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शैक्षिक मापन एवं मूल्यांकन | शैक्षिक मापन की विधियाँ | शैक्षिक मूल्यांकन की विधियाँ | शैक्षिक परीक्षणों का वर्गीकरण

शैक्षिक मापन एवं मूल्यांकन
शैक्षिक मापन एवं मूल्यांकन

शैक्षिक मापन एवं मूल्यांकन

शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक एवं शिक्षार्थियों के कुछ गुणों का मापन भौतिक उपकरणों से किया जाता है और कुछ गुणों का मापन मौखिक अथवा लिखित परीक्षणों द्वारा किया जाता है। जहाँ तक भौतिक मापों- भार, लम्बाई, एवं टैम्प्रेचर आदि मापने की बात है इनका मापन भौतिक उपकरणों-वेट, मीटर एवं थर्मामीटर से किया जाता है और जहाँ तक बुद्धि, रुचि, अभिक्षमता, व्यक्तित्व एवं शैक्षिक उपलब्धियों के मापन की बात है इनका मापन – अवलोकन एवं परीक्षण आदि से किया जाता है। शिक्षा नीति, शिक्षा योजना, शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षा की पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों की उपयोगिता का मापन एवं मूल्यांकन भी सोफ्टवेयर साधनों से किया जाता है। इन्हें मापन की तकनीकी अथवा विधियाँ कहते हैं।

शैक्षिक मापन एवं मूल्यांकन के दो पद होते हैं – एक मापन और दूसरा मूल्यांकन।

शैक्षिक मापन की विधियाँ

शिक्षा के क्षेत्र में मापन की अनेक विधियों का प्रयोग होता है। यहाँ हम केवल उन्हीं विधियों की चर्चा करेंगे जिनका प्रयोग शिक्षा नीति, शिक्षा योजना, शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षा की पाठ्यचर्या एवं शिक्षण विधियाँ की उपयोगिता और प्रशासक, शिक्षकों एवं अभिभावकों की क्रियाओं एवं व्यवहार की उपयोगिता और छात्रों की बुद्धि, अभिक्षमता, व्यक्तित्व, शैक्षिक उपलब्धि एवं कठिनाइयों के मापन के लिए किया जाता है। ये विधियाँ हैं-

1. अवलोकन (Observation)- अवलोकन से तात्पर्य किसी वस्तु, प्राणी अथवा क्रिया की विशेषताओं को आँखों से देखकर और मन-मस्तिष्क से समझकर मानक शब्दों में प्रकट करने से होता है।

2. साक्षात्कार (Interview)- इस विधि में मापनकर्ता अथवा मूल्यांकनकर्ता उस व्यक्ति अथवा छात्र से सीधा सम्पर्क करता है जिसकी किसी विशेषता अथवा उस पर किसी क्रिया के प्रभाव का पता लगाना होता है। इसके बाद वह उससे तत्सम्बन्धी प्रश्न पूछता है और उसके उत्तरों एवं क्रियाओं को देखता – समझता है। यह विधि अवलोकन विधि से इस बात में भिन्न है कि इसमें मापनकर्ता और विषयी दोनों के बीच अन्तःक्रिया होती है, विषयी मापनकर्त्ता की क्रियाओं के प्रति अनुक्रिया करता है। वैसे वह अनुक्रिया करने के लिए स्वतन्त्र होता है; तभी तो यथा विशेषता अथवा प्रभाव का पता लगाया जा सकता है।

3. प्रश्नावली (Questionnaire)- प्रश्नावली सामान्यतः साक्षात्कार विधि का लिखित रूप हैं। साक्षात्कार में मापनकर्त्ता अथवा मूल्यांकनकर्त्ता व्यक्ति अथवा छात्र से मौखिक रूप से तत्सम्बन्धी प्रश्न पूछता है, प्रश्नावली में वह लिखित रूप से तत्सम्बन्धी प्रश्न पूछता है और व्यक्ति अथवा छात्र अपने उत्तरों को उसी प्रश्नावली पर लिखते हैं।

4. श्रेणी मापनी (Rating Scale)- इस विधि को निर्धारण मापनी और क्रम निर्धारण विधि भी कहते हैं। यह विधि प्रश्नावली की तरह ही होती है, अन्तर यह होता है कि इसमें समस्या विशेष से सम्बन्धित अनेक कथन होते हैं, निर्धारक को अपनी दृष्टि से उन्हें श्रेणीबद्ध करना होता है इसीलिए उसे श्रेणी मापनी कहते हैं। यह श्रेणी मापनी कई प्रकार की होती है-

