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विकलांग बच्चों के लिए शैक्षिक प्रावधान

विकलांग बच्चों के लिए शैक्षिक प्रावधान
विकलांग बच्चों के लिए शैक्षिक प्रावधान

विकलांग बच्चों के लिए शैक्षिक प्रावधान (Educational Provisiong for Orthopaedically Handicapped Children)

(i) समेकित शिक्षा कार्यक्रम (Integrated Education Programme)- अस्थि विकलांग छात्रों को चलने-फिरने में कठिनाई होती है। ऐसे छात्रों का दूसरे छात्र कभी-कभी मजाक उड़ाते हैं और उनसे अलग-थलग रहते हैं जिससे इन छात्रों को सामंजस्य स्थापित करने, अपने पर्यावरण के अनुकूल ढालने में परेशानी आती है। कुछ छात्र ठीक प्रकार के उठने-बैठने या खड़े होने में परेशानी अनुभव करते हैं और जल्दी थक जाते हैं। यह आवश्यक है कि शिक्षक ऐसे छात्रों को सामान्य रूप में स्वीकार करें और उन छात्रों की कमियों को दूर करने के लिए उचित कदम उठाएँ तथा उचित मार्ग निर्देशन दें।

वर्ग-प्रबंधन (Classroom Management) :

(i) शारीरिक असमर्थता के कारण जमीन पर बैठ सकने वाले छात्रों के लिए कुर्सी की व्यवस्था करनी चाहिए। शिक्षक अभिभावकों के साथ मीटिंग कर शैक्षिक लक्ष्य निर्धारित करनी चाहिए। ऐसे बच्चों के लिए अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन उद्देश्यों पर अभिभावकों से हर तीन मास तथा आवश्यकतानुसार आवश्यक मुद्दों पर बातचीत करनी चाहिए।

(ii) कक्षा में इन छात्रों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। इन्हें बैठे-बैठे उत्तर देने को कहना चाहिए जिस अवस्था में बच्चे अपने को सुविधाजनक पाते हों, उसमें उत्तर देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

(iii) ऐसे छात्रों को यथासंभव अगली पंक्तियों में बिठाया जाना चाहिए ताकि उन्हें कक्षा में सुनने में बाधा न आए। साथ ही साथ दूसरे सामान्य छात्रों के बीच दूरी में पर्याप्त अंतर हो ताकि बच्चे सफलतापूर्वक इधर-उधर आ जा सकें।

(iv) प्रारंभिक अवस्था में कृत्रिम अंग जैसे बैसाखी, सुनने-देखने के सहायक यंत्र जल्दी-जल्दी बदलने की आवश्यकता होती है। अतः, इन्हें सही समय पर बदले जाने की जरूरत होती है। इस बात पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।

(v) ऐसे बच्चों अंगों से किए जाने वाले कार्यों में कठिनाई महसूस करते हैं। वह कार्य जो हाथों से किए जाते हैं उन कार्यों को करने में अधिक समय लगाते हैं। अध्यापक को इन्हें ज्यादा समय देना चाहिए।

(vi) शिक्षक तथा कक्षा के अन्य छात्र निःशक्त के प्रति दया, विशेष सहानुभूति, रहम-तरस के स्थान पर उनकी क्षमताओं को समझना चाहिए तथा तिरस्कार एवं हीनता की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।

(vii) शारीरिक नि:शक्त बच्चों को शिक्षण कार्य में वे सक्रिय रूप से सहयोगी, सहगामी बनाने के लिए उन्हें कक्षा की सभी प्रकार की गतिविधियों में तल्लीन रखना चाहिए। साथ ही स्कूल चाहिए में अध्यापक को तथा घर में माता-पिता को ऐसे बच्चों पर विशेष ध्यान देना।

(viii) खेल के नियमों एवं तरीकों में परिवर्तन लाकर शिक्षकों को सामान्य एवं निःशक्त बच्चों को एक साथ खेलने लायक बनाना चाहिए।

(ix) विद्यालय में चलने-फिरने, शौचालय जाने, पानी पीने आदि कार्यों के लिए अनुकूल व्यवस्था सुनिश्चित करना चाहिए।

(x) ऐसे बच्चों को बड़ी कक्षाओं में उनकी क्षमता के अनुसार किसी प्रयोगात्मक कार्य का प्रशिक्षण अवश्य दिया जाना चाहिए। साथ ही उन्हें खेलों, मनोरंजन और शारीरिक क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए पर्याप्त अवसर देना चाहिए। उन्हें सामूहिक पी. टी., प्रार्थना सभा में शामिल कर व्यक्तिगत सहभागिता के आधार पर उनका मूल्यांकन करना चाहिए।

(xi) अभिभावकों को उन स्थानों, समाज कल्याण विभाग, अन्य सरकारी कार्यालय जैसे स्वास्थ्य विभाग का पता बताना चाहिए जिनमें अंग प्रत्यारोपण यंत्र तथा सहायक उपकरण निःशुल्क या कम मूल्य पर मिलते हों। साथ ही उन्हें समय-समय पर आयोजित निःशुल्क पोलियो अभियान शिविरों में जाकर सभी छोटे बच्चों को पोलियों ड्राप्स पिलानी चाहिए।

(xii) ऐसे बच्चों में यदि निःशातता पैर से हो तो हाथ तथा मानसिक क्षमता वाले कार्य जैसे-कबड्डी में रेफरी का कार्य, शतरंज, चित्रांकन, रेखांकन करना, कविता पाठ आदि के शैक्षिक कार्य ऐसे बच्चों को देना चाहिए।

