अनिवार्य पाठ्यक्रम (कोर पाठ्यक्रम) का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Core curriculum)
विषय केन्द्रित तथा बाल केन्द्रित पाठ्यक्रम की प्रक्रिया स्वरूप ही इस पाठ्यक्रम का विकास हुआ। यह पाठ्यक्रम अमेरिका के विद्यालयों में अधिक लोकप्रिय हुआ। यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि प्रत्येक विद्यार्थी की वैयक्तिक रुचियाँ तथा योग्यताएँ एक-दूसरे से भिन्न होती हैं। अतः सभी विद्यार्थियों के लिए एक जैसा पाठ्यक्रम निर्धारित करना मनोवैज्ञानिक है। कोर पाठ्यक्रम में कुछ विषय अनिवार्य होते हैं परन्तु कुछ विषय विद्यार्थी अपनी. स्वेच्छा से चुनते हैं। इस पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य यह है कि जो विषय विद्यार्थी के जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी हों उन विषयों का प्रत्येक छात्र अध्ययन करें तथा कुछ विषय छात्रों को रुचि के अनुसार चुनने दिए जाएँ ऐसा करने से छात्र पाठ्यक्रम में रुचि लेंगे।
वाशिंगटन से प्रकाशित एक बुलेटिन “Core Curriculum Development problem. and Practices” में लिखा गया है कि केन्द्रक पाठ्यक्रम का उद्देश्य सभी युवकों को व्यक्तिगत एवं सामाजिक समस्याओं से सम्बन्धित अनुभव प्रदान करना है। बालकों को वास्तविक समस्याओं को सुलझाने का अनुभव देना है तथा उन्हें भावी समस्याओं का सामना करने योग्य बनाना है। इसके द्वारा छात्रों को वे अनुभव प्रदान करना है जो उन्हें अच्छा नागरिक बनाने में मदद करें।”
“To provide all youth a common body of experience organised around personal and social problems to give boys and girls successful experience in solving the problems which are real to them and here and now. Thus preparing them to meat future problems to give youth experience which will lead them to become better citizens in a community Ref. aulletin 1952 N. 3 core curriculum development problems and Washington D.C.
प्रो. कैसवेल (Casewell) के अनुसार, “केन्द्रिक पाठ्यक्रम बच्चे के महत्त्वपूर्ण वैयक्तिक एवं सामाजिक समस्याओं से जुड़ा हुआ है।”
“Core curriculum is rooted in a student’s significent personal and social problems.”
केन्द्रिक या कोर पाठ्यक्रम का सम्बन्ध जीवन के लिए शिक्षा देना नहीं है अपितु जीवन से शिक्षा ग्रहण करना है वास्तव में इस पाठ्यक्रम का केन्द्र बिन्दु मानव जीवन है। गाँधी जी के अनुसार पाठ्यक्रम का उद्देश्य समाज से शोषण तथा अत्याचार समाप्त करना है जिसमें जाति-पाति वर्ग तथा स्तर का भेद न हो।
बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए अनिवार्यता कोर पाठ्यक्रम में तीन तत्त्वों को बहुत महत्त्व दिया गया है- (1) बाह्य सृष्टि, (2) सामाजिक वातावरण, (3) कलाएँ एवं हस्तकलाएँ । इस पाठ्यक्रम के विषय तथा कार्यक्रम इन तीन तत्वों पर केन्द्रित होते हैं और इनको ही ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है। इस पाठ्यक्रम से विद्यालय बालकों के सामाजिक, बौद्धिक तथा नैतिक दृष्टिकोण का विकास कर सकता है। इससे बालकों की रचनात्मक शक्ति का विकास होता है और वे एक अच्छे नागरिक बनने में समर्थ होते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि केन्द्रित पाठ्यक्रम (अनिवार्य पाठ्यक्रम) बाल केन्द्रित होते हुए भी बालकों को जीवन का अनुभव प्रदान करना है तथा यह पाठ्यक्रम अत्यन्त व्यावहारिक एवं जीवनोपयोगी है। यह पाठ्यक्रम सामाजिक प्रतिबद्धता को स्वीकार करता है और सामाजिक दृष्टिकोण को सम्बधित करता है।
