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सह सम्बन्ध क्या है? प्रकार, उपयोगिता, सह सम्बन्ध ज्ञात करने की विधियाँ

सह सम्बन्ध क्या है
सह सम्बन्ध क्या है

सह सम्बन्ध क्या है? (What is Correlation?)

सह सम्बन्ध (Correlation) – “Correlation” शब्द की उत्पत्ति ‘Co-relation’ से हुई है जिसका अर्थ है- पारस्परिक सम्बन्ध। हम अक्सर दो या अधिक समान समूहों के छात्रों के विभिन्न विषयों के प्राप्तांकों को तुलना करके इनका पारस्परिक सम्बन्ध जानना चाहते हैं। इसी पारस्परिक सम्बन्ध को ‘सह-सम्बन्ध’ कहा जाता है।

वेलिस के शब्दों में- ” सह-सम्बन्ध का अभिप्राय है दो या अधिक विभिन्न समूहों की तुलना ताकि उनके सम्बन्ध को जाना जा सके और उस सम्बन्ध की मात्रा को अंकात्मक रूप में व्यक्त किया जा सके। “

इन परिस्थितियों में द्विचर- श्रेणियों में होने वाले परिवर्तन एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं। दो सम्बद्ध-श्रेणियों में इस प्रकार की परस्पर आश्रितता का विधिवत् सांख्यिकी अध्ययन सह-सम्बन्ध के सिद्धांत के अंतर्गत किया जाता है। जब दो चर – मूल्यों में इस प्रकार का सम्बन्ध हो कि एक में कमी या वृद्धि होने से दूसरे में भी उसी दिशा में या विपरीत दिशा में परिवर्तन होते हों, तो वे दोनों सह-सम्बन्धित कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में, दो सम्बद्ध समंक-श्रेणियों में साथ-साथ परिवर्तन होने की प्रवृत्ति को ही सह-सम्बन्ध या सह-विचरण कहते हैं।

सह-सम्बन्ध के सिद्धांत के मूल तत्त्वों का प्रतिपादन सर्वप्रथम फ्रांस के खगोलशास्त्री ब्रावे ने किया था, परंतु इस सिद्धांत को विकसित करने व आधुनिक रूप देने का श्रेय प्रसिद्ध प्राणिशास्त्री प्रांसिस गाल्टन तथा कार्ल पियर्सन को प्राप्त है।

इसे इस प्रकार भी स्पष्ट किया जा सकता है। दो चर राशियों (Variables) में से एक चर राशि के बढ़ने से दूसरे से वृद्धि या कमी हो तो उन चर राशियों में सह-सम्बन्ध पाया जाता है। दूसरे शब्दों में, से या दो से अधिक चर राशि के आपस के सम्बन्ध को सह-सम्बन्ध कहते हैं

सह-सम्बन्ध के प्रकार (Kinds of Correlation)

सह-सम्बन्ध तीन प्रकार के होते हैं-

(1) धनात्मक सह-सम्बन्ध (Positive correlation)

जब दो समूहों के आँकड़े में एक ही दिशा में परिवर्तन होता है, तब उसके सम्बन्ध को धनात्मक सह-सम्बन्ध (Positive correlation) कहते हैं। एक दिशा में परिवर्तन होने का अभिप्राय यह है कि यदि एक समूह का आँकड़ा घटता या बढ़ता है तो दूसरे समूह का आँकड़ा भी घटता-बढ़ता है। उदाहरणार्थ; यदि एक कक्षा के उन सभी छात्रों के गणित में सबसे अधिक प्राप्तांक आते हैं, जिनके विज्ञान में भी आते हैं, तो गणित और विज्ञान में प्राप्तांकों में धनात्मक सह-सम्बन्ध होता है। यह सह-सम्बन्ध अंकात्मक रूप में +1 द्वारा व्यक्त किया जाता है।

(2) ऋणात्मक सह-सम्बन्ध (Negative Correlation)

जब दो समूहों के आँकड़ों में विपरीत दिशाओं में परिवर्तन होता है तब उनके सम्बन्ध को ऋणात्मक सह-सम्बन्ध (Negative correlation) कहते हैं।

(3) शून्य सह-सम्बन्ध (Zero correlation)

जब एक समूह के आँकड़ों में होने वाले परिवर्तन अर्थात् बढ़ने या घटने का दूसरे समूह के आँकड़े पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, उनके सम्बन्ध को शून्य-सम्बन्ध ( zero corleation ) कहते हैं।

