परीक्षण निर्माण प्रक्रिया पर प्रकाश डालें (Throw light on the process of test construction)
परीक्षण, अथवा मापनी का निर्माण एक लम्बी तथा जटिल प्रक्रिया है, जिसमें कई अवस्थाएँ या चरण, निहित होते हैं। जैसे- बुद्धि-परीक्षण, उपलब्धि परीक्षण, आदि तथा अभिवृत्ति-मापनी, मनोवृत्ति मापनी, आदि की रचना में निम्नलिखित अवस्थाएँ अथवा चरण शामिल होते हैं, जिनकी जानकारी शोधकर्त्ता या परीक्षण-निर्माता का होना बहुत आवश्यक है-
1. परीक्षण की परियोजना (Planning of the test)- किसी भी परीक्षण के निर्माण का प्रथम चरण परीक्षण की परियोजना है। इस चरण या अवस्था में परीक्षण या मापनी बनाने वाला कई बातों को निर्धारित करता है। जैसे—वह निश्चित करता है कि परीक्षण या मापनी बनाने का उद्देश्य क्या है, परीक्षण में कितने एकांशों को रखा जाएगा, एकांशों का स्वरूप क्या होगा, परीक्षार्थी को किस तरह का निर्देशन दिया जाएगा, किस प्रकार के प्रतिचयन कर उपयोग किया जाएगा, परीक्षण की समय-सीमा क्या होगी, आदि बातों को निर्धारित किया। जाता है जैसे, मान लें कि शोधकर्त्ता या परीक्षण-निर्माता का उद्देश्य बुद्धि मापने के लिए एक परीक्षण का निर्माण करना है। ऐसी स्थिति में वह निर्णय ले सकता है कि परीक्षण में 120 एकांश रखे जायेंगे जिनका कठिनता-स्तर सरल से कठिन की ओर होगा। यानी शुरू के एकांश सरल होंगे और क्रमशः एकांशों की कठिनाई बढ़ती जायेगी और अन्त में कठिनता अधिक हो जायेगी। यह भी निर्णय लिया जा सकता है कि प्रत्येक एकांश (प्रश्न या कथन) के तीन विकल्पी उत्तर होंगे यह भी निर्णय लिया जा सकता है कि एक हजार या दो हजार परीक्षणों का निर्माण किया जाएगा।
2. एकांशों की तैयारी (Preparation of items)- परीक्षण या मापनी की रचना का यह दूसरा चरण या अवस्था है। इस अवस्था में एकांशों को लिखा जाता है परीक्षण की सबसे छोटी इकाई को एकांश कहते हैं। यह इकाई, प्रश्न, कथन या पाठ के रूप में हो सकती है। “क्या आप हर नया काम शुरू करने के पहले भगवान का स्मरण कर लेते हैं ?” यह प्रश्न एक एकांश है। ” हर व्यक्ति को चाहिए कि नया काम शुरू करने के पहले भगवान का स्मरण कर ले।” यह एक कथन है जिसको एक एकांश कहेंगे। इसी तरह प्रश्नों या कथनों के रूप में एकांशों की रचना अपेक्षित संख्या में कर ली जाती है।
एकांशों को लिखते समय कई बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।
(i) एकांशों को शोध समस्या से संगत होना चाहिए। एकांश ऐसा होना चाहिए जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, समस्या से संबंधित हो। जैसे, यदि बुद्धि मापने के लिए परीक्षण का निर्माण करना हो तो एकांश को ऐसा होना चाहिए जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बुद्धि से संबंधित हो।
