राजनीति विज्ञान / Political Science

संविधान की अवधारणा एवं अर्थ | भारतीय संविधान के गठन की भूमिका | भारतीय संविधान का गठन

संविधान की अवधारणा एवं अर्थ
संविधान की अवधारणा एवं अर्थ

संविधान की अवधारणा एवं अर्थ

किसी देश का संविधान, उस देश की राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढाँचा निर्धारित करता है। संविधान में शासन के सभी अंगों (व्यवस्थापिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका) की रचना, शक्तियाँ, कार्यों एवं दायित्वों का उल्लेख होता है। संविधान शासन के अंगों एवं नागरिकों के मध्य सम्बन्धों को भी विनियमित करता है। संविधान देश के आदर्शों को भी प्रकट करता है। संविधान जनता की सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक प्रकृति, आस्था और आकांक्षाओं पर आधारित होता है। शासन व्यवस्था के सुचारु संचालन हेतु व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका का गठन एवं उनके कार्यों और अधिकारों की सीमाओं के निर्धारण के लिये संविधान की आवश्यकता होती है। संविधान के अभाव में शासन का सुचारु रूप से संचालित होना कठिन है और अराजकता की स्थिति निर्मित होने की प्रबल सम्भावना रहती है। संविधान में नागरिकों के मूल अधिकार एवं कर्त्तव्यों का भी विवरण होता है। संविधान शासन व्यवस्था का आधार है।

भारतीय संविधान के गठन की भूमिका

भारत का संविधान एक संविधान सभा द्वारा निर्मित किया गया है। संविधान सभा का गठन ब्रिटिश शासन तथा भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के नेतृत्वकर्त्ताओं के मध्य परस्पर सहमति से किया गया। उसका आधार 1946 की कैबिनेट मिशन योजना रही। यह एक प्रतिनिधि मण्डल था जिसमें ब्रिटिश मन्त्रिमण्डल के तीन सदस्य थे। कैबिनेट मिशन के सुझावों के आधार पर जुलाई 1946 में संविधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन हुआ। संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव तत्कालीन प्रान्तीय विधानसभाओं द्वारा अप्रत्यक्ष चुनाव के आधार पर किया गया। संविधान सभा में ब्रिटिश प्रान्तों से 292 सदस्य, देशी रियासतों से 93 तथा चीफ कमिश्नरियों से 4 प्रतिनिधियों का प्रावधान था। इस प्रकार इसमें कुल 398 सदस्य थे। संविधान सभा में जनसंख्या के अनुपात में सदस्य निर्धारित किये गये थे। सामान्यतः 10 लाख की जनसंख्या पर एक सदस्य का प्रावधान था। भारत के विभाजन के उपरान्त संविधान सभा के सदस्य घट गये थे क्योंकि मुस्लिम लीग के सदस्यों ने संविधान सभा की बैठकों में भाग नहीं लिया।

भारत में संविधान सभा की मांग राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ी थी। 1895 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के निर्देशन में तैयार किये गये स्वराज विधेयक, महात्मा गाँधी के 5 जनवरी 1922 का कथन कि “भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छानुसार होगा” तथा फरवरी 1924 में तेज बहादुर सप्रू की अध्यक्षता में सम्पन्न राष्ट्रीय सम्मेलन, मई 1934 में स्वराज दल के पटना सम्मेलन की स्पष्ट मांग का परिणाम ही संविधान निर्मात्री सभा थी। तत्कालीन परिस्थितियों के कारण संविधान सभा का निर्वाचन वयस्क मताधिकार से सम्भव नहीं था इसमें विलम्ब अधिक हो रहा था। अतः प्रान्तीय विधानसभाओं का उपयोग निर्वाचनकारी संस्थाओं के रूप में किया। गया। उस समय यही एकमात्र व्यावहारिक उपाय था। स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रमुख नेताओं ने संविधान निर्माण में उल्लेखनीय योगदान दिया। संविधान सभा में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, सरदार बल्देव सिंह आदि ने विचार-विमर्श के समय संविधान सभा का पथ प्रदर्शन करने में मुख्य भूमिका का निर्वाह किया। फ्रैंक एन्थोनी, ऐग्लो इण्डियन तथा एच. पी. मोदी, पारसी समुदाय के प्रतिनिधेि थे। अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, के. एम. मुन्शी संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ, सरोजनी नायडू एवं विजय लक्ष्मी पण्डित प्रमुख महिला सदस्य थीं तथा बी. एन. राव संवैधानिक सलाहकार थे।

भारतीय संविधान का गठन

भारतीय संविधान का गठन (Form of Indian constitution ) – भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसमें 460 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियाँ हैं और ये 25 भागों में विभाजित हैं परन्तु निर्माण के समय मूल संविधान में 394 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे और केवल 8 अनुसूचियाँ थीं। संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गयी है, जिसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है। केन्द्रीय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख राष्ट्रपति है। भारत के संविधान की धारा 79 के अनुसार केन्द्रीय संसद की परिषद् में राष्ट्रपति तथा दो सदन हैं जिन्हें राज्यों की परिषद् राज्यसभा तथा लोगों का सदन लोकसभा के नाम से जाना जाता है। संविधान की धारा 74(1) में यह व्यवस्था की गयी है कि राष्ट्रपति इस मन्त्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार अपने कार्यों का निष्पादन करेगा। इस प्रकार वास्तविक शक्ति मन्त्रिपरिषद् में निहित है, जिसका प्रमुख प्रधानमन्त्री है जो वर्तमान में श्री नरेन्द्र मोदी हैं। मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोगों के सदन (लोकसभा) के प्रति उत्तरदायी है। प्रत्येक राज्य में एक विधानसभा है। जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश में एक ऊपरी सदन है जिसे विधान परिषद् कहा जाता है। राज्यपाल राज्य का प्रमुख है। प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होता है तथा राज्य की कार्यकारी शक्ति उसमें निहित होती हैं। मन्त्रिपरिषद् जिसका प्रमुख मुख्यमन्त्री है, राज्यपाल को उसके कार्यकारी कार्यों के निष्पादन में सलाह देती है। राज्य की मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से राज्य की विधान सभा के प्रति उत्तरदायी है। संविधान की सातवीं अनुसूची में संसद तथा राज्य विधायिकाओं के बीच विधायी शक्तियों का वितरण किया गया है। अवशिष्ट शक्तियाँ संसद में निहित हैं। केन्द्रीय प्रशासित भू-भागों को संघराज्य क्षेत्र कहा जाता है।

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