(i) चैक लिस्ट (Check List)- चैक लिस्ट में किसी समस्या से सम्बन्धित अनेक कथन दिए होते हैं, निर्धारक को अपनी दृष्टि से उपयुक्त पर चिह्न लगाना होता है।

चैक लिस्ट का प्रयोग शिक्षा नीति एवं शिक्षा योजना आदि की उपयोगिता एवं छात्रों के गुण-दोषों का पता लगाने एवं व्यक्तित्व मापन के लिए किया जाता है।

(ii) आंकिक मापनी (Numerical Scale)- इसमें किसी समस्या से सम्बन्धित 3,5 अथवा 7 कथन दिए जाते हैं । व्यक्ति अथवा छात्रों को प्रत्येक कथन को उसकी सार्थकता के आधार पर अंक (1,2, 3), (1, 2, 3, 4, 5) अथवा (1, 2, 3, 4, 5, 6, 7) देने होते हैं।

इसका प्रयोग शिक्षा एवं छात्रों से सम्बन्धित समस्याओं एवं व्यक्तियों के व्यक्तित्व के मापन के लिए किया जाता है।

(iii) ग्राफिक मापनी (Graphic Scale)– इसमें किसी समस्या से सम्बन्धित प्रत्येक कथन को अंक प्रदान करने के स्थान पर उसके लिए एक क्षैतिज रेखा प्रस्तुत की जाती है। इस क्षैतिज रेखा को सातत्य कहते हैं। व्यक्ति अथवा छात्र इन कथनों से सम्बन्धित अपनी राय को क्षैतिज रेखा के किसी बिन्दु पर प्रकट करते हैं। मापनकर्त्ता क्षैतिज रेखा पर लगाए गए बिन्दुओं की दूरी के आधार पर उनकी सम्मति का मापन करता है।

(iv) क्रमिक मापनी (Ordering Scale)- इसमें किसी समस्या (गुण) से सम्बन्धित कथन अथवा प्रश्नों के स्थान पर कई समस्याओं (गुणों) को एक साथ प्रस्तुत किया जाता है और निर्धारक से उन्हें क्रमबद्ध कराया जाता है।

(v) बाध्य चयन मापनी (Forced Choice Scale)- इसमें प्रत्येक प्रश्न के दो या दो से उत्तर दिए होते हैं। व्यक्ति अथवा छात्र को इन उत्तरों में से ही किसी उत्तर का चयन करना होता है इसीलिए इसे बाध्य चयन मापनी कहते हैं

5. छात्रों द्वारा निर्मित वस्तुएँ (Pupil’s Products) – छात्रों के स्वयं के द्वारा बनाई हुई वस्तुओं से भी उनके कौशल और रुचियों का पता चलता है । दाहरण के लिए किसी छात्र के द्वारा निर्मित को देखकर केवल इतना पता नहीं लगता कि उसमें चित्र बनाने का कौशल किस कोटि का है अपितु उनके प्रकार को देखने से उसकी रुचियों के बारे में भी जानकारी होती है। हम जानते हैं कि छोटे बच्चे प्रायः पशु-पक्षियों का क्षेत्र तो बहुत व्यापक होता है। इन वस्तुओं का देखकर हम उस व्यापक क्षेत्र में बच्चों की रुचियों के क्षेत्र का सरलता से पता लगा लेते हैं।

6. अभिलेख (Records)- छात्रों के व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी के लिए अभिलेखों का भी सहारा लिया जाता है। विद्यालयी बच्चों की प्रगति का यह अभिलेख कई रूपों में रखा जाता है।

(i) छात्रों की डायरियाँ (Pupils Diaries) – छात्रों के पास अपनी-अपनी डायरियाँ होती हैं। जिनमें वे अपनी दिनचर्या नोट करते हैं और रुचि अथवा अरुचि की विशेष घटनाओं को लिखते हैं इनमें वे कविताएँ, उद्धरण, गाने, कुछ लिखने के लिए स्वतन्त्र छोड़े जा सकते हैं। इन के द्वारा छात्रों की रुचि और अभिरुचियों का पता लगाया जा सकता है। इसके साथ-साथ उनकी व्यक्तिगत एवं सामाजिक समस्याओं का भी पता लगता है। इनसे अध्यापक विद्यालय अधिकारियों के व्यवहार के छात्रों पर पड़ने वाले प्रभाव का भी पता लगा सकते हैं। बच्चे उनमें जो कुछ भी लिखेंगे उसी से सम्बन्धित जानकारी सम्भव होगी।