(ii) एकांश के लिए यह भी आवश्यक है कि वह स्पष्ट हो। यदि शाब्दिक एकांशों का निर्माण करना हो तो एकांशों की भाषा स्पष्ट होनी चाहिए। ऐसे शब्दों का उपयोग करना चाहिए जो स्पष्ट हों, जिनका अर्थ सबके लिए समान हो और जो संवेगात्मक या भावुक नहीं हों बल्कि तटस्थ हों। इसी तरह यदि अशाब्दिक एकांशों का निर्माण करना हो तो इसका स्वरूप भी स्पष्ट होना चाहिए ताकि परीक्षार्थी यह समझ सकें कि उन्हें किस प्रकार का काम करना है।
3. एकांशों का प्रारंभिक क्रियान्वयन (Preliminary Try-out of the Item)— किसी परीक्षण या मापनी के निर्माण की यह अवस्था काफी महत्त्वपूर्ण है। इस अवस्था में कई आवश्यक कार्य किये जाते हैं-
(i) एकांश विश्लेषण (Item analysis) — इस अवस्था में असंगत एकांशों को हटा दिया जाता है। ऐसे एकांश जो समस्या से संबद्ध नहीं पाये जाते हैं उनको छाँट दिया जाता है और केवल ऐसे एकांशों को रखा जाता है जो समस्या से संगत पाये जाते हैं संगत एकांश का अर्थ वह एकांश है जो उस योग्यता या घटना को मापे जिसके लिए उसका निर्माण किया गया है । एकांश विश्लेषण के अन्तर्गत आसेधक विश्लेषण, कठिनता-स्तर विश्लेषण तथा विभेदक विश्लेषण की गणना की जाती है।
(ii) एकांश की कठिनाई स्तर (Difficulty level of the Item)—इस अवस्था में प्रत्येक एकांश के कठिनाई-स्तर को निर्धारित किया जाता है। किसी एकांश का सही उत्तर जितने लोगों द्वारा संभव होता है उसके अनुपात को उस एकांश का कठिनाई स्तर कहा जाता । इस तरह एकांशों के कठिनाई स्तर को निर्धारित किया जाता है ताकि आवश्यक एकांशा का चयन किया जा सके उल्लेखनीय है कि बुद्धि-परीक्षण का निर्माण करते समय शुरू के एकांशों का कठिनाई स्तर नीचा होता है और अन्त में एकांशों का कठिनाई स्तर बहुत ऊँचा होता है लेकिन मनोवृत्ति या कार्य क्षमता को मापने के लिए मापनी का निर्माण करते समय ऐसे एकांशों को रखा जाता है जिनके कठिनता-स्तर समान होते हैं।
(iii) विभेदन (Discrimination) — एकांशों के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि परीक्षण में ऐसे एकांशों को रखा जाता है जिनमें विभेदन की क्षमता होती है। जैसे, यदि बुद्धि को मापने के लिए परीक्षण का निर्माण करना हो तो परीक्षण के एकांशों को ऐसा होना। चाहिए कि वे अधिक बुद्धिमान तथा कम बुद्धिमान के बीच अन्तर करने में सक्षम हों। अतः ऐसे एकांश जिनमें विभेदन की क्षमता नहीं होती है, उन्हें छाँट दिया जाता है और केवल ऐसे एकांशों को रेखा जाता है जिनमें विभेदन की क्षमता रहती है।
(iv) एकांश वैधता (Item validity) — इस अवस्था में प्रत्येक एकांश की वैधता को निर्धारित किया जाता है। वैधता का अर्थ यह है कि जिस चीज को मापने के लिए किसी परीक्षण का निर्माण किया गया है वह वास्तव में उसी चीज को मापे। यदि किसी एकांश की रचना बुद्धि को मापने के लिए की गयी है और सचमुच वह बुद्धि का ही मापन करे तो उस एकांश को वैध एकांश कहा जाएगा। एकांश की वैधता को निर्धारित करने के लिए सहसंबंध विधियों का उपयोग किया जाता है।
