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पाठ्यक्रम का अर्थ | पाठ्यवस्तु का अर्थ व परिभाषा | पाठ्य पुस्तक का अर्थ

पाठ्यक्रम का अर्थ
पाठ्यक्रम का अर्थ

पाठ्यक्रम का अर्थ

पाठ्यचर्या विद्यालय की शिक्षा-व्यवस्था का केन्द्र बिन्दु है। विद्यालय में उपलब्ध सभी संसाधन, जैसे- विद्यालय भवन, उपकरण, पुस्तकालय की वस्तुएँ, पुस्तकें व अन्य शिक्षण-सामग्री का एकमात्र उद्देश्य है पाठ्यचर्या के प्रभावी क्रियान्वयन में सहयोग देना। कक्षा की समस्त क्रियाएँ, पाठ्य सामग्री, कार्यकलाप व मूल्यांकन की समस्त प्रक्रिया विद्यालयी पाठ्यचर्या के परिणामस्वरूप ही नियोजित की जाती है।

प्रत्येक सभ्य समाज अपनी युवा पीढ़ी के समाजीकरण हेतु एक निश्चित शैक्षिक कार्यक्रम का नियोजन करता है जिसका क्रियान्वयन विद्यालय के माध्यम से किया जाता है। इस प्रक्रिया में किन बातों का समावेश है तथा इन्हें शैक्षिक व्यवहार व क्रियाओं के रूप में कैसे परिवर्तित किया जाए, इस सम्बन्ध में काफी मतभेद हैं । बहुत पहले अरस्तू ने कहा था कि “जो स्थितियाँ हैं मानव समाज इनके प्रति न तो एकमत है और न शिक्षण के लिए अपनाए जाने वाले साधनों के प्रति ही।” वर्तमान समय में भी एक मतभेद विद्यमान है कि पाठ्यचर्या में क्या समाहित किया जाए, इसे कैसे संगठित क्रमबद्ध करके पढ़ाया जाए। इस मतभेद के कारण ही पाठ्यचर्या की संकल्पना एवं इसके विपरीत विकास के प्रति हमारे दृष्टिकोण में एकरूपता नहीं आ सकी है।

पाठ्यचर्या शब्द का प्रयोग अनेक रूपों में किया गया है। सामान्य रूप से इनका आशय है-

  • विद्यालय में अध्ययन के लिए निर्दिष्ट पाठ्यक्रम व अन्य सम्बन्धित सामग्री।
  • विद्यार्थियों को पढ़ाई जाने वाली विषय सामग्री।
  • किसी विद्यालय में निर्दिष्ट विषय का पाठ्यक्रम विद्यालय में विद्यार्थियों को दिए जाने वाले नियोजित अधिगम अनुभवों का सम्मिलित रूप।

परन्तु पाठ्यचर्या के स्वरूप का निर्धारण इनमें से किसी एक के द्वारा सम्भव नहीं। यह हमारी मान्यता रही है कि परिभाषाएँ शिक्षा की प्रमुख संकल्पना को पूर्णतया समझने में प्रायः सहायक नहीं होती। व्यक्ति के समाजीकरण में विद्यालय की भूमिका विद्यार्थी की प्रकृति तथा उसके विकास एवं ज्ञान के स्वरूप के प्रति हमारी सेवा में इतनी विविधता है कि पाठ्यचर्या को परिभाषित करना मुश्किल हो जाता है, परन्तु फिर भी पाठ्यचर्या की कुछ प्रमुख प्रचलित परिभाषाओं पर ध्यान देने में पाठ्यचर्या की संकल्पना की जा सकती है।