(ii) घटनावृत्त (Anecdotal Records)- घटनावृत्त से तात्पर्य उन अभिलेखों से होता है जो अध्यापक किसी छात्र के विषय में तैयार करते हैं। इस प्रकार के अभिलेखों में छात्र से सम्बन्धित विशेष घटनाओं को अंकित किया जाता है जिनके द्वारा उनके संवेगात्मक व्यवहार की जानकारी होती है। इन अभिलेखों की सहायता से बच्चों के सामाजिक व्यवहार (दूसरे के प्रति दृष्टिकोण) और व्यक्तित्व के अन्य पक्षों के विषय में जानकारी प्राप्त की जाती है।

(iii) संचित अभिलेख पत्र (Cumulative Records)– संचित अभिलेख पत्र में छात्रों की विभिन्न क्षेत्रों में की गई प्रगति का क्रमिक ब्यौरा होता है। इसमें छात्रों के परिवार सम्बन्धी सूचनाएँ, उनके स्वास्थ्य सम्बन्धी सूचनाएँ, उनकी शैक्षिक प्रगति, उनके सहपाठ्यचारी क्रियाओं में भाग लेने का ब्यौरा एवं खेल-कूद सम्बन्धी सूचनाओं का लेखा-जोखा होता है। किसी छात्र के विद्यालय में प्रवेश लेते ही उसके बारे में ये सब सूचनाएँ आदि इस पत्र में भरी जाने लगती हैं। उदाहरण के लिए, प्रवेश के समय उसका क्या वजन था, 6 माह बाद कितना, वर्ष के अन्त में कितना और 6 माह के अन्तर से उसके वजन में कितनी वृद्धि अथवा कमी होती है, इसका लेखा।

7. प्रक्षेपीय तकनीक (Projective Technique) – प्रक्षेपण से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जो व्यक्ति किसी वस्तु अथवा क्रिया के प्रति अचेतन स्तर पर करता है। साफ जाहिर है कि इस तकनीक से व्यक्ति के अचेतन पक्ष का मापन किया जाता है। यह विधि व्यक्तित्व मापन में विशेष रूप से प्रयोग की जाती है। इसके कई रूप हैं-

(i) साहचर्य तकनीक

(iii) पूर्ति तकनीक

(vi) रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण

(ii) रचना तकनीक

(v) अभिव्यक्ति तकनीक

8. परीक्षण (Tests) – परीक्षण से तात्पर्य किसी छात्र अथवा छात्रों के समूहों की मानसिक क्षमताओं, शैक्षिक उपलब्धियों एवं शैक्षिक कठिनाइयों को पता लगाने की मौखिक अथवा लिखित प्रश्नावलियों एवं उपकरणों से है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग होने वाले मुख्य परीक्षण हैं— उपलब्धि परीक्षण, अभिक्षमता परीक्षण, बुद्धि परीक्षण और व्यक्तित्व परीक्षण।

शैक्षिक मूल्यांकन की विधियाँ

शैक्षिक मापन के परिणामों की व्याख्या के लिए मुख्य रूप से सामान्य एवं सांख्यिकीय मानदण्डों का प्रयोग किया जाता है। सांख्यिकीय मानदण्डों में मुख्य मानदण्ड हैं— केन्द्रवर्ती मान, शतांश मान, विचलन मान, सहसम्बन्ध गुणांक, आँकड़ों के रेखाचित्र, सामान्य सम्भावना वक्र और मानक प्राप्तांक।