(xiii) कुछ अस्थि विकलांग बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ पढ़ने में कठिनाई होती है। इसलिए ऐसे बालकों के लिए विशेष कक्षाओं का आयोजन किया जाना चाहिए

(xiv) जरूरत पड़ने पर ऐसे बच्चों के लिए अतिरिक्त कक्षाओं का भी आयोजन किया जाना चाहिए।

(ii) विशिष्ट शिक्षा कार्यक्रम (Special Education Programme) – कुछ अस्थि विकलांग बच्चों मे विकलांगता की मात्रा इतनी अधिक होती है कि वे मुख्यधारा के स्कूलों की सामान्य कक्षाओं से बिल्कुल लाभान्वित नहीं हो पाते हैं। साथ ही विशेष कक्षाएँ और अतिरिक्त कक्षाएँ भी उन्हें लाभ नहीं पहुँचा पाती। ऐसी स्थिति में ऐसे बच्चों को विशिष्ट स्कूलों में दाखिला कराना चाहिए जो निम्नलिखित सुविधाओं से युक्त हों :

(i) शारीरिक उपचार कक्ष (ii) बाधारहित माहौल। उदाहरणार्थ-रैम्प, लिफ्ट आदि की सुविधा। (iii) विश्राम कक्ष (iv) आवासीय सुविधा। (v) विशिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षक की उपलब्धता।

(iii) समावेशी शिक्षा कार्यक्रम (Inclusive Education Programme) समावेशी शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत विकलांग बच्चों को मुख्यधारा के स्कूलों की सामान्य कक्षाओं में सामान्य बच्चों के साथ सामान्य पाठ्यक्रम के जरिए पढ़ने-लिखने का मौका मिलता है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत पूरे देश में यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम में सामुदायिक जागरुकता, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की खोज एवं पहचान, शैक्षिक स्थापना व्यक्तिनिष्ठ शैक्षिक योजना का निर्माण, शिक्षक प्रशिक्षण, संसाधन समर्थन, विशिष्ट स्कूलों का सशक्तिकरण, ढाँचागत बाधामुक्ति, सर्वेक्षण एवं मूल्यांकन और बालिका शिक्षण सरीखे मुद्दे शामिल हैं।

(iv) व्यक्तिनिष्ठ शैक्षिक कार्यक्रम (Individualized Education Programme)- जटिल शारीरिक विकलांगता से पीड़ित बालकों को विशिष्ट शिक्षा को आवश्यकता पड़ती है। इसलिए ऐसे बच्चों को व्यक्तिनिष्ठ शैक्षिक कार्यक्रम के जरिए शिक्षण-अधिगम सुविधा मुहैया कराना चाहिए। यह एक ऐसी योजना है जो विकलांग बच्चों की शैक्षिक, मानसिक एवं अन्य क्रियात्मक कुशलताओं के विकास हेतु शिक्षकों द्वारा निर्मित की जाती है। इस योजना में बच्चों को विभिन्न प्रकार की सेवाएँ देने के लिए उनसे संबंधित सूचनाएँ दर्ज किया जाता है। उदाहरणार्थ शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए उसके शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक पृष्ठभूमि के आधार पर अपेक्षित कार्यक्रम बनाए जा सकते हैं।

(v) शैक्षिक स्थापन (Educational Placement)- शारीरिक अथवा अस्थि विकलांग बच्चों को किसी भी स्थिति और माहौल में शिक्षण सुविधा मुहैया कराया जा सक है। विकलांगता की मात्रा, चिकित्सकीय पहचान एवं सामुदायिक सेवाओं की मौजूदगी पर निर्भर करता है। उदाहरणार्थ यदि कोई विकलांग बालक साधारणतः किसी नियमित स्कूल में पढ़ रहा हो लेकिन उसे अस्पताल में लम्बी अवधि तक दाखिल कराना आवश्यक हो ऐसे अस्पताल कक्ष में ही उसे वर्गकक्ष जैसी शिक्षण सुविधा मुहैया कराया जा सकता है। यदि उक्त बालक को एक लम्बी अवधि तक घर में रहना अत्यंत आवश्यक प्रतीत हो तो ऐसे में स्कूल वापस जाने के पहले उस बच्चे की शिक्षा के लिए घर में ही एक शिक्षक की व्यवस्था किया जा सकता है जबकि स्थायी विकलांगता पीड़ित बच्चों को अस्पताल के स्कूल अथवा विशेष विद्यालय में दाखिल कराना चाहिए।

(vi) पाठ्यचर्या अनुकूलन (Curriculum Adaptation)- अमूमन अस्थि विकलांग बालक सामान्य स्कूल में सामान्य बच्चों के लिए निर्मित पाठ्यचर्या के जरिए पठन-पाठन करते हैं। ये पाठ्यचर्या अस्थि विकलांग बच्चों के लिए सर्वथा अनुकूल नहीं होता है। अतः, पाठ्यचर्या में थोड़ा बदलाव लाकर अस्थि विकलांग बच्चों के अनुकूल बनाया जा सकता है।

(vii) व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education) – अस्थि विकलांग बच्चों को औपचारिक शिक्षा के अलावा व्यावसायिक शिक्षा मुहैया कराना चाहिए। उन्हें बुक बाइंडिंग, दर्जीगिरी, जूता-चप्पल निर्माण, कार्ड बोर्ड निर्माण, इनवेलप निर्माण, जैम और अंचार निर्माण के अलावा मोतबत्ती निर्माण एवं बढ़ईगिरी आदि की भी शिक्षण-प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

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