रसार कार्य बहु आयामी होता है जिसके विविध पहलू होते हैं। इसमें कृषि, कुटीर उद्योग, सामुदायिक विकास, आहार नियोजन, गृह प्रबन्ध, शिशुपालन, साक्षरता आदि सम्मिलित किये जाते हैं। प्रसार कार्यकर्त्ता का सम्बन्ध गाँव के सभी वर्गों तथा क्षेत्र के लोगों से होता है। उसे सभी के साथ मिल-जुलकर प्रेमपूर्वक निर्वाह करना होता है।
‘प्रसार कार्यकर्त्ता’ पद के अन्तर्गत उन सभी व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जो प्रसार कार्य में संलग्न हैं। ग्राम स्तरीय कार्यकर्ता, प्रसार अधिकारी, विकास खण्ड अधिकारी अथवा कोई भी प्रसार विशेषज्ञ अथवा गृह वैज्ञानिक प्रसार कार्यकर्त्ता कहलायेगा। प्रत्येक कार्यकर्त्ता के कार्य का स्वरूप भिन्न-भिन्न रहता है परन्तु लक्ष्य समान रहता है। इन सभी के प्रयत्नों के फलस्वरूप प्रसार कार्यों में सफलता प्राप्त हो सकती है। प्रसार कार्य की प्रसार कार्यकर्ता के गुणों पर भी निर्भर करती है। एक अच्छे एवं सफल प्रसारकर्ता में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है-
सामान्य गुण
1. विषय का सही ज्ञान- प्रसार कार्यकर्त्ता ग्रामीण व्यक्तियों को विषय का नया ज्ञान देकर उसके व्यवहार में परिवर्तन लाता है। जब तक कार्यकर्ता को स्वयं विषय का सही ज्ञान नहीं होगा वह कार्य नहीं कर सकेगा।
2. ज्ञानार्जन की इच्छा- प्रसार कार्यकर्त्ता को जनता को नई-नई जानकारी देने हेतु स्वयं ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा होनी चाहिए। विभिन्न अनुसंधान केन्द्रों के शोध कार्यों को जनता तक पहुँचाना व जनता की समस्याओं को अनुसंधान केन्द्रों तक पहुँचाना भी प्रसार कार्यकर्ता का कार्य है।
3. स्पष्टवादी – प्रसार कार्यकर्ता में निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिये ताकि वह लोगों को सही सलाह दे सके। विरोधी व्यक्तियों से भी स्पष्टवादिता से निपटना चाहिए।
4. विवेकशील – व्यक्तियों की कठिनाइयों को समझने व उनके समाधान हेतु प्रसार कार्यकर्त्ता को विवेकशील होना चाहिए।
5. कार्यकुशल- प्रसार कार्यकर्ता को अपने अनुभवों का लाभ उचित व्यक्तियों तक पहुँचाने हेतु कार्यकुशल होना चाहिये।
6. साधन सम्पन्नता- प्रसार कार्यकर्ता को अपने पास उपलब्ध सभी साधनों का समुचित उपयोग करना आना चाहिये ताकि प्रसार कार्य द्रुतगति से आगे बढ़ सके।
7. दूरदर्शिता- प्रसार कार्य लम्बे समय तक चलने वाली प्रक्रिया है। अतः प्रसार कार्यकर्ता में दूरदर्शिता का गुण होना चाहिये ताकि वह भविष्य में होने वाले परिणामों को जान सके।
8. सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार – लोगों की कठिनाइयों को सहानुभूति पूर्ण जानना और उसका समाधान करना प्रसार कार्यकर्त्ता का विशिष्ट गुण है।
9. सेवा भावना – प्रसार कार्यकर्त्ता में सेवा भावना होना चाहिये ताकि वह अपने कर्त्तव्यों का सही पालन कर सके।
व्यक्तित्व सम्बन्धी गुण
1. आकर्षक व्यक्तित्व- प्रसार कार्यकर्त्ता का व्यक्तित्व आकर्षक होना चाहिये ताकि ग्रामीण लोग उसकी ओर आकर्षित हो सकें व उसकी बात सुनने व समझने की चेष्टा कर सकें।
2. कार्यक्रम में विश्वास- यदि प्रसार कार्यकर्ता अपने कार्य में स्वयं विश्वास रखता है तो उसके कार्य में निखार आता है और लोग आकृष्ट होते हैं।
3. कार्य में उत्साह – प्रसार कार्यकर्त्ता यदि अपना कार्य उत्साहपूर्वक करता है तो दूसरे व्यक्ति उसके कार्य में रुचि लेने लगते हैं किन्तु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि अति उत्साह का परिणाम खराब होता है।
