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सांख्यिकी के प्रकार | सांख्यिकी की सीमाएँ | Sankhyiki Ke Prakar

सांख्यिकी के प्रकार
सांख्यिकी के प्रकार

सांख्यिकी के प्रकार (Types of Statistics)

सांख्यिकी एक स्वतंत्र विषय के रूप में भी पढ़ा और पढ़ाया जाता है। इस विषय को वर्गीकरण की दृष्टि से शुद्ध सांख्यिकी (Pure Statistics) अथवा सैद्धान्तिक सांख्यिकी (Theoretical Statistics) कह सकते हैं। इस सांख्यिकी में अनेक सांख्यिकीय विधियाँ या सूत्रों का वर्णन है। इन विधियों के बनाने की विद्या भी सांख्यिकी में सिखाई जाती है। इसके अतिरिक्त इसमें अनेक सिद्धांतों का भी वर्णन है। इस सांख्यिकीय की एक शाखा व्यावहारिक सांख्यिकीय (Applied Statistics) भी है। मनोविज्ञान और शिक्षा में व्यावहारिक सांख्यिकी का ही उपयोग किया जाता है। व्यावहारिक सांख्यिकी को सुविधा की दृष्टि से निम्न प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं-

(1) आँकड़ों की प्रकृति के आधार पर सांख्यिकी के प्रकार

(अ) प्राचल सांख्यिकी (Parametric Statistics)

(ब) अप्राचल सांख्यिकी (Non-parametric Statistics)।

(2) उपयोगिता या कार्य के आधार पर सांख्यिकी के प्रकार

(अ) वर्णनात्मक सांख्यिकी (Descriptive Statistics),

(ब) निष्कर्षात्मक सांख्यिकी ( Inferential Statistics),

(स) भविष्य कथनात्मक सांख्यिकी (Predictive Statistics) ।

सांख्यिकी के उपरोक्त प्रकारों का वर्णन निम्न प्रकार हैं-

1. प्राचल सांख्यिकी (Parametric Statistics)

प्राचल सांख्यिकी वह सांख्यिकी है जिसमें उन आँकड़ों या प्रदत्तों का अध्ययन किया जाता है जो सामान्य वितरण वक्र (Normal Probability Curve) अभिधारणा (Assumptions) पर आधारित होता है। इस सांख्यिकी के अर्थ को स्पष्ट करते हुए रेबर (A.S. Reber, 1987) ने लिखा है कि, “प्राचल सांख्यिकी का अर्थ उन सांख्यिकीय विधियों से है जिनके लिए आवश्यक है कि विश्लेषण के लिए, लिये गये प्रतिदर्श प्रदत्त ऐसी जनसंख्या से लिये गये हों जिनमें सामान्य वितरण की विशेषता उपलब्ध हो।”

प्राचल सांख्यिकी का सम्बन्ध समष्टि (Universe) के किसी एक विशेष प्राचल (Parameter) से होता है तथा आँकड़ों के आधार पर प्राचल के सम्बन्ध में अनुमान लगाया जाता है, वे आँकड़े प्रतिदर्श (Sample) और सामान्य वितरण से सम्बन्धित होते हैं। इसमें Randomness of sample, Homogeneity of variance तथा सम्बन्धित सांख्यिकीय विधियों द्वारा किया जाता है। इसमें प्रतिगमन की रैखिकता (Rectilinearity of Regression) आदि के होने पर पियरसन सहसम्बन्ध गुणांक की गणना भी वैध मानी जाती है।

2. अप्राचल सांख्यिकी ( Non-parametric Statistics)

अप्राचल सांख्यिकी को वितरण मुक्त सांख्यिकी (Distribution free statistics) भी कहा जाता है। इस प्रकार की सांख्यिकी की विशेषता यह है कि इसमें प्राप्त आँकड़ों का सामान्य रूप से वितरण होना आवश्यक नहीं है। अप्राचल सांख्यिकी सामान्य वितरण के बंधन से मुक्त होती है। दूसरे शब्दों में, हम यह भी कह सकते हैं कि यह वह सांख्यिकी है जिसमें प्राचीन सांख्यिकी की आधारभूत मान्यताओं का पालन नहीं किया जाता है।