शैक्षिक परीक्षण (Educational Tests)- परीक्षण का सामान्य अर्थ उस प्रक्रिया से होता है जिसके द्वारा किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा क्रिया के गुणों की जाँच की जाती है। परन्तु शिक्षा के क्षेत्र में परीक्षणों से तात्पर्य मापन के उन उपकरणों अथवा विधियों से होता है जिनके द्वारा छात्रों की मानसिक एवं शैक्षिक योग्यताओं का मापन किया जाता है। इन परीक्षणों का अपना एक निश्चित स्वरूप होता है। इनमें मापीय मानसिक एवं शैक्षिक योग्यता सम्बन्धी प्रश्न पूछे जाते हैं जिनका छात्र उत्तर देते हैं और समस्याएँ उपस्थित की जाती हैं जिनके प्रति छात्र अनुक्रिया करते हैं। और छात्रों के इन उत्तरों एवं अनुक्रियाओं के आधार पर उनकी मानसिक क्षमताओं एवं शैक्षिक योग्यताओं का मापन किया जाता है। मानसिक क्षमता सम्बन्धी परीक्षणों में मुख्य परीक्षण हैं- बुद्धि परीक्षण, अभिक्षमता परीक्षण और व्यक्तित्व परीक्षण और शैक्षिक योग्यता सम्बन्धी परीक्षणों में मुख्य परीक्षण हैं- उपलब्धि परीक्षण और निदानात्मक परीक्षण। अब यदि हम शैक्षिक परीक्षणों को संक्षेप में परिभाषित करना चाहें तो इस प्रकार कर सकते हैं-

शैक्षिक परीक्षणों से तात्पर्य छात्रों की विभिन्न योग्यताओं के मापन के उन मापन उपकरणों अथवा विधियों से है जिनमें छात्रों से मापीय योग्यता से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं जिनका छात्रों को उत्तर देना होता है और तत्सम्बन्धी समस्याएँ उपस्थित की जाती है जिनके प्रति छात्रों को अनुक्रिया करनी होती हैं।

शैक्षिक परीक्षणों का वर्गीकरण (Classification of Educational Tests)

शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग किए जाने वाले परीक्षणों का वर्गीकरण कई रूपों में किया जाता है यहाँ कुछ मुख्य वर्गीकरण प्रस्तुत है-

[1] परीक्षणों के मापन क्षेत्र के आधार पर शैक्षिक परीक्षणों के मापन क्षेत्र के आधार पर उन्हें निम्नलिखित दो वर्गों में किया जाता है-

1. शैक्षिक परीक्षण (Educational Tests) – इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जिनके द्वारा छात्रों की शैक्षिक उपलब्धियों और शैक्षिक कठिनाइयों का मापन किया जाता है; जैसे- उपलब्धि परीक्षण और निदानात्मक परीक्षण।

2. मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological Tests)- इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं। जिनके द्वारा छात्रों की मनोवैज्ञानिक क्षमताओं का मापन किया जाता है; जैसे—बुद्धि परीक्षण, अभिक्षमता परीक्षण और व्यक्तित्व परीक्षण।

[II] परीक्षणों की प्रकृति के आधार पर वर्गीकरण- परीक्षणों को उनकी प्रकृति के आधार पर तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है—मौखिक, लिखित और प्रायोगिक।

1. मौखिक परीक्षण (Oral Tests)- वे परीक्षण जिनमें परीक्षार्थियों से मौखिक रूप में प्रश्न किए जाते हैं और मौखिक रूप से ही उनके उत्तर लिए जाते हैं, मौखिक परीक्षण कहे जाते हैं । इन परीक्षणों में प्रायः लघुउत्तरीय और वस्तुनिष्ठ प्रश्न पूछे जाते हैं।

विद्यालयों में कोई विषय केवल इसी उद्देश्य से नहीं पढ़ाया जाता कि बच्चों को तत्सम्बन्धी तथ्यों की जानकारी हो जाए अपितु इसलिए भी पढ़ाया जाता है कि उसके अध्ययन से उनकी सोच में परिवर्तन आए और उनकी कार्य प्रणाली में अन्तर आए। और इसका मापन मौखिक परीक्षणों द्वारा किया जाता है। इन परीक्षणों का प्रयोग बच्चों के भाषा कौशलों, उनके आत्मविश्वास एवं अभय और अन्य विषयों में उनकी जानकारी एवं उसके अनुप्रयोग की कुशलता का मापन करने के लिए किया जाता है। इन परीक्षणों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें परीक्षक और परीक्षार्थी दोनों एक-दूसरे के सामने होते हैं इसलिए परीक्षक को परीक्षार्थियों के व्यक्तिगत गुणों को जानने का अवसर मिलता है। छात्रों के उच्चारण कौशल और भाषण कौशल की माप तो इन्हीं परीक्षणों द्वारा की जा सकती है।