4. साहस – कार्यकर्त्ता में कार्य से उत्पन्न कठिनाइयों तथा प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने की हिम्मत होनी चाहिये।
5. स्वस्थ शरीर- स्वस्थ शरीर वाले व्यक्ति सहज ही दूसरे व्यक्तियों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। इसके साथ ही प्रसार कार्यकर्ता को काफी चलना पड़ता है। व्यक्तिगत सम्पर्क करना पड़ता है। प्रत्येक ऋतु में कार्य करना पड़ता है। अतः उसका शरीर स्वस्थ रहना आवश्यक है।
स्वभाव सम्बन्धी गुण
1. सहनशील- प्रसार कार्यकर्ता को ग्रामीण व्यक्तियों का काफी विरोध करना पड़ता है क्योंकि ग्रामीण व्यक्ति रूढ़िवादी होते हैं और वह अपने कार्य में आसानी से परिवर्तन नहीं लाते हैं। अतः ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में उसे धैर्य रखने की आवश्यकता होती है।
2. ईमानदार- प्रसार कार्यकर्त्ता को सत्य और ईमानदारी के रास्ते पर चलना चाहिये। जब व्यक्तियों को उसकी ईमानदारी पर विश्वास होने लगेगा, तभी वह उसकी बातों को मानने के लिए तैयार होंगे।
3. सादा जीवन – प्रसार कार्यकर्त्ता को सादा जीवन जीना चाहिये व आडम्बरों से मुक्त होना चाहिये। उसे ग्रामीण व्यक्तियों के समान ही रहना चाहिये तभी उसका प्रभाव दूसरे लोगों पर पड़ेगा।
4. मित्रतापूर्ण व्यवहार- प्रसार कार्यकर्ता को प्रत्येक व्यक्ति से व्यक्तिगत सम्पर्क करना पड़ता है। अतः उसे प्रत्येक व्यक्ति से मित्रतापूर्ण व्यवहार करना चाहिये ताकि सभी लोग उसे अपना मानें व अपनी समस्यायें उसके सामने रख सकें।
5. आन्तरिक प्रेरणा- जब तक प्रसार कार्यकर्त्ता में प्रसार कार्य के प्रति आन्तरिक प्रेरणा की अनुभूति नहीं होगी तब तक वह इच्छापूर्वक कार्य नहीं कर पायेगा और लोगों को उसकी बात का विश्वास भी नहीं हो पायेगा।
6. दृढ़ निश्चय – प्रसार कार्यकर्त्ता में अपने कार्य के प्रति दृढ़ निश्चय होना चाहिये ताकि वह किसी भी बाधा से विचलित न हो।
7. निःस्वार्थ – कार्यकर्त्ता में निःस्वार्थ भावना होनी चाहिये। निःस्वार्थ भावना से किये गये कार्य से लोगों में विश्वास उत्पन्न हो जाता है।
विशेष गुण
1. व्यवहार कुशल-सामान्यतः ग्रामीण व्यक्ति रूढ़िवादी व अन्धविश्वासी विचारों के होते हैं व उसमें आपस में गुटबाजी होती है। अतः प्रसार कार्यकर्ता को व्यवहार कुशल होना चाहिये ताकि वह सभी को एक-एक करके अपनी बात समझा सके।
2. सहयोग भावना- प्रसार कार्यकर्ता को समाज के सभी वर्गों, वर्णों तथा जातियों के लोगों से समानता व सहयोगपूर्ण व्यवहार करना चाहिये।
3. विचारपूर्वक प्रतिज्ञा – ग्रामीण व्यक्तियों के साथ किसी भी प्रकार का अविश्वासपूर्ण कार्य न हो। अतः प्रसार कार्यकर्ता को किसी भी कार्य हेतु विचार पूर्वक प्रतिज्ञा करनी चाहिये।
4. संगठन क्षमता- प्रसार कार्यकर्त्ता में उचित संगठन क्षमता होनी चाहिए ताकि वह समय, धन व श्रम का सही उपयोग कर सके।
5. श्रम के प्रति निष्ठा – प्रसार कायरकर्त्ता में अपने कार्य के प्रति निष्ठा होनी चाहिए व किसी भी प्रकार के श्रम हेतु उसे हिचक नहीं होनी चाहिये।
6. ग्रामीण संस्कार – ग्रामीण जीवन व संस्कार नगरीय संस्कृति से भिन्न होते हैं। इसलिए उनके बीच सफलतापूर्वक कार्य करने हेतु आवश्यक है कि प्रसार कार्यकर्त्ता को उनके समान मान्यताओं को अपनाकर अपने को ग्रामीण संस्कार में ढाल लेना चाहिये व उनकी परम्पराओं में विश्वास करना चाहिये।
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