सांख्यिकी का अर्थ
सांख्यिकी क्या है?- ‘STATISTICS’ अंग्रेजी भाषा का है। इसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द STATUS अथवा शब्द STATISTIK अथवा इटैलियन भाषा के शब्द STATISTA से हुई है। इन सभी शब्दों में या स्टेट सम्बन्धी आँकड़ों से है। प्राचीन काल में सभी राज्य अपने आय – व्यय, सैनिक शक्ति, जन्मदर और मृत्युदर आदि का ब्यौरा रखते थे। प्राचीनकाल की अपेक्षा आधुनिक में काल में बहुत अधिक भिन्न है।
सांख्यिकी की परिभाषा
(1960) के अनुसार, “सांख्यिकी व्यक्तियों, वर्गों आदि से सम्बन्धित तथ्यों एवं प्रदत्तों का वह विज्ञान है जिसमें लोगों के सामाजिक, नैतिक तथा भौतिक दशाओं से सम्बन्धित तथ्यों का संकलन एवं व्यवस्थापन किया है।”
कैण्डाल और बकलैण्ड (1963) के अनुसार, “सांख्यिकी प्रदत्तों के संग्रह, उनके विश्लेषण तथा निष्कर्ष निकालने का विज्ञान है।”
सिम्पसन और कॉफ्का (1969) के अनुसार, “आजकल सांख्यिकी शब्द का अर्थ मात्रात्मक सूचना से उस विधि से है जो मात्रात्मक सूचना से सम्बन्धित है। इसमें मात्रात्मक सूचना का संकलन प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा व्याख्या की जाती है।”
फरग्यूसन (1982) के अनुसार, “सांख्यिकी विधितंत्र की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध सर्वेक्षणों एवं प्रयोगों के आधार पर प्राप्त आँकड़ों का संकलन, वर्गीकरण, विवरण तथा विवेचन करना है।
इसका मुख्य उद्देश्य जनसंख्या सम्बन्धी संख्यात्मक विशेषताओं का वर्णन करना तथा इस विषय के सम्बन्ध में अनुमान लगाना है।”
इंग्लिश और इंग्लिश (1980) के अनुसार, “सांख्यिकी वह कला है और विज्ञान है जो ) किसी निर्धारित क्षेत्र में अनेक तथ्यों का एकत्रीकरण और संयोजन करती है, इनका गणितीय हल निकाला जाता है जिससे आंकिक सम्बन्ध स्पष्ट रूप से स्थापित किया जा सके तथा इन्हें अव्यवस्था और संयोग कारकों के प्रभाव से मुक्त किया जा सके।”
बेस्ट (1998) के अनुसार, “सांख्यिकी गणितीय तकनीकी और प्रक्रियाओं से सम्बन्धित वह विषय है जिसकी सहायता से आंकिक प्रदत्तों का संग्रह, व्यवस्थापन, विश्लेषण और व्याख्या की जाती है अनुसंधान अध्ययनों में ऐसे मात्रात्मक आँकड़ों की आवश्यकता होती है, सांख्यिकी मापन, मूल्यांकन और अनुसंधान का यंत्र (Tool) है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि सांख्यिकी गणितीय तकनीकों और प्रक्रियाओं से सम्बन्धित वह विषय है जिसमें पूर्व निश्चित उद्देश्यों के अनुसार सर्वेक्षण, अध्ययनों और प्रयोगों आदि के आधार पर आंकिक प्रदत्तों का संग्रह, व्यवस्थापन, वर्गीकरण, विवरण, विश्लेषण, तुलना और विवेचना की जाती है। आंकिक प्रदत्तों के विश्लेषण के आधार पर चरों या तथ्यों के पारस्परिक सम्बन्धों को ज्ञात किया जाता है, चरों या तथ्यों के सम्बन्ध में अनुमान लगाया जाता है, चरों या तथ्यों के सम्बन्ध में निष्कर्ष निकाला जाता है और भविष्य कथन किया जाता है।
सामाजिक विज्ञानों में सांख्यिकी, अनुसंधान का एक यंत्र (Tool) है जिसकी सहायता से अध्ययनों और अनुसंधानों में उपरोक्त वर्णित कार्य तो किये ही जाते हैं साथ-साथ मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में सांख्यिकी की सहायता से मापन और मूल्यांकन भी किये जाते हैं।