(v) एकांश-विश्वसनीयता (Item reliability) – प्रत्येक एकांश की विश्वसनीयता को भी निर्धारित करना आवश्यक होता है। विश्वसनीयता का अर्थ यह है कि किसी एकांश के परिणाम में कहाँ तक संगति तथा स्थिरता है। किसी एकांश के परिणामों में जितना ही अधिक स्थिरता तथा संगति होती है उस एकांश को उतना ही अधिक विश्वसनीय माना जाता है। विश्वसनीयता को निर्धारित करने के लिए पुनरावृत्ति-विधि तथा अर्धविच्छेद विधि का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है।
स्पष्ट है कि एकांशों की रचना करना एक कठिन कार्य है। इसलिए, एकांश लिखने वाले के लिए यह आवश्यक है कि वह विषय-वस्तु से पूरी तरह अवगत हों। जिस चीज को मापने के लिए परीक्षण की रचना करना हो, उस चीज के विभिन्न पक्षों से अवगत होना आवश्यक है जैसे, यदि बुद्धि को मापने के लिए परीक्षण का निर्माण करना हो तो उसे बुद्धि के सभी पक्षों से अवगत होना चाहिए और तभी वह उन सभी पक्षों से संबंद्ध एकांशों को लिखने में सफल हो सकेगा। इसी तरह एकांश लिखने वाले को उन लोगों के संबंध में पूरी जानकारी होनी चाहिए, जिनके लिए परीक्षण का निर्माण किया जाना है । साथ-ही-साथ उसे एकांश के प्रकारों से भी अवगत होना चाहिए ताकि वह विभिन्न प्रकार के एकांशों को लिख सके। अन्त में उसे चाहिए कि वह विशेषज्ञों से संपर्क स्थापित करें तथा उनके सुझावों के आलोक में एकांशों को बनाने का प्रयास करे। परीक्षण में जितने एकांशों को रखना होता है सामान्यतः उससे तीन गुणा अधिक एकांशों को लिखा जाता है।
4. मानकीकरण एवं संचालन (Standarization and Administration) — इस अवस्था में देश अथवा किसी निश्चित क्षेत्र से विभिन्न परीक्षार्थियों के एक प्रतिनिधिक प्रतिदर्श पर लिखे गये एकांशों का उपयोग किया जा सकता है। यह एक जटिल और लम्बी प्रक्रिया है जिसमें कई वर्ष लग जाते हैं। इसका उद्देश्य अधिक-से-अधिक विश्वसनीय तथा वैध एकांशों का चयन करना है । इससे लाभ यह होता है कि एकांशों तथा निर्देशनों में किसी तरह की अस्पष्टता रह जाती है तो उसकी जानकारी परीक्षण बनाने वाले को मिल जाती है और वह उस दोष को दूर करके परीक्षण को अधिक-से-अधिक विश्वसनीय तथा वैध बनाने में सफल होता है । इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए प्रारंभिक क्रियान्वयन की पुनरावृत्ति कम-से-कम तीन बार आवश्यक है। पहली बार कम-से-कम एक सौ व्यक्तियों पर क्रियान्वयन होना चाहिए । प्राक् क्रियान्वयन कहते हैं। दूसरी बार 400 व्यक्तियों पर क्रियान्वयन होना चाहिए। इसे द्वितीय क्रियान्वयन कहते हैं। फिर कम-से-कम 800 व्यक्तियों पर क्रियान्वयन होना चाहिए। इसे विशिष्ट क्रियान्वयन कहते हैं। इन तीनों तरह के क्रियान्वयन के आधार पर एकांश विश्लेषण करके संगत तथा आवश्यक एकांशों का चयन अपेक्षित संख्या में कर लिया जाता है और परीक्षण को अंतिम रूप दे दिया जाता है।
