भाषा अधिगम एवं भाषा द्वारा अधिगम (learning language and learning through language)
भाषा अधिगम दो शब्दों के योग से बना है-भाषा एवं अधिगम। भाषा से तात्पर्य किसी भी भाषा से है जबकि अधिगण से तात्पर्य सीखने से है। इस प्रकार यदि भाषा अधिगम का शाब्दिक विवेचन किया जाए तो कहा जा सकता है कि इसका तात्पर्य भाषा को सीखना है। हम अपने विचारों की अभिव्यक्ति किसी-न-किसी भाषा के ज्ञान से ही कर सकते हैं। अतः भाषा को सीखना अथवा भाषा का अधिगम करने के लिए भाषा का ज्ञान अथवा जानकारी होना नितान्त आवश्यक है। भाषा के ज्ञान के लिए उसकी शब्दावली, उसके व्याकरण, उसको अर्थग्राह्यता आवश्यक होती है तथा विभिन्न प्रयासों के द्वारा ही व्यक्ति किसी भाषा का अधिगम कर करता है। भाषा का अधिगम करने के लिए भाषा की प्रकृति का ज्ञान होना आवश्यक है। संविधान में 14 भाषाएँ स्वीकृत की गई हैं । इसके अतिरिक्त अंग्रेजी और विदेशी भाषाओं का ज्ञान भी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को सुदृढ़ बनाने के लिए आवश्यक माना जाता है। बहुभाषा राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाए रखने का भी कार्य करती है। अत: भाषा का अधिगम करना तथा किसी भाषा में विशेष दक्षता प्राप्त करना किसी देश के निवासियों के लिए आवश्यक होता है।
भाषा सीखने के लिए हमें देश की भाषा की आवश्यकताओं को देखना होगा और इसी आधार पर यह निर्णय लेना होगा कि कौन-सी भाषा प्रगति से सम्बन्धित है जिसे हमें सीखना चाहिए । बहुत से लोगों का यह विचार है कि यदि हिन्दी राष्ट्रभाषा बनती है, तो इससे धार्मिक विद्वेष बढ़ेगा, क्योंकि भाषाएँ दोयम दर्जे की हो जाएँगी। बिना अंग्रेजी के आधुनिक व्यापार–वाणिज्य सम्भव नहीं है। हिन्दी तकनीकी भाषा नहीं है। ऐसे न जाने कितने तर्क-वितर्क प्रस्तुत किये गये हैं। भारतीय शायद यह भूल गये हैं कि अंग्रेजी का यहाँ से चला जाना अंग्रेजी के यहाँ से चले जाने से भी अधिक संकटपूर्ण है आज सारा भारतीय बाजार, साहित्य, प्रकाशन, अखबार तथा आधुनिक मीडिया, शिक्षा संस्थान जिस मात्रा में अंग्रेजी के कब्जे में हैं, वह यदि हाथ से निकल जाता है तो अंग्रेजी साम्राज्य से पलायन से भी ज्यादा गम्भीर समस्या उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि यह राजनीतिक आधिपत्य नहीं है, बल्कि आर्थिक आधिपत्य है इस सन्दर्भ में अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्क के लिए अंग्रेजी की अनिवार्यता के लिए प्राय: अंग्रेजी की चर्चा होती है।
अतः भारत में दक्षिण के लोगों का उत्तर की भाषा हिन्दी इसलिए सीखना आवश्यक है क्योंकि यह राष्ट्रभाषा के रूप में है जबकि उत्तर के लोगों का दक्षिण की भाषा सीखने का औचित्य बहुत कम है। अतः भाषा अधिगम के लिए प्रान्तीयता के आधार न बनाकर आवश्यकता को आधार बनाया जाए।
भाषा अधिगम की प्रक्रिया (Process of Language Learning)