कुछ आँकड़े ऐसे भी होते हैं जहाँ न तो संयोगिक चयन होता है और न वितरण ही ऐसे आँकड़ों की संख्या कम न होने के कारण आँकड़ों का स्वरूप विकृत (Skewed) होता है। इन आँकड़ों की एक विशेषता यह भी होती है कि इनका एक समष्टि के प्राचल से सम्बन्ध भी नहीं होता है। ऐसे आँकड़ों से सम्बन्धित सांख्यिकीय विधियाँ अप्राचल सांख्यिकी के अंतर्गत आती हैं या इन्हें वितरण मुक्त सांख्यिकी कहते हैं। इस प्रकार की सांख्यिकीय विधियों में कुछ प्रमुख हैं- Median, Spearman’s coefficient of Correlation, Chi- square Test. Median Test, Sign Test, Sign Rank Test of Difference, आदि।

3. वर्णनात्मक सांख्यिकी (Descriptive Statistics)

रेबर (A. S. Reber, 1987) ने वर्णनात्मक सांख्यिकी की व्याख्या करते हुए लिखा है कि “वर्णनात्मक सांख्यिकी उसे कहते हैं, जिसमें प्रदत्त के प्रतिदर्शों को वर्णन करने, संगठित तथा संक्षिप्त करने में सांख्यिकीय कार्य प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है।”

इस सांख्यिकी की सहायता से किसी समूह या वर्ग की प्रकृति और स्वरूप आदि का वर्णन किया जाता है इस प्रकार की सांख्यिकी का उपयोग प्रदत्तों के संकलन, व्यवस्थापन, प्रस्तुतीकरण एवं परिकल्पन में होता है। वर्णनात्मक सांख्यिकी में प्रदत्तों का संकलन करके उनको सारणीबद्ध किया जाता है फिर प्रदत्तों की प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए सांख्यिकीय मानों, जैसे- केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप (Measures of Central Tendency) और विचलनशीलता के माप (Measurement of Variability) की गणना की जाती है। केन्द्रीय प्रवृत्ति के मापकों में मध्यमान (Mean), मध्यांक (Median) और बहुलांक (Model) की गणना, चतुर्थांश विचलन (Q.D.) और प्रमाणिक विचलन (S.D.) की गणना की जाती है।

समूह की प्रकृति अथवा आँकड़ों की प्रकृति जानने के लिए विभिन्न विधियों का उपयोग करते हुए आलेखीय चित्रण (Graphical Representation) किया जाता है; जैसे—Pie Diagram, Bar Diagram, Histogram, Polygon, Ogive आदि । समूह में व्यक्ति की स्थिति को Percentile तथा Percentile Rank अदि की सहायता से समझा जाता है। इस प्रकार की सांख्यिकी का प्रयोग समूह के सदस्यों की लम्बाई, भार, बौद्धिक स्तर, सामाजिक स्तर, शैक्षिक स्तर, साक्षरता तथा लड़के-लड़कियों का प्रतिशत ज्ञात करने के लिए, औसत ज्ञात करने के लिए या विचलन और सहसम्बन्ध ज्ञात करने के लिए किया जाता है।

4. निष्कर्षात्मक सांख्यिकी ( Inferential Statistics)

रेबर ( A. S. Reber, 1987) ने निष्कर्षात्मक सांख्यिकी के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा है कि “निष्कर्षात्मक सांख्यिकी का तात्पर्य उन सांख्यिकीय विधियों से है जिनके द्वारा अनुमान लगाये जाते हैं।”

मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में जो अध्ययन किये जाते हैं, यह अध्ययन सम्पूर्ण जनसंख्या के साथ पर प्रतिदर्श (Sample) लेकर किये जाते हैं। जब जनसंख्या बड़ी होती है तब भी बड़ी जनसंख्या से प्रतिदर्श चुनकर प्रतिदर्श के अध्ययन के आधार पर आँकड़े प्राप्त किये जाते हैं सांख्यिकीय विश्लेषण प्रतिदर्श के सम्बन्ध में परिणाम या निष्कर्ष प्राप्त कर लिये जाते हैं फिर अध्ययनकर्ता अपने प्रतिदर्श पर प्राप्त परिणामों के सम्बन्ध में सांख्यिकी विधियों का उपयोग करते हुए यह भी जानना चाहता है कि उसके परिणाम प्रतिदर्श के लिए ही सही हैं अथवा परिणाम उस सम्पूर्ण जनसंख्या के लिए सही हैं जिससे यह प्रतिदर्श चुना गया है। अध्ययनकर्ता निष्कर्षात्मक सांख्यिकीय विधियों की सहायता से यह अनुमान लगा लेता है कि प्रतिदर्श पर प्राप्त परिणाम किस सीमा तक सम्पूर्ण जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं।

उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि निष्कर्षात्मक सांख्यिकी में प्रतिदर्श की सहायता से अध्ययनकर्ता जनसंख्या के सम्बन्ध में अनुमान लगता है। इस अनुमान लगाने में वह सांख्यिकी विधियों का उपयोग करता है। यही कारण है कि निष्कर्षात्मक सांख्यिकी को प्रतिचयन सांख्यिकी (Sampling Statistics) भी कहते हैं।