2. लिखित परीक्षण (Written Tests)- वे परीक्षण जिनमें परीक्षार्थियों को लिखित रूप में प्रश्न दिए जाते हैं और वे लिखित रूप में ही उनके उत्तर देते हैं, लिखित परीक्षण कहलाते हैं। इस प्रकार के परीक्षणों में निबन्धात्मक, लघुउत्तरीय और वस्तुनिष्ठ किसी भी प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते हैं। इसलिए इन पर स्वतन्त्र रूप से सविस्तार विचार करना आवश्यक है। यह कार्य हमने आगे किया है।

3. प्रायोगिक परीक्षण (Practical Tests)- वे परीक्षण जिनमें परीक्षार्थियों के कौशलों का मापन उनकी यथा क्रियाओं के सम्पादन द्वारा किया जाता है, प्रायोगिक परीक्षण कहलाते हैं; जैसे- बच्चे के गायन कौशल का मापन करने के लिए उससे गाना गाने को कहना। प्रायोगिक परीक्षणों का प्रयोग कला, कौशल, संगीत, विज्ञान और अन्य प्रायोगिक विषयों में छात्रों की प्रायोगिक दक्षता और ज्ञान के अनुप्रयोग के मापन के लिए किया जाता है।

प्रायोगिक परीक्षण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके द्वारा परीक्षार्थियों के क्रियात्मक पक्ष का मापन किया जाता है। छात्रों के कला-कौशलों और विज्ञान के ज्ञान का अनुप्रयोग का मापन इन्हीं परीक्षणों द्वारा हो सकता है। एक डॉक्टर और इन्जीनियर को यदि इस प्रकार के परीक्षण की कसौटी पर नहीं कसा-परखा जाता तो उसके सैद्धान्तिक ज्ञान पर निर्भर करने से कुछ भी अनर्थ हो सकता है।

पर इन परीक्षणों की भी अपनी सीमाएँ हैं। पहली बात तो यह है कि हम इनके द्वारा सैद्धान्तिक ज्ञान एवं मनुष्य के भावात्मक पक्ष का सही-सही मापन नहीं कर सकते। दूसरी बात यह है कि इनके सम्पादन के लिए समय और शक्ति भी अपेक्षाकृत अधिक चाहिए । फिर ये भी अब अनैतिकता के घेरे में आ गए हैं।

[III] परीक्षणों में प्रयुक्त सामग्री के आधार पर वर्गीकरण- परीक्षणों में प्रयुक्त सामग्री के स्वरूप के आधार पर परीक्षणों को अग्रलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

1. शाब्दिक परीक्षण (Verbal Tests)- इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जिनमें शब्दों अर्थात् भाषा का प्रयोग किया जाता है, चाहे मौखिक रूप में और चाहे लिखित रूप में। शिक्षा के क्षेत्र में इसी प्रकार के परीक्षणों का अधिक प्रयोग होता है।

2. अशाब्दिक परीक्षण (Non Verbal Tests) – इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जिनमें शब्दों अर्थात् भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता अपितु दृश्य, चिह्नों, संकेतों अथवा चित्रों आदि का प्रयोग किया जाता है। छोटे बच्चों और निरक्षर व्यक्तियों की मानसिक क्षमताओं का मापन करने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है। शिक्षित और अशिक्षित किसी भी बुद्धि और व्यक्तित्व के मापन में भी इस प्रकार के परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है।

[IV] परीक्षणों की रचना के आधार पर वर्गीकरण- परीक्षण को उनकी निर्माण प्रक्रिया और गुणों के आधार पर निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

1. सामान्य परीक्षण (General Tests)- इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जिनका निर्माण सामान्यतः शिक्षक करते हैं इसलिए इन्हें शिक्षक निर्मित परीक्षण भी कहते हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रयोग इन्हीं परीक्षणों का किया जाता है, छात्रों की साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्द्ध वार्षिक और वार्षिक परीक्षाओं, सभी में। यूँ अब इस प्रकार के परीक्षणों को वैध, विश्वसनीय और वस्तुनिष्ठ बनाने का प्रयत्न किया जाता है इनकी वैधता, विश्वसनीयता और वस्तुनिष्ठता के विषय में दावे के साथ कुछ भी परन्तु नहीं कहा जा सकता और चुँकि सार्वजनिक परीक्षाओं के लिए पूर्णरूप से वैध, विश्वसनीय एवं वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का निर्माण नहीं किया जा सकता इसलिए इन परीक्षणों को ही अधिक से अधिक वैध, विश्वसनीय और वस्तुनिष्ठ बनाने पर बल दिया जाता है।