कोई भी व्यक्ति किसी भाषा का अथवा किसी विषय के विभिन्न प्रकरणों से किस तरह ज्ञानार्जन करता है-यही भाषा अधिगम की प्रक्रिया कहलाती है। अधिगम की प्रक्रिया को प्रेरणा का परिणाम भी कहा जाता है। भाषा अधिगम अनिवार्य रूप से एक सृजनात्मक प्रक्रिया है। समय-समय पर परिवर्तित होने वाली मानसिक एवं सामाजिक प्रवृत्तियों के फलस्वरूप सीखने के लिए औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा की आवश्यकता होती है। प्रत्येक व्यक्ति में अपन विचारों तथा मनोभावों को अभिव्यक्ति करने की सहज प्रवृत्ति होती है। प्रत्येक बालक जिस भाषा के परिवेश में रहता है, वह उसी भाषा को सहज रूप से अनुकरण द्वारा सीख लेता है। सीखी जाने वाली भाषा का स्वरूप शुद्ध है अथवा अशुद्ध, वह उसी रूप में उसे ग्रहण करने के लिए विवश होता है। भाषा अधिगम की प्रक्रिया में व्यक्तिगत भेद भी दिखाई देते हैं।
सामान्य तौर पर बालकों की अपेक्षा बालिकाएँ भाषा को अपेक्षाकृत बोलने की दृष्टि से शीघ्र सीख जाती हैं। उनके बोले जाने वाले वाक्यों में अधिक शब्द पाये जाते हैं।
भाषा अधिगम की प्रक्रिया में प्रायः निम्नलिखित कठिनाइयाँ आती हैं-
1. पृष्ठभूमि- भाषा अधिगम में सीखने वाले की पृष्ठभूमि कैसी है? उसका परिवेश कैसा है ? उसके घर का भौतिक वातावरण, मित्र, बन्धु किस प्रकार के हैं ? इन सबके कारण भी भाषा के अधिगम में कठिनाई आ जाती है।
2. शारीरिक अस्वस्थता या विकृति- भाषा अधिगम की एक महत्त्वपूर्ण कठिनाई छात्र का शारीरिक रूप से स्वस्थ न होना भी है। मनोवैज्ञानिक का मत है स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। अतः जब छात्र शारीरिक कष्ट से पीड़ित हो या उसे कोई रोग, दोष हो, ऐसी स्थिति में भाषा अधिगम की प्रक्रिया बाधक हो जाती है। शारीरिक अस्वस्थता के साथ-साथ शारीरिक विकृति भी छात्रों की अधिगम प्रक्रिया को बाधित कर देती है। अधिकांश देखा जाता है कि विकलांग बालक की अधिगम प्रक्रिया भी सामान्य रूप से नहीं चलती है कुछ बालक हकलाते हैं, कुछ गूंगे-बहरे होते हैं या लूले लंगड़े होते हैं इन सभी स्थितियों में बालक का सामान्य भाषा विकास नहीं हो पाता है। सामान्य भाषा विकास के लिए छात्र का पूर्णरूपेण स्वस्थ होना आवश्यक है।
3. मानसिक अस्वस्थता – शारीरिक अस्वस्थता के साथ-साथ मानसिक अस्वस्थता भी बालक के भाषा अधिगम पर प्रभाव डालती है। जो बच्चे मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होते हैं, सदैव तनाव एवं कुण्ठा में रहते हैं, उनकी अधिगम प्रक्रिया भी ठीक तरह से कार्य नहीं करती है। अत: सहज अधिगम के लिए मानसिक स्वास्थ्य अत्यन्त आवश्यक है।
4. संकोची स्वभाव- कुछ छात्रों का स्वभाव अत्यन्त संकोची प्रकार का होता है वे न तो शिक्षक को प्रश्न पूछते हैं न ही अपनी त्रुटियों का संशोधन कराते हैं। वे बहुत शर्मीले किस्म के व्यक्ति होते हैं। अपनी संकोची प्रकृति के कारण वे कक्षा में अन्य छात्रों ही से भी समायोजन स्थापित नहीं कर पाते हैं। ऐसे छात्रों का अधिगम स्तर भी निम्न रह जाता है। वे अधिकतर एकाकी स्वभाव के बन जाते हैं। ऐसे छात्र न तो ठीक प्रकार से अन्य लोगों के साथ अन्तःक्रिया कर पाते हैं और न ही भाषा अधिगम में अच्छे होते हैं। संकोची प्रवृत्ति के कारण उनका एकाकी विकास होता है।