  • पाठ्यचर्या निर्विष्ट अधिगम अनुभवों के परिणामों की क्रमिक व्यवस्था (जानसन 1967) इस परिभाषा के अनुसार पाठ्यचर्या में अधिगम के परिणाम अधिक महत्त्वपूर्ण है न कि अधिगम के अनुभव। ये परिणाम उद्देश्यों से सम्बन्धित है ।
  • पाठ्यचर्या एक ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा किसी शैक्षिक संकल्पना के आवश्यक सिद्धान्तों व लक्षणों को इस प्रकार सम्प्रेषित किया जाता है कि उनकी उपयुक्त समालोचना करते हुए उन्हें प्रभावशाली ढंग से कार्यरूप में परिणत किया जा सके। (लारेन्स स्टेनहाउस, 1975) यहाँ पाठ्यचर्या को सम्प्रेषण हेतु एक प्रयास अथवा क्रियाकलाप के रूप में देखा गया है।
  • पाठ्यचर्या किसी शैक्षिक प्रस्ताव का रूपांकन तथा क्रियान्वयन है जिसका शिक्षण तथा अधिगम किसी विद्यालय या संस्था में किया जा सके तथा जिसके लिए वह संस्था इन स्तरों- तार्किकता, क्रियान्वयन एवं प्रभाव की दृष्टि से उत्तदायी भी हो।
  • पाठ्यचर्या औपचारिक शैक्षिक तथा/अथवा प्रशिक्षण प्रयासों का संगठित रूप है (डेविड प्रांत 1980)
  • पाठ्यचर्या उन सभी अनुभवों का संकलन है किसी एक अध्येता की शिक्षा के कार्यक्रम में निहित होते हैं और उसका प्रयोजन व्यापक लक्ष्यों तथा उनसे सम्बन्धित उन विशिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त करना होता है, जिनका नियोजन भूत व वर्तमान व्यावसायिक व्यवहारों के सिद्धान्त व शोध सम्बन्धी ढाँचे के रूप में किया जाता है। (Glen Hars 1987) इस प्रकार पाठ्यचर्या नियोजित अधिगम अनुभवों की सूची होती है जिन्हें विद्यालय के निर्देशन के अन्तर्गत दिया जाता है। दूसरे शब्दों में, पाठ्यचर्या उन अनुभवों की रूपरेखा होती है, जो विद्यार्थियों के लिए नियोजित की जाती है। इस प्रकार पाठ्यचर्या विद्यालय के निर्देशन में विद्यार्थियों के लिए नियोजित अनुभवों का ब्लूप्रिण्ट है।

उपर्युक्त परिभाषाओं के विवेचन से यह स्पष्ट है कि पाठ्यचर्या के निम्नलिखित छः महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं जिनको भली-भाँति समझना आवश्यक है-

  • पाठ्यचर्या सदैव पूर्ण नियोजित होती है। इसमें निहित क्रियाओं की आवश्यकतापूर्ण एकाएक विकसित नहीं किया जा सकता है।
  • पाठ्यचर्या के चार आधार होते हैं सामाजिक शक्तियाँ स्वीकृत सिद्धान्तों द्वारा प्रदत्त मानव विकास का ज्ञान, अधिगम का स्वरूप तथा ज्ञान व संज्ञान का स्वरूप। इस प्रकार पाठ्यचर्या किसी-किसी विशिष्ट समाज के एक विशिष्ट आयु वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए निर्मित होती है। किसी विशिष्ट व्यवसाय के लिए कक्षा आठ की बालिकाओं के लिए विकसित पाठ्यचर्या इसी कक्षा के लड़कों के लिए पूर्णतया निरर्थक भी हो सकती है।
  • पाठ्यचर्या के लक्ष्य प्रयोजन उससे सम्बन्धित शैक्षिक उद्देश्यों से निर्विष्ट होते हैं ये उद्देश्य ही साध्य हैं तथा स्वीकृत पाठ्यचर्या इन्हें प्राप्त करने का साधन है।
  • पाठ्यचर्या अध्यापक के अनुदेशन को नियोजित करने में सहायक होती है। बाल विकास की गहरी समझ तथा बच्चों द्वारा विभिन्न शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने की क्षमता की जानकारी से अध्यापक पाठ्यचर्या में निर्दिष्ट अधिगम अणु का भी नियोजन कर सकता है। अधिगम अणु की गुणवत्ता सार्थकता ही पाठ्यचर्या के क्रियान्वयन के प्रभाव का निर्धारण करती है।
  • अध्यापक अपनी कक्षा के सभी विद्यार्थियों के लिए एक ही प्रकार के अधिगम अनुभवों का नियोजन करता है फिर भी अपने अधिगम अनुभवों व अपनी सहभागिता के स्तर एवं गुणवत्ता के कारण उनमें भिन्नता दिखाई देती है उनमें व्यक्तिगत भेद तथा सामाजिक पृष्ठभूमि की विभिन्नता इस प्रकार के परिणाम के लिए उत्तरदायी है। यही कारण है कि एक ही कक्षा के प्रत्येक छात्र की वास्तविक पाठ्यचर्या उसी कक्षा के अन्य भागों की पाठ्यचर्या की अपेक्षा भिन्न होती है।
  • प्रत्येक अध्येता की अपनी वास्तविक पाठ्यचर्या के अस्तित्व पाठ्यचर्या के अस्तित्व के परिणामस्वरूप निर्दिष्ट पाठ्यचर्या व क्रियान्वित पाठ्यचर्या के बीच पाए जाने वाले अन्तर के कारण अध्यापक की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है। उसे कक्षा में न केवल लचीली व्यवस्था प्रदान करनी होती है वरन् अधिगम के सार्थक विकल्प खोजने पड़ते हैं।

पाठ्यवस्तु तथा पाठ्य-पुस्तक में अन्तर्सम्बन्ध (Interrelationship between Syllabus and test-book)