5. परीक्षण का मानक (Norm of the test) — इस अवस्था में मानकीकरण संचालन के आधार पर मानक विकसित किये जाते हैं। किसी समूह के लिए जो प्रतिनिधिक मापदण्ड या मूल्य होता है, उसे ही मानक कहते हैं। इस मापदण्ड या औसत मूल्य के आधार पर किसी व्यक्ति की तुलना की जाती है। इसे आयु, वर्ग, शतमक तथा जेड अंक के रूप में व्यक्त किया जाता है। इन्हें क्रमशः आयु मानक, वर्ग मानक, शतमक मानक तथा जेड अंक मानक कहते हैं । परीक्षण के स्वरूप के अनुसार इसमें से किसी एक अनुकूल मानक का निर्माण किया जा सकता है। जैसे- -वैयक्तिक वाचिक बुद्धि परीक्षण के लिए आयु-मानक तथा समूह-वाचिक बुद्धि परीक्षण के लिए शतमक मानक अधिक उपयुक्त है। जैसे—मान लें कि बच्चों की बुद्धि को मापने के लिए एक वैयक्तिक वाचिक परीक्षण का निर्माण करना है। इसके लिए आयु मानक का निर्माण किया जायेगा।
6. परीक्षण की विश्वसनीयता (Reliability of the test) – इस चरण या अवस्था में नवनिर्मित परीक्षण की विश्वसनीयता को निर्धारित किया जाता है। विश्वसनीयता का अर्थ परीक्षण के परिणामों की संगति तथा स्थिरता है। भिन्न-भिन्न समयों में परीक्षण के उपयोग करने पर प्राप्त परिणामों में जितना ही अधिक संगति तथा स्थिरता होती है, इस परीक्षण को उतना ही अधिक विश्वसनीय माना जाता है। परीक्षण की विश्वसनीयता निर्धारित करने की एक विधि पुनरावृत्तिक-विधि या परीक्षण-पुनर्परीक्षण विधि है। इस विधि में परीक्षण का उपयोग एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के एक समूह पर किया जाता है और कुछ समय अंतराल के बाद फिर उसी व्यक्ति या व्यक्तियों के उसी समूह पर दोबारे उस परीक्षण का उपयोग किया जाता है। दोनों परीक्षणों से जो अंक प्राप्त होते हैं, उनके बीच सहसंबंध निकाला जाता है। सहसंबंध जितना ही अधिक होता है, उस परीक्षण को उतना ही अधिक विश्वसनीय माना जाता है। सामान्यतः जिस परीक्षण की विश्वसनीयता इस विधि से 80 या इससे अधिक होती है उसे अधिक विश्वसनीय माना जाता है। इसी प्रकार अर्धविच्छेद विधि द्वारा भी किसी परीक्षण की विश्वसनीयता को निर्धारित किया जाता है। इस विधि में सम्पूर्ण परीक्षण को दो भागों में विभाजित कर दिया जाता है। जैसे, परीक्षण के विषम एकांशों को एक भाग तथा सम एकांशों को दूसरे भाग में रखा जाता है। फिर एक ही व्यक्ति या व्यक्तियों के एक ही समूह पर दोनों भागों का उपयोग एक ही समय बारी-बारी से किया जाता है और जो प्राप्तांक प्राप्त होते हैं उनके बीच सहसंबंध निकाला जाता है जिससे पता चलता है कि परीक्षण कहाँ तक विश्वसनीय है। परीक्षण की विश्वसनीयता को निर्धारित करने हेतु समानानतर आकृति विधि तथा विवेकी तुल्य विधि का भी उपयोग किया जाता है। लेकिन, पहली दो विधियों का उपयोग अधिक किया जाता है। जैसे, मान लें कि 15 वर्ष तक के बच्चों की बुद्धि को मापने के लिए एक वैयक्तिक वाचिक परीक्षण का निर्माण किया गया। इसकी विश्वसनीयता की जाँच के लिए पुनरावृत्ति विधि का उपयोग किया गया और सहसंबंध .85 पाया गया। इसका अर्थ यह हुआ कि परीक्षण काफी विश्वसनीय है।