2. मानकीकृत परीक्षण (Standardized Tests)- इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं। जिनका निर्माण विशेषज्ञ करते हैं और एक विशेष प्रकार से करते हैं। वे सर्वप्रथम मापीय लक्ष्यों को सामने रखकर यथा परीक्षण का प्रारूप तैयार करते हैं, फिर उसे उसी स्तर के छात्रों के भिन्न समूहों पर प्रशासित करते हैं और इन परीक्षणों के आधार पर उनमें से आवश्यक सामग्री निकाल देते हैं और आवश्यक सामग्री जोड़ देते हैं और इस प्रकार उन्हें वैध, विश्वसनीय और वस्तुनिष्ठ बनाते हैं।

मनोवैज्ञानिकों ने मनोवैज्ञानिक क्षमताओं-बुद्धि, अभिक्षमता एवं व्यक्तित्व आदि के मापन के लिए कुछ मानकीकृत परीक्षण अवश्य बनाएँ हैं और वे उनके पूर्णरूप से वैध, विश्वसनीय एवं वस्तुनिष्ठ होने का दावा भी करते हैं परन्तु अपनी समझ में उनका दावा त प्रतिशत सही नहीं है उपलब्धि परीक्षणों को भी अब अधिक से अधिक वैध, विश्वसनीय और वस्तुनिष्ठ बनाने का प्रयत्न जारी है पर ऐसा पूर्ण रूप में कभी नहीं किया जा सकता है।

[V] परीक्षणों के प्रशासन के आधार पर वर्गीकरण- परीक्षणों के प्रशासन के आधार पर उन्हें निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

1. व्यक्तिगत परीक्षण (Individual Tests)- इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जिनका प्रशासन एक समय में एक ही छात्र पर किया जाता है। मौखिक परीक्षण प्रायः व्यक्तिगत रूप से ही प्रशासित किए जाते हैं। कुछ बुद्धि परीक्षणों का प्रशासन भी व्यक्तिगत रूप से किया जाता है। इन परीक्षणों का सबसे बड़ा गुण यह है कि मापनकर्त्ता का पूरा ध्यान छात्र विशेष पर ही रहता है परन्तु साथ ही इनमें समय, शक्ति और धन अधिक लगता है अतः इनका प्रयोग कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों में ही किया जाता है।

2. सामूहिक परीक्षण (Group Tests)- इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जिनका प्रशासन एक समय और एक साथ छात्रों के बड़े से बड़े समूह पर किया जाता है। लिखित परीक्षण प्रायः सामूहिक रूप से ही प्रशासित किए जाते हैं। इन परीक्षणों का सबसे बड़ा गुण यह है कि इनके द्वारा एक समय में एक साथ छात्रों के बड़े से बड़े समूह की योग्यता का मापन किया जा सकता है, समय शक्ति और धन की बचत होती है। परन्तु साथ ही एक कमी भी है और वह यह कि इनके द्वारा छात्र विशेष की समस्या नहीं समझी जा सकती, उसके लिए व्यक्तिगत परीक्षणों का प्रयोग करना होता है।

[VI] परीक्षणों के मापन स्वरूप के आधार पर वर्गीकरण- अमरीकी मनौवैज्ञानिक ग्लेसर ने मापन को दो वर्गों में विभाजित किया है- एक मानक सन्दर्भित मापन और दूसरा निकष सन्दर्भित मापन उसने परम्परागत मापन, जिसके द्वारा किसी समूह में किसी छात्र की किसी विषय में योग्यता की केवल सापेक्षिक स्थिति का ही ज्ञान होता है, उसे मानक सन्दर्भित मापन कहा और ऐसे मापन को जिसके द्वारा किसी छात्र की किसी विषय में योग्यता की वास्तविक स्थिति का ज्ञान होता है, उसे निकष सन्दर्भित मापन की संज्ञा दी। इस आधार पर विद्वान परीक्षणों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित करते हैं-