सांख्यिकी की विशेषताएँ (Characteristics of Statistics)
1. इसमें तथ्यों की अभिव्यक्ति अंकों के रूप में की जाती है (Facts are numerically expressed)। उन तथ्यों का अध्ययन सांख्यिकी में नहीं होता है जिनकी अभिव्यक्ति अंकों में नहीं की जा सकती है।
2. सांख्यिकी के परिणाम औसत पर निर्भर होते हैं न कि व्यक्तिगत इकाइयों पर निर्भर होते हैं।
3. यह एक प्रकार की वैज्ञानिक विधितंत्र ( Methodology) है।
4. यह तथ्यों के सम्बन्ध में आँकड़ों के संकलन, वर्गीकरण, विवरण, विश्लेषण और विवेचना में सहायक है।
5. तथ्यों की विशेषताओं को जानने निष्कर्ष निकालने और अनुमान लगाने में भी सांख्यिकी सहायक है।
6. सांख्यिकीय विधियों का उपयोग अन्य अध्ययन विधियों के साथ एक सहायक विधि के रूप में किया जाता है।
7. सांख्यिकीय विधियों का उपयोग सामाजिक शोध अध्ययनों को व्यवस्थित और वैज्ञानिक बनाता है।
8. विभिन्न चरों, घटनाओं और तथ्यों में व्याप्त कार्य-कारण (Cause and effect) सम्बन्ध के अध्ययन में सांख्यिकी सहायक है।
9. सांख्यिकी शिक्षा और मनोविज्ञान के अध्ययनों में जब उपयोग में लायी जाती हैं तब सांख्यिकी शब्द का उपयोग बहुवचन के रूप में किया जाता है। वास्तव में सांख्यिकी कोई – एक विधि नहीं है बल्कि अनेक विधियों के संग्रह से सम्बन्धित विषय है। इसी कारण से व्यावहारिक सांख्यिकी, जिसका उपयोग शिक्षा और मनोविज्ञान में किया जाता है, के लिए कभी-कभी सांख्यिकी विधियाँ (Statistical Methods) शब्दावली का भी प्रयोग किया जाता है।
10. व्यावहारिक सांख्यिकी या सांख्यिकीय विधियों की सहायता से शिक्षा और मनोविज्ञान में मापन और मूल्यांकन सम्बन्धी अध्ययन भी किये जाते हैं।
सांख्यिकी शिक्षण के उद्देश्य (Objectives of Statistics teaching)
प्रत्येक विषय का उद्देश्य छात्रों के वर्तमान व्यवहार में परिवर्तन करना होता है। सांख्यिकी के शिक्षण से छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन होना स्वाभाविक है। उनमें तर्क, विश्लेषण, चिन्तन एवं व्याख्या करने की क्षमता उत्पन्न होती है। सांख्यिकी के उद्देश्य ये हैं-
1. सांख्यिकी सम्बन्धी शब्द भण्डार में वृद्धि – सांख्यिकी के शिक्षण से छात्रों के शब्द भण्डार में सांख्यिकी सम्बन्धी अनेक शब्दों की वृद्धि होती है। सामान्य व्यवहार में इन शब्दों के प्रयोग से वे जटिलता एवं भ्रम का अनुभव नहीं करते। इसका परिणाम यह होता है कि वे सांख्यिकी सम्बन्धी व्यवहार को सरलतापूर्वक समझ लेते हैं।
2. सांख्यिकी गणना में कुशलता- सांख्यिकी के शिक्षण का उद्देश्य छात्रों में सांख्यिकी की गणना की प्रक्रिया में कुशलता का निर्माण करना है। सांख्यिकी के परिणामों से हम प्रयोग के औचित्य एवं उसके सत्यापन (Verification) की जांच कर सकते हैं। सांख्यिकीय विधियों के द्वारा परिणामों की वस्तुनिष्ठता, वैधता और शुद्धता की जाँच हो जाती है।
3. परिणाम विवेचन- सांख्यिकी के शिक्षण का उद्देश्य छात्रों को इस योग्य बनाना है कि वे सांख्यिकी द्वारा प्राप्त परिणामों का विवेचन करने में सक्षम हो सकें। यदि छात्र गलत निष्कर्ष निकालेंगे या गलत विवेचन करेंगे तो उसका कोई लाभ नहीं होगा।