7. परीक्षण की वैधता (Validity of the test) — इस अवस्था या चरण में परीक्षण की वैधता को निर्धारित किया जाता है। वैधता का अर्थ यह है कि जिस चीज को मापने के लिए परीक्षण का निर्माण किया गया है, यदि वह वास्तव में उस चीज को मापता हो तो वह वैध परीक्षण है जैसे, बच्चों की बुद्धि को मापने के लिए एक परीक्षण की रचना की गयी। यदि वह परीक्षण सचमुच बुद्धि का ही मापन करे तो इसे वैध परीक्षण माना जायेगा परीक्षण की वैधता को निर्धारित करने के लिए इस परीक्षण पर प्राप्त अंकों तथा किसी मानक परीक्षण पर प्राप्त अंकों के बीच सहसंबंध निकाला जाता है। सहसंबंध की मात्रा जितना ही अधिक होती है, परीक्षण को उतना ही अधिक वैध माना जाता है। जैसे, बच्चों की बुद्धि को मापने के लिए जिस परीक्षण की रचना की गयी उसका उपयोग बच्चों के एक समूह पर किया गया। फिर उसी समूह पर मोहसिन सामान्य बुद्धि परीक्षण का उपयोग किया गया। दोनों परीक्षणों के आधार पर प्राप्त अंकों के बीच सहसंबंध निकाला गया और माना कि 66 सहसंबंध पाया गया इसका अर्थ यह हुआ कि इस नवनिर्मित परीक्षण की वैधता संतोषजनक है।
8. परीक्षण का मैनुअल (Manual of the test) – मनोवैज्ञानिक परीक्षण में जहाँ तक मैनुअल के निर्माण का प्रश्न है, यह परीक्षण रचना का आवश्यक भले न किन्तु व्यावहारिक दृष्टिकोण से यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसमें परीक्षण की रचना की कार्यप्रणाली, अंकन-विधि, समय-सीमा, परीक्षण की विश्वसनीयता, वैधता, मानक, परीक्षार्थी को दिये जाने वाले निर्देशन आदि का उल्लेख रहता है जिससे दूसरे लोगों को इस परीक्षण के उपयोग करने की सुविधा होती है।
9. परीक्षण – पुस्तिका तथा मैनुअल की छपाई (Printing of test booklet and manual) – परीक्षण-रचना के लिए यह भी आवश्यक चरण नहीं है, फिर भी परीक्षण को सुरक्षित रखने के लिए तथा व्यापक रूप से उपयोग करने के लिए यह अपेक्षित है । यहाँ परीक्षण -पुस्तिका तथा इसके मैनुअल को अपेक्षित संख्या में छपवाया जाता है इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता है कि छपाई अच्छी हो, शुद्ध हो, स्पष्ट हो और गेटप आकर्षक हो।
शिक्षा के क्षेत्र में इन सभी मानकीकृत परीक्षणों का उपयोग आवश्यकता के अनुसार किया जाता है । विशेष रूप से बुद्धि-परीक्षण, उपलब्धि परीक्षण तथा अभिक्षमता परीक्षण का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है।
इसे भी पढ़े…
- पाठ्यचर्या विकास की प्रक्रिया
- पाठ्यचर्या निर्माण के लिए शिक्षा के उद्देश्य
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त
- पाठ्यक्रम निर्माण के सामाजिक सिद्धान्त
- पाठ्यक्रम के प्रमुख निर्धारक
- पाठ्यक्रम विकास के मुख्य प्रसंग
- मानसिक मंदता से सम्बद्ध समस्याएँ
- विकलांगजन अधिनियम 1995
- सक्षम निःशक्तजनों का राष्ट्रीय संगठन
- मानसिक मंदित बालकों की पहचान
- शिक्षण अधिगम असमर्थता एवं शैक्षिक प्रावधान
- श्रवण अक्षमता क्या है? इसकी व्यापकता
- श्रवण अक्षमता के कारण