इस पाठ्यक्रम में शारीरिक विकास के साथ-साथ शारीरिक शिक्षण, व्यायाम, तैराकी, नृत्य तथा टीम वाले खेलों को प्रमुख स्थान दिया गया है। बालकों को कला-कौशल तथा प्रयोगात्मक क्रियाएँ रुचिकर लगने लगती है। विशेष रूप से किशोरों को इन क्रियाओं में बहुत आनन्द आता है अतः उनके पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों को कताई-बुनाई, लोहार, कुम्हार के कार्य सिखाए जाते हैं। इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र, समाजशास्त्र आदि विषयों के द्वारा छात्रों में सामाजिक भावना का विकास किया जा सकता है। इस पाठ्यक्रम में विज्ञान एक मुख्य विषय है जिसके अध्ययन से बालकों को सिखाया जाता है कि वह किस प्रकार प्राकृतिक शक्तियों पर विजय प्राप्त कर सकता है।
इस पाठ्यक्रम में गणित को भी अनिवार्य रूप से रखा जाना चाहिए क्योंकि यह विषय तर्क तथा अमूर्त विचारों में सहायक होता है। इसके अलावा गणित की उपयोगिता दैनिक जीवन में भी है। इसी पाठ्यक्रम में भाषायी ज्ञान को भी प्रधानता दी जाती है क्योंकि भाषा के ज्ञान के बिना छात्र अपनी व्यक्तिगत तथा सामाजिक समस्याओं को हल करने में सफल नहीं हो सकता । भाषा सम्प्रेषण तथा अभिव्यक्ति का सशक्त साधन है।
अतः हम कह सकते हैं कि यह पाठ्यक्रम व्यक्ति तथा समाज के विकास का महत्त्वपूर्ण साधन है आज के वैज्ञानिक युग में हम औद्योगिक तथा व्यावसायिक शिक्षा से मानव संसाधनों का विकास कर सकते हैं।
पाठ्यक्रम समाज परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण साधन है। अतः पाठ्यक्रम के द्वारा हम अपनी तात्कालिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं।
कोर पाठ्यक्रम की विशेषताएँ (Characteristics of Core curriculum)
इस पाठ्यक्रम की कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
1. इसमें विषय अलग-अलग नहीं पढ़ाए जाते हैं बल्कि एक साथ पढ़ाए जाते हैं।
2. इसमें किसी भी विषय को पढ़ाने के लिए एक निश्चित समय सारिणी की आवश्यकता नहीं होती।
3. यह बाल केन्द्रित होता है तथा इसका आधार मनोविज्ञान हैं।
4. यह कार्यों द्वारा समस्याओं को सुलझाने का अनुभव प्रदान करता है।
5. यह पाठ्यक्रम सभी छात्रों की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने का प्रयास करता है।
6. इसमें समय विभाग लचीला होता है तथा कालांश बड़े होते हैं।
7. कोर पाठ्यक्रम में छात्रों एवं शिक्षकों के सम्बन्ध अधिक घनिष्ठ एवं मधुर होते हैं।
8. यह पाठ्यक्रम सबसे अधिक प्रचलित है।
9. यह कार्यों द्वारा समस्याओं का अनुभव प्रदान करता है।
10. यह पाठ्यक्रम स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा, कला-कौशल, गणित, इतिहास, भूगोल और बागवानी आदि विषयों को प्रमुख स्थान देने का समर्थक है।
कोर पाठ्यक्रम का महत्त्व (Importance or Significance of Core Curriculum)
कोर पाठ्यक्रम का महत्त्व निम्नलिखित हैं-
(1) कोर पाठ्यक्रम सभी छात्रों की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने का प्रयास करता है।
(2) कोर पाठ्यक्रम में विषय वस्तु के पारम्परिक विभाग एवं खण्ड समाप्त कर दिए जाते हैं तथा कई विषयों को एक साथ मिलाकर पढ़ाया जाता है।
(3) कोर पाठ्यक्रम का समय चक्र लचीला होता है तथा वर्ग बड़े होते हैं।
(4) कोर पाठ्यक्रम में शिक्षण समस्या केन्द्रित होता है तथा छात्रों को कार्यों एवं समस्याओं को हल करने का अनुभव प्राप्त होता है।
(5) कोर पाठ्यक्रम में शिक्षकों एवं छात्रों के सम्बन्ध बहुत अधिक घनिष्ठ होते हैं तथा अध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ परामर्श भी चलता है।
(6) कोर पाठ्यक्रम में अधिकतर शैक्षिक कार्यक्रम शिक्षक और विद्यार्थी मिलकर आयोजित करते हैं।
(7) कोर पाठ्यक्रम मनोवैज्ञानिक एवं बाल-केन्द्रित होता है।
(8) कोर पाठ्यक्रम में विभिन्न प्रकार के अधिगम अनुभव प्रयुक्त किए जाते हैं।
(9) कोर पाठ्यक्रम सबसे अधिक प्रचलित है।
(10) कोर पाठ्यक्रम के अन्तर्गत व्यापक निर्देशन कार्यक्रम की व्यवस्था रहती है।
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