पाठ्यवस्तु तथा पाठ्य-पुस्तक एक-दूसरे के बगैर अधूरे हैं। पाठ्यवस्तु के बगैर पाठ्य-पुस्तक का निर्माण नहीं किया जाता है। जहाँ पाठ्यवस्तु निर्धारित पाठ्य विषयों के शिक्षण के लिए अन्तर्वस्तु उसके ज्ञान की सीमा, छात्रों द्वारा प्राप्त किए जाने वाले कौशल .को निश्चित करता है तथा शैक्षिक सत्र में पढ़ाए जाने वाले व्यक्तिगत पहलुओं एवं निष्कर्षों की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है, जबकि पाठ्य-वस्तु विषयों के ज्ञान को एक स्थान पर पुस्तक के रूप में संगठित ढंग से प्रस्तुत करने का काम करती है। यह शिक्षकों एवं छात्रों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती है तथा छात्रों एवं शिक्षकों को जानकारी प्राप्त होती है कि विषयवस्तु का अध्यापन किस प्रकार करना चाहिए। इसलिए पाठ्यवस्तु के बगैर पाठ्य पुस्तक की कल्पना निराधार है।

पाठ्यवस्तु का अर्थ व परिभाषा (Meaning and Definition of Syllabus)

पाठ्यवस्तु में निर्धारित, पाठ्य विषयों से सम्बन्धित क्रियाओं का ही समावेश होता है। इस प्रकार पाठ्यवस्तु के अन्तर्गत विषयवस्तु का विवरण शिक्षण के लिए तैयार किया जाता है जिसे शिक्षक छात्रों को पढ़ाता है।

परिभाषाएँ (Definitions) – हेनरी हेरेप (Henry Harrap) 1 के 64 अनुसार, “पाठ्यक्रम (सिलेबस) केवल मुद्रित संदर्शिका है जो यह बताती है कि छात्र को क्या सीखना है ? पाठ्यवस्तु की तैयारी पाठ्यक्रम विकास कार्य का एक तर्कसम्मत सोपान है।”

श्रीमती आर. के. शर्मा के अनुसार, पाठ्यवस्तु किसी विद्यालय या शैक्षिक विषय की उस विस्तृत रूपरेखा से है जिसमें विद्यालय शिक्षक, शिक्षार्थी एवं समुदाय के उत्तरदायित्वों के निर्वहन के साथ-साथ छात्र के सर्वांगीण विकास के अध्ययन तत्व समाहित हो। पाठ्य पुस्तकें आधुनिक शिक्षा प्रणाली में पाठ्य पुस्तकों का महत्त्व सर्वविदित है पाठ्यक्रम की वास्तविक रूपरेखा को पाठ्यवस्तु द्वारा ही विस्तार मिलता है जिससे वह शिक्षक एवं छात्र दोनों को सुगम हो पाता है। सीखने के अनुभवों में पाठ्य पुस्तकों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। पुस्तकों के माध्यम से अतीत के ज्ञान व अनुभव को संचित किया जाता है। इस प्रकार अच्छी पाठ्य-पुस्तकें शिक्षा प्रक्रिया में निर्देशन का कार्य करती है। अध्ययन-अध्यापन की दृष्टि से शिक्षक व शिक्षार्थी दोनों के लिए यह महत्त्वपूर्ण अध्ययन है।

पाठ्य पुस्तक का अर्थ (Meaning of Text- Book)

किसी विषय ज्ञान को जब एक स्थान पर पुस्तक के रूप में संगठित ढंग से प्रस्तुत किया जाता है तो उसे पाठ्य-पुस्तक की संज्ञा दी जाती है। पाठ्य पुस्तक के अर्थ को सुस्पष्ट करने के लिए कुछ प्रमुख कथनों को प्रस्तुत करना यहाँ पर समीचीन प्रतीत हो रहा है।

हैरौलिकर (Harolicker) के अनुसार, “पाठ्य-पुस्तक ज्ञान आदतों, भावनाओं, क्रियाओं व प्रवृत्तियों का सम्पूर्ण योग है।”

हाल क्वेस्ट (Hallquest) के शब्दों में, “पाठ्य-पुस्तक शिक्षण अभिप्रायों के लिए व्यवस्थित प्रजातीय चिन्तन का एक अभिलेख है।”

लैंज (Lange) के अनुसार, “यह अध्ययन क्षेत्र की किसी शाखा की एक प्रमाणित पुस्तक होती है। “

डगलस (Duglus) का कथन है ” अध्यापकों के बहुमत में अन्तिम विश्लेषण के आधार पर पाठ्य-पुस्तक को वे क्या और किस प्रकार पढ़ाएँगे कि आधारशिला माना है।”

बेकन (Bacon) का कहना है कि ” पाठ्य पुस्तक कक्षा प्रयोग के लिए विशेषज्ञों द्वारा सावधानी से तैयार की जाती है। यह शिक्षण युक्तियों से भी सुसज्जित होती है।”

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