बहुधा अनुमान (Inference) के लिए अपेक्षाकृत उच्च सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग किया जाता है, जैसे- सम्भावना नियम (Law of Probability) मानक त्रुटि (Standard Error), सार्थकता (Significance) परीक्षण आदि। चूँकि समूह विस्तृत होते तथा इसके सदस्यों की संख्या अधिक होती है, अतः अध्ययनकर्ता इन बड़े समूहों से अध्ययन के लिए प्रतिदर्श (Sample) चुनकर समस्या का अध्ययन करता है। इस प्रकार प्रतिदर्श के अध्ययन से प्राप्त परिणाम सम्पूर्ण समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं। संक्षेप में किसी समूह के सम्बन्ध में अनुमान लगाने और पूर्वकथन से सम्बन्धित सांख्यिकी को निष्कर्षात्मक सांख्यिकी कहते हैं।

सांख्यिकी की सीमाएँ (Limitations of Statistics)

सांख्यिकी का मनोविज्ञान और शिक्षा से सम्बन्धित अध्ययनों और अनुसंधानों में बहुत अधिक उपयोग सर्वविदित है, साथ-साथ सांख्यिकी के उपयोग की कुछ सीमाएँ भी हैं, इन सीमाओं में कुछ प्रमुख सीमाएँ निम्न प्रकार से हैं-

1. भौतिक विज्ञान और गणित जैसे विषयों के नियम यथार्थ पर जैसे आधारित होते हैं इस प्रकार से सांख्यिकीय अनुमान यथार्थ पर आधारित नहीं होते हैं। वास्तविकता यह है कि सांख्यिकीय नियम यथार्थ रूप में औसत पर आधारित होते हैं।

2. यह पहले बताया जा चुका है कि सांख्यिकी विधि कोई एक विधि नहीं है बल्कि व्यावहारिक सांख्यिकी में कई सहस्र विधियाँ हैं। ये सभी सांख्यिकी विधियाँ कुछ शर्तों या अभिधारणाओं (Assumptions) के आधार पर प्रयुक्त की जाती हैं। यदि कोई अध्ययनकर्ता इन अभिधारणाओं पर ध्यान दिये बिना सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग करता है तो उसे गलत परिणाम प्राप्त होने की आशंका रहती है।

3. सांख्यिकी विधियों के लिए अथवा सांख्यिकीय विधियों के प्रयोग के लिए यह आवश्यक है कि तथ्यों को संख्या या अर्को द्वारा प्रकट किया जाये। जब तक तथ्य अंकों में अभिव्यक्त नहीं होते हैं तब तक विश्लेषण सम्भव नहीं होता है। कल्पना, चिन्तन, भाव आदि जटिल मानसिक क्रियाओं का सांख्यिकीय विधियों द्वारा अध्ययन असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। इस कठिनाई का मुख्य कारण यह है कि इन मानसिक प्रक्रियाओं को सरलता से अंकों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है। आधुनिक युग में इस दिशा में यह प्रयास किये जा रहे हैं कि गुणात्मक आँकड़ों को मात्रात्मक आँकड़ों में बदलकर सांख्यिकी विधियों का उपयोग करते हुए वैज्ञानिक अध्ययन किये जाएं।

4. सांख्यिकीय विधियों का उपयोग व्यक्तिगत अध्ययनों से जो आँकड़े प्राप्त होते हैं उन पर नहीं होता है सांख्यिकीय विधियों का उपयोग सामूहिक अध्ययन से प्राप्त आँकड़ों पर ही किया जाता है। सांख्यिकीय विधियों का उपयोग मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से नहीं किया जाता है।

5. इन विधियों का उपयोग अन्य अध्ययन विधियों के साथ सहायक अध्ययन विधियों के रूप में किया जाता है। वास्तविकता यह है कि मनोविज्ञान और शिक्षा में जो आंकिक आँकड़े प्राप्त होते हैं उनके अध्ययन में ही सांख्यिकीय विधियों का उपयोग किया जाता है।

6. सांख्यिकीय निष्कर्ष पूर्ण रूप से प्रमाणित नहीं होते हैं। यह पूर्ण रूप से प्रामाणिक तभी हो सकते हैं जब सांख्यिकीय विधियों का उपयोग पूरी सावधानी से किया जाये। इन विधियों द्वारा गणना करते समय गणना में त्रुटियों के होने की सम्भावना अधिक होती है।

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