सह सम्बन्ध ज्ञात करने की विधियाँ (Methods of Determining Correlation)

दो या दो से अधिक परमालाओं का सह-सम्बन्ध ज्ञात करने की अनेक विधियों में से निम्नांकित सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं-

1. गुणन घात विधि (Product Moment Method)

2. स्थिति अंतर विधि (Rank Difference Method)

1. गुणन घात विधि (Product Moment Method)

महत्त्व- गुणन घात विधि का प्रतिपादन 19वीं सदी में कार्ल पीयर्सन (Karl Pearson) द्वारा किया गया था। इसीलिए इस विधि को ‘पीयर्सन की सहसम्बन्ध-गुणांक – विधि’ (Pearson’s Correlation Coefficient Method) भी कहते हैं। यह विधि कठिन अवश्य है, पर इसको सर्वोत्तम माना जाता है, क्योंकि इससे सहसम्बन्ध की दिशा और मात्रा का बहुत सन्तोषजनक अंकात्मक माप ज्ञात होता है। यह सहसम्बन्ध ” द्वारा व्यक्त किया जाता है।

सूत्र- ‘पीयर्सन-विधि’ से सहसम्बन्ध ज्ञात करने के लिए निम्नांकित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-

गुणन घात विधि

यहाँ, r= सहसम्बन्ध गुणक

∑xy = X और Y पदमालाओं के अलग-अलग विचलनों के गुणनफल का योग

∑x² = X पदमाला के अलग-अलग प्राप्तांकों को मध्यमान से विचलन के वर्गों का योग।

∑y² = Y पदमाला के अलग-अलग प्राप्तांकों का मध्यमान से विचलन के वर्गों का योग।

2. स्थिति अंतर विधि (Rank Difference Method)

महत्त्व- सहसम्बन्ध की विधि का प्रयोग करनेवाला पहला व्यक्ति कार्ल पीयर्सन था। पर उसने जिस विधि का अन्वेषण किया था, वह बहुत जटिल थी और प्रत्येक परिस्थिति में सरलता से प्रयोग नहीं की जा सकती थी। अतः चार्ल्स स्पीयरमैन ने एक नई और सरल विधि का प्रतिपादन किया। इसे स्पीयर मैन की स्थिति-अंतर विधि या स्थिति-क्रम-विधि (Spearman’s Rank Difference Method or Rank Order Method) कहते हैं। इस विधि द्वारा सहसम्बन्ध गुणक (Correlation Coefficient) को काफी सरलता से ज्ञात कर लिया जाता है। यह सहसम्बन्ध या Rho द्वारा व्यक्त किया जाता है।

सह सम्बन्ध गुणक की उपयोगिता (Utility of Correlation Coefficient) 

1. यह गुणक दो पदमालाओं के तुलनात्मक अध्ययन को सम्भव बनाता है।

2. यह गुणक दो पदमालाओं के पारस्परिक सम्बन्ध की मात्रा को व्यक्त करता है।

3. यह गुणक दो समूहों या पदमालाओं के कार्य- कारण सम्बन्ध (Causal Relationship) पर प्रकाश डालता है।

4. यह गुणक विभिन्न परीक्षाओं की सत्यता और विश्वसनीयता का ज्ञान करने में योग देता है।

5. यह गुणक, शिक्षा और मनोविज्ञान के क्षेत्रों में अध्यापक, अन्वेषक और अनुसंधानकर्ता के लिए बहुत उपयोगी है।

6. यह गुणक, छात्रों की कार्यक्षमता की वास्तविक जानकारी प्राप्त करने में सहायता देता है।

7. यह गुणक, छात्रों के विभिन्न गुणों का, योग्यताओं का पारस्परिक सम्बन्ध जानने में योग देता है।

8. यह गुणक, छात्रों के विभिन्न विषयों के प्राप्तांकों में सम्बन्ध बताता है।

9. यह गुणक विभिन्न विषयों में छात्रों की प्रगति की जानकारी प्रदान करके उनकी शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन दिये जाने के कार्य को सरल बनाता है।

10. यह गुणक विभिन्न शिक्षण-विधियों और उनकी उपलब्धियों का ज्ञान प्रदान करके उनके आवश्यक संशोधन करना सम्भव बनाता है।

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