5. भयभीत रहना- कुछ छात्रों का समायोजन स्तर अच्छा नहीं होता है। वे संवेगात्मक रूप से भी स्वस्थ नहीं होते हैं, सदैव डरे-डरे से और भयभीत रहते हैं। ऐसे छात्रों में घबराहट की भावना अधिक पायी जाती है। उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। वे किसी से मिलने-जुलने में भी भय अनुभव करते हैं। इस प्रकार के छात्रों का भाषा अधिगम भी अच्छा नहीं होता है। वे ठीक प्रकार से भाषा को हृदयंगम नहीं कर पाते हैं और उनका बोधगम्य स्तर भी निम्न होता है।
6. आत्मविश्वास की कमी– कुछ छात्रों में आत्मविश्वास की भावना बहुत कम पायी जाती है अथवा उनका संवेगात्मक विकास उचित रूप से नहीं हो पाता है। इस कारण उनके आत्मविश्वास में कमी आ जाती है। कई बार छात्र निरंतर असफलता के कारण भी आत्महीनता के शिकार हो जाते हैं। असफलता के कारण धीरे-धीरे आत्मविश्वास भी मिटने लगता है। ऐसे अल्प आत्मविश्वासी छात्रों को भाषा अधिगम में भी कठिनई का सामना करना पड़ता है आत्मविश्वास की कमी के कारण भाषा का ज्ञान होने के बाद भी उनमें उच्चारण दोष, त्रुटियों की संख्या अधिक हो जाती है।
7. शब्दों के शुद्ध अर्थ का ज्ञान न होना- भाषा अधिगम की एक महत्त्वपूर्ण कठिनाई यह भी है कि छात्रों को शब्दों के शुद्ध अर्थ का ज्ञान नहीं होना है। वे शब्दों का उचित पर प्रयोग नहीं कर पाते हैं कुछ शब्दों के उचित अर्थ को समझना भी कठिन हो जाता है, वर्तनी की अशुद्धियाँ तथा एक शब्द के कई अर्थ निकालना आदि के कारण भी भाषा अधिगम ठीक से नहीं हो पाता है।
भाषा द्वारा अधिगम (Learning Through Language)
भाषा द्वारा अधिगम किया जाता है। अधिगम किसी-न-किसी भाषा के माध्यम से ही किया जाता है। हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच रसियन तथा क्षेत्रीय भाषाओं में ज्ञान एवं जानकारी भरी रहती है, उस ज्ञान अथवा जानकारी को अर्जित करने के लिए हमें उस भाषा को सीखना पड़ता है, जैसे- उच्च शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा का ज्ञान भण्डार अंग्रेजी साहित्य माना जाता है। माध्यमिक स्तर तक हिन्दी भाषा जानने वाला छात्र उच्च एवं तकनीकी शिक्षा अंग्रेजी भाषा के माध्यम से कैसे ग्रहण कर सकता है। अतः उच्च तथा तकनीकी शिक्षा का ज्ञान अर्जित करने के लिए उसे प्रारम्भिक कक्षाओं से ही अंग्रेजी भाषा को सीखना चाहिए तभी वह उस साहित्य का ज्ञान अर्जित करने में सफल हो सकता है। इसी प्रकार हमारे वेदों तथा पुराणों में चिकित्सा, विभिन्न मंत्रों, राजनीतिक व्यवस्था तथा इतिहास का ज्ञान भरा पड़ा है, जिसे ग्रहण करने के लिए संस्कृत भाषा का अधिगम आवश्यक है। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी मानी गई है। संस्कृत भाषा असीम ज्ञान के भण्डार से भरी हुई है। उस ज्ञान को अर्जित करने के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान विद्वानों ने आवश्यक माना है। अतः उस ज्ञान का अधिगम संस्कृत भाषा के द्वारा ही हो सकता है।
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