1. मानक सन्दर्भित परीक्षण (Norm Referenced Tests)- इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जो केवल मानक सन्दर्भित मापन करते हैं अर्थात् केवल इतना मापन करते हैं कि किसी समूह में किसी छात्र की किसी विषय में योग्यता की दृष्टि से सापेक्षिक स्थिति क्या है । परम्परागत निबन्धात्मक परीक्षण जिनमें 10-12 प्रश्न पूछकर उनमें से 5-6 प्रश्नों का उत्तर देने को कहा जाता है, वे इसी वर्ग में आते हैं।

इस प्रकार के परीक्षणों की मुख्य विशेषता यह है कि यदि इनके निर्माण में वैधता, विश्वसनीयता और वस्तुनिष्ठता का ध्यान रखा जाए तो इनसे छात्रों के यथा विषय में ज्ञान के साथ-साथ उस विषय में उनकी सूझ-बूझ का मापन भी किया जा सकता है। इस प्रकार के परीक्षणों का सम्पादन एवं मूल्यांकन करना भी सरल होता है।

2. निकष सन्दर्भित परीक्षण (Criterian Referenced Tests) – ग्लेसर की दृष्टि से इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जो निकष सन्दर्भित मापन करते हैं अर्थात् किसी समूह में किसी छात्र की किसी विषय में योग्यता की वास्तविक स्थिति का मापन करते हैं। परन्तु ग्लेसर महोदय ने निकष का अर्थ स्पष्ट नहीं किया था। परिणामतः विद्वान इसका अर्थ अपने-अपने तरीकों से लगाते हैं। कुछ विद्वान निकष का अर्थ पाठ्यवस्तु से लगाते हैं। उनका तर्क है कि मानक सन्दर्भित परीक्षणों से छात्रों की योग्यता का सही मापन नहीं होता, इसके लिए सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पर प्रश्न पूछने चाहिए। इस वर्ग के विद्वान निकष सन्दर्भित परीक्षणों को पाठ्यवस्तु सन्दर्भित परीक्षण अथवा योग्यता सन्दर्भित परीक्षण कहते हैं। परन्तु अधिकतर शिक्षाशास्त्री निकष का अर्थ शिक्षण लक्ष्यों से लगाते हैं और वे निकष सन्दर्भित परीक्षणों को लक्ष्य सन्दर्भित परीक्षण के रूप में लेते हैं। कुछ शिक्षाशास्त्री शिक्षण लक्ष्यों को व्यवहार के रूप में परिभाषित करते हैं। ये व्यवहार परिवर्तन को तीन क्षेत्रों में विभाजित करते हैं— ज्ञानात्मक क्षेत्र, भावात्मक क्षेत्र, और मनोशारीरिक क्षेत्र ये शिक्षाशास्त्री निकष सन्दर्भित परीक्षणों को क्षेत्र सन्दर्भित परीक्षण के रूप में लेते हैं। हमें इन सबमें लक्ष्य सन्दर्भित परीक्षण नाम सबसे अधिक उपयुक्त लगता है। इसमें ज्ञान, भाव एवं क्रिया तीनों पक्षों का मापन निहित है।

इस प्रकार के परीक्षणों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यदि इनके निर्माण में वैधता, विश्वसनीयता और वस्तुनिष्ठता का ध्यान रखा जाए तो इनसे छात्रों के किसी विषय में सम्पूर्ण ज्ञान का मापन किया जा सकता है; वे कितना सीखे हैं और कितना नहीं, इसकी जानकारी की जा सकती है और तद्नुकूल आगे का कार्यक्रम बनाया जा सकता है।

परन्तु इस प्रकार के परीक्षणों का निर्माण, प्रशासन और मूल्यांकन तीनों ही कठिन कार्य हैं, इनके सम्पादन के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है। वर्तमान में भारत में अमरीकी मनोवैज्ञानिक ब्लूम की टैक्सोनॉमी पर बहुत बल है, हमें सम्भवत: इस तथ्य की जानकारी नहीं है कि अमेरिका में अब इसे निरर्थक समझा जा रहा है।

[VII] परीक्षणों में प्रयुक्त प्रश्नों के प्रकार के आधार पर वर्गीकरण – प्रश्नों की रचना एवं उनके उत्तरों के स्वरूप के आधार पर परीक्षणों को तीन वर्गों में बाँटा जाता है- निबन्धात्मक, लघुउत्तरीय और वस्तुनिष्ठ परीक्षण। परीक्षा के क्षेत्र में मुख्य रूप से इसी प्रकार के परीक्षणों का प्रयोग होता है।

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