4. तर्क को समझना – सांख्यिकी का उद्देश्य छात्रों में तर्क शक्ति का विकास करना है । चिन्तन की प्रक्रिया मानव व्यक्तित्व को विकसित करने में विशेष योग देती है। तर्क के द्वारा आँकड़ों का विवेचन करना सरल हो जाता है।
5. उचित प्रयोग- सांख्यिकी का उद्देश्य छात्रों में व्यवस्थित ज्ञान का विकास करना है। छात्र उन विधियों के उचित प्रयोग के विषय में जान जाते हैं जिनके द्वारा वे उचित परिणाम पर पहुँच सकते हैं।
6. गणित के ज्ञान का उपयोग – गणित के आधार पर आज का जीवन चल रहा है। प्रारम्भिक गणित ही सांख्यिकी का आधार है। सांख्यिकी गणित के ज्ञान का उपयोग करती है।
यह जान जाता है कि दो या दो से अधिक समूहों के मध्यमानों में यदि कोई अंतर है तो क्या मध्यमानों में यह अंतर सार्थक अंतर है ? दो या दो से अधिक मध्यमानों में अंतर कितना सार्थक है ? इन सब प्रश्नों के उत्तर इन सांख्यिकीय विधियों के उपयोग से प्राप्त हो जाते हैं।
(8) आँकड़ों या प्रदत्तों के सह सम्बन्ध के वर्णन में उपयोगिता (Utility in description of relationship of data) – जब कोई अध्ययनकर्ता या अनुसंधानकर्ता दो या अधिक प्रकार के आँकड़ों अथवा दो या दो से अधिक समूहों से प्राप्त आँकड़ों के पारस्परिक सम्बन्ध का अध्ययन करना चाहता है अथवा यह जानना चाहता है कि यह दो या दो से अधिक समूह में प्राप्त आँकड़े किस सीमा तक एक-दूसरे से सहसम्बन्धित हैं ? इन प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए अध्ययनकर्ता या अनुसंधानकर्ता सांख्यिकी की सहसम्बन्ध (Correlation) की विधियों का उपयोग करता है
(9) प्रतिगमन और भविष्यकथन में उपयोगिता (Utility in regression and prediction) – दो चरों के अपने-अपने मध्यमान से घटने-बढ़ने के मध्य अनुपात ही प्रतिगमन है प्रतिगमन के द्वारा दो चरों के स्वरूप का भी ज्ञान हो जाता है। एक घटना या चर से सम्बन्धित ज्ञान के आधार पर घटना या चर के सम्बन्ध में जब कोई अध्ययनकर्ता या अनुसंधानकर्ता पूर्वनुमान लगाना चाहता है अथवा भविष्य कथन करना चाहता है तब वह सांख्यिकी की प्रतिगमन और भविष्यकथन से सम्बन्धित विधियों का उपयोग करता है।
(10) कार्य-कारण सम्बन्ध में उपयोगिता (Utility in the study of cause and effect relationship)—जब कोई अध्ययनकर्ता या अनुसंधानकर्ता स्वतंत्र चर (Independent variable) का परतंत्र चर (Dependent variable) पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करना चाहता है अथवा कार्य-कारण सम्बन्ध का अध्ययन करना चाहता है तो इसका अध्ययन वह सांख्यिकी विधियों की सहायता से कर सकता है। इसके लिए अध्ययनकर्ता को न केवल समूहों में अंतर की सार्थकता की जाँच करनी होती है बल्कि उसे सहसम्बन्ध की गणना भी करनी होती है
(11) भविष्यवाणी करने में उपयोगिता (Utility in prediction) – जब कोई अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक ढंग से अनुसंधान कार्य करता है तब वह अपने अनुसंधान परिणामों के आधार पर उन अध्ययन इकाइयों के व्यवहार के सम्बन्ध में भविष्यकथन कर सकता है, जिन अध्ययन इकाईयों के व्यवहार का उसने वैज्ञानिक अध्ययन किया है। भविष्य कथन करने में सांख्यिकीय विधियाँ बहुत उपयोगी हैं, इनके उपयोग के बिना वैज्ञानिक ढंग से भी भविष्य कथन करना सम्भव नहीं है।
(12) सामान्यीकरण में उपयोगिता (Utility in generalization) – वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ता अध्ययन करते समय बहुधा सम्पूर्ण जनसंख्या की इकाइयों का अध्ययन नहीं करता है, वह सम्पूर्ण जनसंख्या में से कुछ अध्ययन इकाइयाँ या प्रतिदर्श (Sample) चुन लेता है और इस प्रतिदर्श पर वह अपना अध्ययन पूर्ण करता है। प्रतिदर्श पर अध्ययन पूर्ण हो जाने के बाद अनुसंधानकर्ता यह जानना चाहता है कि उसके अनुसंधान परिणाम केवल उस प्रतिदर्श के लिए ही सही हैं, जिसका उसने अध्ययन किया है अथवा उसके अध्ययन परिणाम उस सम्पूर्ण जनसंख्या के लिए सही हैं, जिससे अनुसंधानकर्ता ने अध्ययन के लिए प्रतिदर्श चुना है। यह प्रक्रिया सामान्यीकरण कहलाती है। सामान्यीकरण में सांख्यिकी की महत्वपूर्ण उपयोगिता है।
(13) मापन और मनोवैज्ञानिक में उपयोगिता (Utility in measurement and psychological testing) – मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में मापन (Measurement) करते समय सांख्यिकीय विधियाँ बहुत अधिक उपयोगी हैं। मनोविज्ञान और शिक्षा में मापन के लिए अन्य विधियों के अतिरिक्त मनोवैज्ञानिक परीक्षणों (Psychological tests) का भी उपयोग बहुतायत में किया जाता है। इन मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के निर्माण और मानकीकरण (Standardization) में भी सांख्यिकीय विधियों का उपयोग बहुतायत से किया जाता है। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के निर्माण में प्रश्नों या पदों का चयन करते समय पद विश्लेषण (Item analysis) में भी सांख्यिकीय विधियाँ उपयोगी हैं। इसके साथ-साथ इन मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की विश्वसनीयता (Reliability) और वैधता (Validity) ज्ञात करते समय भी सांख्यिकीय विधियाँ उपयोगी हैं। सांख्यिकीय विधियों के उपयोग के अभाव में मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का निर्माण सम्भव नहीं है। शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों की विभिन्न योग्यताओं और शिक्षकों की विभिन्न योग्यताओं के मापन और मूल्यांकन में सांख्यिकीय विधियाँ बहुत अधिक उपयोगी हैं।
(14) सामाजिक विज्ञानों में सांख्यिकी के कुछ अन्य उपयोग ( Some other importance of statistic in social sciences) – सामाजिक विज्ञानों में विद्यार्थियों का चयन (Selection) करते समय सांख्यिकीय विधियों की उपयोगिता है। विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि, प्रगति और पदोन्नति में भी सांख्यिकीय विधियों की उपयोगिता है। विद्यार्थियों की विभिन्न मानसिक योग्यताओं, जैसे- व्यक्तित्व, बुद्धि, चिन्ता, कुण्ठा, रुचियाँ, अभिरुचियाँ, अभिक्षमता आदि के मापन में भी सांख्यिकीय विधियों का उपयोग बहुत अधिक है । विद्यार्थियों के कार्य निष्पादन के मामले में भी सांख्यिकीय विधियाँ उपयोगी हैं।
सांख्यिकी के प्रकार
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सांख्यिकी का महत्व
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